आख़िरी इच्छा – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

मंजू अपने पति से कहती है कि देखो जी ! संजू आज आठ वर्ष का हो गया है । हमने इसे पाने के लिए कितनी मिन्नतें और मुरादें की थी । अब हमें भी अपनी क़सम पूरी करनी चाहिए ।

क़सम ! कौन सी क़सम ?

देखो जी ,अब आप टाल-मटोल मत करो ।आपको अच्छे से पता है ….. पूजा के मामलें में अपनी कंजूसी मत दिखाया करो ।

ठीक है ,तो चले जाएँगे माता के दरबार ……….

इसके पाँच वर्ष के होने के बाद जाने का बोला था लेकिन आज तक नहीं गए । कभी तो मेरी कोई इच्छा पूरी कर दिया करो ।

ठीक है….. जहां इतना इंतज़ार किया है , तो कुछ महीने और फिर चलते हैं ।

ये बात ऐसे ही पुरानी होती चली गयी और सब अपने जीवन में व्यस्त हो गए । माँ से मिलने की आस लिए मंजू ने भी अपने प्राण तज दिए । मंजू के जाने के बाद उसका घर ,जो उसने इतने प्यार से सजाया था सब धीरें धीरें नष्ट होने की कगार पर आ खड़ा हुआ ।रतन सिंह अपने काम में ही व्यस्त रहता था । संजू भी अठारह वर्ष का हो गया और अपनी मर्ज़ी का मलिक भी ,जब उसका जो मन करता तब वो करता । उसे रोकने टोकने वाला कोई नहीं था । पढ़ाई छोड़ गली के आवारा लड़कों के साथ रह वो ग़लत संगत में पड़ गया । रतन सिंह ये सब देख बहुत परेशान था । उसे कुछ सूझ नही रहा था कि संजू को कैसे सही दिशा दिखाए ।

एक रात जब रतन सिंह सो रहा था । तो उसने एक बुरा ख़्वाब देखा । जिसमें पुलिस संजू को पकड़ के ले जा रही थी और उसकी माँ पीछे पीछे थी ।जो मुझें घूरें चले जा रही थी । मानो मुझसे कह रही हो कि….अब तो मेरी बात मान लो । तभी तुम्हारे सब कष्टों का निवारण होगा । यें सुनते ही रतन की आँख खुल गई । थोड़ी देर बाद रतन मंजू की तस्वीर के सामने खड़ा हो अपने आप पर शर्मिंदा होने लगा । तभी संजू खून में लतपत उसके पास आता है और ज़मीन पर गिर जाता है । अगले ही पल रतन उसे उठा अस्पताल ले जाता है । भगवान मेरे किए की सजा मेरे बेटे को ना दे । यें मंजू की एकमात्र निशानी है । मेरी गलती मुझे याद आ गयी है माँ …मैं आप का दोषी हूँ बस मेरे बच्चे को ठीक कर दो ।

कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आते है ओर बोलते है कि भगवान का शुक्रिया करो कि अब वो ठीक है । नही तो इतनी तेज सिर पर वार होने से इंसान का बचना मुश्किल होता है । कुछ दिनो बाद जब संजू ठीक हो गया तो रतन सिंह उसके पास गए और बोले बेटा ….. क्या तुम मेरे साथ माता के दरबार चलोगे ???

पर क्यों पापा ?

सोच लो बेटा कि ये तुम्हारी माँ की आख़री इच्छा थी और माँ का भी बुलावा आ गया हैं ।संजू ने अपनी माँ की कभी कोई बात नही टाली थी , तो उसकी आख़िरी इच्छा के लिए कैसे मना कराता । वहाँ जाकर दोनो ने माता के दर्शन किए और अपनी करनी पर शर्मिन्दा हो माफ़ी माँगी । काश मैं मंजू के रहते ही आपके पास आ गया होता । तो उसकी भी आखिरी इच्छा पूरी हो जाती और मुझे यूँ शर्मिंदा ना होना पड़ता । माँ हमे माफ़ कर दो और अपनी कृपा दृष्टि मेरी अंजू के प्यारे संजू पर बनाए रखना । दोस्तों अपनों की इच्छाओं , भावनाओं और उनकी आस्था का हमेशा मान रखना चाहिए ।

#मुहावरा प्रतियोगिता

#बहुत शर्मिंदा होना

स्नेह ज्योति

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