जानकी,कब तक यूँ ही आंसू बहाती रहोगी।भाग से समझौता करना सीख लो।
मैं कहाँ आंसू बहा रही हूँ, तमे तो यूँ ही भैम रहे है।
तेरे साथ साथ रहते 14 साल हो गये हैं, जानकी क्या तुझे समझन को अगले जनम की जरूरत है?मैं क्या तेरा दर्द ना समझूँ हूँ?सच जानकी वो दर्द तो मेरा भी है,पर भगवान के आगे किसकी चले है भला?
जानकी की एक बार फिर हिचकी बंध गयी।जानकी और रामदीन के ब्याह को 14 बरस बीत गये थे,पर औलाद का मुँह न देख पाये।ये टीस दोनो के हृदय को चीर देती।पर करे तो क्या करे?रामदीन कहता भी कि जानकी कोई बच्चा गोद ले ले,पर जानकी तैयार नही होती।असल मे जानकी दो दुःख पाले बैठी थी,
एक तो यह कि वह बाँझ है,बच्चे को जन्म नही दे सकती और दूसरे वह भाग्यहीन है दूसरा बच्चा गोद ले भी लिया तो जब उसके भाग में बच्चा है ही नही तो कही उसे भी कुछ हो गया तो?इससे आगे जानकी की सोच बंद हो जाती।
सुंदर सलोनी जानकी से रामदीन का ब्याह उसके गांव में 14 बरस पहले हुआ था।जानकी को पा रामदीन फूला ना समाता।अपने जान पहचान और रिश्तेदारी में जानकी से सुंदर कोई नही थी।दोनो अपनी दुनिया मे मस्त थे।रामदीन गांव के बाहर ही ईंटो के भट्टे पर मजदूरी करता।कुछ दिनों बाद जानकी भी उसके साथ मजदूरी पर जाने लगी।
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भट्टे के मालिक जुगल किशोर एक भले और धार्मिक व्यक्तित्व के स्वामी थे।वे रामदीन और जानकी की मेहनत और लगन से काफी प्रभावित थे।शहर में उनकी कोठी थी,
सेठानी स्वर्गवासी हो चुकी थी,एक बेटा मनोज था,वह भी अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस घर आने वाला था।जुगल किशोर जी ने सोच रखा था कि मनोज के वापस आने पर उसकी शादी कर देंगे तो घर मे छाई मुर्दनी समाप्त हो जायेगी, बहू आगमन से कोठी जीवंत हो उठेगी।
जुगल किशोर जी भट्टे पर आये तो अपना टिफ़िन लाना ही भूल गये, अब गावँ में होटल वगैरह कहाँ, सो लगा आज शाम तक उपवास ही रहेगा।पर जैसे ही यह बात रामदीन को पता लगी तो उसने जानकी को घर भेज कर सेठ जी के लिये खाना बना कर लाने को बोल दिया।जानकी तुरंत घर जाकर पूरे मनोयोग से खाना बना कर एक घंटे में ही वापस आ गयी।
तब रामदीन खाने का टिफ़िन लेकर गया और सेठ जी से भोजन गृहण करने का आग्रह किया।जुगलकिशोर जी रामदीन के इस सम्मान भाव से बहुत ही प्रभावित हुए।खाना भी जानकी ने खूब स्वादिष्ठ बनाया था।
जुगल किशोर जी रामदीन और जानकी को शहर लिवा लाये।उन्हें कोठी में एक कमरा रहने को दे दिया गया।अब दोनो पूरी कोठी का और सेठ जी तथा उनके पुत्र मनोज की देखभाल का कार्य करने लगे।जिंदगी अब बहुत सरल हो गयी थी।पर एक दर्द उन्हें कचोटता कि उनके कोई संतान प्राप्ति नही हो रही थी।
