आँखों पर पड़ा पर्दा : Moral Stories in Hindi

  ” महारानी को घर आने की फुर्सत मिल गई..मैं पहले से ही जानती थी कि तू पढ़ाई के बहाने कहीं नैन-मटक्का करने जाती है..स्कूल से कोई इस समय घर लौटता है क्या?” घड़ी की सुई पाँच पर टिकते देख लाजवंती रेखा पर चिल्लाई।

   ” वो चाची…।” रेखा को बोलते देख घनश्याम ने उसे चुपचाप अंदर जाने का इशारा किया और पत्नी से बोले,” अब चुप भी करो..पड़ोसी सुनेंगे तो क्या सोचेंगे।”

      ” अभी तो सुन रहें हैं ना..कल आँखें फाड़ कर देखेंगे भी जब आपकी भतीजी किसी के साथ रफूचक्कर होकर #घर की इज्जत नीलाम कर देगी।” लाजवंती पति पर चिल्लाई तभी उसकी सास आ गईं,” बहू..अब जाने भी दो..मैं उसे समझा दूँगी कि..।”

   ” हुँह..आप जाने और आपका बेटा..मैं चली अपने बच्चों को खाना देने…।” पैर पटकती हुई वो रसोई में चली गई।

       घनश्याम के बड़े भाई राधेश्याम और भाभी शकुंतला की बेटी थी रेखा।पिता के असमय निधन हो जाने के कारण राधेश्याम ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया और पिता के कृषि- कार्य की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा लिया।उन्होंने छोटे भाई को पढ़ने के लिये शहर भेजा..छोटी बहन श्यामली का विवाह किया और फिर माँ की आज्ञा मानकर पिता के मित्र की बेटी शकुंतला के साथ विवाह करके अपनी गृहस्थी बसा ली।साल भर बीतते-बीतते वो एक बेटी के पिता भी बन गये।

     घनश्याम पर अपने भाई-भाभी का विशेष स्नेह था।पढ़ाई पूरी होते ही उसे एक सरकारी दफ़्तर में नौकरी मिल गई।रहने का ठिकाना मिलते ही उसने माँ की पसंद की हुई लड़की लाजवंती से विवाह कर लिया और साल भर बाद वो भी एक बेटे का पिता बन गया।उसके दो साल बाद वो एक बेटी का पिता भी बन गया।तीज़-त्योहारों पर वो परिवार के साथ अपने घर आ जाया करता था।

      फिर वक्त ने करवट बदली…शकुंतला को एक असाध्य बीमारी लील गयी।कुछ महीनों बाद राधेश्याम शहर से अपने खेत के लिये बीज-खाद लेकर वापस आ रहे था कि एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।तब घनश्याम गाँव गया और खेती की ज़िम्मेदारी एक विश्वास-पात्र के हाथ में सौंपकर माँ के साथ बारह बरस की अपनी भतीजी रेखा को भी अपने साथ ले आया जो लाजवंती को गंवारा न हुआ।बात-बात पर रेखा से चिढ़ जाना और पढ़ाई के समय उसे काम थमा देना उसका स्वभाव बन गया था।

      रेखा सयानी हो गई, तब उसने रसोई की पूरी ज़िम्मेदारी संभाल ली।सवेरे चार बजे उठकर घर का काम करती.. नाश्ता बनाती।स्कूल से आकर रात का खाना बनाती और पढ़ाई करती।दादी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरती तो उसे लगता जैसे उसके दुखों पर मरहम लग गया हो।घनश्याम सामने न सही लेकिन पत्नी से छिपाकर रेखा की ज़रूरतों को पूरा करने का हरसंभव प्रयास करते थे।

      रेखा दसवीं में थी।स्कूल से आते वक्त उसने अपने भाई निलेश से कहा कि चाची को कह देना कि मैं सुनीता के यहाँ से नोट्स लेकर पाँच बजे तक घर आ जाऊँगी।निलेश अपनी माँ से कहना भूल गया।लाजवंती ने घड़ी देखी और उस पर बरस पड़ी।अपनी चाची की जली-कटी बातें सुनने की वो अभ्यस्त हो चुकी थी।उसने कपड़े बदले और रसोई में जाकर रात का खाना बनाने लगी।

         रेखा ने अच्छे अंकों से दसवीं की परीक्षा पास की।उसने घनश्याम से कहा,” चाचा..मैं इंजीनियर बनना चाहती हूँ।आप मेरा साथ देंगे?” 

