शांति देवी कितनी खुश थीं जब उनके बड़े बेटे रूपल की शादी सुगंधा से हुई जो कि बहुत ही सुन्दर थी जिसे देखकर हर कोई शांति देवी से कहता…
“चांँद का टुकड़ा ले आई हो आप तो। बहुत ही प्यारी हैं आपकी बहू।”
शांति देवी भी अपनी किस्मत पर इतराती। सुगंधा सुंदर तो थी ही.. साथ ही बहुत अच्छा गाती थी। उसकी आवाज बहुत ही सुरीली थी। घर के सभी कामों में भी निपुण थी। काम करते वक्त जब वो गीत गाती तो शांति देवी उसकी खूब तारीफ करती।
“तेरे गले में तो सरस्वती मां विराजती हैं। कितना सुरीला गाती है।”
साल भर में उसने सबका दिल जीत लिया लेकिन पड़ोसियों को शांति देवी से रंजिश थी वो अक्सर सुगंधा को उसके खिलाफ भड़काने की कोशिश करतीं… जिस पर वो पहले तो ध्यान नहीं देती थी पर धीरे धीरे उनकी बातों का असर उस पर हो रहा था।
“रूपल की दुल्हिन देखना तेरी देवरानी आती है तब कैसे रंग बदलती है तेरी सास। अभी जो तुझे पलकों पर बिठाए रहती है फिर कैसे तुझे जमीन पर पटकेगी देखती रहना। तेरा देवर कमाता भी तो अच्छा खासा है और तेरे पति की छोटी सी किराने की दुकान है। दुनिया में जिसके पास पैसा होता है इज्जत उसी को मिलती है।”
“मां जी बहुत अच्छी हैं वो तो दोनों भाईयों को एक जैसा मानती हैं। वो कभी हमारे साथ बुरा नहीं होने देंगी।”
जब उसके देवर की शादी हुई तो वो बहुत खुश थी और मन ही मन सोचा करती देवरानी के आने से घर के कामों में तो मदद मिलेगी ही साथ में दोनों बहनों की तरह रहेंगी और एक दूसरे का सुख दुख बांटेंगी।
पर जैसा उसने सोचा था उसका उलटा ही हुआ।
उसकी देवरानी सुमन अपने साथ खूब सारा सामान लाई थी। वो देखने में सुंदर तो नहीं थी पर उसके पिता और भाई ने उसकी शादी पर खूब खर्च किया था।
इतना दहेज पाकर शांति देवी फूले ना समाती। धीरे-धीरे उसे बड़ी बहू से ज्यादा अच्छी छोटी बहू लगने लगी। अब वो सुगंधा के कामों में मीन मेख निकालने लगी।
खाने पीने का जो भी सामान आता तो पहले छोटी बहू को ही शांति अपने हाथों से देती। साड़ी या चूड़ियां जब त्योहार पर आती तो पहले पसंद छोटी बहू को ही करने को कहती।
छोटी बहू को अपने पास बिठा कर बड़ी बहू की खूब निंदा करती।
सुगंधा का घर के काम करते वक्त गुनगुनाना भी उसे अब रास ना आता। उसकी सभी खूबियां अब कमियां बन गई थी… जब शादी के आठ साल बाद भी बड़ी बहू की गोद भरी ना हुई।
छोटी बहू के दो बेटे और एक बेटी ने शांति को दादी बनने का सुख दिया था। उसने अपना सारा प्यार दुलार अपने पोते पोतियों पर ही लुटाना शुरू कर दिया था।
बड़ी बहू को छोटी बहू भी घृणा दृष्टि से देखती। अपने बच्चों को उससे दूर रखती।
शांति देवी का बड़ा बेटा यह सब देखकर दुखी होता। दोनों भाईयों के बीच भी मनमुटाव बढ़ता जा रहा था। शांति देवी का बड़ा बेटा आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और छोटा बेटा ऐशो आराम की जिंदगी व्यतीत कर रहा था।
जब बड़े भाई ने पैसों की मदद मांगी तो छोटे ने साफ इंकार कर दिया।
उनके बीच में नफ़रत की दीवार बढ़ती गई।
घर के बंटवारे की बात उठी तो शांति देवी ने ज्यादा जमीन छोटे बेटे को दी और अपने सभी गहने छोटी बहू को दिए।
बच्चे अपनी ताई से बहुत प्यार करते थे पर अपनी मां के डर से उनसे दूर रहते
सुंगधा भी उन्हें दूर से देखती और उसकी आंखें भर आती। वो मां नहीं बन पाई तो उसमें उसका क्या दोष था।
एक दिन कुएं से पानी भरते हुए छोटी बहू का पैर फिसल गया और उसके हाथ पैर में काफी चोट आई।
सुगंधा ने जब देखा कि उसकी देवरानी कुंए के पास औंधी पड़ी है तो वो उनके बीच की उस दीवार को लांघती हुई उसके पास पहुंची और उसे अपनी गोद में उठाकर उसके कमरे तक ले आई।
शांति देवी ने जब अपनी छोटी बहू को खून से लथपथ देखा और बड़ी बहू को देखते ही वो आग बबूला हो उठी। उन्हें लगा जरूर इसी ने कुछ किया है।
मां जी छोटकी को अस्पताल ले जाना है।
तूने ही इसकी ऐसी हालत की है और अब बड़ी महान बन रही है।
सास बड़ी बहू को देख गुस्से बोलती रही पर उसके सामने सिर्फ अपनी देवरानी की जान बचाना ही जरूरी लगा। उसने अपने पति को आवाज लगाई और दोनों उसे अस्पताल ले गए। शांति देवी का छोटा बेटा उस समय घर पर नहीं था और बच्चे भी स्कूल गए थे।
शांति देवी को कुछ समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे अपना सिर पकड़ कर आंगन में बैठी रही। बच्चे जब स्कूल से आए तो पूरे घर में अपनी मां को ढूंढ़ रहे थे।
सुगंधा और रूपल ने आपसी मतभेद को भुला कर अपने छोटे भाई की पत्नी का इलाज करवाया और उसके बच्चों को भी संभाला। शांति देवी बड़ी बहू पर किए अत्याचारों को याद कर पश्चाताप कर रहीं थीं। हफ्ते भर बाद छोटा बेटा भी आ गया था अपने बिजनेस टूर से और छोटी बहू भी अस्पताल से घर आ ग ई थी। सारी बातें पता चलने के बाद छोटे ने भाई से माफी मांगी और गले लग कर खूब रोया। उनके बीच नफ़रत की दीवार टूट चुकी थी।
कविता झा’अविका’