“पछतावे के आँसू” को पोछती हुई ऋचा एकाएक उठ खड़ी हुई, और गौरव से बोली “राखी अब आपकी ज़िम्मेदारी है। और ये जो नया मकान में रह रहें हैं, आप ये मेरे पति की कमाई से बना हुआ है। आपके हिस्सा का पुराना घर, उधर है, जाइए जाकर अपनी पत्नी के साथ रहिए। और हाँ, आगे जो भी करना हो अपने घर में कीजियेगा। साथ ही अब मैं आपके किसी कर्म को छुपानेवाली नहीं हूँ। परिवार, समाज, रिश्तेदारी से लेकर पुलिस तक जाऊंगी।” ऋचा के बदले सुर , और चढ़े हुए तेवर देख,
गौरव के साथ-साथ राखी भी हैरान थी। अचानक आज ये क्या हो गया दीदी को? राखी के मन में भी कई सवाल उठ रहे थे, लेकिन उस समय, उसने चुप रहना ही उचित समझा। गौरव कुछ समझ पाता, तभी ऋचा ने राखी से मुखातिब हो कहा, “तू इतनी भी बच्ची नहीं है, कि अपने पति को न संभाल सके। मुझे दोष देना तुम्हें आसान लगता है, दे देती हो, लेकिन अपने अधिकार के लिए अपने पति से नहीं लड़ पाती हो? लड़ो, या मिलकर रहो, पर अब मैं अपने साथ तुम्हें नहीं रखनेवाली।
” सुनकर, राखी रुआंसी सी हो गयी। हरदम मेरे लिए ढाल बनकर खड़ी रहनेवाली दीदी, आज अचानक मुझे अपने घर से क्यों निकाल रही है। और अपना, बेगाना क्या? हम तो बहनें हैं, और अभी मेरी शादी के कितने दिन ही हुए हैं, यूं अचानक से जवाब दे देना, जबकि मेरे पति के व्यवहार से अच्छी तरह वाकिफ है दीदी। कहाँ तक उचित है? पर ऋचा ने साफ शब्दों में कह दिया, गौरव कल सुबह तक आपदोनों अपना इंतजाम कर लीजिएगा। कहकर ऋचा अपने कमरे में सोने आ गयी।
ऋचा की शादी सात साल पहले मनीष के साथ हुई थी। मनीष दो भाई है, मनीष और गौरव। ऋचा शादी कर आई उसके दो साल बाद लंबी बीमारी के कारण उसकी सास का देहांत हो गया। ससुर भी ज्यादातर बीमार ही रहते थे। घर की माली हालत ज्यादातर खेतों पर निर्भर था, इसी कारण मनीष दसवीं से ज्यादा पढ़ नहीं पाया था। पर गौरव को उसने स्नातक करवाया था। मनीष दिनरात मेहनत करता, और ऋचा जैसी सुघड़ गृहणी को पाकर, दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि कर रहा था। ऋचा पढ़ी-लिखी थी
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घर पर ही बच्चों को ट्यूशन के लिए बुलाने लगी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। ऋचा ने समय के साथ दो बच्चों को भी जन्म दिया। पर तीन साल पहले, उसके देवर गौरव को जुआ, और आशिकी का शौक चढ़ गया था। गौरव का बाजार पर स्टेशनरी आदि की दुकान थी, कमाई अच्छी हो जाती थी, पर घर पर न देता था। भाई-भाभी भी ज्यादा न पूछते, पैसों के बारे में। एक पेट के लिए क्या हिसाब करना, अपना ही तो भाई है। और कभी-कभी भाभी पूछती तो कहता, बैंक में हैं पैसे… काम लगेगा तो जरूर दूंगा।
गांव में उड़ते-उड़ते खबर, मनीष और ऋचा तक पहुंची,… वो भी तब जब कई लोगों ने पुलिस में जाने की धमकी दी, और गौरव के खिलाफ आरोप लगाया कि मेरी लड़की के साथ…….। मनीष और ऋचा ने सबसे माफ़ी मांगी, और गौरव को समझाया। मनीष और ऋचा ने सोचा, इसकी शादी कर देते हैं, फिर जिम्मेदारी भी समझेगा और….गलत संगत से भी छूट जायेगा। अपनी चचेरी बहन राखी उसे गौरव के लिए सटीक लगी। उसने अपने चाचा-चाची से बात किया। चाचा-चाची ने भी सोचा,….परिवार तो देखा हुआ है ही,
