आज फिर, वो मेरे लिए नोजपिन उठाकर ले आये। नोजपिन मुझे बिल्कुल पसंद नही है पर वो समझते ही नही! शादी के बाद ये मेरा दूसरा जन्मदिन है और इस बार भी वो मेरे लिए नोजपिन ले आये। पिछली बार भी यही किया था और मैंने बेमन से मुस्कुराते हुए, “थैंक यू ” कहकर रख ली थी लेकिन एक बार भी नही पहनी। अब तक तो उन्हें समझ जाना चाहिए था कि मुझे पसंद नही है ये । बस… बिना सोचे समझे ले आये है। हो न हो, ये जरूर मुझपर अपनी पसंद थोपना चाहते है। लेकिन मैं बिल्कुल नही पहनूँगी। आखिर क्यूँ पहनूँ मैं! एक तो पहले ही पकोड़े जैसी नाक है उसपर नोजपिन पहन ली तो लगेगा जैसे पकोड़े तलते समय एक बूँद बेसन ज्यादा गिर गया और पकोड़े के ऊपर यूँ ही फ़ुल्ली सी निकल आई हो।
हाँ , मानती हूँ कि मेरे मायके में अम्मा, माँ और काकी सभी तो पहनते थे नोजपिन, और मुझे भी नाक बिंदवाने के लिए कहती रहती थी मगर शादी के समय ही मैंने कह दिया कि, “लड़का आपलोगों की पसंद का है न! और मैंने हाँ भी कह दी है अब ये नोजपिन का प्रैशर तो मुझे मत दो प्लीज़!”
“मैं एक काम करती हूँ इन्हें मना कर देती हूँ कि मुझे ये नही चाहिए। अरेंज मैरिज की है इसका मतलब ये तो नही कि जो पसन्द नही उसपर भी कोम्प्रोमाईज़ करो। ” मन ही मन बड़बड़ाकर और ठानकर मैं हॉल की तरफ मुड़ ही रही थी कि ये किचन में आ गए और मेरे कुछ कहने से पहले ही कहने लगे…
“ये तस्वीर देख रही हो! मेरी माँ की है। नानी ने बताया है कि इन्हें नाक में नथ पहनने का बहुत शौक था।
मैंने तस्वीर देखी । वाकई एक बहुत तीखे तीखे , पतले नैन नक्श वाली सुंदर सी स्त्री जो कि अगर आज जिंदा होती तो मेरी सास होती और .. शायद एक स्त्री होने के कारण मुझे कहीं न कहीं उनसे थोड़ी जलन हो जाती । “बहुत सुंदर है।” मैंने अपनी पति के हाथ मे थमी तस्वीर को देखकर कहा।
“हाँ, वो बहुत सुंदर थी। ये उनकी शादी की तस्वीर है जब उन्होंने पहली बार नथ पहनी होगी। जब मेरा जन्म हुआ और मैं बड़ा हुआ , या जब समझ आई तबसे मैंने मेरी माँ को नथ पहने कभी नही देखा था। पर इतना याद है कि उनके शरीर पर कहीं हाथ पर तो कहीं गले पर किसी न किसी चोट के निशान रोज होते। एक रात , जब दीवाली पर पूरा घर दुल्हन की तरह सजाया था माँ ने , तब खुद भी नथ पहनकर पूजा करने आई। मैं माँ की सुंदरता को देखकर बहुत खुश हो रहा था।
अचानक बाबा वहाँ आये और.. माँ को मारने लगे। मैं बहुत डर गया और दूर कोने में दुबककर सब देखने को और कुछ न कर पाने को मजबूर था । बाबा ने माँ को बहुत मारा और इतना मारा कि माँ अस्पताल पहुँच गई। उस दिन के बाद से बाबा कहीं नही दिखे। लोग कहने लगे कि बाबा पुलिस के डर से भाग गए है। मैं सात साल का था। बिस्तर पर पड़ी माँ को कभी बालो पर कभी माथे पर सहलाता और निशब्द सी माँ को गले लगाकर सो जाता। चार साल तक साँसों से संघर्ष करने के बाद एक दिन माँ सच मे शांत हो गई। माँ जा चुकी थी।
फिर नानी के साथ रहकर छोटी उम्र में ही काम धंधा सम्भालना शुरू कर दिया। दुनिया को जितना समझ पाया तब यही निष्कर्ष निकाला कि मेरी माँ की चाहतों, ख्वाहिशों और पसन्द का आसमान मेरे पिता की रजामंदी के पिंजरे से बहुत दूर था। जब नानी भी छोड़कर चली गई तब उनके बिस्तर के नीचे और अलमारी में भी बहुत सारी लाल चूड़ियां मिली मैं समझ गया कि उन्हें चूड़ियों का शौक था । बस अक्सर यही सोचा करता कि मेरे जीवन की इन दो महिलाओं ने अपने ये पसन्द छिपाकर क्यूँ रखी! मैंने तय किया कि मैं अपनी जीवनसंगिनी को ये नही करने दूँगा। शायद मेरे अनाकर्षक व्यक्तित्व की वजह से तुम मुझसे ज्यादा बात नही करती लेकिन तुम्हे मेरा नोजपिन देने का अभिप्राय इतना ही था कि मैं अपने मन के भावों को शब्द नही दे पा रहा था। जो समझ आया वही कर दिया। अगर तुम्हें नही पसन्द तो….!”
“नही नही मुझे बहुत पसंद है। (पता नही मुझे क्या हुआ। कैसे मेरे मुँह से ये शब्द निकल गए। अभी कुछ देर पहले तो मैं चिढ़ रही थी लेकिन इस पल मेरे मन में इनके लिए बहुत सारा प्रेम उमड़ पड़ा। अपनी किस्मत पर मान हो रहा था। )
“लेकिन मुझे गौर से देखते तो पता चलता कि नाक भी बिंदवानी होती है न! तो बताइए , कब ले जा रहे है मुझे नाक बिंदवाने ! और थोड़ी लाल चूड़ियां भी खरीदनी है, बेहद पसंद है मुझे।)
(मैं एकदम से समझ गई कि ये अपनी पसंद मुझपर थोप नही रहे , बल्कि मुझसे मेरी पसंद जानना चाहते है। दो साल के इस पति पत्नी के रिश्ते में जो खालीपन था उसे भरने के लिए मैंने आगे बढ़कर इन्हें गले लगा लिया।)
स्वरचित
मनप्रीत मखीजा