बारात आ गई…..बारात आ गई…..
राधा के कानों में आवाज़ पड़ी, उसने तुरंत पास बैठी सहेली से कहा —-
कम्मो, ज़रा झांक के देख तो सही , दुल्हा कैसा है ?
और अगर अच्छा न हुआ तो तू क्या मना कर देंगी ब्याह से ? तूने आज तक किसी से नहीं पूछा वो कैसा है ?
अरी ना , बस दिल को तसल्ली सी मिल जाएगी…. देख ना , कैसा है ?
एकदम भोंदू सा दिखे है, चल मेरे साथ…. बाबा को कह देना बारात लौटा दें ।
राम…राम ! क्या कह रही हो, अब जैसा भी हमारे भाग्य में था , मिल गया । बाबा ने कुछ सोचकर ही रिश्ता तय किया होगा ।
राधा गाँव वालों की नज़रों में एक बदकिस्मत लड़की थी । जिसकी माँ जन्म देते ही चल बसी । बापू ने माँ की चचेरी बहन से यह सोचकर ब्याह किया कि मौसी है , बच्ची को माँ की कमी नहीं खलेगी पर उसने तो एक दिन भी लोक दिखावे के लिए भी नहीं, राधा के सिर पर हाथ रखा ।
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जब से राधा ने होश सँभाला, माँ के रुप में उसे दादी ही याद है। बाबा बढ़ईगिरि का काम करते थे और बापू भी उनका हाथ बँटाते थे । बाबा और बापू का पूरा दिन दुकान और उसके पीछे बने लंबे- चौड़े बरामदे में गुजर जाता था । बरामदे को पार करके एक बड़ा सा आँगन तथा आँगन को पार करके फिर से वैसा ही बरामदा तथा बरामदे के अंदर दो कमरे और एक तरफ़ रसोई थी । कुल मिलाकर अच्छा आराम से रहने लायक़ घर था पर दादी का पूरा समय आँगन के बीचोंबीच स्थित नीम के पेड़ के नीचे गुजरता था । वह अपनी छोटी सी खटिया को लेकर नीम की छाँव के साथ- साथ घूमती रहती थी । हाँ, बरसात और सर्दी के दिन इसके अपवाद थे ।
राधा को नीम का पेड़ ऐसा लगता मानो उसकी माँ हो । उसके बचपन के क़िस्से सुनाती दादी अक्सर कहती थी——
ओ राधा रानी , इसी नीम के पेड़ में पड़ा झूला तेरी माँ की गोद थी । कहने को मौसी है पर दिल में प्रेम नहीं….. पहले ही दिन से , इसने तुझे बहन की निशानी नहीं, सौतन की बेटी समझा , आएगी इसके सामने …. भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती ….. और राधा मुँह बाए दादी को देखती क्योंकि दादी की कही बातें, उस समय उसके सिर के ऊपर से गुजर जाती ।
दिन बीतते गए और मौसी का एक के बाद एक गर्भपात होता गया । दादी का बड़बड़ाते हुए कहना —-
इसके सामने इसका किया आ रहा है । एक बिन माँ की बच्ची , कन्या के साथ द्वेष…. पर मेरा बेटा भी पिस रहा है । कितना समझाया कि बहू , कन्या है ….. कौन सा यहीं रहेगी …. जब तक रहेगी तेरा हाथ बँटाएगी ….. निर्दोष का मन दुखाना ठीक नहीं रहता पर यह तो पता नहीं, किस गुमान में थी ?
एक बार दादी ने कहा —-
ए राधा रानी ! बोल भगवान से , तुझे एक भला सा भाई दें जो अपनी बहन के लाड़ करें…. कम से कम मेरी बच्ची का मेरे बाद पीहर तो बना रहेगा…..
