” बेटे की याद आ रही है..।” जगदीश बाबू ने पत्नी गायत्री से पूछा तो वे बेटे का फोटो अपने आँचल में छिपाती हुई बोली, ” नहीं तो, मैं भला उसे क्यों याद करूँ जो अपनी माँ को ही भूल गया है।” ” हाँ-हाँ, सब समझता हूँ।आज उसका जन्मदिन है ना,उसे आशीर्वाद देने का मन तो कर ही रहा होगा…।” धीरे-से बुदबुदाते हुए घर के पास वाले पार्क में टहलने चले गए।
गायत्री देवी अपने आँचल से बेटे निशांत की फोटो निकालकर निहारने लगी।उन्हें लगा,जैसे निशांत कह रहा हो, ” माँ, मेरा टिफ़िन रेडी कर दो, स्कूल बस आने ही वाली है।और हाँ माँ, कल मेरा बर्थडे है,तो चाॅकलेट का एक बाॅक्स आज ही तैयार करके रख देना।” तब वे कहतीं, ” मैंने आज ही तैयार कर दिया है।” फिर निशांत उनके गाल पर एक किस्सी करके स्कूल के लिए निकल जाता।
निशांत पढ़ाई में होशियार था,इसलिए आगे की पढ़ाई करने के लिए उसने अपने पिता के सामने मुंबई जाने की इच्छा व्यक्त की।जगदीश बाबू पहले तो तैयार न हुए, उनकी पत्नी भी इकलौते बेटे को अपनी आँखों से ओझल करना नहीं चाहती थीं लेकिन फिर बेटे की इच्छा के आगे उन्होंने हथियार डाल दिया।
बेटे के मुंबई चले जाने के बाद दोनों पति-पत्नी आपस में बेटे की बातें करके और उसकी तस्वीरें देखकर अपना जी बहलाते रहते।पलक झपकते दो वर्ष बीत गए, पति-पत्नी बेटे के वापस आने की राह देखने लगे।बेटा वापस तो आया लेकिन अकेला नहीं।
दरअसल पढ़ाई के दौरान ही निशांत को अपनी जूनियर ज़ेनी नाम की लड़की से प्यार हो गया था।ज़ेनी के पिता ने निशांत को अपनी कंपनी जो कि निशांत के शहर में ही थी,का एमडी बनाने का ऑफ़र दिया और निशांत ने उस ऑफ़र को स्वीकार कर लिया था।अब वह ज़ेनी से विवाह करना चाहता था।
जगदीश बाबू इस विवाह के लिए तैयार नहीं हुए।उन्होंने निशांत को भी समझाया कि ज़ेनी का धर्म और संस्कृति हमारे परिवार से विपरीत हैं।दोस्ती तक तो ठीक है लेकिन विवाह संभव न हो सकेगा।मैं अपनी बिरादरी को क्या जवाब दूँगा।लेकिन निशांत ज़ेनी से ही विवाह करने पर अड़ा रहा।घर में होते कलह देखकर उनकी पत्नी और नाते- रिश्तेदारों ने समझाया कि जवान खून है,कुछ गलत न कर बैठे, उसकी बात मानकर समझौता करने में ही सबकी भलाई है।न चाहते हुए भी उन्हें विजातीय विवाह के लिए स्वीकृति देनी पड़ी।जब विवाह की तिथि के लिए वे पंडित जी से बात करने जा रहें थें तब बेटे ने ‘विवाह चर्च में होगा’ कहकर पिता के हृदय पर एक और तीर चला दिया।इकलौते बेटे की इच्छापूर्ति के लिए दोनों पति-पत्नी को ये समझौता भी करना पड़ा।
विवाह के बाद ज़ेनी अपने व्यवहार से सास-ससुर का दिल जीतने का प्रयास करने लगी।वह निशांत के साथ ऑफ़िस भी जाती और अपनी सास के हिन्दू संस्कारों को निभाने का भी प्रयास करती।एक दिन ज़ेनी से मिलने उसके मामा-मामी आये तब निशांत ने यह कहकर कि मामीजी के पैर में तकलीफ़ है,अपने पिता से ऊपर वाले कमरे में शिफ़्ट हो जाने को कहा।जगदीश बाबू ने कहा कि बेटा, सीढ़ी चढ़ने से तेरी माँ की साँसें फूलने लगती है।निशांत बोला, “पापा, दो दिन की ही तो बात है,प्लीज, एडजेस्ट कर लीजिये।” जब अपना बेटा ही तकलीफ़ नहीं समझ रहा है तो शिकायत किससे करे।उन्होंने समझौता कर लिया।
