अब तो इसके आराम के दिन आए हैं… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

 “ ये क्या माँ फिर तुम्हारे पैरों में दर्द बढ़ गया ….कितनी बार समझाया है तुम कोई मशीन नहीं हो…. जो दिन रात खटती रहती हो….अरे माँ इन दुनिया वाले के लिए तुम  बस एक इंसान हो लेकिन मेरे लिए तुम पूरी दुनिया हो…. क्यों नहीं समझती हो इस बात को…. तुम्हें कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा… कहाँ जाऊँगा …. मेरा अपना कहने वाला भी कोई नहीं तुम्हारे सिवा !” पनीली आँखें और लड़खड़ाते शब्द मयंक के दर्द को बयान कर रहे थे जिसे मीनाक्षी अच्छी तरह महसूस कर रही थी 

“ बेटा मेरी दुनिया भी बस तू ही है पर बात को समझ अगर मैं यहाँ काम ना करूँगी तो हम कहाँ से भरपेट खाना पाएँगे और तेरी पढ़ाई फिर कैसे होगी…. तुम्हें मेरी इतनी ही फ़िक्र है तो खूब पढ़ बेटा … एक अच्छी नौकरी कर फिर जहाँ तू रखेगा जैसे रखेगा रहूँगी बस तब तक यहाँ चुप करके रह जा।” मीनाक्षी ने बेटे को प्यार से समझाते हुए कहा 

बेटे को समझा बुझाकर मीनाक्षी उसे सुलाकर खुद भी उसके पास ही लेट गई….. वक़्त कभी भी एक जैसा नहीं रहता ये मीनाक्षी ने सुना भी था और देख भी रही थी … अल्हड़ मीनाक्षी ब्याह कर मनोज के साथ ज़िन्दगी भरपूर मजे में जी रही थी…. हँसते हुए दिन बीत रहे थे शादी के दो साल बाद गोद में बेटा आ गया….

दस साल का ही तो था बेटा जब मनोज एक रात ऑफिस से घर आ रहा था तो एक बस ने टक्कर मारी और फिर उसपर पीछे से आती एक ट्रक रौंदते हुए निकल गई…….एक साल किसी तरह तो कट गया मीनाक्षी को इस हादसे से उबरने में भी वक़्त लग गया…. अब बस मयंक को देख कर ही वो अपनी दुनिया उसके इर्द-गिर्द ही देखती रहती ….. मयंक के लिए वो अब ज़्यादा सोचने लगी थी जमा पूँजी सब ख़त्म होने लगी थी….. मीनाक्षी ने एक ऑफिस में काम करना शुरू किया पर अकेले बेटे को लेकर रहना दुनिया की निगाह में ,

ससुराल वालों को गुनाह नज़र आने लगा था…..मीनाक्षी के एक देवर उनसे मिलने आए हुए थे….. जब वो जाने लगे तो बाहर खूसुरफूसुर सुनाई दी…. “मनोज के जाने के बाद मीनाक्षी घर से बाहर क्या जाने लगी अब तो मर्द जात मिलने भी आने लगे हैं…” देवर ने तभी मीनाक्षी से कहा,“ भाभी आपको यहाँ से चलना होगा….. ये जगह आपके अकेले रहने की नहीं है… मयंक भी अभी छोटा है कुछ ऊँच नीच हो गई तो हम भैया को क्या जवाब देंगे…. आप हमारे घर चलिए…. काम करना करिएगा पर साथ ही रहिए ।” 

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मीनाक्षी को भी लगा चलो यहाँ अकेले रहने से अच्छा है देवर देवरानी और उनके बच्चों के साथ रह लेते हैं ।

यहाँ आकर रहना मीनाक्षी के लिए आसान नहीं था…. देवरानी तीखे तेवर वाली थी…. अकेले रहने की आदी उपर से कामचोर…. बात बात पर कहती रहती तबीयत ठीक नहीं क्या करूँ तो बस मीनाक्षी घर के काम के साथ ऑफिस भी सँभाल रही थी…. मयंक अब बीस साल का हो गया था….. माँ की हालत देख उखड़ जाता और उसे लगता हम यहाँ आए ही क्यों…. पर मीनाक्षी जानती थी छोटे बच्चे के साथ अकेले रहना सब के बस की बात नहीं है…. कम से कम यहाँ परिवार तो है…..सोचते सोचते मीनाक्षी सो गई थी ।

