अब नाटक बंद करो – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ बंद करो ये घड़ियाली आँसू बहाना … आज ये जो कुछ भी हुआ है उसकी वजह बस तुम हो तुम।” तमतमाते हुए नितिन ने अपनी पत्नी पूर्णिमा को कहा और परे धकेल दिया 

सामने ज़मीन पर पिता का निर्जीव शरीर पड़ा हुआ था उसकी माँ छाती पीट पीट कर रो रही थी 

अपने ही बेटे को एक नज़र देख रमादेवी की आँखें चढ़ने लगी… ऐसा लग रहा था वो अपने बेटे को आँखों ही आँखों में कह रही हो दूर हो जा हमारी नज़रों से…

नितिन लाचार मजबूर सा माँ के पैर पकड़ कर रो पड़ा और पिता को देख उसका जी करने लगा वो अपनी पत्नी को अभी के अभी यहाँ से बाहर कर दे पर लोग समाज…. यही देख कर तो अब तक सब बर्दाश्त कर रहा था पर उसका नतीजा….

कितने चाव से रमादेवी पूर्णिमा संग बेटे का ब्याह कर लाई थी … बेटी भी भाभी भाभी कर आगे पीछे डोलती रहती थी पर पूर्णिमा को इनसब के साथ रहना ही नहीं था…नितिन के पिता ने पाई पाई जोड़ कर घर बनाया था ये सोच हमेशा बेटा बहू साथ रहेंगे….

पूर्णिमा ने आते ही अपनी रसोई अलग करने की ज़िद्द ठान ली…वो तो बाद में पता चला रसोई अलग कर के उसे खाना नहीं पकाना था वरन उसे बाहर का खाना खाना होता था…रसोई के साथ नाता तोड़ वो परिवार वालों से नाता तोड़ती चली गई…

नितिन के पिता इस सदमे से बीमार रहने लगे…नितिन काम के सिलसिले में कुछ दिनों पहले शहर से बाहर गया हुआ था… रमादेवी के पास जो पैसे थे ख़त्म हो गए थे …वो नितिन को फोन कर पैसे के बाबत बात की तो बोला पूर्णिमा से ले लो… पर उसने साफ मना कर दिया….रमादेवी ने बहुत कहा ,” बहू उधारी समझ कर दे दो दवा बहुत ज़रूरी है।” 

पर पूर्णिमा को इन सब से कहाँ कोई सरोकार था और बस दवा ना मिलने की वजह से उसके पिता चल बसे और जैसे ही ये खबर नितिन को मिली वो घर आया और अपनी पत्नी को ऐसे आँसू बहाते देख समझ गया ये घड़ियाली आँसू बस दिखावे के है।

वो इन सब को नज़र अंदाज़ कर पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद बहुत ही तीखे तेवर में पूर्णिमा से कहा,” मैंने एक गलती की तुम्हारी बात मान कर… घर की शांति की खातिर ….तो आज अंजाम ये है … कल को कुछ और गलत ना हो इसलिए आज से मैं माँ के साथ रहूँगा तुम चाहो तो जैसे रहती थी रह सकती हो।”

पूर्णिमा को अब तक इतना समझ आ गया था कि अब पति 

लोक लाज समाज की फ़िक्र नहीं करेगा..करेगा तो अब बस माँ की और पिता के चले जाने के बाद उसकी उतनी बड़ी गलती माफी के लायक़ तो नहीं ही थी इसलिए इस बार घड़ियाली आँसू बहा कर काम नहीं चल सकता सच्चे दिल से अपनी गलती का पश्चाताप करना पड़ेगा जिसके लिए पति के साथ साथ अब सास को भी सम्मान देना पड़ेगा ।

दोस्तों ज़िंदगी में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता पर कभी कभी हमारी ज़िद्द या नादानी किसी की जान पर बन आती है ऐसे में बहुत सोच समझ कर काम करना चाहिए चाहे मन हो ना हो ।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#मुहावरा 

# घड़ियाली आँसू बहाना ( दिखावे के लिए रोना)

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