देख बहु हमारा इंतजार हमारी तपस्या रंग लाई और मेरा बेटा वापिस आ गया। अब तू सब कुछ भूलकर उसे माफ कर दे बेटा, कल्पना जी अपनी बहू सिमी से बोली।
हां सिमी बेटा जिंदगी में खुशियां बार बार दस्तक नही देती, अब इनसे मुंह न मोड़, देख बेटा हम दोनो अब बूढ़े हो चुके हैं जाने कब बुलावा आया जाए, विश्वनाथ जी भी बहु को मनाते हुए अपने मन की बात बोल गए।
हां सिमी मैं लौट आया हूं तुम्हारे पास, अपनी बेटी पीहू के पास, मुझे बस एक मौका दे दो प्लीज सिमी मुझे माफ़ कर दो।
किस बात की माफी विनय, तुम पुरुष हो और पुरूष का स्त्री को छोड़कर जाना इतना बड़ा अपराध तो नही। सिमी तटस्थ भाव से बोली
ऐसा मत कहो सिमी, मुझे पता है मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है पर मेरा यकीन मानो अब मैं तुम्हे और पीहू को वो सब कुछ दूंगा जिनके लिए वो अभी तक तरसे हैं।
एक हल्की सी मुस्कान सिमी के होठों पर तैर गयी,
तुम मुझे छोड़ कर गए क्योंकि मैं तुम्हारी पसंद नही थी, लेकिन जाने से पहले मेरे शरीर पर पति होने का अधिकार जमा गए, और अपना अंश मेरी कोख में छोड़ दिया। मां पिताजी ने अगर मुझे नही संभाला होता तो, मैं अपना जीवन समाप्त कर चुकी होती,लेकिन ये कोई एक दो दिन, हफ्ते या महीने की बात नही है,पूरे सात साल गुजर गए।
इन सात सालों में अपनी बेटी को सीने से लगाये मैंने रातें अकेली काटी है, बेटी का बचपन बीत गया।
क्या ये दिन तुम उसे लौटा पाओगे, मेरे तन में तुम पहली रात ही बस गए थे, अब क्या मेरे मन मे भी जगह बना पाओगे। शायद नही क्योंकि पुरुष स्त्री से नही उसकी स्त्री देह से प्यार करता है,और हम स्त्रियां सारी जिंदगी इसी गलतफहमी में बिता देती है।
अग्नि को साक्षी मानकर मैंने आपके साथ फेरे लिए है, आपकी अर्धांगिनी बनकर इस घर मे आयी। मेरे संस्कार आपको त्यागने की अनुमति नही देते।
पर आपके साथ इस कमरे में रहकर खुद अपनी ‘आंखों से नही गिरना’ चाहती,। मेरा आत्मसम्मान मुझे आपको स्वीकारने भी नही देगा।
आप इस घर में रहेंगे जरूर, अपने माता पिता के बेटे बनकर, पति नही सिर्फ मेरे बच्चे के पिता बनकर…..इससे ज्यादा आदर मैं आपको नही दे पाऊंगी।
सिमी ठीक कह रही है विनय, और इस फैसले में हम उसके साथ हैं विनय के माता पिता अपनी बहू सिमी के सर पर हाथ रखते हुए बोले।
मोनिका रघुवंशी