   ” हाँ- हाँ बिटिया..तू जो पढ़ना चाहती है..वही विषय ले और किताबें भी खरीद ले।” कहते हुए उन्होंने जेब से कुछ रुपये निकालकर रेखा की हथेली पर रखकर मुट्ठी बंद कर दी।

    रेखा स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ इंजीनियरिंग काॅलेज़ में दाखिला लेने के लिये एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी भी करने लगी।वह रात को दो-दो बजे तक जागती..उसकी लाइट जली देखकर लाजवंती चिल्लाती तब दादी उसे अपने कमरे में बुला लेती।उसकी दिन-रात की मेहनत रंग लाई।उसने बारहवीं परीक्षा में पूरे स्कूल में टाॅप किया।साथ ही, उसे इंजीनियरिंग काॅलेज़ में भी दाखिला मिल गया।

     इंजीनियरिंग काॅलेज़ का नाम सुनकर लाजवंती भड़क उठी, पति से बोली,” सुनिये जी..पढ़ाई बहुत हो गई..अब दहेज़ जुटाकर इसके हाथ पीले कर दो।”

  ” भाग्यवान्..पढ़ लेगी तो हमें दहेज़ नहीं देने पड़ेंगे..।” घनश्याम ने पत्नी को ऐसे समझाया कि वो चुप हो गई।रेखा पहले की तरह ही घर का सारा काम निपटाकर ही काॅलेज़ जाती और वापस आकर दो बातें अपनी दादी से करती।फिर रसोई में घुस जाती।

         एक दिन रेखा ने देखा कि निलेश अपनी किताब में मोबाइल फोन छिपाकर कुछ देख रहा था।वो समझ गई कि निलेश का ध्यान भटक रहा है।उसने उससे फोन ले लिया और उसे प्यार-से समझाया कि भाई..अभी पढ़ाई पर ध्यान दो..कुछ बन जाओ..फिर जो चाहे करना।निलेश ने जाकर माँ से शिकायत लगा दी।फिर तो लाजवंती रेखा पर बरसी,” तू अपना देख..मेरे बच्चों की ज़िंदगी में दखल मत दे..।” उसने रेखा से फ़ोन छीन कर वापस निलेश को दे दिया।ऑफ़िस से घनश्याम लौटे तो तब रेखा ने सारी बात बताई और बोली,” चाचा..निलेश गलत राह पर जा रहा है..उसे..।” कहते हुए उसकी आँखें नम हो गई।

   ” फिक्र मत कर बेटी..मैं देखता हूँ।” रेखा को आश्वासन देकर घनश्याम बेटे के पास गये और समझाते हुए बोले,” तुम हमारी उम्मीद हो..भटक गये तो हम जीते-जी मर जायेंगे।” 

     निलेश ने दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की तो लाजवंती खुशी-से फूली नहीं समाई।मोहल्ले में जा-जाकर निलेश की प्रशंसा करती और कहती कि मेरी बेटी नीतू भी ऐसे ही टाॅप करेगी।

      लाजवंती निलेश की तरफ़ से बेफ़िक्र हो गई।वह जब जितने पैसे माँगता..वह दे देती।वह कहाँ जा रहा है..क्या कर रहा है..वो जानने की ज़रूरत नहीं समझती। निलेश ने अमीर लड़कों से दोस्ती कर ली थी जो नाम के लिये स्कूल आते थे।ग्यारहवीं का रिजल्ट खराब होने पर घनश्याम ने बेटे को समझाना चाहा तब बीच में लाजवंती आ गई,” लड़का है..थोड़ा नंबर कम आ गया तो क्या हुआ..।” तब घनश्याम बोले,” बेटे के मोह में तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा..आँख पर पड़ा परदा हटेगा तब तक..।” 

     किसी तरह से निलेश ने बारहवीं पास की।घनश्याम ने आर्टस काॅलेज़ में उसका दाखिला करा दिया और समझाया कि पढ़ने वाले लड़कों के साथ ही दोस्ती करना।

     रेखा पूरे मन लगाकर अपनी पढ़ाई कर रही थी।फ़ाइनल की परीक्षा में उसने जी-जान लगा दिया।उसकी मेहनत रंग लाई।इंजीनियरिंग का रिजल्ट आने के दस दिनों के बाद ही उसे नौकरी भी मिल गई।यही खुशखबरी लेकर वह घर लौटी तो दरवाज़े पर पुलिस को देखकर चौंक पड़ी।एक कांस्टेबल ने बताया कि निलेश ने किसी लड़की का अश्लील फोटो वायरल कर दिया।लड़की के पिता ने शिकायत दर्ज़ कराई तो पुलिस उसे गिरफ़्तार करने आई है।उसी समय निलेश हथकड़ी पहने पुलिस के साथ बाहर आया।रेखा को देखते ही बोला,” दीदी..मुझे बचा लो..मैंने कुछ नहीं किया है।” पुलिस ने उसे धकेल कर जीप में बैठा दिया।पूरा मोहल्ला उसे देख रहा था,” छिः, लाजवंती के बेटे ने तो परिवार की नाक नीची कर दी।” रेखा से सुना नहीं गया..अंदर गई तो चाची- दादी को रोते देखा।चाचा भी सकते में थे।रेखा को देखे तो बोले,” बेटी..इस लड़के ने तो #घर की इज्जत मिट्टी में मिला दी..हम तो किसी को मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रहे।” रेखा बोली,” चाचा..मुझ पर भरोसा रखिये..मैं निलेश को कुछ नहीं होने दूँगी।” फिर उसने उन्हें नौकरी मिलने वाली बात बताई और कहा कि दो दिन बाद मुझे ज़्वाइन करना है लेकिन आप निलेश से मिलकर पूरी बात पता कीजिये।एक अच्छा वकील देखिये..पैसे की चिंता मत कीजिएगा..वो मैं देख लूँगी।

