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कहते हैं समय बहुत बलवान होता है , ये कब कहां कैसे रंग दिखलाए पता ही नहीं चलता, इसलिए बहुत बोलना अच्छा नहीं होता । जहां रोज की सुबह तनाव भरा रहता है वहीं आज थोड़ा रिलेक्स मुड़ में उठी और सोचने लगी, क्या सचमुच रिश्तों में दरार आ जाए तो जीना मुश्किल हो जाता है?
शायद हां,इसी उहापोह में सीधे किचन का काम समेट भाई के लिए नाश्ता बनाने लगी,ये सोचते हुए कि देखो न कुछ भी तो नहीं बदला ,वहीं दिनचर्या,वही लोग और वहीं काम ,सब अपनी रफ़्तार से चल रहा।
ऐसी दुविधा भरी स्थिति में भला मन को समझने वाला कौन था ,कोई नही वर्षों से जिस दर्द को वो सीने में दफन करके जी रही थी उसे कोई भांप तक नहीं पाया।कहने की बात है कि शादी हो जाए तो पति सबसे करीब होता है दिल के ,पर ऐसा कुछ नही उसके हिसाब से वो भी तभी अपना प्यार जताता है जब अपनी जरूरत होती है।और ये वही नहीं नब्बे प्रतिशत महिलाओं का मानना यही है।
वो विरले ही होते होंगे जो पत्नी की हर भावनाओं को समझते होंगे।
यही तो है जरा सी गलत फहमी के कारण आई रिश्तों में दरार ने सब कुछ अस्त व्यस्त करके रख दिया।
और वो लाख चाहकर भी दूर नहीं कर पाई जिसका सीधा असर उसके मन पर पड़ा।
वो जिम्मेदारियों के लापरवाह तो नहीं हुई पर मनोदशा दिन पर दिन बिगड़ने लगी।
जिसे बच्चे और पति दोनों समझ रहे पर चुप है कुछ कर जो नहीं सकते। उनके वश में जो कुछ भी नहीं है।
और ये तो सभी को पता है कि रिश्तों में खराबी आती है तो उन्हीं पर ज्यादा असर पड़ता है जो खून के होते हैं उनसे जुड़े लोगों को पड़ता है पर वक्त के साथ यादों की तस्वीर धुंधली हो जाती है।
पर कहते हैं ना वक्त बड़ा बलवान होता है दूसरी बात धैर्य और विश्वास में बड़ी ताकत होती है।
बस यही तो उसने किया वर्षों उस दर्द की टीस को झेलती रही जो उसके अपनों से उसे मिला।और अपने नियमित कार्यों को करती रही ।
आज भी वो सब काम निपटा घर से निकल आटो स्टैंड पर खड़ी थी।कि शिव ( उसके मायके में घर के पास रहता है मुंह बोला भाई,जिससे उसे हर रोज मां और भाई की खबर मिलती रहती थी)से उसकी मुलाकात हो गई,तो उसने बताया कि उसका भाई एडमिट है उसे दोबारा हार्ट अटैक आया है।
तो ये फूट फूट कर वहीं रोने लगी , और बोली अगर हो सके तो मां से बात करा दो।
तो इसने फोन लगाकर इसे दे दिया,फिर क्या था आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी।और बोली मां तुम कैसे हमें भूल गई क्या इतने दिनों तुमको मेरी याद नहीं आई।
तो मां ने बताया तुम्हारे भाभी को अटैक आया है हम सब हास्पिटल में है।
इस पर इसने इतना ही कहा –
कहो तो आकर देख लूं आखिर ऐसा भी क्या कि दुख में भी शामिल नहीं हो सकते।
तो वो बोली ठीक है पूछकर बताते हैं,और फिर थोड़ी देर बाद रिप्लाई आया कि आ जाओ।
फिर क्या था आफिस छोड़कर वो हास्पिटल पहुंची और गले लग के मां भाई के खूब रोई।
फिर वो रोज देखने जाने लगी आज कल उसका जी थोड़ा हल्का रहने लगा। जिसे घर वालों ने भी महसूस किया।
क्योंकि वर्षो बाद उसके चेहरे पे ख़ुशी थी ,वो खुशी जो अपनों को खोकर कहीं गुम हो गई थी।
भले पहले जैसे नहीं पर इस बीमारी ने फिर से सबको छोड़ दिया।
भले पहले जैसे नहीं पर बिखरे रिश्ते कहीं न कहीं जुड़ ही गए । तभी तो भाई के लिए नाश्ता बनाकर ले जा रही।सच ये नाश्ता नहीं वो सुकून है जो उसके चेहरे से साफ दिख रहा।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव