Moral stories in hindi : ‘‘मम्मी, आप चाय में चीनी बहुत डालती है।’’ अजय का स्वर तल्ख था।
‘‘क्या करूं। कभी कभी अंदाजा नहीं मिल पाता है,‘‘वसुधा के स्वर से लाचारी स्पष्ट थी।
‘‘एक ही काम आप रोज करती है तब भी सही नहीं कर पाती?’’अजय के कथन पर वसुधा का मन भींग गया। यह वही अजय था जिसके लिए वह हर तरह से नये नये नास्ता तैयार करके देती थी। तब अजय को उससे कोई शिकायत नहीं थी। लेकिन इधर कुछ सालेां से वसुधा का हर तौर तरीके उसे नागवार लगने लगा। बहू सलोनी तो पहले से ही वसुधा को नहीं पसंद करती थी। अब अजय भी मां के हर काम में खोट निकालने लगा था।
80 वर्षीय वसुधा में पहले जैसी तेजी नहीं थी फिर भी वह काम काज से पीछे नहीं हटती। भगवान् की दया से वह अब भी तमाम बीमारियों से मुक्त थी। न हाई ब्लड प्रेशर था न ही शूगर। रिश्तेदार नातेदार आज भी वसुधा का मान रखकर उससे मिलने जुलने आते रहते। वसुधा सबका ख्याल करती। मगर अजय को यह सब पसंद नहीं था सिवाय ससुराल के । यहां तक की दोनेां सगी बहनेां से भी उसे खास लगाव नहीं था।
यह ठीक था कि अपनी दोनों सगी बहनेां की परवरिश और शादी ब्याह उसी की जिम्मेदारी थी जिसे उसने बखूबी निभाये। मगर खुद के अंह ने बहनेां में दूरी खडी कर दी। इस वजह से उनका भी मन अजय से खिन्न था। अब वे कभी कभार उससे मिलने आती। ऐसे ही एक दिन वसुधा की सगी भतीजी राधा मिलने आ गयी तो अजय ने उसे खास तवोज्जो नहीं दी। जब वह चली गयी तो कहने लगा तुम्हारे भाई की लडकी है तुम मान सम्मान दो।
‘‘क्या तुम्हारी कुछ नहीं लगती?’’वसुधा से रहा न गया।
‘‘मेरे लिए किसी ने कुछ नहीं कियां।’’
‘‘भूल गये जब तुम्हारे पिता ने हम चार लेागों केा मंझधार में छोडकर दूसरी शादी कर ली तब इन्हीं भाईयों ने हमे सहारा दिया।’’ वसुधा के पति धर्मवीर सरकारी स्कूल में मास्टर थे। अपनी से आधी उम्र की लडकी रचना को टयूशन पढाते पढाते इश्क कर बैठे। तब उनकी उम्र 35 साल की थी वही रचना की 17 साल।
वह गर्भवती हुयी तब उसके मां बाप ने साफ साफ कह दिया कि अब उसका इस घर से रिश्ता खत्म। उसी से शादी रचाकर जिंदगी गुजारे। रचना बेहद खूबसूरत थी। धर्मवीर भी उसे छोडना नहीं चाहते थे। अंतत लोक लाज के भय से नौकरी से इस्तीफा देकर मुबई भाग गये। वसुधा के सामने रोजी रोटी की समस्या आ गयी। तब उसके दोनेा भाईयों ने उसे अपने घर में पनाह थी। अजय आठंवी में पढ रहा था। वसुधा की भाभियां इस बोझ को उठाने के लिए तैयार नहीं थी।
वह नाक भेौ सिकोडती रहती मगर भाईयों के आगे उनकी एक न चली। बाद में अजय को एक चचेरे भाई ने सरकारी विभाग में चपरासी की नौकरी लगवा दीं। बाद में प्रमोशन पाकर वह सम्मानित पद पर पहुंच गया। रूपयों पैसो की कोई कमी नही थी अजय के पास। सो उसमें अहंकार आ गया। उसपर अपने बुरें दिनेां का ख्याल जब रिश्तेदारेां की उपेक्षा और तिरस्कार का शिकार हुआ था। वक्त वक्त की बात थी। आज वह हर तरीके से संपन्न था मगर मन की तिक्तता नहीं गयीं। जिसे अपने पिता से शिकायत होनी चाहिए वह रिश्तेदारेां से चिढा हुआ था।
एकांत पाकर वसुधा, राधा से कहने लगी,‘‘अजय कहता है कि मेरा सब अंग ठीक से काम कर रहा है। मैं क्येां मरूंगी।‘‘उनके कंठ रूंध गये। भला कोई अपने मां से ऐसे कहता है। कैसा बेटा है जो मां की मौत का इंतजार कर रहा है। राधा केा हार्दिक कष्ट हुआं। उसे बुआ से लगाव था। पिता ओैर चाचा के जाने के बाद सबसे करीबी बुआ ही थी। वह जब भी उनसे मिलती तो उसमें उसे पापा का अक्स नजर आता। कहती भी थी कि बुआ ही बची है बाकी तो एक एककर चले गये।
यह बुआ से उसकी आखिरी मुलाकात थी। देा महीने बाद खबर आयी कि बुआ का एकाएक ब्लड प्रेशर बढ गया और वे चल बसी। बुआ की तबीयत अंदर से नासाज होगी मगर उन्होंने कभी नहीं कहा होगा कि वे असहज महसूस कर रही है। जानती हेागी कि कोई नहीं चाहता कि वे अब जिंदा रहे। बेटियेां का अपना परिवार और बंदिशें है। चाहने और निभाने में फर्क होता है। यह बात बुआ जी बखूबी जान चुकी थी। तभी तो जाते जाते भरे मन से बोली,‘‘भगवान मुझे उठा लेता। अब जीने की इच्छा नहीं रही।‘‘ आंचल से आंसुओं को पोछा। मेरा मन द्रवित हो गया।
भागते हुए आयी। बुआ की अर्थी उठने ही वाली थी। थोडे देर बाद उनकी दोनों बेटियां भी आ गयी। मैंने बुआ के चेहरे को देखा। उसमें परम संतोष का भाव नजर आया। मानेां परमानंद में विलीन होने जा रही हो। सच मौत से बढकर कोई आनंद नहीं होता। जिंदगी से हजार शिकायतें होती है।
गोरी लंबी खूबसूरत बुआ जी के प्रति फूफाजी के दिल में ऐसी कौन सी वितृष्णा जागी जो उनका परित्याग करके रचना के साथ भाग गये। यह आज भी मेरे दिल को कचोटता है।
तब मैं काफी छोटी थी ओैर नासमझ भी। मगर आज जब बुआ के चेहरे पर मुस्कुराहट के भाव देखे तेा मैं भी खुद को रोक न सकी। आंखो से झरझर आंसुओं बह निकले। यह खुशी और उनसे बिछडने दोनों के थे। खुशी इस बात की थी कि वह उस बेगाने दुनिया से बहुत दूर जा रही थी। जहां समय के साथ खून के रिश्तेा का भी रंग फीका पडने लगता है। बिछडने का इसलिए कि अब रिश्ते का वह छाव नहीं मिलेगा जो मेरे पापा का एहसास दिलाती थी।
श्रीप्रकाश श्रीवास्तव
वाराणसी