आत्म सम्मान – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

मम्मी कल मैं वापस जा रहा हूं आप भी अपना समान पैक कर लें हमारे साथ चले यहां अकेले कैसे रहेंगी नमिता का बेटा आकाश बोला । नहीं आकाश में तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी , लेकिन मां तुम यहां कैसे रहोगी अकेले ।रह लूंगी बेटा मैं अकेले अभी तक तो तुम्हारे पापा थे

लेकिन मैं अपना आत्मसम्मान गिरा कर तुम्हारे साथ नहीं जा सकती। तुम्हारी बीबी मेरा अपमान करती रहती है ।तुम लोग जाओ मैं अपनी देखभाल खुद कर सकती हूं पर मां,,,,,, नहीं बेटा तुम जाओ मेरा जितना अपमान तिरस्कार हो चुका है अब बर्दाश्त नहीं है मुझको । मेरे हाथ पैर चल रहे हैं मैं अपना ख्याल रख लूंगी। 

             आकाश के पिता का अभी पंद्रह दिन पहले हार्ट अटैक से देहांत हो गया था । आकाश एक भाई और एक बहन थे । नमिता की बेटी कोमल को कुछ शारीरिक परेशानी थी जिसकी वजह से उसकी शादी नहीं हुई थी ।और आकाश की शादी अभी तीन साल पहले हुई है। आकाश ने

अपनी पसंद की लड़की से शादी की है । फिर भी नमिता और उनके पति नवीन ने खुशी खुशी स्वीकार किया । नमिता ने मन में सोच रखा था कि बड़े प्यार से बहूं को रखूंगी ।सांस बहू नहीं मां बेटी बनकर रहूंगी।और है ही कौन परिवार में छोटा सा तो परिवार है हमारा ।खूब अच्छे से रहे सारी आजादी है कोई रोक टोक नहीं ।

                        नमिता बहुत सरल हृदय थी । बहुत कठिनाई यां सहकर यहां तक पहुंची थी ।अब घर में कोई कमी नहीं है , आर्थिक रूप से भी सब ठीक है । बेटा बेटी पढ़-लिख कर नौकरी कर रहे हैं ।एक बेटी की परेशानी थी तो उसको भी अपने पैरों पर खड़ा कर दिया अपनी नौकरी कर रही है ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बात आत्मसम्मान की ।। – अंजना ठाकुर : Moral Stories in Hindi

नमिता और नवीन भी अब हर तरह से समर्थ है बेटे से कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। अपना अच्छी कालोनी में बढ़िया घर है सभी सुख सुविधाएं हैं ।एक समय में आर्थिक परेशानी थी वो तो सबके जीवन में आती है लेकिन अब सब ठीक है ‌। नमिता एक कुशल गृहिणी हैं , बहुत बढ़िया खाना बनाती है।

घर के सारे काम बड़ी कुशलता से निपटाती है । कोई भी ऐसा हुनर नहीं है जो उनमें न हो।और इसके साथ ही सरल हृदय ममता से भरी हुई,न कोई लडाई न किसी से झगड़ा,न किसी को अपशब्द बोलना, रिश्तों को सहेजना अच्छे से आता था उनको।और फिर बहू बेटा को कौन सा अपने पास रहना है ।वो तो वहां रहेंगे मुम्बई में जहां बेटे की नौकरी है ।और नमिता को अपने घर। हां कभी कभी तीज त्यौहार पर आना होता है घर पर बेटे का ।

            लेकिन ऐसा नहीं होता है जैसा हम सोचते हैं । शादी के बाद बहू स्वाति का रवैया नमिता के प्रति ठीक नहीं था ।वो बहुत उखड़ी उखड़ी सी रहती नमिता कुछ कहती तो टेढा सा जवाब देती ।पर नमिता चुप रहती कि अभी कुछ ही दिन शादी के हुए हैं धीरे धीरे एडजस्ट हो जाएगा।

               कुछ समय बीत जाने पर भी उसका रवैया वैसा ही रहा।जब भी आती कमरे में ही पड़ी रहती खाना नास्ता बाकी सब काम नमिता ही निपटाती रहती ।बस समय समय पर आकर नास्ता खाना खा लेती थी और फिर अपने कमरे में।नवीन जी कहते बहू से कुछ कहा करो सारे दिन तुम लगी रहती हो