दिन बस किसी तरह गुजर रहे थे…. मयंक अब नौकरी करने लगा था…. बेटा जवान हो गया था मीनाक्षी अब उसकी शादी करना चाहती थी …. देवर देवरानी से बात कही तो बोले,“ हाँ हाँ क्यों नहीं…. पर भाभी इस घर में आप अपनी बहू को कहाँ रखेंगी…यहाँ तो जगह ही नहीं है… अभी तक मयंक और आपका एक ही कमरा था उसके लिए अलग कमरे की व्यवस्था हम नहीं कर सकते है ।” 

“ देवर जी बस परिवार के नाम पर अब आप लोग ही है…. मयंक की शादी करवाने की रस्में अदा कर दीजिए बाक़ी रही हमारे रहने की तो मयंक के साथ मैं बहू को लेकर कही और रह लूँगी।” मीनाक्षी ने कहा 

सोच विचार कर लड़की पसंद की गई …. और मयंक की शादी  मोहिनी से हो गई ।

शुरू शुरू में नए घर में मीनाक्षी ,मयंक और मोहिनी बड़ी अच्छी तरह रह रहे थे….अब मयंक नौकरी करने लगा था तो उसने ज़िद्द करके मीनाक्षी की नौकरी छुड़वा दी ये कहते हुए “आख़िर कब तक मशीन बन कर ज़िन्दगी जिओगी माँ…।”

मीनाक्षी को भी लगा बेटा सही ही तो कह रहा अब क्या नौकरी करूँ जिसको पैरों पर खड़ा करने के लिए इतने संघर्ष कर रही थी अब वो खुद पैरों पर खड़ा हो चुका है….. घर में रहते हुए मीनाक्षी महसूस कर रही थी कि मोहिनी बिलकुल देवरानी की तरह व्यवहार करती …. हर वक़्त शरीर में दर्द तो तबियत ख़राब के बहाने बनाकर कमरे में पड़ी रहती …. बेचारी मीनाक्षी बहू के नाटक को समझ कर भी अनदेखा कर के काम करती रहती…. एक दिन मीनाक्षी की तबियत ख़राब हो गई….. मोहिनी को इसकी कोई खबर ना हुई वो तो बस अपने कमरे में पड़ी रहती थी दोपहर का खाना खाकर मीनाक्षी कमरे में गई तो उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था…..वो कमरे में जाकर सो गई।

शाम को जब मयंक घर आया तो आज दो तीन बार डोर बेल बजाने के बाद मोहिनी दरवाज़ा खोलने आई और भुनभुना रही थी,“ पता नहीं आज ये मम्मी जी कहाँ है जो दरवाज़ा खोलने भी नहीं आई।”

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ये भुनभुनाहट मयंक ने सुन लिया …. “क्यों ये क्या माँ कीं ड्यूटी है कि वो दरवाज़ा खोलें…. तुम भी तो खोल सकती हो।” ग़ुस्से में बोल कर वो अंदर गया और कपड़े बदल रसोई में माँ को देखने गया जो अक्सर उसके आने के बाद चाय दिया करती थी पर आज रसोई में शांति थी

“ माँ कहाँ है मोहिनी?” माँ को ना देख कर मोहित ने सवाल किया 

“ मुझे क्या पता …. मुझे बता कर तो कहीं आती जाती नहीं…. अरे आ जाएगी….वो जाएगी भी कहाँ हमें छोड़ कर …।” मुँह बनाते हुए मोहिनी ने कहा 

मयंक का दिल बैठने लगा था बचपन से आज तक माँ ही तो राह तकती रही उसका ….आज क्या हो गया सोच कर माँ के कमरे की ओर कदम बढ़ा दिया ।

मीनाक्षी बेसुध सी पड़ी थी…. शरीर तप रहा था…. मयंक माँ की हालत देख फफक पड़ा ।

जल्दी से उसे उठाकर डाक्टर के पास भागा।

 “देखिए आप घबराइये नहीं…. इंसान है कभी कभी हो जाता ऐसा ठीक हो जाएगी ।” सांत्वना देते हुए डाक्टर ने कहा 

“ डाक्टर साहब ये दुनिया के लिए एक इंसान है पर मेरे लिए ये पूरी दुनिया है…. इसे सुख दे सकूँ इसी कामना को लिए बड़ा हुआ हूँ आज इसकी ऐसी हालत देख कर मेरी दुनिया घूमती नजर आ रही है ।” रोते हुए मयंक ने कहा

डाक्टर ने चेकअप कर मीनाक्षी को दवाइयाँ दी और आराम करने की सलाह भी…. ,“इस उम्र में ज़्यादा काम करना शरीर को थका देता है मयंक जी  हो सके तो ज़्यादा से ज़्यादा आराम करने दें ।” 

