सास के कमरे से जोर जोर की आवाजें आ रही थीं। ससुर रमेश जी अपनी पत्नी सरिता जी पर जोर जोर से चिल्ला रहे थे। सरिता जी भी उन्हें जवाब दे रही थी और बाहर खड़ी उनकी बहू नेहा डर से कांप रही थी।
नेहा ने अपने मायके में कभी इस तरह मम्मी पापा को झगड़ते नहीं देखा था इसलिए जब ससुराल में ऐसा माहौल देखा तो उसे अजीब सी घबराहट हो रही थी।
थोड़ी देर बाद ससुर जी गुस्से में निकलकर बाहर चले गए। नेहा चुपचाप रसोई में काम करने लगी। सास सरिता जी भी थोड़ी देर बाद रसोई में आकर नेहा का हाथ बंटाने लगी तो नेहा बोली, ” मम्मी जी, आप आराम कीजिए मैं कर लूंगी । ,,
” क्यों बहू, मैं बीमार थोड़े ही हूं जो आराम करूंगी!! चल जल्दी से दो कप चाय बना ले । सर में दर्द होने लगा बक बक करते करते। और हां वो कचौरियां भी ले आ जो सुबह बनाई थी। ,,
नेहा हैरानी से अपनी सास का मुंह ताकने लगी अभी थोड़ी देर पहले हीं इतना झगड़ा हुआ था और सासु मां इतनी सहज लग रही थीं जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
थोड़ी देर बाद रमेश जी भी बाहर से आए और खाना लगाने के लिए बोल दिया। भरपेट खाना खाने के बाद आराम से टी वी ऑन किया और चाय पीते पीते दोनों पति-पत्नी टी वी देखने लगे।
नेहा भी सब कुछ भूलकर अपने काम में लग गई । एक दिन नेहा के पति समर की आफिस में जरूरी मीटिंग थी लेकिन उसे अपनी फाइल नहीं मिल रही थी। गुस्से में उसने सारा कमरा बिखेर दिया और नेहा पर चिल्लाने लगा, ” तुम मेरी चीजों को हाथ मत लगाया करो। पता नहीं मेरी फ़ाइल कहां रख दी तुमने । ,,
” लेकिन समर, मैंने आपकी फाइल नहीं देखी … आपका सामान तो खुद आप हीं अपनी टेबल पर रखते हैं.. ,, नेहा सहमते हुए बोली।
लेकिन समर कुछ सुनने या समझने को तैयार हीं नहीं था। बार बार वो फाइल खोने के लिए नेहा को जिम्मेदार ठहरा रहा था और गुस्से में बिना नाश्ता किए हीं वो आफिस के लिए निकल गया।
नेहा को बहुत बुरा लग रहा था। वो अपने कमरे में बैठकर रो पड़ी। उसने नाश्ता भी नहीं किया और बुझे मन से घर के काम करती रही।
सरिता जी को भी बहू बेटे के बीच के झगड़े की भनक थी और नेहा का उतरा हुआ चेहरा उसकी तकलीफ़ भी बयान कर रहा था। सरिता जी ने एक प्लेट में नाश्ता लगाया और नेहा के पास जाकर बोली , ” बहू, चल नाश्ता कर ले ।,,
” नहीं मम्मी जी, मुझे भूख नहीं है । ,,
” हां.… वो तो तेरे उतरे हुए चेहरे से हीं पता चल रहा है । मुझे पता है तूं नाराज है क्योंकि समर ने तेरी बात नहीं सुनी । बेटा , पति-पत्नी के बीच ऐसी गलतफहमी और नोक झोंक होती रहती है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तूं खाना पीना छोड़ कर बैठ जाएगी।
तूं क्या सोचती है तेरे भूखे रहने से सब ठीक हो जाएगा !!! नहीं, देखना जब शाम को समर वापस आएगा तो उसे याद भी नहीं रहेगा कि सुबह उसने तेरे साथ झगड़ा किया था। ….. समर तो आफिस की कैंटीन में कुछ खा भी चुका होगा नहीं तो खा लेगा ।
आज मैं तुझे एक मंत्र देती हूं …. चाहे किसी से भी नोक झोंक हो जाए लेकिन उसके चलते भूखी मत रहना। पता है आधा गुस्सा तो पेट भरने से ही खत्म हो जाता है।
सच बताऊं तो पहले मैं भी तेरे जैसी हीं थी। कोई जोर से बोल दे तो भी खाना पीना छोड़कर काम में लगी रहती थी। तेरे ससुर जी का स्वभाव शुरू से ही गुस्सैल है। बात बात पर झगड़ा करने लगते थे ।
मैं बेवकूफ की तरह खाना पीना छोड़कर रोती रहती और काम करती रहती लेकिन मेरे ऐसा करने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था। तुम्हारे ससुर जी तो आराम से टाइम पर खाते पीते और अपने काम में लगे रहते और मेरी सास तो बहुत खुश होती की बहू खाना नहीं खा रही।
मैं बहुत कमजोर हो गई थी। तब मेरी मां ने मुझे ये बात समझाइ थी। जब घर में चार बर्तन होते हैं तो आवाज भी होती है।
और हां, ये बात मेरे और तेरे ऊपर भी लागू होती है। भई। अब सास बहू के बीच भी थोड़ी बहुत बातें हो जाती हैं लेकिन मैं तो खाना खाऊंगी….. लेकिन उस वक्त शायद मैं तेरी मनुहार ना करूं … फिर भी तुझे भूखा रहने की जरूरत नहीं है … ,, सरिता जी शरारती अंदाज में बोलीं तो नेहा हंस पड़ी।
” ठीक है मम्मी जी, ये बात मैं हमेशा याद रखूंगी। आपसे झगड़ा करने से पहले मैं हम दोनों के लिए खाना बना कर रख लूंगी । ,, नेहा हंसते हुए बोली और प्लेट लेकर नाश्ता खाने लगी।
जैसा कि सासु मां ने कहा था शाम को समर बिल्कुल नार्मल लग रहा था। आते हीं बोला, ” नेहा, जरा एक कप चाय बना दो …. और हां वो फाइल मैं कल आफिस में हीं छोड़ आया था। बेवजह सुबह सुबह मूड ऑफ हो गया। ,,
समर की बात सुनकर दोनों सास बहू ने एक दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुरा दी …..
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लेखिका : सविता गोयल