आईना दिखाती गृह लक्ष्मी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :   “रीनू ओ रीनू!ये दीये पानी में भिगो देना ज़रा।एक घंटे के बाद निकाल कर धूप में रख दूंगी।”श्यामला ने अपनी काम वाली बाई को निर्देश दिया।अभी -अभी घर पर ही खरीदे थे एक भैया से दीये।रीनू ने आदतन पूछा”दीदी,कितने में दिए उसने आपको?”

“सौ रुपए सैकड़ा बताया था,पर मैंने तीस रुपए ज्यादा ही दे दिए।उनका भी तो त्योहार है।साल भर तके रहतें हैं दीवाली के लिए।मोल -भाव क्या करना इनसे।”श्यामला ने अपना विचार जैसे ही रखा,उसने आंखें तरेर कर कहा”क्या! गज़ब है दीदी।अभी -अभी तो पीछे कॉलोनी में सौ रुपए में एक सौ दस देकर आया है।आपको तो मोल-भाव भी करना नहीं आता।”

श्यामला ने हंसकर हामी भरी और पूछा”तुमने ले लिए दीए?”उसने इंकार में सिर हिलाया और कहा”अरे दीदी,अभी दीपू के पापा कहां आएं हैं घर?आज शाम तक आ जाएंगे ,तब खरीदारी करूंगीं ना।”

श्यामला साफ-सफाई में व्यस्त हो गई।शाम को शर्माते हुए चहककर बोली रीनू”दीदी,दीपू के पापा आ गएं हैं।आज आप संभाल लोगी ना काम?हम बाजार जायेंगें। बच्चों के लिए नए कपड़े,पटाखे और पूजा का सामान लाना है।आपको पता है दीदी,मालिक ने इन्हें इस बार दीवाली का बोनस दिया है।मेरे लिए साड़ी चूड़ी लेकर आएं हैं।”रीनू को खुश देखकर श्यामला भी खुश हो गई।मन ही मन बोली”हे ईश्वर!तुम्हारी लीला अपरम्पार है।त्योहार में सारे भेद-भाव मिटा देते हो।जिन्हें यह भी पता नहीं होता कि कल क्या खाएंगे,उन्हें भी त्योहारों में खुशियों का प्रसाद देते हो तुम।

आज कॉलोनी में दीवाली की थीम पार्टी होने वाली थी।सारी महिलाएं पार्लर से सज संवर कर दीवाली की अग्रिम बधाइयां दे रहीं थीं एक दूसरे को। पार्टी में सर्व करने वाले सारे वेटर मास्क लगाए हुए थे।श्यामला की प्लेट में सारी खाने की सामग्री ज्यादा ही आ रही थी। महिलाओं ने पूछा भी कि क्या बात है भाभी?ये भी आपके ही छात्र हैं क्या?मैडम को ज्यादा दे रहें हैं।

श्यामला ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।तभी फोन की घंटी जोर से बज उठी।सामने से रीनू का फोन आया”दीदी,आप पार्टी में हो,मुझे पता है।दीपू के पापा पता नहीं कहां चले गएं हैं?आपने जो दीवाली के लिए रुपए दिए थे ना, जबरदस्ती मुझसे झगड़ा कर लेकर गएं हैं।अब क्या कहूंगी बच्चों से?खाना भी नहीं बना पा रही।दीपू बहुत रो रहा है।

क्या आप उसके खाने का जुगाड़ कर पाएंगी पार्टी से?कितना खाना तो फिंक जाता है?थोड़ा सा मेरे बेटे को दिलवा दीजिए ना।मैं और किसी से कह नहीं पाऊंगी।”श्यामला का मन चीत्कार कर उठा”हाय रे अभागन,कितना चाव था बाजार जाने का।अब उठ भी नहीं पा रही।पति आया ही क्यों था,जब यही सब करना था।”दीपू बाहर गेट पर सहमा सा खड़ा था।श्यामला ने उसे चुपके से इशारे से बुलाया,और एक वेटर से धीरे से एक प्लेट में सारी खाने की चीजें डालने को कहा।

