अहम फ़ैसला – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

   ” तो तूने सोच लिया है कि अंशु को रज़िया के हवाले कर देगी…।” 

    ” हाँ दी…अंशु की खुशी में ही तो मेरा सुख है…।” कहते हुए वर्षा का गला भर्रा गया।उसने अपनी बहन मेघना से ‘ ‘रखती हूँ दी’ कहकर फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया और सोफ़े पर लेटे छह वर्षीय अंशु को वात्सल्य भरी नज़रों से देखने लगी।

       मेरठ शहर के जाने-माने उद्योगपति दीनदयाल बजाज यानि डी डी बजाज और सरोजनी बजाज की दो बेटियाँ थीं।बड़ी बेटी मेघना ने फ़िजिक्स ऑनर्स लेकर बीएससी पूरा किया, तब उनके एक परिचित ने अपने डाॅक्टर बेटे मयंक के लिये मेघना का हाथ माँग लिया।

       वर्षा बीकाॅम फ़ाइनल ईयर में थी…उसी समय बज़ाज साहब के बहनोई ने उन्हें सहारनपुर के टेक्सटाइल व्यापारी श्री परशुराम से मिलवाया।उनका बेटा विवेक एक साॅफ़्टवेयर कंपनी में काम करता था।देखने में स्मार्ट और बोलने में मुखर विवेक बज़ाज साहब को एक ही नज़र में भा गया।जब वर्षा और विवेक ने भी एक-दूसरे को पसंद कर लिया तब एक शुभ मुहूर्त में बज़ाज साहब ने दोनों का गठबंधन करा दिया।

      सास ने वर्षा को अपनी हथेली पर रखा।फिर अंशु उसकी गोद में आया तो उसे लगा जैसे उसके सारे सपने पूरे हो गये हों।नन्हा अंशु अपने दादा-दादी की गोद में पलने लगा।

        एक दिन वर्षा अपने मायके आई हुई थी।उसी समय मेरठ में नौचंदी का मेला लगा हुआ था।वह भी अपनी मम्मी के साथ मेला देखने चली गई।दो वर्षीय अंशु उसी की गोद में था।एक खिलौना लेने के लिये वह मचलने लगा।अंशु को सरोजनी जी के हाथ में थमाकर वह खिलौना खरीदने लगी तभी न जाने कैसे वहाँ भगदड़ मच गई।लोग एक-दूसरे को धकेलते इधर-उधर भागने लगे।कुछ लोगों ने सरोजनी जी को धक्का दे दिया जिससे अंशु उनके हाथ से छूट गया।वो अंशु…कहकर चिल्लाई तब तक तो अफ़रा-तफ़री मच गई थी।वर्षा ने इधर-उधर देखा…अंशु-अंशु की आवाज़ लगाई लेकिन उस भीड़ में तो इंसान अपनी ही आवाज़ नहीं सुन पा रहा था।वर्षा ‘मम्मी..मेरा अंशु’ कहकर रोने लगी।

      कुछ देर बाद जब सब शांत हुआ…लोग अपनों की तलाश करने लगे तब सरोजनी जी ने ‘पूछताछ-केन्द्र’ पर जाकर अंशु की जानकारी दी और फोटो भी दिखाया।अधिकारी ने उन्हें दिलासा दिया और कहा कि आप लोग घर जाइये…आपके बच्चे की खबर मिलते ही हम आपको खबर कर देंगे।

       बहुत मुश्किल से सरोजनी जी बेटी को घर लेकर आईं।रह-रहकर वो खुद को कोसती कि मेरी लापरवाही से ही अंशु खोया है।बज़ाज साहब ने थाने में भी रिपोर्ट दर्ज़ करा दी लेकिन सात दिन बीत जाने के बाद भी जब अंशु की कोई खबर नहीं मिली तो वर्षा बेसुध हो गई।विवेक और उसके पिता आये….समझा-बुझाकर वर्षा को अपने साथ ले गये।वहाँ भी वह अनमनी-सी ही रहती थी।बेटे को याद करके वह फ़फक-फ़फककर रो पड़ती थी।उसकी सास भी पोते को याद करती लेकिन बहू के सामने शांत रहती।