लड़का पढ़ा-लिखा भी है, अच्छा कमाता भी है। और दहेज आदि की भी कोई मांग नहीं है,….राखी की शादी गौरव से हो गई। शुरू में तो सब कुछ सामान्य रहा, पर फिर से धीरे-धीरे गौरव अपने ढर्रे पर चलने लगा। जुआ, और नई-नई लड़कियों से इश्क़। राखी को जब गौरव की असलियत पता चली, वह अपनी चचेरी बहन ऋचा पर फूट पड़ी। तुमने जानबूझकर मेरी ज़िंदगी खराब कर दिया। अपने देवर की सच्चाई जब तुम्हें पता थी, तो मुझसे शादी क्यों करवा दिया? चाचा-चाची भी जम कर बरसे ऋचा पर। ऋचा की माँ,
और चाची में भी रिश्ता खराब हो गया। हर जगह से ऋचा को सुनना पड़ता था। सारे रिश्तेदार ऋचा को राखी का गुनहगार समझते थे। मनीष और ऋचा, समझ नहीं पा रहे थे अब गौरव का क्या करना है? कैसे सुधार होगी, कैसा उनका रिश्ता सामान्य होगा?
उन्होंने ये नहीं सोचा था कि, शादी के बाद भी उसकी हरकतें वही रहेगी। जब राखी सुनाती, या ऋचा की चाची अपनी बेटी के साथ होने वाले अन्याय का उसे दोषी मानती तो ऋचा चुपचाप सुन लेती। आखिर पछतावे के सिवा वो कर भी क्या सकती थी? यदि राखी उसकी छोटी बहन थी तो, देवर को भी वो अपना छोटा भाई मानती थी। कहां उसने सोचा था कि उनके वैवाहिक जीवन में किसी तरह की कोई परेशानी आयेगी। उसने तो सोचा था,…उम्र का दोष है, घर में पत्नी होगी, सामाजिक और पारिवारिक दवाब होगा,
सब कुछ खुद ब खुद ठीक हो जायेगा। पर गौरव यूं ही, देर रात आता,….राखी से बिना बात किए सो जाता, राखी जब कुछ बात कहती तो,… उखड़ जाता था। फिर दोनों के बीच गरमा गर्मी, ऋचा और मनीष, डांट-डपट कर किसी तरह चुप कराते। वहीं राखी, अपने पति से ज्यादा ऋचा पर भड़क उठती थी। अब तो, एक दिन छोड़ एक दिन का रात को लड़ाई हो ही जाती थी। गौरव, राखी पर झुंझलाता, राखी ऋचा पर। ऋचा कभी गौरव को समझाती, कभी राखी से माफ़ी मांगती। कभी खुद बैठकर रोने लगती। ऋचा, अंदर से टूट चुकी थी,
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वो समझ चुकी थी, इस तरह रोज की लड़ाई में वो कुछ भी नहीं संभाल सकेगी, न अपने देवर गौरव को, न अपनी बहन राखी को, न मायके से अपना रिश्ता, न अपना स्वयं का परिवार। इस रोज-रोज की बेमतलब की लड़ाई से ऋचा पूरी तरह टूट चुकी थी। पश्चाताप के आँसू भी अब सूखने लगे थे, अब आरोपमुक्त होना चाहती थी ऋचा। अब उसे खुद के फैसले की चुभन ही उसे कमजोर कर रही थी। देवर की सच्चाई रिश्तेदारों से छुपाया, राखी और गौरव के गैर जिम्मेदाराना हरकत की जिम्मेदार खुद को समझना। और सबसे बड़ी बात…
.अपने बचाव में कुछ न कहना। ऋचा को अब लगने लगा, गौरव को उसके हाल पर छोड़ना ही बस एक रास्ता बचा है। वैसे भी कौन सा हम चैन से रह रहे हैं? कौन सी इज़्ज़त बांकी रह गया है। रोज तो पड़ोसी और समाज देख रहा और सुन रहा है। आज अब मुझे ये फैसला लेना ही पड़ेगा, मैं सुनती जाती हूँ, तो सब बेवकूफ समझते हैं। और सच तो ये है कि मैं हूँ भी बेवकूफ, गौरव और राखी का सारा खर्चा अपना समझ उठा रही हूँ, तो ये गैर जिम्मेदाराना हरकत करते हैं। साथ ही इन्हें भी अकेले दुनिया में जीना सीखना होगा,….
