Moral stories in hindi: सरयू प्रसाद की तीन बेटियाँ थीं।तीन बेटियों के बाद उन्होंने बेटे की आस छोड़ दी।उन्होंने अपनी पत्नी से कहा -” उमा!केवल बेटे ही नहीं,बेटियाँ भी माँ- बाप का नाम रोशन करती हैं। हम तीनों बेटियों को पढ़ा -लिखाकर काबिल बनाऐंगे।”
तीनों बेटियाँ क्रमशः आशा,ऊषा और निशा थीं।आशा पढ़-लिखकर काॅलेज में पढ़ाने लगी।उसकी शादी भी अच्छे परिवार में हो गई। ऊषा भी ग्रेजुएशन कर चुकी थी।अब उसके पिता को उसके विवाह की चिन्ता सता रही थी।मामूली प्राइवेट नौकरी में उसके पिता के पास दहेज के लिए मोटी रकम नहीं थी।उसके पिता लड़केवालों की माँग सुनकर सोचते -” दहेज -विरोधी कानून बनने से क्या होता है?अभी भी लड़केवाले किसी-न-किसी रुप में दहेज की माँग कर ही बैठते हैं।”
पिता को परेशान देखकर छोटी बेटी निशा कह उठती -“पापा!मैं तो शादी ही नहीं करुँगी।सदैव आपके साथ रहूँगी।”
उसके पिता निशा से कह उठते -“बेटी!माता-पिता सदैव साथ नहीं रह सकते।इस कारण बच्चों का अपना परिवार होना आवश्यक है।”
ऊषा देखने में बहुत सुन्दर थी।ऊषा की सुन्दरता देखनेवालों को एक ही नजर में आकर्षित कर लेती।ऊषा का दुधिया रंग,लम्बा कद ,कजरारी आँखें,काले घुंघराले बाल,विनम्र स्वभाव से सभी प्रभावित हो जाते।एक दिन सरयू प्रसाद के दोस्त विमलजी ने ऊषा को देखकर सरयू प्रसाद से कहा -” दोस्त!मेरे एक सम्बन्धी अपने लेफ्टिनेंट बेटे उमेश
के लिए अच्छी लड़की खोज रहें हैं।तुम कहो,तो ऊषा के लिए बात करूँ!”
सरयू प्रसादजी ने एक बार तो सेना का नाम सुनकर हिचकिचाहट दिखाई। परन्तु उन्हें समझाते हुए विमल जी ने कहा -” दोस्त!देशसेवा के नाम पर तो लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं,पर जब अपनी बारी आती है,तब पीछे हट जाते हैं।”
सरयू प्रसाद जी ने सँभलते हुए कहा -” दोस्त!तुम्हारी बात बिल्कुल सच है,परन्तु लड़का -लड़की अगर एक-दूसरे को पसन्द कर लें,तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”
कुछ दिनों बाद उमेश और ऊषा ने एक-दूसरे को पसन्द कर लिया।उमेश बहुत ही सुलझा हुआ इंसान था।दोनों की धूम-धाम से शादी हो गई। उमेश और ऊषा हनीमून पर मनाली घूमने गए। मनाली की खुबसूरत वादियाँ उनके हनीमून को खुशनुमा बना रही थी।दोनों एक-दूसरे की बाँहों में खोए नव-जीवन का आनन्द उठा रहे थे।उमेश ऊषा को प्यार के अलावे सेना की नौकरी की कठिनाईयों के बारे में भी जानकारी देता रहता।ऊषा को तो सेना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।वह उमेश की बातों को बड़े
गौर से सुनती।
एक दिन मजाक -ही-मजाक में उमेश ने कह दिया -” ऊषा! अगर मैं किसी दिन देश के लिए शहीद हो जाऊँ,तो तुम आँसू मत बहाना।मुझे आँसू बहाना बिल्कुल पसन्द नहीं है।”
ऊषा घबड़ाकर उमेश के होंठो पर हाथ रख देती है।उमेश उसे प्यार से अपने आलिंगन में भर लेता है।