      नौकरी पर जाते समय रेखा ने अपनी दादी से आशीर्वाद लिया।लाजवंती को रेखा का जाना अच्छा नहीं लगा था, इसलिए जब वो अपनी चाची को प्रणाम करने गई तो लाजवंती ने अपना मुँह घुमा लिया। दादी निखिल के जेल जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं और एक दिन सोते-सोते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गये।घनश्याम के ऑफ़िस में निखिल की बात फैल गई थी जिसकी वजह से वो अपने सहकर्मियों से आँखें नहीं मिला पा रहे थे।

    दादी के काम पर रेखा आई तो उसने निलेश के लिये एक वकील नियुक्त किया और घनश्याम के हाथ में रुपये रखकर वकील का फ़ोन नंबर देते हुए बोली,” चाचा..आप इनसे मिल लीजिएगा..निलेश जल्दी ही घर आ जायेगा।” यही बात उसने चाची से भी कही तब पहली बार लाजवंती को रेखा की बात पर विश्वास हुआ।

       घनश्याम के वकील ने पहले निलेश की जमानत कराई और फिर उसके बचाव में केस लड़ा।सब कुछ इतना आसान तो न था।करीब आठ महीने तक अदालत में केस चला..निलेश के वकील ने सबूत और गवाह पेश करके साबित कर दिया काॅलेज़ के एक लड़के ने निलेश का फ़ोन चुरा लिया था और उसी ने निलेश के फ़ोन से फ़ोटो वायरल कर दिया।निलेश बेकसूर साबित हो गया।वकील को पूरी फ़ीस देकर रेखा ने उन्हें धन्यवाद कहा और भाई को लेकर घर आ गई।

     घर की खोई खुशियाँ लौट आई।रेखा वापस जाने की तैयारी कर रही थी कि तभी निलेश और नीतू उसके पास आये।निलेश उसके पैरों पर गिर गया और रोते हुए माफ़ी माँगने लगा।रेखा ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और उसके आँसू पोंछते हुए बोली,”सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते मेरे भाई।मन लगा कर पढ़ना..और हमारे परिवार का नाम रोशन करना।तुम भी नीतू..।चलो..अब हँसो..।” 

    ” जी दीदी…।” दोनों हँसने लगे। तभी लाजवंती आई,” रेखा बिटिया…मैंने हमेशा तुझे पढ़ने से रोका…तुझ पर तो पाबंदियाँ लगाती रही लेकिन निलेश के बहकते कदम को नज़रअंदाज़ करती रही।अब मेरी आँखों पर पड़ा परदा हट गया है।आज तूने हमारे घर की इज्जत बचा ली..तेरा एहसान मैं ज़िंदगी भर..।” लाजवंती का गला भर्रा गया।वो हाथ जोड़ने लगी तो रेखा ने रोक दिये,” नहीं चाची …आपके हाथ मुझे आशीर्वाद देने के लिये हैं।” लाजवंती ने रेखा को अपने सीने-से लगा लिया।अपने परिवार को एक साथ देखकर घनश्याम की आँखें खुशी-से भर आईं।

       रेखा अपने सहकर्मी के साथ विवाह करके सेटेल हो गई।निलेश अपनी पढ़ाई पूरी करके बैंक में नौकरी करने लगा।नीतू फ़ैशन डिज़ाइनिंग में डिप्लोमा करने लगी।घनश्याम रिटायर हो गये और कुछ सालों बाद दोनों बच्चों का विवाह करके लाजवंती के साथ आराम की ज़िंदगी बिताने लगे।

                                        विभा गुप्ता

# घर की इज्जत            स्वरचित, बैंगलुरु 

           कभी-कभी बेटे की नासमझी से घर की इज़्जत मिट्टी में मिलने लगती है, जिसे बेटी ही अपनी समझदारी से बचाती है। रेखा ने भी दिशाभ्रमित अपने छोटे भाई को राह पर लाकर अपने परिवार के मान-सम्मान को धूमिल होने से बचाया।

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