क्या हुआ बहू ..??
आज तूने चाय नहीं बनाई री …??
सुबह से मेरे पेट में हलचल हो रही है …
पर तू है कि उठ ही नहीं रही बिस्तर से…
माना कि इतवार है ..
हर बार ही थोड़ा देर से जगाती है तू…
लेकिन ये तो सोच घर में बड़े- बुजुर्ग हैं उनके लिए तो चाय बना दे….
क्यों मम्मी जी…??
आप नहीं बना सकती…या पापा …??
पहले आपको बनाकर पिलाते थे ना पापा चाय…
जब से मैं आई हूं तो आप सब मेरे ही सहारे क्यों हो गए हैं…??
एक कप चाय आप लोग खुद भी बनाकर पी सकते हैं …
आज बहू राखी के मुंह से पहली बार जवाब सुन रागीनी देवी स्तब्ध रह गई …
यह गाय जैसी हमारी बहू के मुंह में जबान कैसे आ गई…??
बोल कैसे पड़ी आज ये…??
बहू राखी फिर से चादर तानकर सो गई …
पति समीर भी बगल में लेटे हुए थे…
वह भी आज अपनी पत्नी का यह काली रूप देखकर चकरा गया था…
यह क्या …??
8:00 बजने को आए आज राखी उठने का नाम ही नहीं ले रही थी…
समीर को भी अब नींद कहां आ रही थी …
वह सोच रहा था यह हमेशा मुझसे पहले उठती है …
लेकिन काफी इंतजार कर समीर उठ ही गया…
सबसे पहले राखी के पास आया …
क्या हुआ राखी..??
तुम आज उठ क्यों नहीं रही हो…
मेरा उठना जरूरी है क्या…??
राखी ने समीर का हाथ झटकते हुए कहा…
आप नहीं उठ सकते हैं …??
ऑफिस जाना है ना आपको…??
आप जाईये …
खाना क्या तुम्हारी मां बनाएगी आकर यहां…
समीर गुस्से में बोला…
खाना …??
क्यों आज नहीं बनाऊंगी खाना तो कुछ बिगड़ जाएगा …
ये क्या बोल रही हो…??
बच्चों को भी भूखा रखने का इरादा है क्या ….
क्यों …?
मैं अपने लिए इतवार नहीं ढूंढ सकती …
जरूरी है …
हर जगह मैं ही समझौता करती रहूं…
मुझे भी अपने लिये समय चाहिए …
आज मैं कुछ नहीं करूंगी…
राखी उठी…
उसने अपने लिए कॉफी बनाई …
और नाइटी पहन कर ही आज बालकनी में वह बैठ गई थी….
हां बस दुपट्टा जरूर सर पर ले लिया था….
सामने वाली पड़ोसन जो कपड़े डाल रही थी…
कपड़ों की ओट से बड़ी-बड़ी आंखों से राखी को देखने लगी…
और चिल्लाकर नीचे बैठी राखी की सास रागिनी देवी से बोली …
का हो अम्मा …??
आज सूरज कहां से निकला है अम्मा …??
क्यों क्या हो गया री …??
तुम्हारी बहू आज़ वो क्या कहते हैं हां,,मैक्सी पहने बैठी है …
तुम तो कहती फिरती कि मेरी बहू साड़ी के बिना कहीं निकलती नहीं है …
यह क्या बोल रही है तू…
मेरी बहू …
हां ,आपकी बहू अम्मा ….
बाहर सभी मोहल्ले के लोग उसी को देख रहे हैं …
बाल खोलकर कैसे बैठी हुई है …
यह क्या बोली तू …
जल्दी से रागीनी देवी जिनके पैरों में अभी तक जान भी नहीं थी…
झट से ऊपर आई ..
राखी का रूप देख तमाचा मारने वाली थी…
तभी राखी ने उनका हाथ पकड़ लिया…
क्या हो गया है तुझे …??
क्या पहन के बैठी है …
पागल हो गई है क्या…
ऐसा कर लला समीर,,तू इसको पागल खाने भर्ती करा दे …
सुबह से देख रही हूँ…
इसके ऊपर किसी का साया आ गया है ..
राखी कुछ ना बोली…
मुस्कुराई …
और अपने बच्चों को उठाया…
उन्हें दूध पिलाया…
आज उसने घर के कोई काम नहीं किये …
बच्चों के लिए नाश्ता बनाने लगी…
यह क्या ..
तुमने सिर्फ बच्चों के लिए ही दो-तीन चीले ही बनाए हैं…
बाकी लोग भी तो है घर में …
समीर बोला …
हर दिन सुबह आप लोग ऑर्डर पर ऑर्डर झाड़ते हो …
आज मैं खुद को समय दे रही हूं…
जिसको बनाना हो अपने लिए खाना बना ले…
एक दिन मैंने काम नहीं किया तो ऐसे बौखला गए हैं आप सब…
तुम्हें घर में काम करने के लिए लाया गया है …
समझी …??
समीर के तन बदन में आग लग रही थी राखी के इस व्यवहार से…
और आपको शारीरिक सुख देने के लिए भी…
हैं ना…??