        इसी बीच ऑफ़िस के काम से विवेक को मुंबई जाना पड़ा।लौटते वक्त उसका प्लेन क्रैश कर गया और तीन मृतकों में एक नाम विवेक का भी था।पहले बेटा और अब पति…..वर्षा पर तो मानो आसमान टूट पड़ा हो।पोता… फिर बेटा…उसकी सास के लिये भी यह सदमा असहनीय था। 

       महीने भर बाद वर्षा की सास उसे अपने बेटे की मौत का ज़िम्मेदार मानते हुए उसपर अपशब्दों के बाणों से प्रहार करने लगी।बज़ाज साहब बेटी से मिलने आये थे….. ‘मनहूस’ शब्द सुने तो वर्षा को अपने साथ ले जाने लगे।पीछे-से उनकी समधन बोलीं,” ले जाये…हमने कब रोका है..।” तब परशुराम जी हाथ जोड़कर अपने समधी से बोले,” क्षमा कीजियेगा…दिल की बुरी नहीं है…बस ज़रा बेटे के दुख में…।अभी बिटिया को ले जाइये….फिर बाद में देखते हैं।” बेटी के पिता थें ना…समझ गये कि ससुराल में बेटी के दिन पूरे हो गये हैं…सो उसे अपने संग ले आये।

         अंशु के खो जाने के अपराधबोध से ग्रसित सरोजनी जी से बेटी का दुख अब सहा नहीं गया और एक दिन उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।मेघना आई….अपनी हँसती-खिलखिलाती बहन का उदास चेहरा देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया।दोनों बहनें एक-दूसरे के गले लगकर खूब रोईं।अंशु का दुख…विवेक…माँ….सारे दर्द आँसू बनकर बहने लगे थे। मेघना बोली,” तू मेरे साथ चल..यहाँ…कैसे…।”

      तब वर्षा बोली,” दी…पापा को अकेले कैसे छोड़ दूँ।मैंने पापा के साथ फ़ैक्ट्री जाने का फ़ैसला किया है…।”

 ” सही सोचा है…फिर भी जब भी दिल करे…आ जाना।” 

    वर्षा पिता के साथ ऑफ़िस जाने लगी।वह वहाँ फ़ाइलों को देखती…साथ ही, कर्मचारियों की समस्याओं को भी सुलझाने का प्रयास करती।देखते-देखते तीन साल गुजर गये।

       एक दिन वर्षा एक बीमार महिला कर्मचारी का इलाज करवाने के लिये हाॅस्पीटल गई।पेशेंट को दिखाकर वह वापस जाने लगी तो एक पाँच-छह वर्ष का बच्चा आकर उससे टकरा गया।गोरा-चिट्टा… गोल-मटोल- सा…बरबस ही उसे अंशु का ख्याल आ गया…वो भी तो इतना ही बड़ा…।

   ” हामिद…।” एक महिला ने पुकारा तो वह चौंक गई।उसने देखा कि बच्चा ‘अम्मी…।” कहकर उससे लिपट गया था।

      अगले दिन वर्षा को फिर से हाॅस्पीटल जाना पड़ा तो वहाँ उसने हामिद को खेलते देखा।उसने हामिद को चाॅकलेट दिया तो उसने मुस्कुराकर ‘शुक्रिया’ कहा।घर आने पर उसकी आँखों के सामने हामिद का चेहरा घूमता रहा।फिर वह रोज उसी समय पर हाॅस्पीटल जाती और हामिद को देखकर खुश हो जाती।हामिद की अम्मी ने उसे बताया कि मेरे शौहर का यहाँ इलाज़ चल रहा है।