और सचमुच जैसे ईश्वर ने उसके नन्हे- नन्हे जुड़े हाथों की लाज रख ली । साल भर के अंदर ही मौसी की गोद भर गई ।
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थाली पीटती दादी कहते नहीं थकी——
अरे ! ये तो मेरी राधा रानी की प्रार्थना का नतीजा है वरना इसके लच्छन देखकर कौन कहता था कि इसकी गोद भर जाएगी ।
राधा पूरे मोहल्ले में अपने नए फ्राक को पहनकर इतराती कहती—-
ए कम्मो , मैं तो अब अपने भाई के साथ खेलूँगी, जा मुझे तेरी गुड़िया नहीं लेनी ।
अपना बेटा होने के बाद भी मौसी का मिज़ाज नहीं बदला । जब भी स्कूल से आकर , वह दौड़कर भाई के पास पहुँचती कि मौसी चीखती—-
राधा , जा नीम के नीचे बैठकर रोटी खा ले , भाई के पास मत जाना । पता नहीं, किन-किन रास्तों से होकर आती है….. कुछ हो गया तो ….. तेरा क्या जाएगा?
और वह दादी की खटिया पर उनके पास जा लेटती । नीम के पेड़ की ठंडी छाया और हवा जल्दी ही अपने आग़ोश में ले लेती और वह सो जाती मानो उसकी माँ उसे बेरहम दुनिया से दूर अपने आँचल में ले लिया करती थी ।
दादी के गुजरने के बाद तो राधा का एकमात्र सहारा नीम का पेड़ ही रह गया । मौसी के लाख मना करने पर भी उसका भाई उसके साथ खेलता , आँगन में नल के चबूतरे पर बैठी बर्तन साफ़ करती राधा की कमर पर लटक जाता , उसके हाथ से खाना खाने की ज़िद पकड़कर ज़मीन पर लेट जाता …. ग़ुस्से में तमतमाई मौसी दो थप्पड़ जड़ते हुए कहती —-
जा मर उसी के पास , पता नहीं क्या जादू कर दिया मेरे बेटे पर … पता नहीं…. कब पीछा छूटेगा ?
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और दोनों भाई- बहन , उन निरर्थक बातों से दूर दादी की खटिया पर नीम के पेड़ की छाया में बैठे खेलते – बतियाते और खिलखिलाते । भगवान जी ने राधा को ऐसा भाई दिया था जो उसके बहुत लाड़ करता ।
धीरे-धीरे बाबा ने काम से छुट्टी कर ली और नीम के पेड़ के नीचे दादी की जगह ले ली । राधा के साथ-साथ उसका छोटा भाई रामकृपा भी बड़ा हो गया….. इतना बड़ा कि अक्सर राधा के पक्ष में अपनी माँ का सामना करने लगा ।
रोज़ के क्लेशों से तंग होकर बाबा ने फ़ैसला किया कि राधा का विवाह कर दिया जाए । अपने मन की बात बेटे को बताते हुए बाबा बोले——
अभी सोलह साल की हुई है…. शरीर से भी कमज़ोर है । तेरी बहु और कृपा में रोज़ लड़ाई होती है राधा को लेकर , अरे समझा दे उसे … दो- तीन साल निकल जाने दे शांति से । क़ानूनी उम्र से पहले ब्याह करने पर अगर किसी ने शिकायत कर दी तो लेने के देने पड़ जाएँगे ।
बस बाबा की बात सुनकर रामकृपा ने नीम के पेड़ के नीचे सुबकती राधा से कहा —-
अब तू चिंता मत करना ….. करें तो कोई तेरी मर्ज़ी के बिना तेरा ब्याह….. दरोग़ा जी को बता दूँगा कि माँ ने बहन का दिल दुखाया था ।
उस दिन के बाद मौसी डर गई । वह अपने बेटे को अच्छी तरह जानती थी कि जो कहता है… कर देता है । शायद भगवान ने राधा की सुन ली क्योंकि वह पढ़ना चाहती थी । उसे अपनी अनपढ़ दादी की एक बात हमेशा याद आती थी——
ए राधा रानी, खूब पढ़ाई करना , पता नहीं आगे कौन कैसा मिले …. ब्याह तो एक जुआ है , कम से कम पढ़ा- लिखा किसी के आगे हाथ तो नहीं पसारता । कुछ न कुछ काम करके जीवन तो गुज़ार सकता है ।
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अब बी०ए० करने के बाद, आज राधा की बारात आई है । पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली कम्मो की माँ कीं रिश्तेदारी का खाता- पीता भला परिवार…. शहर में अपना स्कूल चलाते हैं । उन्हें केवल पढ़ी- लिखी एक भली लड़की की ज़रूरत थी । जब दूर की रिश्तेदारी की भाभी एक विवाह समारोह में कम्मो की माँ से मिली तो उन्होंने कहा—-
बहन , अपने गाँव की किसी लड़की से हमारे पवन का रिश्ता करवा दो ना …. बस लड़की ऐसी चाहिए जो समझदार और पढ़ी- लिखी हो ।
पर गाँव की क्यूँ ? शहर में रहने वालों के साथ गाँव की लड़की निभेगी कैसे ?