“ माँ आराम ही करती है डॉक्टर…. मेरी शादी के बाद मैंने इन्हें बस आराम करने ही तो कहा है बहुत काम किया है इसने अब तो आराम के दिन आए हैं मेरी माँ की क़िस्मत में ।” मीनाक्षी का हाथ थामें मयंक डॉक्टर से बोला

थोड़ी देर बाद मयंक मीनाक्षी को लेकर घर आया और मोहिनी से बोला,“ जल्दी से माँ के लिए दलिया बना लाओं..।”

“ क्या मैं और दलिया बनाऊँ… अरे कुछ देर में ठीक हो कर मम्मी जी बना लेगी ….. मुझे नहीं बनाना।” मोहिनी कहकर जाने लगी 

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“ क्या कहा मोहिनी…. माँ की तबियत ख़राब है और तुम उनके लिए दलिया भी नहीं बना सकती…… मतलब क्या है तुम्हारा….वो मेरी माँ है मोहिनी याद रखना उसका इस तरह अपमान मैं क़तई बर्दाश्त नहीं करूँगा…. तुम्हें क्या लगता है तुम्हारी हरकतें मेरी समझ में नहीं आती…. बचपन से देख रहा हूँ अपनी माँ को …. उसकी तबीयत ख़राब हुई है तुम्हारी वजह से….. आज डॉक्टर ने जब कहा अब इस उम्र में इनको आराम करना चाहिए तभी समझ गया था माँ आराम नहीं करती होगी…. तुम्हें जरा भी समझ है….

घर में तुम्हारे रहते हुए माँ की तबियत इतनी ख़राब हो गई और तुम्हें खबर तक नहीं है…. माँ की ही सीख है जो बहुत कुछ अनदेखा कर रहा था माँ को समझा नहीं सकता पर तुम्हें चेतावनी दे रहा हूँ….. माँ मेरी दुनिया है मोहिनी उसे कुछ हो गया तो तुम मुझे भी खो दोगी…. शादी करने के बाद यही सोचता था

अब माँ के पास मेरी पत्नी रहेंगी उसका सुख दुख समझेंगी पर मैं कितना ग़लत समझा….. देखो मोहिनी  तुम  ये चाहती हो तुम्हारे परिवार का मान सम्मान करूँ तो बस मेरे लिए एक माँ ही है उसका सम्मान करो नहीं तो मुझे नहीं पता फिर मैं क्या करूँगा ।” अपने लिए इतना प्यार देख मीनाक्षी को मयंक पर लाड़ भी आ रहा था पर बेटे बहू की बीच की तना तनी से बुरा भी लग रहा था ।

“ बेटा बहू को ऐसे क्यों बोल रहा है वो… धीरे-धीरे सब करने लगेगी… अभी तो बच्ची है वो सीख ही रही है… मेरी भी दुनिया तू ही है बेटा पर अब हमारी दुनिया में मोहिनी भी है उसे इस तरह मत बोल …..।” मद्धिम स्वर में किसी तरह मीनाक्षी ने कहा

मोहिनी को कही ना कही ये एहसास होने लगा था कि मयंक के लिए उसकी माँ बहुत महत्वपूर्ण है और पति का साथ पाना है तो माँ का मान सम्मान करना ज़रूरी है….. कुछ सोचते हुए वो बोली,“ मयंक आप बेकार नाराज़ हो रहे थे दलिया क्यों मैं माँ के लिए अच्छी सी खिचड़ी बना कर लाती हूँ…. आप चिन्ता ना करें माँ जल्दी ठीक हो जाएगी ।” कह कर मोहिनी चली गई 

मयंक मीनाक्षी के पास बैठ कर बस उसे आराम करने की हिदायत दे रहा था…. माँ की सेवा करने के लिये दो दिन की छुट्टी भी ले ली …..। मीनाक्षी के स्वास्थ्य में जल्दी ही सुधार आने लगा था….. मोहिनी भी अपने स्वभाव में बदलाव ला रही थी….. मीनाक्षी ने भी अब बस मदद करना शुरू कर दिया था सारे काम की ज़िम्मेदारी सिर पर लेकर बीमार होना वो भी नहीं चाहती थी ।

 मजबूरी इंसान को काम करने पर मजबूर करती है पर कभी कभी कोई अपने सुख के लिए किसी से काम करवाने लग जाता है…. इंसान तो सभी हैं उन्हें मशीन ना समझे । परिवार में मिलजुल कर काम करने से किसी पर अतिरिक्त बोझ नहीं आता और ऐसे में किसी की दुनिया बोझ तले दब कर कहीं खो जाती हैं…. ऐसी दुनिया का मान रखें सम्मान करें उन्हें अपमानित कर अपना भविष्य ना बिगाड़े ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#अपमान

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