“नवीन जी किरानी की नौकरी करते थे।
पत्नी सावित्री और दो बेटियां अंकिता और अवंतिका थी। भगवान की दया से बेटियां पढ़ाई और खेल दोनों में काफी होशियार थी–। दोनों स्कूल में हमेशा टॉप आया करतीं ।
“नवीन जी के घर में कुछ हो ना हो पर– बेटियों की “ट्रॉफीज और प्रमाण” पत्र जरूर रहते , जिन्हें देख वह काफी प्रफुल्लित हो जाते— मानो उन्हें जीवन की सारी खुशियां मिल गई हो–।
” अरे नवीन जी बधाई हो आपको–! आपकी बेटी बैडमिंटन में पूरे जिले में टॉप आई है अखबार में उसका नाम पढ़ा बगल के पड़ोसी ‘कांता जी’ नवीन जी को बधाई देते हुए बोले। “जी– बहुत-बहुत धन्यवाद” सुनकर, जैसे दुनिया की सारी खुशियां उन्हें मिल गई । अरे—- “सावित्री सुनती हो आज दोनों की नजरें उतार देना !कुछ नजरे अच्छी नहीं होती— !
नवीन जी चाहकते हुए बोले । अंकिता सुनकर पापा से बोली “क्या पापा हम इतने कमजोर नहीं– आप भी इन सब बातों पर विश्वास करते हैं—? हमें किसी की नजर-वजर नहीं लगेंगी—-! जब तक आप दोनों का आशीर्वाद रहेगा हम हमें सफलता मिलती रहेंगी—-! ओ मेरा बच्चा— मेरी जिंदगी की जमा-पूंजी हो तुम दोनों–! भगवान करे दोनों यूं ही चहकती रहो–!
“अंकिता आब दसवीं में आ गई थी अगले साल उसे बोर्ड का परीक्षा देना था– “बेटा अब खेल-वेल में भाग लेना छोड़ दे– । अगले साल बोर्ड है— पूरी ध्यान पढ़ाई पर होनी चाहिए—- ! नवीन जी अखबार को एक तरफ रखते हुए बोले ।
” पापा आप चिंता मत कीजिए– “मेरी तैयारी अच्छी तरह से चल रही है” !
पिता को आश्वासन दे अंकिता स्कूल चली गई ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
धीरे-धीरे बोर्ड परीक्षा खत्म हुआ और परिणाम भी आ गया — “अंकिता “पूरे जिले में टॉप आई। बधाई देने वालों का ताता लगा था नवीन जी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे और खुश भी क्यों ना होते अपना समय भी तो उन्होंने बच्चों के पीछे दे रखा था। नौकरी के साथ-साथ बेटियों के कैरियर को निखारने में उनका पूरा प्रयास रहता—। इन सब के बीच ” पत्नी सावित्री” उनके सामने रहकर भी उनसे अनभिज्ञ रहती—– क्योंकि उनका तो नौकरी करने में और बचा हुआ समय ‘बेटियों के कैरियर को बनाने मैं लगा रहता–। अपने आगे- पीछे सभी को वह नजर अंदाज करते चले गए—-। कभी-कभी सावित्री जी एकांत में उदास हो जाया करती लेकिन बाद में अपने आप को समझाती कि चलो कोई नहीं—- इन दोनों का कैरियर ही तो बना रहे हैं वह—! जब वे चली जाएंगी— हम दोनों ही तो होंगे एक दूसरे के लिए—।
आज सुबह-सुबह:-
“बेटा तुम्हारे पास दो ऑप्शन है या तो तुम पढ़ाई में अपना कैरियर चुनो या फिर स्पोर्ट्स में अपना कैरियर चुन सकती हो– लेकिन— ये निर्णय हमें तुरंत ही लेना पड़ेगा–! बोर्ड परिणाम निकलने के बाद नवीन जी ने अंकिता से बोला ।”पापा मुझे आईआईटी की तैयारी करनी है—!
यह तो बहुत अच्छी बात है—!
अब अंकिता आईआईटी की तैयारी में जी-जान से लग गई फलस्वरुप सफलता तो उसके जैसे कदम चूमते हो—- उसे आईआईटी कानपुर मिल गया—! और वह कानपुर पढ़ने चली गई।
अवंतिका भी बोर्ड के बाद मेडिकल की तैयारी में लग गई । उसका भी एमबीबीएस “मौलाना अब्दुल कलाम मेडिकल कॉलेज” में एडमिशन हो गया।
अब नवीनजी और सावित्री जी बिल्कुल अकेली हो गए ।
‘ सावित्रीजी ज्यादा अकेलापन महसूस करती– क्योंकि अब भी नवीन जी का समय ऑफिस में ही गुजर जाता ।
पहले तो वह बच्चियों में लगी रहती अब दोनों के चले जाने से वह भी बिल्कुल खाली सी हो गई– ।
समय की रफ्तार तेज गति से दौड़ने लगी ।
“अंकिता को “न्यूयॉर्क में एक अच्छे पैकेज पर जॉब लग गया और वह न्यूयॉर्क चली गई।
इस कहानी को भी पढ़ें:
अवंतिका भी उसी कॉलेज से एम डी करने में लग गई ।
अंकिता की जब शादी की बात चली तो— “पापा मैंने अपने लिए लड़का ढूंढ लिया है वह मेरे साथ ही काम करता है हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं ।
‘ बेटी की खुशी के लिए उन्होंने शादी के लिए रजामंदी दे दी–!
