शिकवा – कमलेश राणा

राधिका जी और नितिन के विवाह को 40 वर्ष बीत चुके हैं,,,इन वर्षों में जीवन के बहुत से रंग देखे हैं दोनों ने साथ-साथ,,

विवाह के एक वर्ष बाद ही ईश्वर की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई,,इस पीढ़ी का पहला बेटा था वो,,सारे परिवार की आँखों का तारा,,

संयुक्त परिवार था,,हाथों ही हाथों में रहता,,राधिका जी तो उसे गोद में लेने के लिए भी तरस जाती,,,पर इतना प्यार देखकर वो भी खुश रहतीं,,दादी-बाबा तो मालिश से लेकर नहलाने,सुलाने तक का सारा काम खुद ही करते,,उसकी बालसुलभ चेष्टाएं देख-देख कर फूले नहीं समाते,,

2साल  बाद सासू माँ कहने लगी,,अब तो शेखर को खेलने के लिए एक साथी की जरूरत है,,राधिका जी सुनकर मुस्कुरा देतीं,,,

एक दिन उन्हें पता चला कि एक नया जीवन उनके गर्भ में अंगड़ाई ले रहा है,,,उनको इस बात की चिंता थी कि पता नहीं शेखर की प्रतिक्रिया कैसी होगी,,,कई बार बच्चों को नये भाई-बहन को स्वीकारने में वक़्त लगता है,,,

राधिका जी ने शेखर को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू कर दिया,,वो पेट पर शेखर का हाथ रखकर बतातीं ,,,कि अब उस का भाई या बहन आने वाला है,,,

शेखर बहुत खुश था,,रोज पूछता,,कब आयेगा मेरा भाई या बहन,,,आखिर एक दिन उसकी दादी ने बताया,,तुम्हारी बहन आई है,, प्यारी सी गुड़िया,,

शेखर दौड़कर गया अपनी माँ के पास,,,पर यह क्या,,माँ के पास तो गुड़िया लेटी हुई थी,,माँ ने बड़े प्यार से बुलाया,,पर वो दरवाजे पर ही खड़ा रहा,,आज उसे लग रहा था जैसे उसका एकाधिकार छिन गया हो,,

राधिका जी,,,बेटा ,वहां क्यूँ खड़ा है,,यहाँ आ न मेरे पास,,

नहीं,पहले इस गुड़िया को घूरे पर फेंक कर आओ,,तब आऊंगा,,


बेटा,वो बहन है आपकी,,

तो फिर अब ये यहीं रहेगी?,,कहीं नहीं जायेगी?,,तो फिर ये हमारे पापा से ही पापा कहेगी क्या??

अनगिनत सवाल थे बच्चे के मन में,,,लेकिन माँ का प्यार बंटने का दर्द साफ नजर आ रहा था,,

उसके 5 साल बाद एक बेटा और हुआ राधिका जी को,,वक़्त के साथ बच्चे बड़े होने लगे,,पर एक बात कभी नहीं बदली,,

माँ का प्यार ज्यादा पाने की कोशिश,,हमेशा लड़ते,,मम्मी मुझे प्यार नहीं करतीं,,तुम्हें ही करतीं हैं,,

छोटे बच्चे को स्वाभाविक रूप से ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है,,तो बस वही लाड़ला है आपका तो,,

छोटा कहता ,,बड़े पूत की बात कैसे टाल सकती हो,वह तो दिल का टुकड़ा है,,

बेटी कहती ,,बेटे ही  ज्यादा प्यारे हैं बस,,,

राधिका जी इस प्यार भरी लड़ाई को देखकर मन ही मन खुश होतीं और ईश्वर से प्रार्थना करतीं,,हे प्रभु!!माँ के प्यार के  लिए इनके मन हमेशा इसी तरह लालायित रहें,,,

समय का चक्र चलता रहा,,दोंनो बेटों की अच्छी जॉब लग गई,,बेटी शादी हो कर अपने घर चली गई,,

दो से शुरु हुई ज़िंदगी फिर दो में ही सिमट कर रह गई,,अब पति-पत्नी के बीच ज्यादा बातें ही नहीं थीं करने को,,मोबाईल,टीवी,और पुरानी यादों में ही वक़्त गुजरता ,,,

पेपर में पढ़कर या किसी से माँ बाप को नज़रअंदाज़ करने की खबरें सुनकर मन आशंकाओं से भर जाता,,,

नितिन कहते,,तुम फालतू की बातें बहुत सोचती हो,,हमारे बच्चे बहुत अच्छे हैं,,,

इधर कुछ दिनों से राधिका जी की नज़र धुंधली होती जा रही थी,,चेकअप कराया तो पता चला कि मोतियाबिंद है,,operation कराना पड़ेगा,,


जब दोनों बच्चों को पता चला तो,,शेखर ने तुरंत डॉक्टर से appointment ले लिया,,पर कोरोना फैल गया तो कैन्सिल करना पड़ा,,

कुछ दिन बाद विचार किया तो छोटा बेटा बोला,,ऑपरेशन करा के मेरे पास आ जाना,,,

राधिका जी ने सोचा कि शेखर को बार-बार ऑफ़िस से छुट्टी लेनी पड़ेगी,,परेशान होगा,,इससे अच्छा है कि इन्दौर में ही करवा लूँ,,जानी -पहचानी जगह है,,अकेली भी जा सकती हूँ,,,

शेखर को बताया तो बड़ा रूखा सा जवाब दिया,,जो आपको ठीक लगे,,वो करो,,उसके स्वर से नाराजगी साफ झलक रही थी,,,

छोटे बेटे की 3दिन की छुट्टी थीं,,निर्णय हुआ कि तभी ऑपरेशन करवा लेते हैं,,उसके बाद बहू रुक जायेगी,,

खैर ऑपरेशन हो गया पर,,

शेखर ने कोई बात नहीं की,,हालाँकि सारी व्यवस्था उसी ने वहां बैठे-बैठे कर दी थी,,operation का सारा खर्च भी उसके कार्ड से ही हुआ,,,

4 दिन बाद बोला,,,आखिर कर ली न आपने अपने मन की,,मैं इतने दिनों से भागदौड कर रहा था,,मेरे पास क्यों नहीं आईं,,हम क्या आपकी देखभाल नहीं करते,,बहुत नाराज था वो,,

पर आज उसका इस तरह से शिकवा करना राधिका जी के मन को बहुत सुकून दे रहा था,,उनका मनमयूर  खुशी से झूम रहा था कि,,

आज वो बच्चे जो कभी उनके प्यार के लिए लड़ते थे,,उनकी सेवा करने के लिए लड़ रहे हैं कि कौन ज्यादा करेगा,,

हे प्रभु!हर माँ बाप को ऐसी सन्तान देना

कमलेश राणा

ग्वालियर

 

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