…रमोला की कार आ चुकी थी और किरण अपनी ऊहापोह में अभी तक तैयार नहीं हो पा रही थी।
.. भाभी भाभी ये देखो ये सूट आपके लिए लेकर आई हूं आप पर ये कलर खूब फबेगा मीतू ने कई सारे सूट के पैकेट किरण की ओर बढ़ाते हुए कहा तो किरण आश्चर्य से उसे देखती रह गई।
लेकिन मैं तो साड़ी पहन रही हूं मीतू दीदी असमंजस भरा था स्वर किरण का।
अभी कहां पहनी हो भाभी प्लीज इनमें से कोइ सूट पहन लो कितना छांटकर मै आपके लिए लाई हूं…क्या देख रही हो जल्दी से तैयार हो जाओ रमोला कह रही है ऑफिस बंद हो जाएगा कहती मीतू सपाटे से कमरे से बाहर चली गई।
थोड़ी ही देर में रमोला किरण को कार में बिठाकर कुछ कागजात बनवाने रजिस्ट्रार ऑफिस की ओर रवाना हो गई….।
बहुत किस्मतवाली हो आप बहू जी जो ऐसी ननदियां जी मिली हैं आपको मोहल्ले की रमा बहन जो बगल में बैठी थीं कह उठीं वरना तो ननद लोग ताना मार मार के जीना हराम कर देती है…!!
किरण मुस्कुरा कर रह गई…!
किस्मतवाली नहीं कर्मवाली कहिए उसने मन ही मन सोचा।
शादी के समय मां ने कहा था बेटा किस्मत तो विधाता लिखता है लेकिन कर्म कर के उसे बदलने का अधिकार भी हमे वही देता है तू किस्मतवाली है जो तुझे इतनी पढ़लिखी समझदार ससुराल मिली है ….पर याद रखना ससुराल जैसी भी हो तू अपने कर्म अविचल गति से करते रहना …हमारे ही कर्म ही हमारे साथ चलते हैं।
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विदा होकर ससुराल आई तो समझ आया कि मां ने ससुराल “जैसी भी हो “वाक्य क्यों कहा था।
पति भोला नाम का भी और काम का भी भोला ही था।बड़ी ननद थीं पूरे घर में उन्हीं का सिक्का चलता था।
“….भाभी को अलग कमरे की क्या जरूरत है मां के कमरे में एक पलंग डाल देंगे भाभी को यहां रहना ही नहीं है रहना तो भैया आपके ही के साथ है जहां आपकी नौकरी है तो फिर थोड़े दिनों के लिए मै अपना कमरा क्यों दूं …..पहले ही दिन तल्खी से कहा था ननद मीतू ने जो किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब करती थी और भोला द्वारा रखा गया भाभी का पूरा समान अपने कमरे से जो अब किरण को दिया जाने वाला था उठाकर मां के कमरे में रख दिया।
फिर बहुत मुश्किल से मां के यह कहने पर कि जब तक भोला घर में है तब तक के लिए कमरा दे दो …. खाली कर दिया था….।
ससुराल का मकान ज्यादा बड़ा नहीं था ।मीतू और छोटा देवर मोलू का एक एक कमरा था।तीन बेडरूम थे किचेन और हॉल था।
पिता जी बैठक में दीवान पर सोते थे ।
भोला दूसरे शहर में नौकरी करता था वहां किराए से मकान लिया था उसने।
मीतू के इस असभ्य आचरण का विरोध घर में किसी ने नहीं किया था मानो मूक समर्थन दे रहे थे।किरण भी अपने पति का मुंह देख चुप लगा गई क्या कहती वह ….!भोला अपनी बहन का बहुत लिहाज करता था।
बहू को एक अलग कमरे की जरूरत होती ही है… इस तथ्य से ये लोग अनभिज्ञ क्यों हैं…!!नया घर नए लोग नया व्यवहार कैसा अटपटा सा लगता रहता है अपने कमरे में जाकर एकांत में थोड़ी चैन की सांस तो ले सकती हूं कुछ अपने बारे में सोच सकती हूं ढंग से पैर फैलाकर आराम कर सकती हूं … !!लेकिन किस्मत में यही लिखा है…!!
