आशंका – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

मॉम , पापा अपनी मर्ज़ी हमारे ऊपर क्यों थोपते है? मैं कोई टीनएजर तो नहीं रहा अब ? 

नहीं सरल , ऐसा नहीं कहते …. माता-पिता कभी अपने बच्चों का बुरा नहीं सोचते बेटा ! 

मैं ये नहीं कह रहा कि वो बुरा सोचते हैं पर बड़े होने के बाद बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, ये उन्हें नहीं पता । हुक्म , ज़बरदस्ती और सलाह में अंतर होता है मॉम । प्लीज़ उन्हें समझा देना ।

निधि और सरल दोनों जानते थे कि नीरज को समझाना किसी के वश की बात नहीं । विशेष रूप से पत्नी और बेटे की बात सुननी तो शायद उनके उसूलों के खिलाफ थी ।

बाप- बेटे में जब भी बातचीत शुरू  होती तो अंत हमेशा झगड़े के साथ होता था । 

मुझे फ़ोन करने की ज़रूरत नहीं……..

बिना बीच में बोले निधि समझ गई कि आख़िर आज सरल के मन के विद्रोह ने शब्दों का रुप ले ही लिया ।  यह स्थिति तो एक न एक दिन आख़िर आनी ही थी । 

आज उसे बरसों पहले कही बुआजी की बात याद आ रही थी—- जो अपने माँ- बाप का दिल दुखाते है । भगवान उन्हें ज़रूर सजा देता है ।

तो क्या सरल के माध्यम से भगवान ने सजा देनी शुरू कर दी है? नहीं-नहीं….. मैं सजा का माध्यम अपने बेटे को हरगिज़ नहीं बनने दूँगी । नीरज का व्यवहार उसकी माँ की परवरिश है , उसका घरेलू वातावरण है या उसकी हीन भावना है पर मैं अपने बेटे पर पिता के प्रति बाग़ी होने का आरोप नहीं लगने दूँगी । 

सरल ! सुन रहा है मेरी बात? ये किस अंदाज में तूने अपने पापा से बात की थी? बेटा , अब इस उम्र में वो नहीं बदलेंगे पर तू कभी ऐसा काम नहीं करेगा जिससे उनका दिल दुखे ।

अरे मॉम ! वो बात तो ख़त्म हो गई थी । उन्होंने मुझे कहा और मैंने अपनी बात रखी । इसमें दिल कहाँ से दुख गया ? आप भी न जाने क्या-क्या सोचती हो? क्या अपने विचार नहीं रखने चाहिए? 

हाँ….अपने विचार तो रखने चाहिए । बस मन थोड़ा उदास है । तू तो जानता है ना ये मनहूस फ़रवरी का महीना….. 

फ़रवरी महीने के शुरू होते ही निधि के मन में अजीब सा अकेलापन और बेचैनी सी बढ़ जाती  थी ।यही तो है वो महीना , जिसने उसे अनाथ कर दिया था । मम्मी के जाने के बाद डैडी थे पर उनके बाद तो वह अनाथ हो गई । कहने के लिए तो कई रिश्ते थे पर माता-पिता का साया क्या होता है, यह बात निधि को उनके जाने के बाद महसूस हुई थी । 

निधि ! अब तुम्हारे डैडी बीमार रहने लगे हैं बेटा , या तो तुम यहाँ आकर रहो या इन्हें अपने पास ले जाओ ।

एक बार मायके जाने पर पड़ोस की आँटी ने निधि से यह बात कही तो सचमुच निधि ने गौर किया कि डैडी वाक़ई काफ़ी कमजोर और ख़ामोश से नज़र आए थे ।

डैडी! आप मेरे साथ चलिए अब …. काफ़ी रह लिए अकेले ।

पर बेटा, घर ? 

घर …. आदमियों से बनता है डैडी । अब यह मात्र मकान रह गया है । अब मैं आपकी एक नहीं सुनूँगी ।

और निधि अपने पिता को लेकर बैंगलोर चली गई । पति नीरज ने निधि की सराहना की कि वह पिता को साथ ले आई क्योंकि इस उम्र में व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से सहारे की ज़रूरत होती है । 

गुजरते समय के साथ निधि ने महसूस किया कि नीरज का व्यवहार डैडी के साथ पहले जैसा नहीं रहा था ।उसने  मुँह से कभी कुछ गलत नहीं कहा पर अपने हाव-भाव से वह छोटी-छोटी बातों पर यह अहसास करवा देता था कि वह घर का मालिक है । बस यही बात निधि को अंदर ही अंदर कचोट जाती थी । 