सास ससुर और पति के सामने आज राखी यह क्या बोल गई थी…
समीर ने अपनी आंखें नीचे कर ली..
अगर तुम यह सब नहीं कर सकती हो…
तो तुम्हारी घर में कोई भी जगह नहीं है…
तुम जा सकती हो…
समीर ने दो टूक जवाब दिया..
क्या बोला …
आपने चली जाऊं…??
ईश्वर ना करें आगे चलकर मुझे कुछ हो जाता है..
तो क्या आप मेरी सेवा नहीं करेंगे…
राखी ने प्रश्न चिन्ह नजरों से समीर की ओर देखते हुए पूछा …
तुम्हारे हाथ पैर सलामत है ना अभी….
जब ऐसा होगा तब देखा जाएगा…
तब भी यही होगा…
आप दूसरी बीवी ले आएंगे…
और मेरे बच्चे आया के सहारे य़ा ऐसे ही यतीमों की तरह पड़ें रहेंगे…
मैं जानती हूं …
इसलिए आज से समझौता नहीं…
मैं अपने लिये जीना चाहती हूं…
मैं वैसे जिऊंगी जैसा मेरा मन होगा…
जो काम नहीं होगा, तो नहीं करूंगी…
आपकी मर्जी से नहीं चलूंगी..
मेरी भी घर में वैल्यू है …
अगर एक दिन काम नहीं किया तो आप लोग मुझे घर से निकालने पर उतारू हो गए हैं….
क्या एक औरत की घर में यही इज्जत होती है …
अगर ऐसी इज्जत चाहिए तो मेरे घर में नहीं रहूंगी…
अब तो समीर चुप हो गया था…
सिर्फ अपने बच्चों को देखकर की कही सच में गुस्से में चली ना जाए…
राखी सच में सामान पैक करने लगी थी…
अब तो सभी घरवाले घबरा गए थे …
लला समीर बहू को जाने से रोक ..
यही तो एक घर में है जो चकर घिन्नी की तरह काम करती है… यह तो बिल्कुल गृहलक्ष्मी थी…
आज इस पर कौन सा भूत सवार हो गया है …
सामान पैक कर अपने दोनों बच्चों का हाथ पकड़ वह चलने को हुई …
यह क्या ..
समीर दोनों घुटने पर बैठकर राखी से माफी मांगने लगा…
माफ कर दो …
ठीक है..
आज खाना मैं और मां बना लेंगे…
आज तुम आराम करो…
तुम्हें भी एक इतवार चाहिए ना ..
ठीक है हर हफ्ते तुम्हें दिया एक इतवार…
मेरे भी पैर बैठे बैठे जाम हो जाते हैं …
क्या हो गया ,,अगर हफ्ते में एक बार काम कर लूंगी तो …
छोटी थोड़ी ना हो जाऊंगी….
तू भी तो मेरी बेटी जैसी ही है…
रागीनी देवी बोली ..
आज तो पति राघवेंद्र भी अपनी पत्नी को देख रहे थे…
गिरगिट रंग बदल रहा है ..
भाई जब स्वार्थ की बात आती है..
तो अच्छे-अच्छे रंग बदल लेते हैं…
राखी भी मुस्कुरा दी …
और झट से किचन की ओर चली…
और सभी के लिए खाना बनाने लगी…
उसे तो बस एहसास कराना था कि उसकी कोई इमेज ,,घर में कोई इज्जत है..
जो शायद उसके घर वालों को हो चली थी…
उसने एक मैगजीन पढ़ ली थी सेल्फ लव…
शायद उसी का प्रभाव था जो आज राखी पर चढ़ गया था…
अब हां,,उसके साथ ससुर भी और पति समीर भी आने पर थोड़ी उसकी मदद कर लेते हैं…
जिससे धीरे-धीरे कर राखी में बदलाव आने लगा है..
उसके चेहरे पर निखार आ गया हैं..
वह पहले से भी सुंदर और कम उम्र की लगने लगी है …
सच बात है..
औरत को उम्र नहीं ,उनको घर की जिम्मेदारियां ,घर के काम बड़ा बना देते हैं …
बस घर के लोग उसे एक नौकरानी, एक रोबोट समझते हैं..
जब तक वह खुद एहसास ना करायें ,,उसके दर्द को समझते ही नहीं ..
आखिर वह कब तक समझौता करेगी…
इस तरह के कदम हर घर की बहू को थोड़ा तो उठाना ही चाहिए…
यह नहीं कहते कि अपना घर बिगाड़ लो..
लेकिन अपने को समय देना कोई गलत बात नहीं है..
कब बुढ़ापा आ जाएगा जान भी नहीं पाओगे…
इस दुनिया से विदा हो जाओगे..
मन में कभी मलाल ना रहे कि हम अपनी जिंदगी नहीं जी पाए…
दूसरों के लिए भी ज़िये और खुद के लिए भी …
वही जिंदगी है ..
मीनाक्षी सिंह की कलम से
मौलिक प्रकाशित आगरा
#अब समझौता नहीं