थोड़े दिन झेल लेती हूं फिर तो पति के साथ चली जाऊंगी वहां चैन से रहूंगी यही सोचकर किरण ने जब्त कर लिया।
थोड़े दिनों बाद जब भोला के नौकरी पर जाने का समय आया किरण आनंदित हो गई । सारी तैयारी कर ली थी उसने।
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जाने की एक रात पहले मां भोला बुलाकर कहने लगीं..”अभी बहू नई नई है अगली बार ले जाना… कुछ मेरी भी सेवा करने दे और मै भी तो लाड कर लूं अपनी बहू का …ससुराल के तीज त्योहार रीति रिवाज सीख जाए तब ले जाना .. भोला तो भोला ही था आज्ञाकारी बेटा था अपनी मां का।
मां की बात पत्थर की लकीर थी उसके लिए।किरण को अकेली छोड़कर नौकरी पर चला गया।
…..भोला के जाते ही मीतू ने आनन फानन अपना कमरा भाभी से खाली करवा लिया “भाभी हम दोनों को पढ़ाई करना रहता है आपको तो पढ़ाई से कोई सरोकार नहीं है और जब यहीं रहना ही है तो अब आप मां के कमरे में रहो मां को अच्छा लगेगा।..और हां भाभी आप को हमेशा साड़ी ही पहनना है इस बात का ध्यान रखना ये आपकी ससुराल है कायदा तो करना ही पड़ेगा मोहल्ले की दो चार महिलाएं मां के पास आती जाती रहतीं है .. क्या सोचेंगी वे… अब आपका ही घर है ये ख्याल तो रखना पड़ेगा..!!
किरण को विरोध करने का अधिकार ही कहां था भले ही घर आपका है मीतू बार बार कहती थी..चुपचाप साड़ी संभालती अपना पूरा सामान उठाकर सासू मां के कमरे में लेकर आई तो वहां उतनी जगह ही नहीं थी जहां समान रखा जाए।
उधर नहीं बहू उधर तो मेरे ठाकुर जी विराजे हैं मैं तो नीचे बैठ कर ही पूजा करती हूं फिर व्रत त्योहारों पर पूजा करने के लिए जगह चाहिए… नहीं ये आराम कुर्सी कमरे से मत हटाओ मुझे इसी पर बैठने से आराम मिलता है..नहीं नहीं दरवाजे के पास मत रखो दरवाजा पूरा खुल नहीं पाएगा…..अब तुम देख लो कहती सास कमरे से बाहर चली गईं।
खीझ और बेबसी में अपना सामान लिए वह काफी देर यूं खड़ी रही मानो रेलवे स्टेशन पर खड़ी हो।
अरे भाभी ऐसे क्यों खड़ी हो आपका ही घर है आप खुद सामान रखने की जगह बना लो … वैसे ये स्टोर रूम भी काफी खाली ही रहता है… स्टोर की तरफ इशारा करती मीतू उसे दुनिया की सबसे बड़ी हिटलर प्रतीत हो रही थी… मरता क्या ना करता…स्टोर में भी जगह बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी उसे बहुत गंदगी थी वहां …!!
किरण अपनी किस्मत के लिखे को ही पढ़ने को बाध्य थी।
स्टोर में सामान और सासू मां के कमरे में रात में सिकुड़ कर सोने में किरण को बेहद कठिनाई हो रही थी।सासू मां सब समझ रही थीं लेकिन बेटी मीतू से डरती थी क्योंकि वह उन्हें भी डपट कर रखती थी।
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समय अपनी गति से बह रहा था वह तो अपने कर्म कर रहा था नित्य अविचल गति से बहने का।किरण का पति भोला बीच में जब भी घर आता और किरण को ले जाने की इच्छा करता मां मना कर देती।
धीरे धीरे परिस्थितियों से समझौता करते हुए किरण ज्यादा समय किचेन में ही बिताने लगी। कम से कम किचेन में सुकून तो था वहां वह खुद अपने पास तो रहती थी। अब वह अपना सारा ध्यान स्वादिष्ट खाना बनाने में ही लगा देती थी ताकि व्यस्तता के कारण वह नकारात्मक विचारों से दूर रहे..वह किस्मत को कोसती रहने के बजाय वर्तमान कर्म को बेहतर करने में लग गई थी….. उसके हाथों में जादू है ये उसकी मां हमेशा कहती थीं ।
लेकिन यहां ससुराल में हर कोई मीनमेख ही निकालता रहता था कभी कदा अगर छोटा देवर या ससुर जी ही तारीफ कर दिया करते थे तब मीतू आंखे तरेर कर चुप करवा देती थी… अरे बहू की क्या तारीफ करना… खाना बनाने में क्या बड़ी बात है… सिर पर चढ़ कर नाचने लगेगी..!”
