अयोग्य संबंधी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

नीरज के पापा रवि उसका रिजल्ट लेकर घर में घुसते ही अंबुजा-अंबुजा चिल्लाने लगे।अंबुजा जी रवि की धर्मपत्नी थीं।थोड़ी तेज स्वभाव की थीं।मायका पक्ष धनवान‌ था,तो रौब झड़ ही जाता था उनसे।

दौड़ी आईं‌ और हांफते हुए बोलीं”,अब क्या कर दिया मेरे नीरज ने?”जो इतना हल्ला मचाया हुआ है।”रवि जी ने प्रसाद का एक लड्डू पत्नी के मुंह में ठूंसकर कहा”चुप हो जाओ भाग्यवान,प्रसाद खाओ।हमारे नीरज ने बारहवीं में अपने स्कूल में टॉप किया है।अब वह अपनी पसंद की स्ट्रीम चुन सकता है।मेरा सीना चौड़ा कर दिया उसने।कभी कुछ ज्यादा मांगा नहीं,बाप की परिस्थिति जानकर।ये देखो स्कूटी लेकर आया हूं उसके लिए।”अंबुजा खुशी से बांवरी हुई जा रही थी।अपने मायके के सभी संबंधियों को फोन पर खुशखबरी देने लगी।नीरज डॉक्टर की पढ़ाई करेगा कोटा जाकर,यह भी उन्होंने ही निश्चित कर लिया।

रवि जी ने नीरज को बुलाकर सीने से लगा लिया और कहा”एक पिता के लिए इससे बड़ी गौरव की बात क्या हो सकती है बेटा?तूने अपनी लगन और मेहनत से तेरा और हमारा सपना सच कर दिया।यह ले स्कूटी की चाबी।पापा‌ की  तरफ से तुझे उपहार।”नीरज और पास लिपट गया अपने पापा के।मां से पूछा”आप क्या देंगीं मुझे उपहार? अंबुजा जी तैयार थीं कोटा के संस्थान के रजिस्ट्रेशन फॉर्म के साथ।झट पकड़ा दिया नीरज के हांथ में।

नीरज ने फॉर्म देखा और मायूस होकर बोला”मां,मैं मेडिकल में नहीं जाना चाहता हूं।मैं स्पेस साइंस में आगे पढ़ना चाहता हूं।प्लीज़,मुझे मेरे सपने पूरे करने की आजादी दो।”

अंबुजा जी तो जैसे पहाड़ से गिरीं”क्या कहा तूने?इतना अच्छा कोर्स है। डाक्टर बनकर तू कहां से कहां पहुंच जाएगा।क्या दिक्कत है इसमें।सुन‌ नीरज तेरे ननिहाल में सभी बच्चे मेडिकल ही कर रहें हैं।अब तू मना कर के मेरी बेइज्जती ना करवाना,हां कहे देती हूं।”

नीरज ने भी अपना पक्ष रखा।”मां, मेडिकल की पढ़ाई बहुत मंहगी होती है।अगर एक बार में ना निकली तो,दुगना खर्च।इससे भी जो ज्यादा अहम बात है वह कि मुझे मेडिकल में कोई रुचि नहीं है।मैं स्पेस साइंस ही ज्वाइन करना चाहता हूं।”बेटे की विवशता रवि जी समझ रहे थे।पत्नी को हर प्रकार से समझाने की कोशिश की पर सभी व्यर्थ हुईं। खाना-पीना छोड़ दिया अंबुजा जी ने। अन्न-जल त्याग कर कोप भवन में वास करने लगी।

अपनी मां की यह दशा बेटे को असह्य लग रही थी।पापा से बोला”आप ही‌ बताइये ,मैं क्या करूं? मम्मी तो ऐसे में बीमार हो जाएंगीं।”रवि जी भी पत्नी के जिद्दी स्वभाव से परिचित थे।हारकर नीरज का एडमिशन कोटा में करवा दिया गया।वहीं होस्टल में अंबुजा की बहन का बेटा भी रहकर पढ़ाई‌ करता था।

