“ बेटा जा कर बड़ी माँ से आशीर्वाद ले आ…उनका आशीर्वाद बहुत ज़रूरी है ।” निर्मला ने अपनी बेटी छवि से कहा
छवि और उसका छोटा भाई देव एक दूसरे का मुँह देखने लगे… ,”ये माँ को क्या हो गया है… ये सब भूल गई क्या बड़ी माँ ने पिताजी के गुजर जाने के बाद ना तो ताऊजी को हमारा साथ देने दिया ना ही चाचू को… सबको हमारे ख़िलाफ़ भड़काती रही वो तो भला हो चाचू ने छिप छिपा कर सदा हमारी मदद की ।” छवि ने भाई से कहा
“ माँ मैं नहीं जा रही बड़ी माँ के पास….तुम भूल सकती हो पर मैं नहीं…. बाबा रे कोई ऐसे हाल में भी कैसे किसी को इतना सुना सकता कि किसी को भी वो बातें छलनी कर जाए पर मजाल है जो कोई उनके विरोध में कुछ बोले।” छवि भड़कते हुए बोली
“ तू भी ना एकदम पागल है….बड़ों के आशीर्वाद से सब फलता फूलता है बेटा….माना तेरी बड़ी माँ ज़बान की कड़वी है पर हमेशा तुम सबकी परवाह तो करती है ना… कपड़े… खाने का सामान सब देती रहती है।” निर्मला बेटी को मनाते हुए बोली
“ माँ तुम ना सच में बड़ी अजीब हो…मैं कभी नहीं भूल सकती जब पिताजी गुजर जाने के बाद सब तुम्हारे साथ जो सलूक कर रहे थे… चूड़ियाँ सिन्दूर सब हटा रहे थे… तब तुम कैसे विनती कर कह रही थी चूड़ियाँ इनको बहुत पसंद थी मेरे हाथों में इन्हें तो रहने दो… पर बड़ी माँ और उनकी माँ कैसे बोल रही थी बेशर्म हो गई है एकदम…
पति चला गया है पर इसको चूड़ियों की पड़ी है सूनी माँग और कलाई ही विधवा की पहचान होती है…उपर से तुम्हारी साड़ियों की छँटाई कर रही थी… ये रंग नहीं वो रंग नहीं….हम इतने भी छोटे नहीं थे माँ जो समझ ना सकें तुम पर क्या बीत रही थी उस वक्त…
जब उनकी बातें हमें छलनी कर डालने को काफ़ी थी पर पता नहीं तुम्हें कोई असर क्यों नहीं हुआ …..और कौन से कपड़े और खाने का सामान जो उनके बच्चे रिजेक्ट कर देते वो हमें देकर महान बनती है … मैं नहीं जा रही उनके पास… ये नौकरी मेरे दम पर मेरी मेहनत की फल है और तुम्हारे आशीर्वाद का उनका कुछ भी नहीं इसमें।” छवि मुँह बनाती हुई बोली
माँ फिर भी उसे मना कर बड़ी माँ के पास भेज दी … सबसे पहले बड़े पापा मिले जिन्होंने बहुत आशीष बरसाएँ और तरक़्क़ी का आशीर्वाद भी दिया….पर बड़ी माँ को छवि ने जैसे ही बताया उसकी नौकरी लग गई है सुनते ही बोली,” तो ऐसा कौन सा तीर मार लिया….आजकल कोई भी कहीं भी नौकरी कर सकता है…सरकारी नौकरी कर के क्या दिखा रही बहुत महान हो गई !”
सुनते ही छवि को माँ पर ग़ुस्सा आ रहा था क्यों ही भेजा यहाँ पर ….बड़े पापा ने बड़ी माँ को पहली बार डाँटते हुए कहा,” कुछ तो सोच समझ कर बोलो… बेचारी बच्ची मे अपने बलबूते सब कुछ पाया है… तुम कुछ दे नहीं सकती…मत दो…पर अपनी कड़वी बातों से इस बच्ची का कलेजा छलनी तो मत करो… जा बेटा अपने घर जा … कुछ लोग होते ही ऐसे है जो ना खुद खुश रहते है ना किसी को रहने देते है ।”
छवि आँखों में बह आए आँसू लिए घर आ गई…माँ से गले लग बोली ,”बड़ी माँ तो नहीं पर बड़े पापा का आशीर्वाद ले आई हूँ अब तुम मुझे कभी बड़ी माँ के पास मत भेजना उनकी बातें सदैव हमें छलनी करने वाले ही होंगे।”
निर्मला चुप रह गई बस वो चाहती थी बच्चों पर बड़ों का आशीर्वाद बना रहे पर कलेजा छलनी हो से नहीं चाहा था ।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#मुहावरा
#छलनीकरडालना
ये कहानी आज की लगती हैं. कुछ लोग होते ही ऐसे हैं जिन्हें दुसरे का कुछ भी नही भाता जैसे की तरक्की. ऐसे लोगो को नजर अंदाज करके अपनी ख़ुशी जरूर मनानी चाहिए.
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