भाभी दिन भर किचेन में क्यों लगी रहती हो आप चलो मेरे कमरे में.. कहता मोलू एक दिन किरण को अपने कमरे में ले आया तो वह थोड़ी खुश हुई।
भाभी क्या आप गणित समझाने में मेरी सहायता करेंगी मोलू ने कहा तो किरण दुविधा में फंस गई फिर नहीं में सिर हिला दिया था।
अरे मोलू… भाभी से बुद्धि वाले काम नहीं हो पाएंगे इनसे कुछ नहीं बनता सिवाय खाना बनाने के और बर्तन धोने के ।जाओ भाभी आप किचेन में ही जाओ जाकर खाना ही बनाओ जिसमें बुद्धि लगाने की कोई जरूरत नहीं पड़ती लाओ मोलू मैं तुम्हारी मदद करती हूं मीतू हंसकर ताना मारने से बाज नहीं आई थी।
आंखों में आसूं लिए किरण उल्टे पैर किचेन में वापिस आ गई थी।सही कह रही थी मीतू वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी ।इसीलिए शायद मीतू उसकी उपेक्षा करती रहती थी पास पड़ोस में भी नहीं जाने देती थी ना अपने ऑफिस की किसी सहेली आदि को उससे मिलवाती थी वह नहीं चाहती थी कोई उसकी कम पढ़ी लिखी भाभी से मिले।
किरण की मां बीमार रहती थीं और वह घर की सबसे बड़ी संतान तो घर का सारा काम काज उसे ही करना पड़ता था।पढ़ाई के लिए समय ही नहीं था।
लेकिन क्या ऊंची डिग्रियां ही किसी के बुद्धिमान होने का प्रमाण होती हैं उसका दिमाग तर्क करता था।
घर के कामों विशेषकर तरह तरह के खाना बनाने में वह दक्ष थी जिसको लेकर मीतू तंज कसती रहती थी जैसे खाना बनाना निहायत ही गंवारू काम हो या जैसे खाना बनाने में किसी प्रतिभा की जरूरत ही नहीं रहती।
फिर भी वह अपने कर्म को रोज बेहतर तरीके से ही करती रहती थी।
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………..आज मीतू का जन्मदिन था ।सासू मां ने मीतू के विरोध के बावजूद भी सबको घर पर ही बुलाने को कहा ..” किरण खाना बना देगी हम लोग उसकी सहायता कर देंगे।”
मीतू की सहेलियां, मां के परिचित मोलू के दोस्त सबको बुलाया गया ।किरण अकेलेही खाना बनाने में लगी थी कोई सहायता करने नहीं आया उसकी लेकिन वह बहुत आनंदित थी उसे खाना पकाने में मजा जो आता था ।उसने आज के लिए अपनी पसंद से विशेष चाट और मालपुए बनाए थे जिसे देख कर मीतू नाक मुंह सिकोड़ रही थी ये क्या बनाया है भाभी आपने चिली पनीर या नूडल्स का कोई आइटम रखना चाहिए था जैसा मैने कहा था मेरी सभी सहेलियां बहुत उच्च शिक्षित है और कई तो बड़ी कंपनियों में नौकरी भी कर रही हैं..!मीतू हमेशा ही नकारात्मक प्रतिक्रिया ही देती थी अतः किरण ने उसकी तरफ ध्यान देना उचित नहीं समझा बल्कि खुद की पसंद को साबित करने के लिए ज्यादा ध्यान से सभी चीजें तैयार करती रही।
ओह माय गॉड मीतू ये चाट कहां से मंगवाई है तुमने इतनी टेस्टी चाट मैने जीवन में पहली बार खाया है…. ये क्या है इतने स्वादिष्ट मीठे मीठे से… मालपुए…!!तुमने ये सब कहां से मगवाया है .. रेस्टोरेंट का नाम बताओ …चारो तरफ से यही आवाजें आने लगीं थीं जैसे ही सबने खाना शुरू किया।
मीतू आश्चर्यचकित थी ।वह तो बहुत नाराज थी भाभी ने ये सब क्या गांव देहात की चीजे बनाई है मेरी बेइज्जती करवाने पर तुली है… लेकिन सबकी प्रतिक्रिया देख कर वह उत्साह में आ गई आखिर उसके जन्मदिन पर उसकी धाक जम रही थी।
मेरी भाभी ने बनाया है ये सब..!पहली बार भाभी के साथ मेरी संबोधन इज्जत से जोड़ा था उसने।
इतना सारा सब कुछ अकेले ही बना लिया आपने कहां से सीखा क्या कोई कुकिंग कोर्स किया है आपने आपके हाथों में तो जादू है .. किरण के आते ही सबने उसे घेर लिया ।किरण इस अनपेक्षित बड़ाई और सम्मान से संकुचित हो उठी और मीतू आशंकित कि कहीं भाभी उसके दुर्व्यवहार के बारे में सबको बता ना दें. ..!!
