आत्मसम्मान – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

जलते दीए से निकलती ज्योति से आसपास का अंधेरा तो दूर हो जाता है! पर ये भी सच है चिराग तले अंधेरा!

माता पिता ने नाम तो रौशनी रखा था! पर आजीवन दूसरे की जिंदगी रौशन करते खुद अपने नाम का अर्थ भूल गई! पर अपने #आत्मसम्मान #से कभी समझौता नही किया..

रौशनी के माता पिता गाय पालने का काम करते थे! दो नौकर भी सहयोग करने के लिए थे! रौशनी की एक छोटी बहन रश्मि थी और एक भाई प्रकाश!

भाई बहनों में बड़ी रौशनी थी! उस समय गांव में मैट्रिक तक की शिक्षा ही उपलब्ध थी! रौशनी मैट्रिक की परीक्षा दी थी! रौशनी के मौसा जी ने एक लड़का का टिप्पण ले कर रौशनी के घर आए! बताया बहुत अच्छा परिवार है लड़का बड़ा है पटना रह कर तैयारी कर रहा है प्रतियोगी परीक्षा की! उसके पिता ने रेलवे में नौकरी के लिए पैसे भी दे रखे है और ऊंची पैरवी भी है..

लड़का देखने में सुंदर है सुशील स्वभाव का है! तीन छोटे भाई और एक बहन है… सबसे बड़ी बात वो लोग शहर में रहते है लड़का के पिता रेलवे मे है.. बेटी बहुत सुखी रहेगी!

कुछ किस्मत और कुछ बेटी के सुखी जीवन का लालच माता पिता रौशनी के मौसा जी पर भरोसा कर रौशनी की शादी कुंज बिहारी से तय कर दी! माता पिता को भरोसा दिलाया गया कि नौकरी होते हीं रौशनी पति के साथ चली जायेगी! रौशनी आंखों में सपने लिए ससुराल की चौखट पर कदम रखा!!

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भले हीं गांव में थी रौशनी पर कितना बड़ा और खुला खुला सा घर था! यहां तो रहने वाले  ज्यादा और कमरे कम थे..

रौशनी को एक छोटा सा कमरा जिसमे खिड़की भी नही थी और फालतू समान भरे थे मिला!

पति पहली रात हीं नशे में चूर जब कमरे में आया रौशनी  सहम गई! एक सप्ताह बाद पटना गया कुंज बिहारी ! अगले महीने फिर वापस आ गया!

रौशनी इतनी सी उम्र में हीं बहुत बड़ी हो चुकी थी! सपने और अरमां खाक हो चुके थे! ससुर रेलवे में कुली का काम करते थे उनकी कमाई से इतना बड़ा कुनबा चल रहा था! 

रौशनी का पति भी घर मे हीं पड़ा रहता ! बाइस साल की उम्र में रौशनी दो बेटी और एक बेटा की मां बन चुकी थी! मायके वाले बहुत दुःखी थे रौशनी की इस हालत से!

एक दिन रौशनी के ससुर किसी पैसेंजर का सामान सिर पर उठाए प्लेटफॉर्म की सीढ़ियों से लुढ़क गए! ब्रेन हैमरेज हो गया! तीन दिन कोमा में रहने के बाद चल बसे!

घर की स्थिति नाजुक हो गई ! फिर भी रौशनी का पति पीने की आदत नही छोड़ा!

रौशनी के तीनो देवर स्टेशन के पास हीं एक छोटी सी दुकान खोल चाय समोसा निमकी बना ट्रेन में बेंचने का काम करने लगे!

कुंजबिहारी पर कोई फर्क नहीं पड़ा तो तीनो भाइयों और सास ने रौशनी कुंजबिहारी और बच्चों को अलग कर दिया! किसी तरह एक छोटा सा कमरा उसको मिल पाया!

अब रौशनी के सामने तीन निरीह बच्चे उनकी कातर निगाहों बेशर्म नशेड़ी पति सब घूम रहे थे!

रौशनी बच्चों को लेकर मायके गई माता पिता से बोली मैं भी गाय भैंस पलकर अपने बच्चों की परवरिश करना चाहती हूं! गांव में तीन बच्चों के साथ पति के होते हुए मायके में रहना बहुत शिकायत और शर्म की बात थी उन दिनों! रोशनी के घरवाले भी उस सोच से अछूते नहीं थे! बेटी के दुःख से दुखी थे पर एक बेटी और एक बेटा और था जिसकी शादी करनी थी! मायके में शादी के बाद रहने वाली लड़की की मजबूरी किसी को नजर नहीं आती! बस मायके में रहने वाली लड़की वो भी गांव में…. रौशनी के पास उसका #आत्मसम्मान #हीं उसकी हिम्मत और हौसलों को कामयाब करने का बहुत बड़ा हथियार था…

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बात जब अपने बच्चों पे आ जाती है तब सारे रिश्ते पीछे हो जाते हैं। रौशनी आर पार के मूड में थी..

फिर तय हुआ शहर में किराए की जगह ले कर दो गाय से रौशनी अपना काम शुरू करेगी पिता कुछ दिन रहकर सहयोग करेंगे!

धीरे धीरे रौशनी अपने काम में पूर्ण दक्ष हो गई! गाय की संख्या बढ़ने लगी! सुबह चार बजे से हीं गोबर साफ करती गाय को सानी पानी देती! बच्चे भी सहयोग करते?