हनीमून के एक सप्ताह कब बीत गए, दोनों को पता ही नहीं चला।दोनों अपने शहर वापस लौट आए। छुट्टियाँ खत्म होने पर उमेश जम्मू-कश्मीर अपनी ड्यूटी पर चला गया।ऊषा पति की विरह में खोई-खोई सी रहती।उसके सास-ससुर ने उसे कुछ दिनों के लिए मायके भेज दिया।
अचानक से एक दिन टेलीविजन पर खबर आती है कि लेफ्टिनेंट उमेश आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। ऊषा की दुनियाँ बसने से पहले ही उजड़ चुकी थी।उसकी बेबसी उसकी आँखों से आँसू बनकर बह रही थी।पति का शव देखकर वह असहाय-सी आँसू बहा रही थी।उसके लिए चारों तरफ दुख का उफनता सागर था,जिसका दूर-दूर तक कोई किनारा नजर नहीं आ रहा था। वह पति की बातों को याद कर बहते हुए आँसुओं पर काबू पाते हुए अपना आत्मबल संजोने की चेष्टा कर रही थी,परन्तु सफल नहीं हो पा रही थी।उसके माता-पिता तथा उसकी बहनें भी उसे सँभालने की नाकामयाब कोशिश कर रहीं थीं।
वह मन-ही-मन सोचती -” कैसे ढ़ोऊँगी इस उद्देश्यहीन जिन्दगी का भार?”
अपनी मनोव्यथा वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी।जितना सोचती उतना ही उलझती जाती स्वंय के भ्रमजाल में।गम का समंदर उसे अन्दर तक हिलाएं जाता।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे!
एक दिन उसकी दोस्त मीरा उससे मिलने आई।उसकी हालत देखकर उसने कहा -“ऊषा!किसी के जाने से जीवन रुकता नहीं है।जीवन तो एक बहता दरिया है,इसे रोको मत ,बहने दो।अपनी सोच को नया आयाम दो।जिन्दगी को मकसदपूर्ण बनाओ।”
सहेली की बातों को सुनकर ऊषा ने मन में दृढ़ निश्चय करते हुए सोचा कि किसी-न-किसी तरह इस दुख को झेलने के लिए उसे साहस प्राप्त करना ही होगा।उसने अपनी सहेली से कहा-“मीरा!पति की तरह मैं भी देशसेवा करना चाहती हूँ,परन्तु कैसे क्या करुँ?”
अब सहेली की मदद से ऊषा के जीवन का नया अध्याय शुरु होनेवाला था।ऊषा ने मीरा से सेना में नौकरी की पूरी जानकारी ली।मीरा भी सेना की नौकरी की तैयारी कर रही थी।अब ऊषा की जिन्दगी का एकमात्र लक्ष्य था,सेना में जाकर देशसेवा करना।ऊषा ने कड़ी मेहनत से शार्ट सर्विस कमीशन की तैयारी की।उसमें उसे सफलता मिली।फिर ओ टी ए के कड़े प्रशिक्षण में सफल रही।यह प्रशिक्षण कई हफ्तों चली।उसके बाद ऊषा को लेफ्टिनेंट के पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। खुशी की बात है कि आजकल सेनाओं में महिलाओं की जिम्मेदारी बढ़ रही है,जो कि वर्षों पूर्व नगण्य थी।ऊषा और उसकी सहेली मीरा के साथ काफी महिलाएँ सैन्य अधिकारी बनीं,परन्तु ऊषा का जज्बा सभी के लिए अनुकरणीय था।
ऊषा ने अपने पद की शपथ लेते समय कहा-” मैं शपथ लेती हूँ कि मुझे अगर देशहित के लिए युद्ध के मोर्चे जाने का अवसर मिला तो मैं जाने से गुरेज नहीं करुँगी।पति के हर सपने को पूरे करुँगी।पति की याद में कभी आँसू नहीं बनाऊँगी,क्योंकि वे तो मुझमें समाहित हो चुके हैं।”
हाल में मौजूद लोग ऊषा के जज्बें
के सम्मान में तालियाँ बजाने लगें।ऊषा के पिता का सर गर्व से ऊँचा उठ गया।
समाप्त।
लेखिका-डाॅ संजु झा (स्वरचित)
#आँसू