मायावी यंत्र   –     बालेश्वर गुप्ता

#जादुई_दुनिया 

मानव भी एक अजीब प्राणी है, सब कुछ प्राप्त होने पर भी, उसकी कामनाओं की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती. मेरे ही मन मस्तिष्क में निवृत होने पर ऐसे ही विचार आने लगे आखिर केकई राम को बनवास भिजवाने का षडयंत्र कैसे रच पायी, उसके मन में उस समय क्या था, शकुनी ने आखिर अपनी बहन का परिवार ही महाभारत युद्ध में समाप्त करा दिया, तब उसकी सोच क्या थी, राजकुमार सिद्धार्थ आखिर अपने नवजात शिशु पुत्र एवं पत्नि को छोड़ क्यूँ बैरागी हो गये? ऐसे ही प्रश्नो को सोचते सोचते न जाने कब आंख लग गयी, पता ही नहीं चला.

     अचानक एक दिव्य वाणी सुनाई दी, पुत्र उठो, देखो तो मैं तुम्हारे लिये क्या लाया हूँ? बिल्कुल मैं जानता हूं तुम्हें इसी चीज़ की आवश्यकता थी, अब देर ना करो, उठो. मै हड़बड़ा कर उठ कर देखता हूं कि मेरे सामने एक सफेद परिवेश और सफेद दाड़ी वाला एक दिव्य पुरुष खड़ा है, मैं आश्चर्य के साथ उस दिव्य पुरुष की सम्मोहक छवि को निहारता ही रह गया. उस दिव्य पुरुष ने मेरे सर पर आशीर्वाद रूप में हाथ फिराते हुए कहा मै देवदूत हूँ. ईश्वर ने आज तुम्हें ये यंत्र भेजा है, इससे तुम पुत्र अपनी समस्त जिज्ञासाये शांत कर सकते हो. यह यंत्र तुम्हारे सब प्रश्नो के उत्तर उन्ही व्यक्तियों से दिलवायेगा जिनके विषय में तुम जानना चाहते हो.

     मै तो कुछ बोल ही नही पाया कि देवदूत अदृश्य हो गये. मैंने झटपट उठकर उस जादुई यंत्र को उठाकर अपने समक्ष रख लिया. और बोला आखिर केकई ने राम को बनवास भेजने की हिम्मत कैसे जुटाई? मेरे बोलते ही एक महिला की आवाज सुनाई देने लगती है. मैं केकई हूँ पुत्र, आज सदियों बाद किसी ने मुझे याद किया है. मेरी व्यथा किसी ने कभी समझी ही नहीं, इतिहास का कलंक बन कर रह गयी मैं.


   पुत्र, बताओ तो वो केकई जो अपने पति के साथ युद्ध के मैदान में भी जाती हो, अपनी पुत्र वधु सीता को अपना सबसे भव्य कनक महल तक भेंट स्वरुप दे देती हो, जो राम को अपने से अधिक प्यार करती हो, उसे फिर भी वन में क्यों भेजा, यही जानना चाहते हो ना, पुत्र बताओ तो यदि राम वनों को नहीं जाते तो रावण जैसे अनेक राक्षसों से इस भूमि को कौन मुक्त कराता? राष्ट्र हित में मैंने अपने निज की बलि देकर अपने को इतिहास का कलंक बनना स्वीकार किया पुत्र.

        केकई माँ विदा हो गयी तो मेरे कानो में उस यंत्र से शकुनी की आवाज आने लगी. शकुनी बोले वत्स मैंने कभी दुर्योधन का बुरा नहीं सोचा था, मेरे लिये घृणा के पात्र मेरे ही बहनोई धृतराष्ट्र थे जिन्होंने अंधे होते हुए भी मेरी सुकुमारी बहन गांधारी का जीवन को अंधेरे कूप में धकेल दिया था, मेरी घृणा के पात्र पांडव पुत्र थे, जिनके रहते दुर्योधन हस्तिनापुर पर निष्कंटक शासन नहीं कर सकता था. मै सोचता था पांडवों की सैनिक क्षमता उनके बनवास और अज्ञात वास में इतनी क्षीण हो गयी होगी कि दुर्योधन उन्हें आसानी से पराजित कर देगा, पर पता नहीं ये कृष्ण कहाँ से अवतरित हो गया कि सबकुछ तबाह करा दिया. अपनी कहानी सुना शकुनी भी विदा हुए.

     तभी यंत्र से एक नयी आवाज  गूंजने लगी, पुत्र जब संसार में सब और दुःख ही दुःख हो, सबको मरना ही हो तब दुनिया को शांति के पल ढूढ़ने में सहायता करने को किसी को तो आना ही चाहिये था, मैंने तब अपने को चुना था पुत्र, हाँ, मैं सिद्धार्थ ही बोल रहा हूँ, मैंने ऐसी ही सोच के आगे अपने समस्त सुख साधन को छोड़ ज्ञान की खोज में मानवता की सेवा के लिये अपने को समर्पित कर दिया. मै आभारी हूं विश्व का मेरी सेवा के बदले उन्होंने मुझे भगवान बुद्ध का दर्जा दिया.

     इतने में ही लगा कोई मुझे झिंझोड कर जगा रहा है ये मेरी पत्नी थी, जो कह रही थी कि आज उठना नहीं है, क्या बड़ बड़ा रहे हो. अचानक इस आक्रमण से मैं उठ गया, तब पता लगा कि सब कुछ नींद में ही था, कोई यंत्र मेरे सामने नहीं था.

         पर मेरे प्रश्नों के उत्तर तो मिले थे, यंत्र से ही मिले थे तो वो देव दूत भी सपने की बात थी, मन नहीं मान रहा था, लेकिन मेरी इन बातो का यकीन करता कौन??

    बालेश्वर गुप्ता

              पुणे (महाराष्ट्र)

मौलिक, अप्रकाशित

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