पांच साल के अथक संघर्ष ने रौशनी को पैर के नीचे ठोस जमीन तो दो पर पति की आदतें नही गई! किसी ग्राहक से पैसे की मांग करता नही देने पर रौशनी से गलत संबंध का इल्जाम लगा देता! कभी दूध से भरी बाल्टी उठा शराब बेचने वाले के घर पहुंचा देता! रौशनी तड़प के रह जाती! दूध लेने वाले ग्राहक रौशनी की ईमानदारी मेहनत और तपस्या की बहुत इज्जत करते थे!

तमाम संघर्षों से मुकाबला करती रौशनी मसलन कभी गाय बीमार पड़ जाती कभी कोई गाय मर जाती आगे बढ़ रही थी! कभी वेटनरी डॉक्टर के पास दौड़ती भागती! कभी कुटी दाना वाले से मोलभाव करती! मर्द बन गई थी कोमल काया और सुकोमल मन की रौशनी! गाय के मर जाने पर आंसू भी खुद बहाती और पोंछ भी खुद लेती! अपने लिए सोचने का वक्त कहां था रौशनी के पास! ना खाने की चिंता ना आराम करने की आदत! बस काम और सिर्फ काम! लकड़ी के चूल्हे पर गाय का खाना बड़े बड़े तसले में बनाती उतारती दुबली पतली काया की रौशनी ! देखनेवाले की आंखे भीग जाती!

कभी एडवांस पैसे के लिए गाय खरीदने के लिए ग्राहकों के घर भी जाती बहुत इज्जत से घरवाले कुर्सी देते जबरदस्ती चाय पिलाते!!

बच्चे भी मां को सहयोग कर रहे थे!पढ़ाई भी खूब मन लगा कर करते!

रौशनी की बड़ी बेटी मिडिल स्कूल में शिक्षिका बन गई! खूब सोच समझकर उसकी शादी सीए लड़के से की! सबकुछ लड़के वालों को सच सच बता कर!

दूसरी बेटी को बुटीक खोलने का बहुत शौक था इसलिए फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया!

उसकी भी शादी रेलवे के स्टेशन मास्टर से कर रौशनी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई!

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सास भी अब रौशनी के पास हीं रहती है सब से कहती है मेरी बेटी है बहु नही! बेटियों की शादी के बाद बहुत खूबसूरत घर खरीदा रौशनी ने! बेटियां आई दामाद सारे रिश्तेदार परिचित सब आए! गृह प्रवेश में! मिथक को तोड़ते हुए रौशनी ने बड़ी बेटी से छोटी बेटी का कन्यादान करवाया था घर की पूजा में दोनो बेटियां और दामाद को बैठाया! सब अच्छे से संपन्न हो गया! सुबह जब रौशनी गाय के खटाल में गई अंधेरे में लगा कोई रोड के किनारे कोई गिरा हुआ है नजदीक जाने पर देखा कुंजबिहारी मरा पड़ा है…

जहरीली शराब ने उसकी जान ले ली! रौशनी के लिए पति का मतलब बस मांग में लगा थोड़ा सा सिंदूर था! सिंदूर के साथ कितने कर्तव्य जिम्मेदारियां जुड़ी होती है कुंज बिहारी इससे सदा दूर हीं रहा! पति का सुख पति से लगाव ये सब रौशनी के भाग्य में नही थे! पति का जाना रौशनी के लिए बस सिंदूर ना लगाने से ज्यादा कुछ नहीं था! बच्चों ने भी पिता को सिर्फ देखा था! पिता के व्यापक कर्तव्य को जिम्मेवारी को कभी ना देखा ना हीं महसूस किया था!!

रौशनी का बेटा दरोगा बन गया! मां के गले लग खूब रोया! तेरे कारण हीं सब हो पाया मां! घर में फिर से चहल पहल हो गई बेटे की शादी जो थी! बेटियां रिश्तेदार से घर भर गया!

अब रौशनी के पति नही हैं विधि कौन करेगा खुसुर फुसुर शुरू थी! बेटे की हल्दी की रसम शुरू थी रौशनी अपने काम में लगी थी किसी चीज की कमी ना हो! पंडित जी हल्दी लगा चुके थे अब घर वाले लोगों को लड़के को हल्दी लगाना था!

बेटा पंडितजी से इजाजत ले कर उठा मां का हाथ पकड़ कमरे में ले गया एक पैकेट निकाला जिसमे पीले रंग की सिल्क की साड़ी थी मां को अपनी कसम देकर पहनकर बाहर आने बोला! मां की कोई दलील काम नही आई।

दरवाजे पर खड़ा बेटा जब मां को पीले रंग की साड़ी में देखा तो मां का रूप देख अवाक रह गया हमेशा साधारण ढंग से रहने वाली असाधारण सी मेरी मां!

मां का हाथ पकड़े मंडप के पास बेटा आया और बोला हर रस्म पहले मां करेंगी फिर बाकि लोग वरना मैं शादी नही करूंगा मां तुझे तेरे बेटे की सर की कसम…. मां तुम से शुभ मेरे लिए दुनिया में कुछ भी तो नहीं है माता पिता दोनो तुम हीं तो हो हमारी…

रौशनी की तपस्या रंग लाई! भले हीं कुंवारे मन के सपने वक्त के थपेड़ों और किस्मत की लकीरों ने लहू लुहान कर दिया… पर इतनी मुसीबतों और कठिनाइयों को झेलते हुए विपरीत परिस्थितियों में भी रौशनी ने अपने #आत्म सम्मान# के साथ कभी समझौता नहीं किया… इसी कारण रौशनी का मोरल हमेशा हाई रहा..

रौशनी समाज के लिए परिवार के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं!! नमन है मेरा रौशनी के जज्बे को…… उसके #आत्मसम्मान #को..

🙏✍️❤️…..veena singh..

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