सुनो घर चलते हैं वर्षो हुए घर नहीं गए।हर बार छुट्टियों में कही न कही घूमने का प्लान बन जाता है और हम सब पहाड़ों पर चले जाते है तो घर जाना रह ही जाता है कहते हुए ओम नहाने चला गया।
जिसे रसोई में नाश्ता बनाती अनु से सुना और सोचने लगी।चलो अच्छा है अबकि जाड़ा हम सब घर पर रहेंगे बसर्ते कोई अड़चन ना आये। उसे याद है पिछले साल का वाक्या जब पैकिंग तक हो गई थी और अचानक उसे टिकेट कैंसिल करनी पड़ी थी।
क्योंकि इनके आफिस में कुछ अर्जेंट वर्क आज गया था जिसमें उसका रहना बहुत जरूरी था।
होता भी क्यों ना आखिर वो होल सेल इंचार्ज जो है।
फिर तो मन महसोस कर रह गई थी इससे ज्यादा और कर भी क्या सकती थी।
हलाकि उसने कहा था कि तुम बच्चों को लेकर चली जाओ मैं बाद में आ जाऊंगा ।
पर नही मानी और पूरी टिकैट कैंसिल कर दी।
हां बाद में ये लोग गए पर छोटे ट्रीप पर जो कि चार या पांच दिन की थी गए थे।
और इस बार तो जाने क्यों स्वयं ही घर चलने को कह रहे उसे याद है जब वो वर्षो पहले वहां रहती थी तो कितना मज़ा आता था। सब मिल जुल कर एक साथ काम करते थे और आराम भी। और तो और नई नई चींजे एक दूसरे से सीखते। सच तो यह है कि वहां रह कर उसे कभी ऐसा महसूस नही हुआ कि वो कम उम्र में ब्याह कर यहां आई थी। सभी बहुत प्यार और दुलार देते थे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
कमियों को तो ऐसे छिपाते थे जैसे मां -बाप और बाद में फिर सुधार भी देते।
उसे याद है जब उसने घर छोड़ा था तो अम्मा कितना सुबग सुबग कर रो रही थी।
कैसे उन्होंने बच्चों के लिए हाथ के बुने गरम कपड़े और इनके लिए मफलर यहां तक कि मेरे लिए साल भी दिया था बना कर जिसकी गरमाहट हमें आज तक महसूस होती है।
और वो जो छोटे छोटे डिब्बे में ड्राई फ्रूट दिया वो तो सफर में सचमुच बहुत काम आया ।यकीनन वो फ्रूट तो खतम हो गया पर डिब्बा आज भी संभाल कर रखी हूं ।
और आज जब इनके मुंह से हिल स्टेशन नही घर जाने की बात सुनी तो गदगद हो गई। मुस्कुराते हुए लाबी में लगे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रखने ही जा रही थी कि पतिदेव नहा कर आ गए और सर्ट की बटन बंद करते हुए बोले सुनों पता कर लो बच्चों कि छुट्टियां कब से कब तक हो रही तो टिकेट निकलता लेते है।
कहते हुए काटे को आमलेट में गडाया ही था कि फोन की घंटी घनघनाई।
पापा का फोन सुबह सुबह ये क्या पापा तो कभी फोन करते ही नही क्योंकि लम्बी बीमारी के बाद वो इतने कमजोर हो गए हैं कि फोन को हाथ तक नही लगाते जबकि वो तो फोन के कीड़ा थे।
हर समय फोन पर कुछ न कुछ देखते रहते ,
यहाँ तक कि उन्हें मना करना पड़ता कि मत देखो।
पर आज …………….।
कुछ समझ नही आया बुरे ख्यालों से मन और दीमाग दोनों भरा जा रहा था।उठाने कि हिम्मत न होते हुए भी उठाया दूसरा कोई चारा जो नही था। हेलो किया तो उधर से आवाज़ आई।
प्रणाम दादा मैं उमेश बोल रहा हूँ आपको कैसे है दरसल मेरा फोन खराब हो गया है इसलिए पापा के फोन से बात कर रहा हूँ आप सब कैसे है तो उसने कहा अपना सुनाई हम लोग तो ठीक है