दरअसल पवन का मानना है कि हर कोई शहर की ओर भाग रहा है, अगर गाँव में रहने वालों को मौक़ा दिया जाए , उन्हें पिछड़ा समझकर अनदेखा ना किया जाए , तो गाँव से पलायन करते लोगों को रोका जा सकता है । गाँव में प्रतिभा की कमी नहीं है, वैसे एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहे हैं । बस उसकी सोच है और सच कहूँ…. मैं और तुम्हारे भाई भी यही चाहते हैं ।
जब कम्मो की माँ ने बाक़ी लोगों से बातचीत करके सुनिश्चित कर लिया कि भाभी की बातों में सच्चाई है और घर- परिवार तथा लड़के में कोई कमी नहीं तब उन्होंने बाबा के सामने प्रस्ताव भेजा तथा ज़िम्मेदारी ली ।
हालाँकि कृपा अभी दसवीं कक्षा में पढ़ता था पर घर के माहौल और माँ की घटिया राजनीति ने उसे उम्र से पहले बड़ा कर दिया था । उसने कम्मो की माँ से मिलकर तथा लड़के के घर जाकर तसल्ली की । बाबा और बापू भी शहर जाकर घर-बार देखकर आए …वहाँ से आकर बाबा ने कम्मो के पिता को बुलाकर कहा—-
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बेटा , ज़्यादा बड़ा हिसाब है उनका … कहीं ऐसा ना हो कि कोई धोखा हो , कहाँ वे और कहाँ हमारी गाँव की सीधी सादी राधा …. डर सा लागे , हाँ कहने में ….
चाचा , डर मत । मैं कम्मो की माँ को अच्छी तरह जानता हूँ । भले ही गाँव की अनपढ़ है पर बहुत समझदार है… आदमी की पहचान है उसे । राधा केवल तुम्हारी नहीं, पूरे गाँव की छोरी है। भगवान पर विश्वास करके हाँ कह दो ।
और उसके दो दिन बाद एक पैंट- क़मीज़ का कपड़ा , एक मिठाई का डिब्बा तथा एक रुपये से बाबा , बापू और कृपा लड़के को टीका कर आए ।
छह महीने बाद की तारीख़ पक्की कर दी गई । विवाह की तारीख़ तय होने के बाद बाबा ने कम्मो की माँ और पिता को बुलाकर कहा —-
बहु ! ये लो पचास हज़ार रूपये और राधा की दादी के कुछ ज़ेवर । क्या लेना , क्या ख़रीदना मुझे ना पता , बेटा ! बिन माँ की बच्ची है अपनी बेटी समझ कर , तुम्हें विवाह की तैयारी करनी पड़ेगी । और जितना पैसा लगेगा, बता देना । बस मेरी राधा रानी के ब्याह में कोई कमी ना रहे ।
चाचा , लड़के वालों ने कहा है कि वे पाँच कपड़ों में बहू लेकर जाएँगे । अगर बात केवल तड़क-भड़क और लेने- देने की होती तो शहरों में क्या रिश्तों की कमी थी? वे केवल इतना चाहते हैं कि बारात के एक समय के भोजन की व्यवस्था आदरपूर्वक हो जाए । अपने गाँव का देसी भोजन…..
ठीक है…. जिस में उनकी और राधा की ख़ुशी हो …..