डॉक्टर भी कोई कमी नही बताते पर कोई बच्चा भी नही हो रहा था।धीरे धीरे 14 वर्ष बीत गये उनकी शादी को पर औलाद नसीब नही हुई,जिस कारण जानकी बहुत दुखी रहती,रामदीन अपने दुख को अपने मे समेट लेता।सेठ जी मनोज की शादी कर चुके थे,बहू के रूप में शालिनी सुंदर तो थी ही,साथ ही मृदु स्वभाव की भी थी,उसने कभी रामदीन और जानकी को नौकर नही समझा, पारिवारिक सदस्य ही मानकर सम्मान दिया।
इसी बीच शालिनी को पुत्र प्राप्ति हो गयी,पूरी कोठी में जश्न का माहौल हो गया।नवजात बच्चे की किलकारी से पूरी कोठी गुंजायमान रहती।
उस बच्चे को देख जानकी को लगता जैसे वही माँ बन गयी है, हमेशा अपने कलेजे से लगाये रखती।शालिनी जानकी के मनोभावों को समझती थी,इसलिये जानकी का मन हल्का रहे,इसलिये वह अपने बच्चे को जानकी के पास ही अधिकतर समय रहने देती।बस रात्रि में ही अपने पास सोने को ले जाती।बस यही वह समय होता जब जानकी को अपने अधूरेपन का अहसास होता और वह बिलख पड़ती।
मनोज और शालिनी को एक शादी में पास के ही कस्बे में जाना था,तो वे अपने बच्चे को जानकी के पास छोड़कर अपनी कार से शादी में चले गये,देर रात वापस आने की संभावना थी।
लौटते समय देर रात हो गयी थी,मार्ग में एक ट्रक ने उनकी कार को रौंद दिया।बुरी तरह से कार क्षतिग्रस्त हो गयी थी,कार की हालत देखकर ही स्पष्ट था कि क्या अनहोनी हो चुकी है, किसी प्रकार कार से मनोज और शालिनी के शव निकाल कर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
काफी वृद्ध हो चुके जुगलकिशोर जी के लिये इस उम्र में इससे बड़ा सदमा और कुछ नही हो सकता था।कोठी उजाड़ हो चुकी थी।रिश्तेदार मित्र संवेदना जता कर वापस जा चुके थे।जानकी ने बच्चे को संभाल ही लिया था।यही एक बात जुगलकिशोर जी के लिये तस्सली की थी।एक दो रिश्तेदार जरूर चक्कर लगा रहे थे,पर जुगलकिशोर जी उनकी गिद्ध दृष्टि को समझ रहे थे,कि वे सब उनकी दौलत और संपत्ति पर निगाहें जमाये हुए हैं।
जुगलकिशोर जी यह भी समझ रहे थे कि अब वे अधिक जीवन नही जी पायेंगे, सो उन्होंने एक निश्चय मन मे कर लिया और अगले दिन ही अपने वकील को बुलवा कर कागज तैयार कराने को बोल दिया।
सेठ जुगलकिशोर जी ने आज अपने पोते के जन्मदिन के उपलक्ष्य में एक पार्टी का आयोजन कोठी पर ही किया और उसमें अपने रिश्तेदारों और मित्रों को भी आमंत्रित किया।भोजन समाप्ति पर सब मेहमानों के बीच सेठ जुगलकिशोर जी ने घोषणा की कि मेरी समस्त संपत्ति और दौलत का मालिक अब राम दीन होगा
और मेरा पोता अब जानकी का बेटा कहलाएगा।मैं स्वेच्छा से यह सब इन्हें सौप रहा हूँ।सब अवाक थे,रामदीन का मुँह तो फटे का फटा रह गया,उसके मुंह से कुछ भी नही निकल रहा था,बस वह तो जुगलकिशोर जी के चरण पकड़ कर निशब्द वही बैठ गया।
इन सब बातों से बेखबर जानकी बच्चे को अपनी गोद मे समेटे बुदबुदा रही थी,मुन्ना ,मेरा मुन्ना।सुनो कोई तो देखो तो मैं माँ बन गयी।मानो उसके स्तनों में दूध उतर आया था।अब सब मां की इस ममता को निहार रहे थे और जानकी देख रही थी,बस अपने मुन्ना को।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
#आंसू बन गये मोती