इतनी तारीफ पहली बार पाकर किरण आह्लादित हो उठी .. कृतज्ञता से मीतू का हाथ पकड़ कर बोली नहीं अकेले नहीं मीतू दीदी और मां जी हम सबने मिलकर बनाया है… सुनते ही मीतू पर घड़ों पानी पड़ गया था।
मेरी भाभी ने कही से कोई कुकिंग कोर्स नहीं किया है ये सब इनके हाथ का ही जादू है पहली बार खुल कर भाभी की तारीफ उसने की थी।
रमोला जो एक प्रसिद्ध कैटरर थी मीतू की सबसे खास सहेली थी उसने तुरंत किरण को कुकिंग क्लास का ऑफर कर दिया आप मेरे घर पर आइए मै क्लास की सारी व्यवस्था कर दूंगी …हाथ पकड़ कर बोलने लगी लेकिन किरण ने मना कर दिया नहीं मैं यही अपने घर पर ही रह कर कुछ कर सकती हूं किसी के घर नहीं जाऊंगी .. सुनकर मां जी चकित हो गईं।
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रमोला तो ठान चुकी थी तो उसने जल्दी से मीतू के घर के पास पड़ी खाली जमीन पर दो बड़े कमरे निर्माण की पेशकश भी कर दी जिसे अब किरण मना नहीं कर सकी।
उस दिन के बाद से मीतू का व्यवहार एकदम बदल गया था।उसके सारे परिचितों और सहेलियों में किरण भाभी की धूम मच गई थी हर कोई उनसे प्रभावित था अपने घर की पार्टियों के लिए उनकी कुकिंग चाहता था मीतू को महसूस हुआ कि पढ़ाई लिखाई नहीं प्रतिभा की बात होती है जो भाभी में भरपूर है ।
किरण मीतू के बदले व्यवहार की सुखद अनुभूति करने से डर रही थी कि इसका क्या भरोसा कब फिर बदल जाए..!!आज मीतू द्वारा सूट पहनने की जिद से उसे साड़ी ही पहनने का मीतू का हिटलर आदेश याद भी आ रहा था और अभी अच्छा भी लग रहा था..!!
आज दोनों कमरों का उद्घाटन होना था किरण रमोला के साथ जैसे ही ऑफिस के सारे काम निबटा कर घर आई मीतू जैसे उसके आने का इंतजार ही कर रही थी भाभी जरा यहां आइए……।
रुकिए मीतू दीदी मैं चेंज करके आती हूं कहती किरण स्टोर की तरफ जाने लगी आशंकित थी जाने अब क्या तंज मीतू का सुनने को मिलेगा… लेकिन मीतू ने उसे जाने ही नहीं दिया भाभी प्लीज आप मेरे साथ आइए और नए कमरे में ले गई।
वहां पहुंचकर तो किरण की आँखें फटी रह गईं जब उसने देखा कि उस नए कमरे में उसका हर सामान जो अभी तक स्टोर में पड़ा था बहुत व्यवस्थित ढंग से लगा हुआ था उसके पसंद की सारी चीजें थीं वहां.. हतप्रभ सी वह मीतू की तरफ देखने लगी… दीदी मेरा सामान यहां कौन लाया..!!
मैं लेकर आई हूं मेरी प्यारी भाभी क्योंकि अब यही आपका और सिर्फ आपका कमरा है …मैने आपके साथ बहुत गलत व्यवहार किया है भाभी …. मीतू ने बहुत भावुक स्वर में कहा तो किरण ने उसे पास आकर लिपटा लिया ….अरे मीतू दीदी ये पूरा घर ही मेरा है..!
सासू मां और भोला जो कि सुबह ही घर आया था ये दृश्य देख कर खुशी से ताली बजाने लग गए।
चलिए असली ताली तो अभी बाकी है कुकिंग क्लास का उद्घाटन होना है सारी तैयारी हो गई है रमोला दीदी सबको बुला रही हैं मोलू ने जोर से कहा तो सब इकट्ठे होकर हंसते हुए किरण के साथ चल पड़े।
करमन की गति न्यारी होती है जो किस्मत का लिखा भी बदलने की सामर्थ्य रखती है…. मन ही मन इन सर्वथा बदले हुए सुखद हालात से आह्लादित किरण मीतू के साथ मीतू द्वारा लाए नए सूट में नई शुरुआत की तरफ कदम बढ़ा रही थी।
किस्मतवाली#
लतिका श्रीवास्तव