आज की महिला – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

नंदिता जब ब्याह करके अपने ससुराल पहुँची थी तो देखा घर में दो देवर हैं जो अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी ढूँढ रहे थे । एक छोटी नन्द डिग्री में पढ़ रही थी । ससुर रिटायर हो कर घर पर ही थे । अब सास बहू को ज़िम्मेदारी सौंप कर खुद अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होना चाहतीं थीं ।

वैसे नंदिता के घर में भी दो भाई बड़ी भाभी माँ पिता जी रहते थे । इसलिए इतने लोगों के बीच उसे अच्छा ही लग रहा था ।

नंदिता खुद भी नौकरी करती थी । शादी के लिए उसने छुट्टी ली थी । पहली रसोई होते ही कौशल्या ने अपने आपको पूरे कामों से हटा लिया और नंदिता को सब कुछ सौंपकर अपना समय टी वी देखने में बिताने लगी ।

नंदिता को ऑफिस जॉइन करना था पहले ही दिन कौशल्या ने उसे बता दिया था कि देख बहू तू नौकरी के लिए जाती है या कहीं और परंतु इतना याद रखना रोज सुबह उठकर सारे लोगों का खाना ब्रेक फॉस्ट बना देना और चले जाना समझ गई । मेरे से कोई उम्मीद मत रखना मुझसे कुछ नहीं होता है ।

नंदिता ने उनकी बात मानकर सुबह के सारे काम निपटाया और पति शेखर के साथ ऑफिस के लिए निकल गई शाम को शेखर के साथ जैसे ही उसने घर में कदम रखा तो देखा सास टी वी के सामने बैठी हुई हैं ।

उसे देखते ही कहा कि बहू जल्दी से चाय बनाकर ला मेरा बेटा थका हारा ऑफिस से आया है और हाँ हम लोगों ने भी अभी तक चाय नहीं पी है हमारे लिए भी चाय बना दे । एक बात और फटाफट रात के खाने की तैयारी कर दे तुम्हारे ससुर को जल्दी खाने की आदत है ।

नंदिता ने उनके कहे अनुसार सबको चाय बनाकर पिला दिया और सास से पूछा सबके लिए रोटियाँ बना कर रख दूँ ।

कौशल्या भड़क उठी क्या कह रही है सबके लिए गरम रोटियों को सेंकना है हमारे यहाँ कोई भी ठंडी रोटी को नहीं खाते हैं । अभी सबसे पहले ससुर जी के लिए रोटी बना दे। 

नंदिता ने वैसे ही किया और अभी रसोई से निकलने ही वाली थी कि सासु माँ ने कहा कि अब मेरे लिए बना दे ।

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इस तरह से सबने खा लिया था पर शेखर रह गया था । उसने नौ बजे खाना खाया सबसे अंत में नंदिता की बारी आई ।

वह खाना खाकर रसोई की सफ़ाई करके ग्यारह बजे सोने गई तो शेखर इंतज़ार कर रहे थे मैंने कहा थक गई हूँ सोना है पर वहाँ भी मेरी एक न चली ।

कुछ दिन ऐसे ही चला माँ को भी फोन पर बताया था पर उन्होंने सीधे से कह दिया था कि यह तुम्हारे घर का मामला है बेटा तुम ही निपटो । वैसे भी तुम उस घर की बहू हो काम तो करना ही पड़ेगा ।

नंदिता को लगा कि इस समस्या का समाधान करने के लिए निर्णय तो मुझे ही लेना पड़ेगा कब तक अपने आत्मसम्मान को खोकर जियूँगी इसके लिए उसे एक उपाय सूझा ।

उसने दूसरे दिन ऑफिस से आते ही सबको बताया कि उसका नाम एक इंपार्टेंट प्रॉजेक्ट में सेलेक्ट हुआ है तो उसे रोज सुबह सात बजे निकलना पड़ेगा और रात को आते आते दस बज जाएँगे ।

यह सुनते ही कौशल्या की बोलती बंद हो गई थी । यह कैसा काम है तुम्हारा बहूँ तुम्हारे कारण मुझे काम करना पड़ेगा । देखो नंदिता मैं कहे देती हूँ पूरे घर का काम अकेले मैं नहीं करूँगी ।

नंदिता ने कहा कि ठीक है माँ मैं अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे देती हूँ ।

ससुर जी ने कहा कि नहीं बेटा हम सब मिलकर घर का काम कर लेंगे परंतु तुम अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा मत देना ।

उस दिन से मैं रोज सुबह चली जाती थी और रात को दस बजे के बाद आती थी।

पंद्रह बीस दिनों तक सब कुछ ठीक चलने लगा ।

 एक दिन सासु माँ ने कहा कि नंदिता अब और कितने दिन चलेगा तुम्हारा यह प्रॉजेक्ट का काम मुझसे नहीं हो पा रहा है ।

उनकी बात सुनकर घर के सभी लोगों ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई कि माँ सही कह रही हैं ।

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नंदिता को उनकी बातें सुनकर ग़ुस्सा आया और उसने कहा वाहहह जब मैं अकेले बाहर काम करके आने के बाद भी घर का काम करती थी तब आप लोगों को दर्द नहीं हुआ।

सासु माँ आप तो कहतीं थीं कि शेखर थक गया है चाय बनाकर दे ।

हमने चाय नहीं पी हमारे लिए भी बना रोटियाँ सबके लिए गर्म बना इतनी सारी बातें सुनातीं थीं । आपको कभी भी नहीं लगा कि बेचारी वह भी ऑफिस में काम करके आई है उसके लिए एक कप चाय की पीने के लिए दूँ ।

आप दोनों सासु माँ और पापा जी बुरा मत मानिए परंतु चौबीसों घंटों टीवी के सामने बैठे रहेंगे तो आप के पैर जाम हो जाएँगे । अपनी हेल्थ को सही रखने के लिए थोड़ा बहुत चलते रहना चाहिए । आज आप सब मिलकर काम करने के बाद भी थकने की बात कर रहे हैं ।

 कभी मेरे बारे में सोचा कि मुझे कितनी तकलीफ़ होती होगी । ननंद,देवर ,ससुर और पति सबसे उसने पूछा कि आप लोगों को कभी भी नहीं लगा कि हम मदद कर देते हैं । सबके सर शर्म से झुक गए ।

एक इंसान से इतना काम कराने के बदले में सब मिलकर एक टीम के समान काम करते तो किसी पर भी काम का बोझ नहीं डलता । मैं घर के काम कर दूँगी पर नौकरी नहीं करूँगी । वह भी आप लोगों को मंज़ूर नहीं है।

ससुर जी ने कहा सही है बेटा हम लोगों की बहुत बड़ी गलती है हम अपने आप को सुधारेंगे ।

उस दिन से सब एक साथ बैठकर खाना खाने लगे । कौशल्या भी रसोई में मदद करने लगी । ससुर बाहर से सब्ज़ियाँ या सामान लाने लगे । जब काम बँट गया तो सबको साथ मिलकर बैठने और बातें करने का समय मिलने लगा ।

इस तरह से नंदिता ने अपनी सूझबूझ से अपने परिवार को सुखी परिवार बनाकर अपने आपको आज की महिला साबित कर दिया ।

के कामेश्वरी

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