इस पर वो बोला भाई इस बार हिल स्टेशन नही घर आना है बहुत जरूरी है ।
इतना कहकर फोन काट दिया।
इस कहानी को भी पढ़ें:
जिसकी सूचना उसने पत्नी को आमलेट खाते खाते दी कि तुम्हारे देवर का फोन आया था कह रहा था घर आना है बहुत जरूरी काम है चलो अच्छा ही है हम सब तो वैसे भी प्लान किये थे।अब और भी अच्छा हो रहेगा जब उसने बुला लिया भाई बुलाने का मान ही कुछ और होता है।
माना अपना ही घर है पर जब छोड़ दो तो कुछ फीकापन आ ही जाता है फिर तो बुलाने पर जाओं तो आदर भाव का अपना अलग ही मज़ा होता है।
कहते हुए नाश्ता खत्म किया और आफिस चला गया।
पर अनु को समझ में आया कि अरे बाबू जी और अम्मा की शादी की पचासवीं वर्षगांठ है उसी में निमंत्रण मिला है।याद भी क्यों ना रहे भले वो पहुंच नही पाती पर उपहार कुछ ना कुछ जरूर उन लोगों के लिए हर साल भेजती है। ये बात वो बताती थी पर उस दिन जिस दिन उनकी सालगिरह होती थी।और ये भी कि उपहार क्या भेजा है।
सच कहूं तो ये आदान प्रदान,हाल चाल लेने का सिलसिला ही रिश्तों में ताज़गी बनाये रखता है।
वरना बाहर निकलकर कहां कोई रोज़ रोज़ आ पता है जिसे उसने बखूबी निभाया।हर रोज फोन पर हाल चाल लेना , किसी का जन्मदिन हो या वैवाहिक वर्षगांठ उपहार भेजा जैसे काम कि जिम्मेदारी उसकी ही थी और
उसी तरह वहां से आता भी था।
इसी लिए तो पतिदेव को फिक्र नही रहती कि ये तो है ही निभा ने के लिए।
फिर क्या था उसने भी कुछ बताया नही और पतिदेव के आफिस जाते ही वो बाजार चली गई और अम्मा बाबू जी के लिए कपड़े और अंगूठी ले आई।
इस बार उसने अम्मा के लिए साड़ी नही चुनरी और पायल के साथ बिछिया भी लिया साथ ही देवर के बच्चों के लिए भी गरम कपड़े लिये।सभी बहुत खुश है इस बार छुट्टियों में अम्मा के पास जाने के नाम पर। बच्चों के कपड़े तो छोटे हो गए पर इसकी साल तो ज्यों कि त्यों है। रहे भी क्यों ना उसने इतने सालों से संभाल कर जो रखा है।
भले इसके पास ढ़ेरों साल है पर ओढ़कर आज वो अम्मा को खुश करने के लिए यही जायेगी।
फिर देखो कैसे अम्मा खुशी से झूम उठेंगी।
और उसने किया भी वैसा ही ,वो वही साल ओढ़कर गई जो अम्मा ने दिया था सभी में उत्साह दिख रहा सभी खुश है कि वर्षो बाद दादी के पास जा रहे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
दादी आज भी दुआएँ ना दोगी ? – रश्मि प्रकाश: Moral stories in hindi
दो तीन साल के थे बच्चे जब ओम ने घर छोड़ा था और आब सीधे दस सालों बाद जा रहा है इतने सालों में बहुत कुछ बदल गया।सिवा उसके दिनचर्या के ।वो अपने रोटीन वे रोज फोन करती और हाल चाल लेती साथ ही समय समय पर उपहार और बधाइयां भी देती।
सच मानों यही सोचते सोचते कब अपना शहर आज गया पता ही न चला।
और वो लोग ट्रेन से उतर कर कार बुक की और घर की ओर चल दिये।
कुछ एक घंटे में कार दरवाजे पर रुकी , रूकते ही सभी ने नज़र भर कर घर को निहारा बहुत बदल सा गया है
