अपराध बोध ग्रसित मन विचलित हो गया था।
संदेह की काली छाया ने सब कुछ अपने आंचल में समेट
लिया था।
सिसक सिसक कर रोने के सिवाय अब कुछ नही बचा था।
राव्या तकिए को आसुओं में भिगोती हुई पछता रही थी।
कितनी खूबसूरत जोड़ी थी ।
आन्या और प्रवेश की।
दोनो में एक दूजे के प्रति समर्पण देखते ही बनता था।
पर राव्या को आखों देखा नही सुहाता था।
उसे लगता था की यदि भैया भाभी इतने प्यार से एक दूजे के साथ रहेंगे तो मेरी शादी के बाद मां का ख्याल कोन रखेगा।
बस इसीलिए कोई न कोई बात पर भाभी को ताना मार ही देती थी।
” क्या जादू सीख कर आई हो आते ही भैया को गुलाम
बना लिया अरे आजकल तो वो आपकी ही भाषा बोलने
लगा है “।
पर आन्या ठहरी मस्त मौला नेचर की इन छोटी मोटी बातो पर ध्यान ही नही देती थी।
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दरअसल आन्या की परवरिश एक सयुक्त परिवार में हुई थी।
जहा सब एक दूसरे का लिहाज रखते थे हर छोटे बड़े का सम्मान होता था पर छोटी छोटी बातो को इग्नोर करने का गुण ही सबको एक जगह प्यार से रहने की मोहलत देता था।”
पर हर लड़की के लिए जीवन का एक बहुत बड़ा बदलाव उसकी शादी के बाद आता है।
यहां आन्या को एक छोटा सा परिवार मिला जहां आजादी भी भरपूर थी और प्रवेश के प्यार मै भी कोई कमी नही थी।
बस राव्यां का उसके प्रति व्यवहार ने ही उसे परेशान कर रखा था।
एक दिन आन्या ने राव्या से बात की ” दीदी आप मुझसे
नाराज क्यों रहती हो कुछ कमी हो तो बताइए मैं अपना बेस्ट करने की कोशिश करूंगी।”
आते ही मेरे भैया पर पूरा अधिकार कर बैठी हो और कमी पूछ रही हो?
राव्या ने गुस्से में पलट कर जवाब दिया जिसकी आन्या को आशा भी नही थी।
पर उस दिन के बाद आन्या ने प्रवेश से कह दिया” आप डेली कम से कम एक घंटा राव्या दीदी और मम्मी जी से बात जरूर करेंगे।”
और हुआ भी यही था।
पर राव्या को भी यह भी मंजूर नहीं था।
एक दिन जब आन्या अपनी मम्मी ,पापा से मिलने गई रावया ने अपने कान के कुंडल आन्या के गद्दे के नीचे छुपा दिए।
आन्या के आने के चार पांच दिन बाद भी कुछ नही बोली।
पर एक दिन अचानक ही भैया के सामने हल्ला मचा दिया।
” मेरे कान के कुंडल नही मिल रहे है।”
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मम्मी बोली ” क्यों हल्ला मचा रही है यही कही होंगे मिल
जायेंगे।”
पर राव्या को तो आन्या को बदनाम करना था ना ?
क्यों मानेगी ?
आन्या भी बोली ” दीदी यही होंगे मिल जायेगे”
राव्या तुरंत बोल पड़ी ” कही आपने तो नही ले लिए ?”
प्रवेश गुस्से में बोला ” अगर तुझे विश्वास नहीं हो तो कमरा तलाश ले।”
राव्या को भी मोका मिल ही गया।
और गद्दे के नीचे से कुंडल निकाल लाई।
अब क्या था संदेह की दृष्टि आन्या पर टिक गई।
पर आन्या को ये सब सहन नही हुआ।
और बोली ” दीदी में नही जानती की ये कुंडल मेरे कमरे में कैसे पहुंचे “?
और एक लाल पर्स राव्या को देती हुई बोली ” अगर आपको और आभूषण की जरूरत हो तो ये ले लीजिए।
अपना सम्मान खोकर में यहां नही रह सकती।
और अपने सारे आभूषण राव्या के हाथ में रख अपने मायके चली गई।
प्रवेश और उसकी मम्मी ने बहुत रोकने की कोशिश की
पर आन्या नही रूकी।
कोई छोटी मोटी बात होती तो मैं मान भी जाती पर
सॉरी…..
# आखिर घुटन भरे रिश्ते से आजादी मिल ही गई
# क्या करू मैं तो हु ही इसी..
आज दो साल हो गए भाभी ने घर में कदम भी नही रखा।
इधर राव्या खुद की शादी के बाद आन्या के साथ किए गए दुर्व्यवहार पर स्वयं को अपराध बोध ग्रसित महसूस
कर रही थी।
एक दिन उसने अपने भैया को आन्या के साथ हुए दुर्वायवहार के बारे में सच बता दिया था।
और अपने भैया और मम्मी और साथ ही ससुराल पक्ष में से अपनी सासू मां को लेकर आन्या के घर गई।
आन्या बैंक से घर आई थी।
राव्या ने आते ही दोनो कान पकड़ आन्या से अपनी करनी की माफी मांगी और घर चलने को प्रेरित करने लगी।
राव्या;” भाभी आप सोच रही अब इस घुटन भरे रिश्ते से आजादी मिल गई?
पर ऐसा मत सोचिए मेरी गलती की सजा पूरे परिवार को मत दीजिए प्लीज ।
आन्या ने राव्या को गले लगा लिया और बोली “रात को भुला अगर घर वापिस आ जाए तो उसे भुला नही कहते”
ओर तुम कौनसे घुटन भरे रिश्ते की बात कर रही हो हु….
रिश्ता कोई घुटन भरा नहीं है समझी।
वैसे थैंक यू “
राव्या बोली ” भाभी आप मुझे लज्जित कर रही है ?”
आन्या बोली ” नही मेरी ननद रानी जी जो अगर आप मुझ पर आरोप नही लगाती तो मैं अपना लक्ष्य भूल जाती जब नाराज होकर यहां आई तब मुझे मेरे लक्ष्य तक पहुंचने का मोका मिला ।
और मैने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया अब मैं अपने पैरो पर खड़ी हु।”
भाभी आप भी ना ?
मेरे द्वारा की गई नेगेटिव बात में भी पॉजिटिव बात ढूंढ ली।”
आन्या हस कर बोली ” क्या करू मैं तो हू ही ऐसी”
प्रवेश ने भी सॉरी कह कर आन्या का हाथ अपने हाथो में ले लिया।
दीपा माथुर