जब वह स्कूल से थकी- हारी आकर पिता का उदास चेहरा देखती तो उनके बिना बोले ही समझ जाती कि उसकी ग़ैर मौजूदगी में नीरज ने डैडी को कोई न कोई दिल दुखाने वाली बात कही है । 

दिन गुजरते गए । शायद डैडी भी कहीं न कहीं दिल के कोने में यह बात महसूस करने लगे थे कि यह उनका घर नहीं है । निधि सुबह स्कूल जाने से पहले ज़्यादा से ज़्यादा डैडी का कार्य अपने सामने ही करवाकर जाना चाहती थी पर बड़ी उम्र, नई जगह और बेटी का घर …. कई ऐसी समस्याएँ थीं जिनका सामना बाप- बेटी दोनों को करना पड़ता था । जब  एक दिन इतवार के दिन उसने नीरज से कहा —

आप ज़रा डैडी के लिए सलाद में खीरा काट कर दे दें तो उसने देखा कि नीरज ने प्लेट में खीरे का अंबार लगाकर उनके सामने रख दिया । 

छोटी सी बात थी पर निधि और उसके पिता को यह बात दिल ही दिल में लग गई…. नीरज की निःशब्द क्रियाओं ने उसके भीतर के विचारों को उजागर करके  बहुत कुछ कह दिया । पर लाचारी थी । चाहते हुए भी निधि पिता को लेकर वापस न लौट सकी …. उसके दिल ने कई बार चाहा कि नौकरी छोड़कर डैडी के साथ वापस अपने घर चली जाए और शांति से रहें पर मन में डर था कि क्या वो अकेली इस ज़िम्मेदारी को उठा पाएगी ? क्या पुरानी परंपराओं को मानने वाले डैडी इसकी इजाज़त देंगे ? बस वह इसी उधेड़बुन में फँसी रहती …… 

तभी गाँव से निधि की बुआ सास बैंगलोर आई । उनका बेटा भी वहीं नौकरी करता था । एक दिन नीरज ने निधि से कहा—-

हिमेश के पास बुआजी आई है, चलो उनसे मिल भी आते हैं और कुछ दिनों के लिए उन्हें अपने पास ले आते हैं ।

हाँ- हाँ….क्यों नहीं ? बस मैं ज़रा डैडी के लिए खाना बनाकर रख दूँ ….. कहीं  आने  में देर ना हो जाए । 

डैडी के सिवाय और भी रिश्ते हैं । अगर एक दिन  खाना लेट हो जाएगा तो कौन सी आफ़त आ जाएगी? आकर बना लेना ….

हाँ निधि…. जाओ बेटा ! खाना आकर बन जाएगा । नीरज नीचे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है । 

बीते महीनों में डैडी इस बात को अच्छी तरह से जान गए थे कि नीरज बात- बात पर और छोटी- छोटी बातों पर उत्तेजित होने वाला व्यक्ति है । निधि की इच्छा- अनिच्छा का उसके लिए कोई महत्व नहीं है, किसी भी कार्य में थोड़ी सी देरी से उसके पुरुषत्व और अहं को ठेस पहुँचती थी । 

हिमेश , दो- चार दिन के लिए हम बुआ जी को अपने पास ले जाने के लिए आए हैं….. बुआ जी तैयार हो जाइए ।

खाना खाकर जाना भैया…. . कल तो संडे है , मैं तो कहता हूँ कि आज यहीं रुक जाइए ….

बुआ जी तैयार हो लिजिए… खाना तो वहीं जाकर बना लूँगी…. वो मेरे डैडी इंतज़ार कर रहे होंगे ।

तुम्हारे पिता आए हैं निधि ? 

जी बुआ जी….. आप तैयार हो तो चलें ? 

अरे भाभी, खाना खाकर जाइएगा ना और पापाजी का ले जाना । 

ना हिमेश, चलने दे बेटा ! अगर घर में  पिता भूखा बैठा हो तो एक बेटी कैसे खा पाएगी । चल नीरज ….

आ गए तुम लोग …. चल निधि, रोटी सेंक दे बेटा , देर लगा दी।

आप भी हद करते हैं डैडी जी , दूध तो था … चाय बनाकर पी लेते ।

नीरज , ये टाइम चाय पीने का होता है क्या ? गलती तो तुम्हारी है निधि, अपने पिता के लिए खाना बनाकर क्यों नहीं गई ? अरे , आधा घंटा बाद निकल जाते । माफ़ करना भाई साहब! मेरे कारण आपका खाना लेट हो गया । 

नहीं- नहीं बहनजी, ऐसा मत कहिए । बस वो आठ बजे खा लेता हूँ ना रोज़ इसलिए….. दस बज गए इसलिए थोड़ी भूख लग गई थी । 

