रूपेश और राज घनिष्ठ मित्र थे बचपन से साथ ही पढ़े और विश्वविद्यालय की पढ़ाई तक साथ ही रहे,तभी एक सरकारी कम्पनी के एक बड़े पद हेतु आवेदन अखबारो में छपा तो दोनो ने फार्म भर दिया पर बताया नही एक दूसरे को इण्टव्यू पर दोनो ऑफिस में मिले, तो आश्चर्य हुआ राज बोला मैंने आवेदन देखा तो फार्म भर दिया मुझे क्या पता था तुम भी,रूपेश ने भी यही कहा और ठहाका लगाकर हंस दिये दोनो,
इंटरव्यू के लिये अलग अलग दोनो को बुलाया गया पर रूपेश चयनित हो गया ,
यह खबर जब राज को लगी तो अंदर ही अंदर जलने लगा और कहने लगा मेरे ही पैर पर कुल्हाड़ी मार दी रूपेश ने,
और रूपेश से सम्पर्क खत्म कर लिया मोवाइल नम्वर भी बदल लिया,
उधर रूपेश ऑफिस के कार्य मे व्यस्त हो गया
एक वर्ष से भी ज्यादा समय हो गया पर राज का कही अता पता नही कॉल भी नही लगी ,
तो धीरे धीरे उसने याद करना भी छोड़ दिया पर मन मे जरूर था आखिर है कहाँ क्या कर रहा है,
आखिर साथ साथ रहे थे दोनो इतने दिन,
राज की भी सर्बिस लग गई थी और दोनो की शादी भी हो गई,
रूपेश की बेटी थी और राज का लड़का
धीरे धीरे बच्चे बड़े होने लगे,
रूपेश की कम्पनी का ही स्कूल था जिसका बहुत बड़ा स्कूल और विश्वविद्यालय था,
नन्दिनी रूपेश की बेटी थी और नवल राज का दोनो का एडमिशन विश्वविद्यालय में ही हुआ पर दोनो नही जानते थे वह कौन है,
एक दिन नन्दिनी स्कूल में गिर गई सर में थोड़ी चोट लग गई तो नवल ने उसे घर तक छोड़ दिया डॉक्टर ने आराम के लिये बोला था तो एक हफ्ते की छुट्टी दे दी गई नन्दिनी को,
नवल एक दिन नन्दिनी का हालचाल लेने घर आया तो नन्दिनी ने बताया कि पापा पता नही क्यो बहुत सुस्त रहते है,
बताते भी नही
तो नवल से नही रहा गया और राज के पास पहुंचकर नमस्ते की ओर बताया वह नन्दिनी के क्लास में ही पढ़ता है टॉपर है ,
नन्दिनी को देखने आया तो सोंचा अंकल से भी मिलकर कुछ बातें करूँ उनका भी बचपन कैसा था कितनी पढ़ाई की,
राज ने उसे बिठाया और बताने लगा जिंदगी के हर पल को पर दोस्त के वारे में नही बताया,
नवल भी कुछ देर रुककर चला गया,
पर दोनो बच्चो में घनिष्ठता बढ़ गई,
नन्दिनी स्कूल फिर जाने लगी,
एक दिन नवल ने कहा नन्दिनी पापा पचास वर्ष के होने वाले है,
हम चाहते है धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाये,
नन्दिनी ने भी हां कर दी और कहा ठीक है हम पापा मम्मी के साथ आयेंगे ,
एक होटल में बहुत खूबसूरत आयोजन हुआ नन्दिनी मम्मी पापा के साथ वहां पहुंची ,
राज को बहुत अच्छा लग रहा था आयोजन केक भी सजा था पर केक पर नाम लिखा था उसे पढ़कर राज कुछ आशंकित हो गया,रूपेश ,लिखा था
उसे याद आ गई अपने पुराने दोस्त की,
कही यह वही तो नही उसने डायरी खोली और रूपेश का नम्वर लगाने लगा पर नही लगा ,
क्योकि रूपेश ने भी नम्वर बदल लिया था,
इतने में रूपेश अपनी पत्नी और बेटे नवल के साथ आया और सभी का अभिवादन किया,
पर एक चेहरे पर उसकी नजर टिक गई ,सफेद दाढ़ी हल्की सी हो गई थी और बाल भी पर शक्ल ज्यादा चेंज नही थी दोनो की,
रूपेश सब छोड़कर पहले राज के पास आया और बोला राज तुम,
राज ने नजर नही उठाई,
तो रूपेश ने उसके दोनो गालों को पकड़कर चुटकी ली जो अक्सर लिया करते थे दोनो,
राज की आंखों में आंसू थे ,
पर कुछ बोला नही रूपेश ने राज को साथ ले जाकर केक काटा और राज को ही पहले खिलाया ,
सबको बताया कि मेरा सबसे बड़ा उपहार मुझे मेरे खोए दोस्त के रूप में मिल गया है,
सभी ने तालियों से स्वागतं किया नन्दिनी ओर नवल बहुत खुश थे,,
पार्टी की समाप्ति के बाद राज रूपेश से बोला मुझे छमा करना मित्र मेरे अंदर अभिमान था जो हमारी दोस्ती को इतने दिनों तक दूर कर गया,
तुम्हारी सर्विस से मुझे बहुत तकलीफ हुई थी हमने नम्वर बदल लिया ,
सम्पर्क खत्म कर लिया पर तुमने हमे सच्चे दोस्त की तरह ही पूजा,
रूपेश बोला दोस्ती में अभिमान किस बात का ,
दोनो एक साथ नही रह सकते,
आज से उस अभिमान को त्याग कर ,
एक दोस्त की भांति रहो,
और हाँ तीन दिन बाद तुम्हारा भी जन्मदिन है उसमें एक घोषणा करनी है,
नन्दिनी और नवल की शादी की,,
राज बहुत खुश था इस रिश्ते से की अब यह दोस्ती कभी खत्म नही होगी,,
हमेशा अभिमान नही करना चाहिये विशेषकर रिश्तों ओर दोस्ती में,
अभिमान करो तो सच्चे रिश्तों पर,दोस्ती पर,
गोविन्द