शादी के बाद दोनों स्थाई रूप से न्यूयॉर्क में ही सेटल हो गये ।
अब नवीन जी भी रिटायर हो गए थे ।
“इसी बीच सावित्री जी की तबीयत खराब रहने लगी— । एक दिन उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया–। अंकिता अपनी मां की अंतिम समय में भी नहीं आ सकी । नवीन जी को इस बात का गहरा सदमा लगा उन्हें तब जाकर एहसास हुआ की बेटी उनसे बहुत दूर जा चुकी है ।
सावित्री जी के नहीं रहने पर नवीन जी बिल्कुल अकेले हो गए ।
बेटियां अपने-अपने कामो में व्यस्त हो गई । अब ये “जिंदगी उनको बोझ” सी लगने लगी । जहां उनको अब एक हमसफर की जरूरत थी वहां सावित्री जी ने उनका साथ छोड़ दिया । इतना अकेलापन उन्हें अपनी पूरी जिंदगी में कभी भी महसूस नहीं हुई । वह बीते दिनों के बारे में सोचते— जब सावित्री उनको कहती कि– आप मेरे साथ थोड़ा वक्त गुजार लिया करो–! सारे दिन तो ऑफिस में रहते हो फिर शाम को आते ही बच्चों के साथ— ।
” मैं अपने लिए कुछ मिनट ही तो मांगती हूं तब मैं ये कह कर टाल जाता कि “पगली पूरी जिंदगी हमारी पड़ी है हम तो हमेशा साथ ही रहेंगे ना— लेकिन इनका समय एक बार गया तो वापस नहीं आएगा—! मुझे क्या पता था कि वह एक दिन मुझे छोड़कर चली जाएगी और मैं अकेला रह जाऊंगा— । “यह जीवन का सच है”कि समय किसी का इंतजार नहीं करता ।
“पापा मेरी एम डी की पढ़ाई पूरी हो गई और अब मेरा “बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज” के लिए लेटर आ चुका है—!
” मैं कल ही घर आ रही हूं–! फोन पर अवंतिका अपने पापा को बता रही थी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बेटा तू घर आ——जा ।
“आज अवंतिका घर आ गई–! बेटी को देखते ही उन्हें राहत महसूस हुआ– लेकिन कहीं ना कहीं डर भी था कि वह भी मुझे छोड़ चली जाएगी ।
अवंतिका की जाने की तैयारी चल रही थी— तभी नवीन जी उसके कमरे में आए और बोले–
बेटी एक बात मानेगी—!
हां पापा बोलिए–!
“प्लीज मत जा तू–! यहीं पर प्रैक्टिस कर ले मेरे साथ इसी शहर में—!
सेटल हो जाने के बाद मैं आपको भी ले जाऊंगी—!
नहीं बेटा—” मैं तेरी मां की इस अंतिम निशानी के साथ ही रहना चाहता हूं —!
कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगे । पिता को बच्चे की तरह रोता देख उसे मां की याद आ गई– और विचलित होकर रोने लगी । “पापा मैं कहीं नहीं जाऊंगी मैं आपसे प्रॉमिस करती हूं जब तक आप हैं तब तक मैं हूं यही रहूंगी इसी शहर में आपके पास— जो भी करना होगा यही करूंगी प्लीज पापा आप मत रोइए– ।
“जीवन का यही सच है कि जो हम सोचते हैं वो कभी पूरा नहीं होता इसलिए हमें अपनों के भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए–! आपकी पत्नी आपसे चंद मिनट ही तो मांग रही है उसे अपना समय जरूर दिजिए– । अरे पत्नियों के पास तो खुद समय नहीं होता घर की जिम्मेदारियां को निभाते- निभाते वह आपसे अपने लिए 20- 25 मिनट ही तो मांगती है जो उसके लिए टॉनिक की तरह काम करता है और पूरे दिन स्फूर्ति बनाए रखता है । हमेंएक दूसरे के भावनाओं की कद्र करनी चाहिए ताकि बाद में कभी पछताना न पड़े ।
दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक शेयर और कमेंट्स जरुर कीजिएगा ।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह
#यह जीवन का सच है