नीरज ने ना चाहते हुए भी अपनी मां की खुशी के लिए  एडमिशन ले तो लिया,पर पल्ले उसके कुछ नहीं पड़ता।हर हफ्ते होने वाले मॉक टेस्ट में बहुत कम नंबर आते और वह लगातार पिछड़ता ही जा रहा था।बात उसके पसंद की थी,जो उससे छीन ली गई।

इधर नीरज के नंबर कम आते,उधर वहां रहने वाला अंबुजा की बहन का बेटा परिवार में ढिंढोरा पीटता।अब अंबुजा के पास बहन,मां ,भाईयों के फोन आते ताने देते हुए”क्या जरूरत थी नीरज को वहां भेजकर पढ़ाने की।रहने का सलीका भी नहीं है।एक प्रश्न का भी जवाब क्लास में दे नहीं पाता।तुम लोगों के पास इतना पैसा भी नहीं कि दो साल ड्राप ले ले।

अंबुजा ,इंसान को ना सपने भी अपनी औकात के हिसाब से देखने चाहिए।”अंबुजा को सुनकर गुस्सा की जगह दुख होता।क्यों नीरज ठीक से पढ़‌नहीं पा रहा।सभी व्यवस्था तो दी गई है एक जैसी,फिर बाकी लोग कर पा रहें हैं, सिर्फ नीरज ही क्यों नहीं?”रवि जी ने कई बार कहा कि बच्चे का पहले से मन नहीं था।तुम झूठे सम्मान की आग में उसे मत जलाओ।उसे वही करने दो ,जो चाहता है।होशियार बच्चा है हमारा,समझदार भी है। माता-पिता को ही बच्चों का दुख बिना बताए समझना चाहिए।तुमने कभी पूछा उससे उसकी परेशानियों के बारे में?”

“लो ,आप भी कैसी बातें करतें हैं?क्या परेशानी होगी  भला,वहां ख़ुद का काम करना पड़ता होगा ना,थक जाता होगा।पढ़ाई नहीं कर पाता होगा ठीक से।सुनिए जी एक खाना बनाने वाली बाई रख देतें हैं।दोनों भाईयों का खाना बना दिया करेगी।”अंबुजा जी ने मां की जिम्मेदारी निभा दी।

नीरज का मन मेडिकल में नहीं लगता था ,तो वह लाइब्रेरी से स्पेस साइंस की बुक्स लेकर पढ़ता रहता।कुछ प्रोजेक्ट भी बना रहा था घर आना बहुत कम कर दिया था।किससे अपने मन का द्वंद कहे।पैसों की सीमित मात्रा उसे हर क्षण अपनी आवश्यकताओं पर काबू लगाना सिखाती रहती।किसी बुरी संगत या लत में नहीं फंसा था अब तक।

नीरज ने मौसी के बेटे को सिगरेट और बीयर पीते देखा था कमरे में।मां को बताया तो मां बोली”नीरज,तू कब बड़ा होगा रे।जवानी में थोड़ा बहुत तो चलता है।बाहर रहकर इतनी टेंशन झेलने के लिए इन सब चीजों की जरूरत पड़ती ही है।मैं कहती तो हूं,भाई से मांग लिया कर।मौसी पैसों वालीं हैं।बेटे को कभी पैसों की कमी नहीं होने देती।”

नीरज उनसे कैसे कहता कि आर्थिक रूप से कमजोरी रिश्तेदारों के मन में दरार डाल देती है।पैसों के दंभ में चूर मौसी का बेटा जब-तब नीरज को ऑर्डर देकर खाना बनवाया।फिर खुद ही हंसकर कहता”तुझे तो मास्टर शैफ में जाना था।कहां डाक्टरी पढ़ रहा है।”

आखिरी साल था यह।जैसे -तैसे करके बैक लग लग के  अब नीरज को सारे एक्जाम क्लियर करने थे। मम्मी पापा को रिजल्ट दिखाना भी तो है।रिजल्ट निकलने वाला था।इसी खुशी में प्री रिजल्ट सेलीब्रेट हो रहा था कालेज में।शाम के समय थोड़ी छूट तो मिलती है।मौसी के भाई ने बियर की एक बोतल पीकर नीरज को भरी महफिल में इतना शर्मिंदा किया कि नीरज वापस रूम आ गया।घर आकर ही मौसी का बेटा रुका नहीं”तुम लोग ना मेडिकल को हलवा समझते हो।तुझसे नहीं होगा,यह तो पता है ना तुझे।तो कुछ सोचकर रखा है,अगर फेल हो गया तो क्या होगा?किस मुंह से घर वापस जाएगा?”