लगता है बाबू ने रिटायरमेंट का सारा पैसा घर बनाने में लगा दिया ऐसा ओम के दीमाग में आया फिर झटकते हुए आगे बढ़ा और मुख्य द्वारा कि कुंडी खटखटाई क्यों उसी से घर पहचान में आ रहा था ,बदला जो नही था बाकी तो एक बड़ी बिल्डिंग में तबदील हो गया था या ये कह लो कई मंजिला इमारत जिसे पहचान मुश्किल ।
सभी ने मिलकर सामान उतारा और दरवाज़ा खुलते ही भीतर की ओर बढ़ गए तो वहीं सामने बड़ा उमेश कभी बांका जवान हुआ करता था उम्र दराज लगने लगा है गले से लिपटता लगा रुध आया ऐसा उसने महसूस किया।
“शायद परिस्थियों और आर्थिक तंगी ने उसे उम्र से पहले उम्र दराज बना दिया है।”
फिर भी औपचारिकता वश और कैसे हो कहकर आगे बढ़ा उसने भी ठीक है मैं सिर हिला अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई।
वो आती कि उसके पहले सभी बैठे में आकर पलंग पर बैठे माता-पिता जो हीटर के साथ चाय का आनंद ले रहे बारी बारी से पैर छुआ तो दोनों ने जी भर आशीष दिया तो बहु को गले से लगा लिया।
सभी एक दूसरे से मिले नाश्ता पानी,खाना पीना के साथ हाल चाल हुआ।
बातों बातों में ही ओम को पता चला कि कल अम्मा बाबू जी की शादी की साल गिरह है। फिर क्या सभी ने मिलकर खूब तैयारियां की।घर में चारों ओर रौनक ही रौनक नज़र आई रही ।
सुबह सबेरे ही पार्लर से पार्लर वाली भी आ गई किसी ने मेकप कराया तो किसी ने फ्रेशियल पर अम्मा ने सिर्फ मेंहदी लगवाई ।उन्हें मेंहथी पसंद जो बहुत है।
वो ऐसे कि इस उम्र में भी बिन मौसम के मेहदी अपने से लगा लेती हैं। जिसे देखकर सब हंसते भी खूब हैं पर ये हैं कि अपने हिसाब से बन संवर कर रहती हैं
इस कहानी को भी पढ़ें:
और आज तो फिर दिन ही इनका है सो बहुओं ने मिलकर सजाया संवारा तैयार किया।फिर स्टेज पर बिठाया।
उफ! अम्मा कितनी सुंदर लग रही है पूरे जेवर और बहुत की लाई सुर्ख लाल चुनरी पहनकर कि जो आ रहा वही टोक रहा।
सब बहुत खुश मेहमानों से घर खचाखच भरा है।
कोई आ रहा तो कोई जा रहा रात दो बजे तक यही सिलसिला चलता रहा कही नाच गाना तो कही खाना तो कही गपशप समय कैसे बीत गया पता न चला। उसके बाद अम्मा वही चुनरी पहने सोने का फैसला कर अपने कमरे में चलीं गई तो और लोग भी अपने अपने कमरे में कोई सोने तो कोई बतियाने चला गया।
इसी बीच अम्मा के कमरे से धम्म से गिरने की आवाज़ आई तो सभी चौका होते हुए उनके कमरे की ओर भागे।देखा तो अम्मा गिरी पड़ी थी और बाबू जी भौचक्का से खड़े देख रहे मानों कुछ समझ ही न आज रहा हो।
चारों तरफ अफरा तफरी मची हुई है। कोई डा. को फोन कर रहा तो कोई रसोई से पानी लाकर मुंह पर छीटा मार रहा तो कोई पैर और कोई सर सहला रहा।
पर अफ़सोस की सब कुछ खत्म हो गया। अम्मा को साइलेंट अटैक आया और तन,मन,दीमाग सब शिथिल पड़ गया। ऐसा लग रहा था मानों सो रही हो वो चुनरी उनसे खूब भप रही थी ।कोई मानने को तैयार नही कि अब अम्मा उनके बीच नहीं रही।
जबकि उनका पार्थिव शरीर आंगन में लाकर लिटा दिया गया था। सब परेशान है देखते देखते कैसे खुशियां मातम में पसर गई समझ नही आ रहा।
बस हर कोई एक टक हमेशा के लिए सो गई अम्मा को निहार रहा।
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू
प्रयागराज
स्वरचित रचना