जब मौसी ने देखा कि शादी की तैयारियों के लिए कम्मो की माँ को ज़िम्मेदारी दी गई है तो वह स्वयं को अपमानित समझते हुए बोली—-
बापू … माँ ना सही , हूँ तो मौसी राधा की … पड़ोसी को ब्याह की ज़िम्मेदारी सौंपकर ठीक ना किया ।
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बहू , तूने कभी राधा को अपनी बेटी तो क्या, भांजी भी माना होता तो क्यूँ आज ये सब करना पड़ता , अब वो सदा के लिए जा रही है, ये दो हाथ जोड़ता हूँ….. बस छह महीने इस बूढ़े पर दया करके , शांति से उसे विदा हो जाने दे ।
इसके बाद मौसी एकदम चुप रही । शायद उसे अपनी ग़लतियों का एहसास होने लगा था या वह समझ गई थी कि उसके होने ना होने से अब किसी को ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता या कुछ ओर ….
हाँ, राधा को उस दिन बड़ी हैरानी हुई जब तेज गर्मी में नीम के पेड़ के नीचे लेटी राधा के चेहरे पर आई धूप को देखकर मौसी बोली —-
भीतर चलकर लेट जा …. पूरा दिन नीम के पेड़ के नीचे पड़ी रहती है । ये मुँह काला पड़ जाएगा ।
आज राधा को पहली बार उस डाँट में प्यार और अपनेपन की ख़ुशबू महसूस हुई । वह चुपचाप उठी और बाहर वाले बरामदे में लेटे बाबा के पास जाकर रोने लगी । बाबा ने समझा कि ससुराल जाने के दुख से दुखी हो उठी है ।
बीस- पच्चीस बरातियों और गाँव वालों के भोजन में मात्र बीस हज़ार रुपये खर्च हुए थे । कन्यादान के समय मौसी स्वयं ही बापू के पास जाकर बैठ गई और सारी रस्में निभाई …. वैसे बाबा ने यह ज़िम्मेदारी भी कम्मो के माता-पिता को सौंपी हुई थी ।
राधा की विदाई का समय आ गया । हल्दी हाथों पर लगाकर छाप लगाने के लिए मुख्य दरवाज़े की तरफ़ जाती हुई राधा रूक गई । उसने बाबा से कहा —-
बाबा … मैं अपने हाथों की छाप अपनी माँ की छाती पर लगाना चाहती हूँ, मेरा नीम का पेड़…. जिसकी डालियों ने मुझे माँ की गोद दी , छाया ने हौंसला दिया , इसकी डंडियों की मार ने सहनशील बनाया , इसके पत्तों से आती हवा ने मरहम लगाया और…….
पेड़ की जड़ में बैठी राधा हिचकी ले रही थी । तभी उसने अपने दोनों हाथ तने पर लगाने चाहे कि मौसी तने और हाथों के बीच आ गई । राधा के हल्दी लगे हाथों की छाप उसकी छाती पर जा लगी ।
— राधा, मुझे माफ़ कर दो । ना जाने क्यूँ … बिना कारण मैंने तुम्हें अपनी दुश्मन मान लिया था? तुम्हारी दादी सही कहती थी कि पढ़ाई लिखाई से हमारी सोच बनती है, अपनी इस अनपढ़ मौसी को माफ़ कर दे ।
आज राधा दूर जा रही थी और मौसी उसकी चुनरी को पकड़ उसे क़रीब लाने की कोशिश कर रही थी । बाबा के दिल में संतोष था पर आँखों में आँसू ।
बरसों बीत गए । राधा साल में एक दो बार मायके जाती और बहुत कोशिश करती कि मौसी में आए बदलाव के पीछे का कारण क्या था पर किसी को पता नहीं चला । केवल यही अनुमान लगाया गया कि कृपा ने अपनी माँ को यह चेतावनी दी कि अगर उसने राधा को बेटी का अधिकार देकर विदा नहीं किया तो वह इस घर से चला जाएगा । कहते हैं ना कि
आदमी किसी से ना हारे , अपनी औलाद से हारता है ।
भगवान ने राधा को प्यार करने वाला पति और भरा- पूरा परिवार दिया । उसका लाड़ करने वाला भाई मायके में उसकी राह देखता , बाबा तो चल बसे पर माँ- बापू अपनी राधा रानी को सर आँखों पर बैठाते हैं ।
लेखिका : करुणा मलिक