नीरज के जीवन में कोई ऐसा दोस्त दुर्भाग्य वश था ही नहीं,जिससे उसके गुस्से और फीलिंग शेयर कर सके।

रिजल्ट वाले दिन रवि जी फिर मंदिर गए थे, हनुमान जी को लड्डू चढ़ाने।अंबुजा बार-बार अंदर -बाहर कर रही थी।क्या क्या नहीं बनाया था उसने।खाना बना कर फुर्सत में बैठकर न्यूज ही देख रही थी।तभी वह दिल दहला देने वाला वीडियो दिखाया गया।एक छात्र अपनी कमरे की खिड़की से नीचे कूद गया।अंबुजा जी ने सर पर हांथ धरकर कहा”ये आजकल के बच्चे भी ना।ख़ुद साल भर पढ़ाई करेंगे नहीं। मां-बाप अपना पेट काटकर पैसे भेजते हैं उससे भी उनका मन नहीं भरता। अपनी कायरता छिपाने आत्महत्या करने लगते हैं।”

तभी अंबुजा जी के घर के बाहर एम्बुलेंस आकर रुकी।रवि जी ने दरवाजा खोला।नीरज का मृत देह चार दोस्त पकड़कर घर के आंगन में लाए और लिटा दिया।

अंबुजा अब तक समझी ही नहीं कि उसका लाल चला गया है इस दवाब को ना झेल पाने की वजह से।दहाड़ मार कर रोती हुई अंबुजा जी नीरज के हांथ चूम रही थीं,कभी चेहरा चूम रहीं थीं।सीने में सर रखकर निहारे जा रहीं थीं।झिंझोड़कर उठाने की कोशिश भी कर रहीं थीं ,पर क्या नीरज अब कभी उठ पाएगा?

सब खत्म हो गया।सारे रिश्तेदार आ पहुंचे थे।तेरहवीं में। ज्यादातर रिश्तेदार अंबुजा के धनी परिवार के ही थे,जो आडंबर ज्यादा कर रहे थे।

जब अंबुजा की बहन और उसका बेटा घड़ियाली आंसू बहाना शुरू किए,अंबुजा दहाड़ती हुई बोली”मेरा नीरज नहीं बनना चाहता था डॉक्टर।तेरी बातों में आकर और तेरे बेटे के भरोसे भेजा था मैंने।तुम दोनों ने उसका मनोबल तोड़ने में कोई कमी नहीं की।तभी नीरज जैसा समझदार बच्चा ऐसा कदम उठाने को मजबूर हुआ।”तब तक नीरज के बाकी साथियों ने मौसी के बेटे का पार्टी में‌ नीरज को जलील करना बताया।

अबकी बार रवि जी ने हांथ जोड़कर उन संबंधियों से कहा”मेरा बेटा योग्य था। डॉक्टर बन भी जाता शायद और ना भी बनता ,तो जो भी बनता बेहतर बनता।अपने होकर आप लोगों ने उससे उसका साहस ही छीन लिया,उसके आत्मविश्वास पर चोट कर दी आपने।आज उसके जाने के बाद घड़ियाली आंसू बहाकर अपने पाप कम करने की कोशिश कर रहें हैं ना।उठिए आप सब।मुझे ऐसे अयोग्य संबंधियों की आवश्यकता नहीं।अपने बेटे के जाने का दुख बर्दाश्त करने का साहस है हममें।हमारे बेटे ने चोरी नहीं की,ना ही डाका डाला है।हमने उसकी परेशानियों को नहीं समझा था तब,तो हमसे दूर जाकर सजा भी उसने हमें ही दी है।

शुभ्रा बैनर्जी

#घड़ियाली आंसू बहाना

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