थोड़ा बहुत तो हाथ बंटा सकती है न । नमिता बोली छोड़िए जी मेरी तो आदत है काम करने की कर लूंगी जबरदस्ती कोई बहस का मुद्दा बने ये हम नहीं चाहते । लेकिन ये ठीक नहीं है नवीन जी बोले।

                  शादी के छै महीने बाद नवीन और नमिता बोले चलो एक हफ्ते को मुम्बई चलते हैं आकाश के पास भी रह लेंगे और थोड़ा घूमना फिरना भी हो जाएगा।इस तरह दोनों मुम्बई चले गए । वहां भी स्वाति का रूखा सा व्यवहार था ।नौकर चाकर सारे काम कर जाते ,मेड खाना बना जाती ।

फिर नमिता जी अपने आपसे ही अपना और नवीन जी का खाना परोस लेती ।एक दिन नवीन जी का पेट खराब हो गया तो आकाश बोला स्वाति पापा के लिए थोड़ी खिचड़ी बनाई दो तो स्वाति बोली मुझे नहीं आती बनानी तुम मम्मी से कह दो बनाने को। स्वाति को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सीख – अभिलाषा कक्कड़

सांस ससुर का आना।एक हफ्ते बाद कुछ कटु स्मृतियां लिए दोनों वापस अपने घर आ गए। पीछे आकाश और स्वाति में कुछ कहा सुनी हुई तो स्वाति ने नमिता को फोन करके कहा आप यहां हम दोनों के बीच में झगड़ा करवाने आई थी , सुनकर नमिता दंग रह गई ।बहू के लिए ये करूंगी वो करूंगी ंंनमिता के सारे सपने चकनाचूर होते नजर आ रहे थे ।

                   नमिता के ससुर जी देवर के पास रहते थे उनकी मृत्यु हो गई तो आकाश और स्वाति आए ।सारे रिश्ते दार मौजूद थे उनके बीच में स्वाति ऊटपटांग कपड़े पहनकर घूमने लगी तो नमिता ने टोक दिया देखो स्वाति इस समय सारे रिश्तेदार मौजूद हैं जरा ढंग के कपड़े पहन लो बाद में

पहनती रहना तो स्वाति बोली आपके घर में तो मुझे कोई आजादी नहीं है बस ये मत करो वो मत करो। फिर जिस दिन तेरहवीं की पूजा थी ब्राह्मणों का भोजन था पूजा के समय ही भाई को बुला कर मायके चली गई ।सब पूछने लगे बहू कहां जा रही है सब चुप रहे कि उस समय सबके सामने कोई हंगामा न हो ।

                डेढ़ साल बाद स्वाति के प्रेगनेंट होने की खबर मिली तो नमिता ने बधाई दी । डिलीवरी के आठवें महीने में आकाश स्वाति को लेकर घर आ गया कि यहां अच्छे से देखभाल हो जाएगी। नमिता ने सबकुछ भूलकर खूब अच्छे से देखभाल की स्वाति की और स्वाति को पहले से ही बता दिया था

कि देखो स्वाति डिलीवरी के चालीस दिन बाद पूजा होती है नामकरण होता है तभी घर से बाहर जच्चा-बच्चा जाते हैं ।और फिर थोड़ा गाना बजाना भी करना है लड्डू भी बांटने है हमारे घर का पहला बच्चा है । लेकिन डिलीवरी के पंद्रह दिन बाद ही भाई को बुला कर मायके चली गई नमिता से पूछना भी जरूरी नहीं समझा ।मायका लोकल ही है । आकाश के भी उल्टे सीधे कान भर दिए वो भी कुछ न बोला आजकल तो लड़के कहां बोलते हैं झगड़ा होने लगता है।

            नमिता ने आकाश से कहा अच्छी तरह से देख भाल हो रही है पूरे समय की नौकरानी लगी है फिर भी न जाने क्या कभी नजर आ रही थी जो चली गई बिना पूछे बिना बताए। मेरी बातों का जरा भी मान नहीं रखती ।मैं जो कहती हूं उसका उल्टा ही करती है।

             फिर चालीस दिन बीतने पर नमिता ने सोंचा कुछ पूजा वगैरह रख लेते हैं बच्चे का नामकरण भी हो जाएगा और लोगों में लड्डू भी बांट जाएंगे। नमिता ने आकाश से पूछा घर में पूजा रखे स्वाति आ जायेगी तो आकाश बोला मम्मी मैं आप और पापा उनके घर चलते हैं बच्चे से भी मिल लेना