वेटर जब प्लेट लेकर आया,चेहरा बार-बार छिपा रहा था।यह प्लेट भी भरी थी उसकी ख़ुद की प्लेट की तरह।दीपू को प्लेट पकड़ाकर स्टेज के पीछे एक कुर्सी में बिठाकर श्यामला को अजीब सा संतोष हुआ।वेटर को ढूंढ़कर उससे कुछ पूछने के लिए जा ही रही थी, कि उसने उसी वेटर को दीपू की तरफ टकटकी लगाकर देखते हुए पाया।बाप रे!कौन है यह वेटर?आजकल किसी का कोई भरोसा भी तो नहीं।

श्यामला ने जोर से उसे आवाज दी तो हड़बड़ाहट में उसने मास्क लगाने में गलती कर दी।वह अपने आंसू पोंछ रहा था।श्यामला हतप्रभ होकर उसे देखने लगी,”तुम यहां कैसे?तुम रीनू के पति हो ना?अभी -अभी उसने फोन किया था कि तुमने उसे मारकर उसके पैसे छीन लिए हैं।कैसे बाप हो तुम?कब से दीपू तुम्हारी राह देख रहा था?रीनू एक-एक दिन जैसे-तैसे काट रही थी।तुम यहां क्या कर रहे हो?”

वह सच में रीनू का पति ही था।एक -आध बार रीनू के साथ घर पर आया था पहले।इसी ने उसके प्लेट में खाने की चीजें भर-भरकर डालीं थीं।बहुत डरता था श्यामला की आंखों से,ऐसा रीनू ने बताया था।

वह श्यामला के पैर छूकर गिड़गिड़ाने लगा”दीदी,ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में रायपुर चला गया था मैं।वहां एक होटल में खाना बनाने का काम कर रहा था।ग़लत संगत में पड़कर चोरी कर ली थी मैंने मालिक के गल्ले से।पुलिस से बचने के लिए मैंने साल भर बिना पैसों के काम किया उनके यहां। बहुत सज्जन हैं मालिक मेरे।दीवाली के पहले मेरे पूरे पैसे देकर मिठाई के साथ छुट्टी दी।बस स्टैंड में मेरे बदमाश दोस्तों ने ही पूरे पैसे छीन लिए।मैंने रीनू को कुछ नहीं बताया था।

आज सुबह रीनू के बार-बार पैसे मांगने पर मुझे गुस्सा आ गया।मैंने उसे मारकर पैसे ले लिए उसके बक्से से।शराब पीता रहा दिन भर।शाम को याद आया कि कल तो धनतेरस है।रीनू फिर कहेगी कुछ खरीदने को।दीपू को नए कपड़े खरीदने का वादा किया था।आज की पार्टी के लिए कैटरर वेटर ढूंढ़ रहे थे,तो मैं यहीं आ गया।कुछ पैसों का इंतजाम करके ही घर वापस जाऊंगा।रीनू मेरे झोपड़ी की लक्ष्मी है।सजेगी जरूर वह दीवाली में।”

श्यामला के कान सुन्न हो रहे थे। पुरुष अपने ऊपर कठोर, अमानवीय और गैरजिम्मेदार का तमगा ले सकता है,पर एक पति और एक पिता अपनी कमजोरियों, गलतियों,गुनाहों को स्वीकार भी करता है और जिम्मेदारी से कभी नहीं भागता।घर में पति ही होतें हैं जो अपनी मेहनत की कमाई से अपनी पत्नियों को हर त्योहार में रानी की तरह श्रृंगार करवाने में खर्च कर सकतें हैं।

चाहे महल हो या झोपड़ी,पत्नियां सारे पतियों की गृह लक्ष्मी ही होतीं हैं।धनतेरस की खरीदारी तो श्यामला ने भी नहीं की थी।उस पार्टी के कैटरर से रीनू के पति की सिफारिश तो कर ही सकती थी।होटल में खाना बनाने का अनुभव था उसे।कैटरर ने भी दीवाली के उपलक्ष्य में शायद इस नेकी का मौका छोड़ा नहीं।