वरना हम कब तक रोज-रोज घर में झगड़ा झेलते रहें। जो हो गया, उसे बदला तो नहीं जा सकता है, मैंने जब राखी की शादी गौरव से करवायी थी तो, ऐसा कुछ आगे होगा मैंने सोचा नहीं था। पर अब मुझे कठोर होकर कुछ कड़े फैसले लेने होंगे। तभी कुछ हो सकता है। नहीं तो आगे फिर देखते हैं। इसलिए आज ऋचा ने खुद के दिल को मजबूत किया, आँसू पोछे, और देवर, देवरानी को सुना दिया। गौरव या राखी ने कभी सोचा भी न था, कि भाभी ऐसा कर सकती हैं हमारे साथ। ऋचा के अपने कमरे में जाते ही,
गौरव, राखी से सामान्य होकर बात करने लगा। देखो, कल सुबह हम और तुम दोनों भाभी से माफ़ी मांग लेंगे। राखी ने कहा, माफ़ी मांगने से क्या होगा, आपकी हरकतें सुधरेगी नहीं, और मैं तो सुनाऊंगी ही दीदी को। गौरव ने कहा, पक्का मैं सुधर जाऊंगा, सारा हिसाब तुम्हें दूंगा, रात देर से घर नहीं लौटूंगा। तुम्हारी भावनाओं का ख्याल रखूंगा। जो भी हो, पर रात गौरव, राखी, और ऋचा की बेचैनी में ही गुजरी। सुबह होते ही ऋचा ने फिर से अपना फैसला दोहरा दिया। गौरव ने अपनी भाभी से माफ़ी मांगते हुए कहा,
भाभी बस एक आखिरी मौका और दे दीजिए, मैं या राखी कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे आपको। राखी ने भी सहमति का भाव जताया। ऋचा ने कहा, बस आखिरी मौका, और इस बार आपदोनों में लड़ाई हुई तो मैं वीडियो बनाकर पुलिस कंप्लेन करूंगी, या रिश्तेदारों में आपकी हरकतें उजागर करूंगी। और हाँ, राखी तुम जितना मुझे दोषी समझती हो, शादी के इतने दिन हो गए, अपने पति को समझाने का प्रयास करो। अब गौरव तुम्हारी भी जिम्मेदारी है।
राखी ने कुछ जवाब न दिया। ऋचा ने मजबूत दिल के साथ जो फैसला सुनाया था, आखिर रंग लाया, गौरव को अपनी गलती का एहसास हुआ, अपनी जिम्मेदारी समझी उसने, अपने परिवार को आगे बढ़ाया, अपने हिस्से में घर भी बनाया। और अब चाची से भी ऋचा का रिश्ता अच्छा हो चुका था। ऋचा खुश थी कि, पछतावे के आँसू रोने के बजाय, उस दिन अपने भाई समान देवर और छोटी बहन के खिलाफ उठ खड़ी हुई तो, आज हम और वो सब सुखी हैं।
#पछतावे के आँसू”
चाँदनी झा