आपलोग और बुला भी आएंगे नमिता बोली ठीक है। दूसरे दिन सब लोग घर गए स्वाति के ,जब नमिता ने पूजा के लिए घर आने को कहा तो कहने लगी मैं नहीं आउंगी और बच्चे से भी नहीं मिलने दूंगी ,कैसी बात कर रही हो कोई बड़े छोटे का लिहाज है कि नहीं मैं अच्छा अच्छा करने की सोचती हूं

इस कहानी को भी पढ़ें: 

कुछ तो लोग कहेंगे…..!! – विनोद सिन्हा “सुदामा”

लेकिन तुम्हें कुछ अच्छा नहीं लगता । क्या परेशानी थी घर पर जो पंद्रह दिन में ही यहां चली आई । वहां रात को पड़ी आप सोती रहती थी बच्चे को मुझे संभालना पड रहा था ।अरे जब बच्चा रोएगा भूख लगी है उसे तो दूध तो तुम्हें ही पिलाना पड़ेगा न फिर बच्चा तो दिनभर सो ही रहा है जब भूख लगी

या सूसू करी तभी रोता था तो मम्मी बनी हो तो कुछ तो तुम्हें भी करना पड़ेगा न । पता नहीं तुमको क्या परेशानी है । जितना तुम मुझे रूला रही हो न तुम भी रोओगी ,मैं क्या रोऊंगी मम्मी रोऊंगी तो आप देखते जाओ।मैं तो कुछ कहती भी नहीं हूं अभी तुमने सास देखी नहीं है कैसी होती है आपसे बुरी सांस क्या होगी। फिर धीरे-धीरे बात बढ़ती गई आकाश से भी खूब झगड़ा होने लगा किसी तरह सब लोग घर वापस आ गए 

।उस घटना ने नमिता को इतना परेशान कर दिया कि डिप्रेशन का शिकार हो गई नमिता । सोचने लगी इतना अपमान और तिरस्कार आखिर किस लिए ।

                उस दिन से नमिता ने सोच लिया कि अब कोई समझौता नहीं मेरा भी कुछ आत्मसम्मान है मैं क्यों बार-बार अपना अपमान कराऊं।मैं क्यों उसके आगे झूकू वो मेरा क्या कुछ कर रही है ।

नमिता ने आकाश को समझाया बेटा अब तुम्हारे भी बेटा हो गया है उसकी अच्छे से परवरिश करो हमारी वजह से तुम दोनों के बीच झगड़ा होती है वो हमें अच्छा नहीं लगता ।तुम लोग खुश होकर रहो । स्वाति को हमारे घर पर कुछ अच्छा नहीं लगता तो मत लेकर आओ यहां हां तुम आओ और उनको उनके मायके में छोड़ दो। तुम्हारे बच्चे को गोद में खिलाने की तमन्ना मन में ही रह गई।

           आकाश मोबाइल पर बच्चों की फोटो भेजता रहता है उसी को देख कर नमिता खुश हो लेती है ।अब बच्चा दो साल का हो गया ।अब आकाश के पापा नहीं रहे तो आकाश आया था स्वाति मैडम भी आई थी । ऐसे माहौल में तो कुछ नहीं कहा जा सकता।सारे काम निपट जाने के बाद आकाश मम्मी से कह रहा था कि हमारे साथ चलो। नमिता ने मना कर दिया जहां  सम्मान नहीं वहां जाकर क्या रहना ।रोज़ तिल तिल कर मरने से अच्छा है अकेले रह लेना। नमिता ने फैसला कर लिया कि वो आकाश के साथ नहीं जाएगी । अपने आत्म सम्मान को गिरवी रख कर तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी बेटा तुम जाओ।मैं अकेले रह लूंगी लेकिन पल पल अपमान सहकर नहीं रहूंगी।

         दोस्तों आजकल यही हो रहा है । बिना मतलब के आपस में झगड़ा करके रिश्ते खराब कर दिए जाते हैं की साथ रहने की कोई गुंजाइश ही न रहे ।तो अकेले रहकर अपना ध्यान रखें और मस्त रहे ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

1 सितम्बर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!