दो दिन बाद जब जगदीश बाबू नीचे शिफ़्ट होने लगे तो किचन से आ रही दुर्गंध के कारण उन्हें उल्टी आने लगी।ज़ेनी किचन में नाॅनवेज़ पका रही थी।वे क्रोधित हो गए और ज़ेनी पर चिल्लाए कि तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरा परिवार शुद्ध शाकाहारी है फिर तुमने हमारी रसोई को भ्रष्ट करने की हिम्तम कैसे की?तब बेटे ने पत्नी की तरफ़दारी करते हुए कहा कि पापा, एक दिन नाॅनवेज़ पका दिया तो क्या हुआ, थोड़ा कॉम्प्रोमाइज़ करना भी सीखिए।और कितना कॉम्प्रोमाइज़ करें बेटा, उनका मन आहत हो उठा था।
एक रात गायत्री देवी के सिर में बहुत दर्द हो रहा था, वे दवा खाकर सोने जा ही रही थीं कि ड्राइंग रूम से ज़ोर-ज़ोर से गाना गाने और हँसने की आवाज़ें आने लगी।उन्होंने सोचा, बेटे को समझा देती हूँ कि शोर न करें लेकिन जगदीश बाबू ने उन्हें जाने से मना कर दिया और जब स्वयं जाकर देखा तो दंग रह गए।ज़ेनी अपने दोस्तों के साथ बैठी शराब पीती हुई सिगरेट के कश लगा रही थी।अपने खून-पसीने से बनाए मंदिर रूपी घर में पहले मांस-मछ्छी पकते देखा और अब बहू मदिरा-पान …।उनके क्रोध की सीमा न रही। ” निशांत! अभी के अभी सबको बाहर करो और बहू को कहो कि घर की मर्यादा में रहे।” चीखते हुए उन्होंने बेटे से कहा तो बेटा बोला, “पापा, नयी जनरेशन के साथ आपको समझौता तो करना ही पड़ेगा।” जवाब में जगदीश बाबू बोले, ” हमने समझौता कर लिया है,अब तुम हमारे साथ समझौता करो वरना…।” कहते हुए उन्होंने हाथ से दरवाज़े की तरफ़ इशारा किया और पैर पटकते हुए ऊपर चले गए।
गायत्री ने सबकुछ सुन लिया था, बेटे को घर से निकाल देने की बात उन्हें अच्छी नहीं लगी।किसी तरह से पति को समझा-बुझा कर उन्होंने शांत किया।दो दिन शांति से गुज़रे लेकिन तीसरे दिन फिर वही शोर, वही धुआँ जिसके कारण गायत्री देवी की साँस की तकलीफ़ बढ़ने लगी।जगदीश बाबू के क्रोध को उन्होंने अपनी सौगंध देकर रोकने का प्रयास किया तब वे बोले,” नहीं गायत्री,तुम्हारी ज़िदगी के साथ कोई समझौता नहीं।तुम्हारा बेटा घर में ही रहेगा लेकिन अब हम यहाँ नहीं रहेंगे।” कहकर उन्होंने अटैची में अपने तथा पत्नी के कपड़े रखे,बैग में जरूरी सामान रखा और पत्नी को साथ लेकर अपने मित्र राघवेन्द्र के घर चले गए।
राघवेन्द्र समझौते का कड़वा स्वाद पहले ही अपने बच्चों द्वारा सीख चुके थें।इसलिए मित्र की तकलीफ़ को उन्हें अच्छी तरह से समझ आ रही थी।उन्होंने उनका प्रसन्नतापूर्वक स्वागत किया।निशांत को फ़ोन करके जगदीश बाबू के आने की सूचना भी दे दी।अगले दिन निशांत आया और पिता से वापस चलने का आग्रह करते हुए बोला कि पापा, इस उम्र में तो सभी लोग अपने बच्चों के साथ समझौते कर …। ” करते होंगे बेटा परन्तु हम नहीं करेंगे।”जगदीश बाबू ने बेटे की बात पूरी कर दी।उसके बाद फिर निशांत नहीं आया।
राघवेन्द्र, जगदीश बाबू और गायत्री देवी के बीच किसी तरह का समझौता नहीं था,तीनो खुश थें लेकिन हर वर्ष बेटे के जन्मदिन पर उसे इसी तरह याद करके जगदीश बाबू और उनकी पत्नी की आँखें गीली हो जाती थी।समझौता करने से शांति होती हो तो अच्छी बात है लेकिन यदि वह बोझ लगने लगे तो उसे छोड़ देना ही बेहतर है।
—– विभा गुप्ता