     वर्षा कभी खिलौने तो कभी मिठाई लेकर हामिद की अम्मी को देती।एक दिन तो वह हामिद के अब्बू (पिता)के लिये भी फल लेकर गई।दस दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा।

     ग्यारहवें दिन जब वह अस्पताल गई तो उसे हामिद नहीं दिखा।वह घबरा गई।रिसेप्शन पर बैठी महिला से पूछा तो उसने बताया कि रज़िया तो अपने पति को डिस्चार्ज कराकर ले गयी।उसके अंदर एक ललक थी हामिद को देखने की।उसने महिला से पता पूछा तो पहले तो वह हिचकिचाई….फिर वर्षा ने अपने पिता का परिचय दिया तो उसने वर्षा को पता बता दिया।

        वर्षा चाॅकलेट और खिलौने लेकर हामिद के घर पहुँची।हामिद उसे देखकर बहुत खुश हुआ।रज़िया  उसके लिये पानी लेने गई तो वह घर की दीवारों पर टँगी तस्वीरों पर एक नज़र डालने लगी कि एक तस्वीर पर जाकर उसकी आँख ठहर गई।वह तस्वीर उसके दो वर्षीय अंशु की थी।इसका मतलब हामिद ही उसका अंशु…।बड़ी मुश्किल से उसने अपनी भावनाओं पर काबू रखा…और रज़िया को देखते ही उसे एक ही साँस में चोर, बेईमान, धोखेबाज़…और न जाने क्या-क्या कह गई।

     रोते-रोते रज़िया बोली,” आपा..(दीदी)…मैं चोर नहीं…बेईमान नहीं…।यह सच है कि हामिद मेरा बेटा नहीं है लेकिन मेरे जिगर का टुकडा है।चार साल पहले मेरा चार बरस का अयान एक गाड़ी के नीचे आ गया था और….।मैं बहुत सदमे में थी…यहाँ मेला लगा हुआ था तो मेरा शौहर मुझे यहाँ मन बहलाने के लिये ले आया।फिर न कैसे यहाँ भगदड़ मच गई…लोग एक-दूसरे को रौंदते अपनी जान बचा रहें थें…उसी समय मैंने दो साल के एक बच्चे को रोते-बिलखते देखा।मैंने झट-से उसे उठा लिया…आसपास इसके वालिद-वालिदा(माता-पिता) को खोजने का बहुत कोशिश किया आपा…।फिर मेरे शौहर(पति) ने एक पुलिस को खबर किया।वो बोला,” अभी घर जाओ…जान बचाओ….कल आना…।” कहकर उसने एक गहरी साँस ली।

    वर्षा ने पूछा,” फिर…।”

  ” फिर क्या आपा…हम बच्चे को लेकर वापिस अपने गाँव चले गये।अपने वालिदा से बिछड़कर वो बहुत रो रहा था…रात भर मेरे सीने-से लगा रहा।एक दिन बाद फिर हम फिर से उहाँ गये तो मैदान पूरा खाली था।हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था।फिर हमने उसे खुदा की नेमत समझ कर अपना हामिद बना लिया और वह हमें नमाज़ पढ़ते देख नमाज़ पढ़ने लगा।पिछले साल गाँव में जब अकाल पड़ा तो हम यहाँ आ गये।अब बताओ…हम चोर कैसे हुए।” कहकर रज़िया ने हामिद को अपने अंक(गोद) में समेट लिया।

        अपने बच्चे से बिछड़ी एक माँ अब अपनी ममता को दबा न सकी।वर्षा ने झपटकर हामिद को अपनी गोद में ले लिया और कड़ककर बोली,” ये मेरा अंशु है..ये देख..।” कहते हुए उसने पर्स से वह फ़ोटो निकालकर दिखाई जिसमें अंशु उसकी गोद में था।