कल से काम पर आने की बात कहकर कुछ एडवांस भी दे दिया उसने।श्यामला ने भी कुछ रुपए इस शर्त पर दिए कि आगे से शराब को कभी हांथ नहीं लगाएगा,और रीनू पर अगर दोबारा हांथ उठाया तो सीधे पुलिस स्टेशन ही भिजवाएगी।दीपू को खाता देखकर निश्चिंत हुआ पिता, आखिर में अपनी गृहलक्ष्मी के लिए भी पॉलीथिन में भरकर खाना ले जा रहा था।

अगले दिन शाम को रीनू हांथ भर चूड़ियां पहने,माथे पर सिन्दूर की बड़ी सी बिंदी,मांग में उजला सिंदूर भरकर आई थी।दीपू भी नए कपड़े -जूतों में खुश था।रीनू के पति ने नई शर्ट और पैंट पुरानी पहनी थी।श्यामला हड़बड़ाते हुए जल्दी से चाय बनाने लगी।अगर रीनू को सब सच पता चल गया होगा तो, उसे ही ताने मारेगी कि क्यों कुछ नहीं बताया मैंने।चाय का कप देकर श्यामला सामने ही बैठ गई।रीनू के इशारे से उसका पति श्यामला के पैर छूकर बोला”दीदी,अब मुझे यहीं नौकरी मिल गई है।कल पूजा में आप जरूर आना,हम गरीबों के घर।”

श्यामला ने अब ध्यान से रीनू को देखा।सस्ती ही सही पर इतने सलीके से पहनी हुई थी उसने साड़ी कि, मन खुश हो गया।पल्लू से पीठ ढंकी थी उसने, नजरों से समझ गई थी कि चोट के निशान छिपाने की व्यवस्था की हुई है।उन्हें मिठाई और दीपू को पटाखों का एक पैकेट हमेशा की तरह देकर विदा किया श्यामला ने।

आज वह बाध्य थी इस सत्य को स्वीकार करने में कि मंहगी साड़ियों,गहनों से सजी हुई गृहलक्ष्मी का रूप एक कामवाली बाई के रूप से अलग नहीं होता।जो मुख्य बात है वह है पति का प्रेम।पति मारे भी हक से और प्रेम करें भी हक से।पत्नी का तो वहीं है श्रृंगार।मारना ग़लत है,शराब पीना ,जुआ खेलना भी ग़लत है।यह ग़लत हमेशा से घर-घर में होता आ रहा है।त्योहार में पत्नी का पति से कुछ मांगना अधिकार है उसका।और हो भी क्यों नहीं, पति के घर की लक्ष्मी तो पत्नी ही हैं।

समाज में हर तबके के लोग अपने-अपने हिसाब और सामर्थ्य से हर त्योहार मना ही लेतें हैं।हम पत्नियां शायद ही कभी यह जानने की कोशिश करतीं हैं कि, उनकी मांगें पूरी करने के लिए उनके पतियों के पास रकम है भी कि नहीं।अगर कभी कुछ सस्ता मिल जाए तो मुंह फुलाना भी नहीं भूलतीं हम।गृहस्वामी नारायण होंगें तभी तो स्वामिनी गृहलक्ष्मी हो पाएगी।

आज रीनू और उसके पति ने त्योहार मनाने की प्रथा दिखाकर श्यामला को आईना दिखा दिया था।दोनों खुश हैं इस ग़रीबी में भी,लड़ाई -झगड़ों में भी।कोई किसी को छोड़कर नहीं जाता।सब साथ ही रहतें हैं कम में भी खुश रहकर।रोकर भी हंसकर।चोटों को ढंककर।यह नारी शोषण का केस नहीं,समय का फेर है।वादे की बात है,निभाने की बात है।अपने पति पर सर्वाधिकार सुरक्षित करने की बात है।

शुभ्रा बैनर्जी

1 thought on “आईना दिखाती गृह लक्ष्मी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi”

  1. पहली बार बहुत शानदार स्टोरी, नहीं तो इंटरनेट सस्ता होने के चक्कर में , हर कोई साहित्यकार बन रहा है, न पता न अता, एक ऐसी कहानी पढ़ने के बाद लगता है सब ऐसी होगी, us चक्कर m कही बार तो सॉफ्ट पोर्न जैसी कहानियां पढ़ने को मिल रही है।।

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