आई माँ – मंगला श्रीवास्तव

 शारदा आज मेरी जरूरी मीटिंग है कम्पनी में मुझको जल्दी जाना है ,  तुम सुदीप को संभाल लेना उसका ध्यान रखना दूध पिला देना काम पड़ा रहने देना बाद में कर लेना।

यह कहकर अमिता जी अपने तीन महीने के मासूम बेटे को छोड़ पति नरेंद्र के साथ बाहर निकल गई थी।

शारदा  घर में बने सर्वेंट क्वाटर में  अपने पति के साथ रहती थी ,पति भी वही चौकीदारी का काम करता था।

दोनो मिलकर  घर की जिम्मेदारी संभालते थे। उसका भी एक साल का दूध पीता बच्चा बिट्टू था। सुदीप बहुत कमजोर था इस कारण वह ऊपर का दूध पचा नही पाता था ,परन्तु अमिता जी ने अपनी नौकरी के कारण सुदीप को जल्दी ही ऊपर का दूध पिलाना शुरू कर दिया था ।

परन्तु जब सुदीप को ऊपर का दूध नही पचा तो  शारदा ने बिट्टू को ऊपर का दूध देकर सुदीप को अपना दूध पिलाया वह भी बिना अमिता जी को बताये। वक्त गुजरता गया शारदा के देखरेख में ही सुदीप बड़ा हुआ उसकी हर पसन्द नापसन्द का ध्यान शारदा रखती थी।

अमिता जी और नरेंद्र जी को तो पता ही नही था कि बेटा कब कैसे बड़ा हो गया कम्पनी की बड़ी पोस्ट के कारण वह अक्सर लम्बे लम्बे टूर पर जाते रहते मीटिंग में ही फंसे रहते थे।

सुदीप बस उनको कभी कभार ही देख पाता जब कभी वह देर से जाते या छुट्टी होती तब इस कारण वह भी बस उनके पास जाकर उतनी देर बैठता मिलता , बाकी समय वह पढ़ाई में व्यस्त रहता।

अमिता जी और नरेंद्र जी वह इस कारण दिल से जुड़ ही नही पाया था,और ना ही वह दोनों इस बात को समझ पाये की उनके बेटे के लिए वह सिर्फ एक मॉम डैड बनकर ही रह गये थे।जिन्होंने उसको जन्म तो दिया पर उसका बचपन उसकी वह बाल सुलभ खेल का आनंद वह नही ले पाये थे।

वही शारदा जो कि एक काम वाली होकर भी उसकी यशोदा माँ बन गई थी उसके लिये जिसने उसके बचपन को देखा भी व जिया भी ,उससे वह दिल से जुड़ा हुआ और उसको ही अपना सबकुछ मानता था ।



आज सुदीप पूरे पच्चीस साल का हो गया था ,उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और आज उसको एक बड़ी कम्पनी में जॉब भी मिल गई थी।

सुदीप आज बहुत चहकता हुआ घर आया था।उंसके हाथों में गिफ्ट के पैकेट थे ।आई ..! कहां हो तुम जल्दी से बाहर आओ ।

अंदर से शारदा बाई अपने पल्लू से हाथ पोछते हुएं बाहर निकल कर आई।

सुदीप ने उनके पैर छुएं व सोफे पर बिठा दिया। वह सामने बैठे मालिक व मालकिन को देख घबरा गई।

 सुदीप ने जल्दी से पैकेट खोल एक बहुत सुंदर साड़ी शारदा को ओढ़ दी ,आई मेरी जॉब लग गई है। बाबा और बिट्टू के लिए भी गिफ्ट लाया हूँ कहां है वह मैं उनको देकर आता हूँ। उसने सामने बैठे अपने माता पिता को देखा तक नही और बाहर जाने लगा।

“सुदीप -अमिता ने गुस्से से उसको पुकारा; ..हाँ मॉम बोलो,!

हम तुम्हारे माता पिता है…!

शारदा नही है ।

शारदा यह काम करने वाली एक नौकरानी है बस ।

ओहो तो आज आपको याद है कि मैं आपका बेटा हूँ , आपको याद भी है कि बचपन में कितनी बार आपने मुझको उठाया खाना खिलाया मेरी बीमारी में मुझको देखा व ध्यान दिया बचपन से लेकर आज तक आपने कितनी बार मेरी बातें सुनने की कोशिश की है मेरी समस्या जानने की कोशिश की है ।

आप सिर्फ रुपये देकर महंगे खिलौने लाकर सोचते रहे कि आपकी जिम्मेदारियां खत्म हो गई मेरे प्रति आज आपको इस उम्र में यह याद आया कि मैं आपका बेटा हूँ ।

सुदीप पलट कर एकदम बोला ..!

 और खबरदार मॉम आपने आई को कुछ बोला या घर मे काम करने वाली बाई बोला.. वह मेरी माँ है, और आप दोनों बस मॉम व डैड हो । दोनो बस अपनी अपनी कम्पनी के एक बड़े जिम्मेदार अधिकारी हो । कहकर वह दोनो को बिना देखे बाहर चला गया था।

अमिता व नरेंद्र बाबू मुहँ लटकाए एक दूसरे को देख रहे थे।

#दिल_का_रिश्ता

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक रचना

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