    रज़िया खुश हो गई लेकिन हामिद चला जायेगा…यह ख्याल आते ही वह सिहर उठी…बोली,” मैं इसके बिना कैसे…।” तभी रज़िया का शौहर जो सच जान चुका था…अपनी बीवी को समझाया,” जाने दे रज़िया…अल्लाह की यही मरज़ी है..।”

       वर्षा ने अपने पर्स से सारे रुपये निकालकर रज़िया को देने चाहे मगर उसने लौटा दिये।वह हामिद को ले जाने लगी तो हामिद अम्मी…कहकर रज़िया से लिपट गया….वर्षा उसे जबरन अपने घर ले आई।

       वर्षा के घर में खुशियाँ मनाई जा रही थी…बरसों बाद बेटी के ओंठों पर हँसी देखकर बजाज साहब खुशी से नाच उठे थे और उधर अपनी सूनी गोद देखकर रज़िया के आँसू नहीं थम रहें थें।वर्षा ने अंशु के लिये खिलौनों की दुकान खरीद ली थी…चाॅकलेट- मिठाई और रंग-बिरंगे कपड़ों से उसकी अलमारी भर दी पर न जाने क्यों अंशु दिनोंदिन मुरझाता जा रहा था।

        एक दिन रज़िया आई तो अंशु ‘अम्मी’ कहकर उससे लिपट गया।फिर तो दोनों की आँखों से जल-धारा बहने लगी।अपनी अम्मी के हाथ से ‘ फिरनी'(एक प्रकार का खीर) खाते हुए वह बहुत बातें कर रहा था जिसे देखकर वर्षा दंग थी कि इतने दिनों से चुप रहने वाला उसका अंशु अभी कितना बोल रहा है और कितने चाव से फिरनी खा रहा है।

        रज़िया के जाने के बाद अंशु ने फिर से चुप्पी साध ली…न तो वह अपने नाना के साथ खेलता और न ही कुछ खाता-पिता।बज़ाज साहब समझ गये कि रज़िया की ममता के आगे अंशु के लिये खिलौनों और अन्य सुविधाओं का कोई मोल नहीं है।वह शरीर से ही यहाँ है… उसके प्राण तो रज़िया में बसते हैं।उन्होंने जब ये बात वर्षा को बताई तो वह दो मिनट तक तो मौन रही…फिर उसने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर एक अहम फ़ैसला लिया और उठकर एक बैग में अंशु का सामान रखने लगी।

      बज़ाज साहब ने आश्चर्य-से पूछा तब वर्षा बोली,” पापा.. मेरा अंशु अपनी अम्मी के साथ ही खुश रह सकता है।इसीलिये मैंने उसे रज़िया को उसका हामिद वापस करने का फ़ैसला किया है।ठीक है ना पापा…।” वर्षा की आँखें नम थी।

   ” फिर तू…।” 

      वर्षा ने कोई जवाब नहीं दिया।उसने मेघना को फ़ोन करके अपने मन की बात बता दी और गाड़ी भेजकर रज़िया को बुलावा लिया।

          रज़िया की आहट सुनते ही अंशु दौड़कर उसकी गोद में जा बैठा।रज़िया को बैग थमाते हुए वर्षा बोली,” रज़िया बहन….आपकी अमानत लौटा रही हूँ।बस इतनी इज़ाजत दे दीजिए कि कभी-कभी अंशु कह सकूँ..।” रज़िया तो खुशी-से रो पड़ी।वर्षा का हाथ पकड़कर इतना ही बोली, “आपका ही है….।” 

       रज़िया हामिद का हाथ पकड़कर चली गई और वर्षा उसे दूर तक देखती रही।फिर अपने पिता से बोली,” चलिये पापा…किलकारी(अनाथालय) से एक अंशु को ले आते हैं।” बज़ाज साहब मुस्कुराकर बेटी को देखने लगे जैसे कह रहें हो ‘ तुम्हारे फ़ैसले पर हमें गर्व है..।”

                                विभा गुप्ता

#फ़ैसला                   स्वरचित 

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