दो  दिन में बुआजी ने भाँप लिया कि निधि और उसके पिता हर समय एक दबाव में रहते हैं । उन्हें डर लगा रहता है कि उनकी किसी बात से नीरज नाराज़ होकर घर में कलह ना कर दे  …. दोनों ही बाप- बेटी समझौते पर समझौते करते  थे पर नीरज फिर भी बात में से बात निकाल कर कहासुनी करने से बाज नहीं आता था । 

तीसरे ही दिन बुआ जी ने कहा—-

नीरज , हिमेश को फ़ोन कर देना, ले जाएगा मुझे । और अगर इतवार से पहले उसके पास समय ना हो तो बेटा …. कैब कर देना, मैं चली जाऊँगी । 

पर क्यों बुआ जी, मैं तो पूरे हफ़्ते के लिए कहकर लाया था ।

हाँ बेटा , पर तुम्हारा निधि और उसके पिता के साथ व्यवहार देख कर , मुझे अच्छा नहीं लगता  , शर्मिंदंगी होती है निधि और उसके पिता के सामने …… तुम्हारे अपने पिता होते तो  क्या तुम  तब भी इतनी मीनमेख निकालते ? 

पर मैंने क्या कहा उन्हें? मैं तो उनकी बड़ी इज़्ज़त करता हूँ बल्कि निधि अपनी ज़िम्मेदारी सही तरह से नहीं निभा रही?

अजीब बात है कि  तू अच्छे और बुरे व्यवहार में अंतर भी नहीं कर सकता । क्या निधि की ज़िम्मेदारी तेरी ज़िम्मेदारी नहीं है? अगर निधि मेरा कोई कार्य ना करे तो क्या तू ख़ुशी से इस बात को स्वीकार कर लेगा कि मैं तेरी ज़िम्मेदारी हूँ । याद रखना बेटे ,जो अपने  माँ- बाप का दिल दुखाते है, भगवान उन्हें ज़रूर सजा देता है ।

बहुत रोकने के बावजूद भी अगले दिन बुआजी अपने बेटे के साथ वहाँ से चली गई । वक़्त अपनी रफ़्तार से चलता गया । नीरज और निधि का बेटा सरल भी बड़ा हो गया । अक्सर पिता का व्यवहार देखकर वह अपनी माँ से कहता—

मॉम , आप क्यों डरती हैं इतना ….. जितना घर उनका है उतना आपका भी । आप तो उनसे ज़्यादा काम करती हैं फिर हर बात में पापा अपनी मनमानी क्यों करते हैं? बेचारे नानाजी भी कितने सहमे-सहमें रहते हैं । 

लड़ाई- झगड़े , कहासुनी , किसी बात का हल नहीं है, सरल ! फिर तुम्हारे पापा की आदत है…

पर हम सब क्यों एक आदमी की आदत सहन करें ? 

निधि बच्चा समझ कर अनसुना कर देती क्योंकि सरल माँ के सामने कितना भी शेर बन ले, पिता का सामना होते ही उसके होंठों पर ताला पड़ जाता था । 

जन्म लेने वाले को जाना तो पड़ता ही है । बस एक दिन निधि को अनाथ करके उसके डैडी चले गए । उनके जाने के बाद निधि मन से एकदम टूट गई । कुछ महीनों के डिप्रेशन के बाद उसने अपने मन को समझा लिया कि किसी से भी उम्मीद लगाना बेकार है इसलिए उसने मन की आवाज़ सुननी सीख ली । अगर उसे विश्वास रह गया था तो केवल अपने बेटे सरल और ईश्वर पर । 

वक़्त ने निधि को मानसिक रूप से कठोर बना दिया था । वह जान गई थी कि इस संसार में सबको सब कुछ नहीं मिलता , बस अपने कर्तव्य ईमानदारी से निभाओ बाक़ी सब ईश्वर के ऊपर छोड़ दो । यही बात निधि ने  धीरे-धीरे सरल को समझा दी  कि अपने विचार तो अवश्य रखने चाहिए पर कुछ भी कहने से पहले मन की आवाज़ सुननी चाहिए । उसके बाद एक ही घर में रहते हुए निधि ने चुप्पी साध ली । अब न उसे नीरज से कोई उम्मीद थी और न शिकायत । उसे तसल्ली थी तो इतनी कि सरल ने उसकी समझाई बातों पर अमल करके अपनी माँ  की इस आशंका को भयमुक्त कर दिया था कि भगवान सरल के माध्यम से नीरज के व्यवहार की सज़ा देंगे । 

लेखिका : करुणा मलिक

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