ट्रेन धड़-धडाते हुए उज्जैन की तरफ दौड़ी चली जा रही थी और काव्या अपने अतीत के गलियारे में खोई थी। आज भी उसे उस दिन का अफसोस था। जब उसने अपने माता-पिता की बातों को अनसुना कर घर से भाग जाने का निर्णय लिया। और अपना व अपने मम्मी-पापा का मान सम्मान सब तार-तार कर दिया।
“मेरे घर आई एक नन्ही परी” काव्या को यह बोल आज भी अपने कानों में बजते हुए से महसूस हो रहे थे जिसे उसके पापा उसके हर जन्मदिन पर ताली बजाकर बहुत खुश होकर गाते थे। मम्मी अपने हाथ से केक बनाती, उसके मुंह से निकलने से पहले ही उसके पापा उसकी हर इच्छा पूरी कर देना चाहते थे। काव्या भी अपने मम्मी पापा को बहुत प्यार करती थी। लेकिन नादान उम्र में पता नहीं क्यों वह अपने को नहीं संभाल पाई और उससे इतनी बड़ी गलती हुई जिसका अफसोस उसे मरते दम तक रहेगा।
काव्या के पड़ोस में एक परिवार रहने के लिए आया था। जिनका एक बेटा था नवल, देखने में सुंदर था। लेकिन इसके अलावा हर अवगुण उसमें था। लड़कियां छेड़ना, आवारा घूमना यह उसके इस उम्र के शौक थे। लेकिन लड़कियां भी जब यौवन की दहलीज पर कदम रखती हैं तो किसी के द्वारा अपनी तारीफ और सुंदरता का अहसास कराए जाने पर मानो उनको पंख लग जाते हैं। और मीठी-मीठी बातों में फंसकर वे अपना जीवन बर्बाद कर लेती हैं। यही सब कुछ तो हुआ था काव्या के साथ।
एक दिन जब वह छत पर से सूखे हुए कपड़े उतारने गई तो नवल भी अपनी छत पर था। पहली बार ही काव्या ने उसको देखा था। इस उम्र के आकर्षण ने उसको भी अपनी चपेट में ले लिया। नवल उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया तो वह भी मुस्कुरा दी और कपड़े लेकर नीचे आ गई।
अगले दिन उसका मन बार-बार छत पर जाने का हो रहा था। वह ऊपर गई तो नवल भी अपनी छत पर ही था। उसने उसकी तरफ हाथ हिलाया तो वह मुस्कुरा कर नीचे आ गई। अब वे दोनों मिलने लगे। नवल उसकी बहुत तारीफ करता और उसके लिए जीने मरने की कसम खाता।
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धीरे-धीरे कॉलोनी में बात फैलने लगी और उसके पापा के कानों तक पहुंची। उन्हें यह सब सुनकर बहुत दुख हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी से सारी बात बता कर काव्या को समझाने के लिए कहा। उसकी मां ने काव्या को समझाया “बेटा यह उम्र तुम्हें अपना भविष्य बनाने की है। यह समय कभी वापस नहीं आएगा।अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो वरना तुम बहुत पछताओगी।” लेकिन काव्या पर तो प्यार का नशा चढ़ चुका था। उसने अपनी मम्मी से तर्क-वितर्क करने शुरू कर दिए जब प्यार से बात नहीं बनी तो उसके पापा ने उसे डांटा और कहा कि अगर वह नहीं मानी तो उसका घर से निकलना बंद कर देंगे।
काव्या को समझाने वाले उसके मम्मी पापा ही अपने दुश्मन नजर आने लगे। और नवल ने इसी बात का फायदा उठाकर उसे घर से भाग जाने के लिए उकसाना शुरू कर दिया। नवल की बातों में आकर एक रात काव्या घर से जेवर और पैसे लेकर चली आई। वे दोनों मुंबई जाने वाली ट्रेन में चढ़ गए। नवल ने उसे हसीन सपने दिखाए कि हम मुंबई चल कर रहेंगे। जेवर और पैसे उससे ले लिए और कहा कि तुम आराम करो। काव्या की आंख लग गई और जब उसकी आंख खुली तो नवल उसका बैग लेकर भाग चुका था।
काव्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। घर वापस जा नहीं सकती थी। वह एक स्टेशन पर उतर गई। उसके पास कुछ खाने के भी पैसे नहीं थे। स्टेशन पर एक अधेड़ उम्र की औरत का ढाबा था उसने उससे कहा कि वह उससे कुछ काम करा ले बदले में खाना दे दे। उस औरत ने भी दुनिया देखी थी वह पहचान गई कि क्या हुआ होगा उसने उसे अपने पास ही काम पर रख लिया।
अगर उस दिन मैं किन्हीं गलत हाथों में पड़ गई होती तो…. यह सोचकर ही काव्या की रूह कांप उठी। उसने अपने मम्मी पापा के बारे में पता लगाया तो पता चला कि वह शहर छोड़कर चले गए और किसी को नहीं पता कि कहां गए। उसका बहुत मन था कि वह एक बार अपने घर जाए, आज वह वहीं जा रही थी। उसने जाकर देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया वह घर जहां कभी खुशियां ही खुशियां थी आज खंडहर और वीरान था।
काव्या रोने लगी और सोचने लगी कि अगर मैं किसी लड़की को ऐसे गलत रास्ते पर जाने से बचा सकी तो यही मेरा प्रायश्चित होगा।
नीलम शर्मा