मां की देखभाल कठिन क्यों? – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

अरे दिव्या मुन्ना कब से रो रहा है? कानों में रुई डाल रखा है क्या? पता नहीं कैसी पत्थर दिल मां है, जिसको बच्चे के रोने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, हेमा जी ने अपनी बहू दिव्या से कहा 

इतने में से रसोई से दिव्या अपनी हाथों को अपने कपड़े से पोंछती हुई बाहर आई और झूले पर से अपने एक महीने के बेटे को गोद में उठाया और पुचकारते हुए अपने कमरे में चली गई, उसने पहले मुन्ने को दूध पिलाया और फिर उसे सुलाते सुलाते खुद भी सो गई। वह गहरी नींद में थी, तभी हेमा जी की आवाज़ से उसकी नींद खुली, सामने देखा

तो हेमा जी उसके सामने खड़ी उसे देखे जा रही है, उसकी आंखें खुलती ही हेमा जी ने कहा, क्या दिव्या सोने का कोई मौका तुमसे छूटता नहीं? अब तो मुन्ने का बहाना मिल गया,

तुम तो ऐसा बर्ताव करती हो जैसे अकेले तुमने ही इस दुनिया में बच्चा पैदा किया हो? अरे बच्चा जब सोए मां को तभी सारे काम निपटा लेने चाहिए, यहां तो जब बच्चा सोया मां भी सो गई, बाकी घर के काम जाए भाड़ में 

दिव्या:  मम्मी! घर के सारे काम निपटा कर ही आई थी कमरे में

 तभी तो मुन्ने को भी संभालते नहीं आ पा रही थी, खाना भी बन गया है, आपने खाया या नहीं? 

हेमा जी:   अच्छा अब मैं क्या सपना देखूं कि मेरी बहू ने खाना बना दिया है लेकर खा लो और तुम बताओ, जब खाना बन ही गया था तो परोस भी देती, इसमें कौन से 10 घंटे लग जाते हैं?

दिव्या:   मम्मी! आपने खुद देखा था ना कि मुन्ना कितना रो रहा था? ऐसे में मेरा पूरा ध्यान उसी पर था, पर आप एक बार रसोई में जाकर देखा तो आती? 

हेमा जी:  अरे मुन्ना बच्चा है, थोड़ा बहुत तो रोएगा ही, इसमें इतना उतावला होने की कोई ज़रूरत नहीं है, मैंने भी अकेले ही पाला है

मुन्ने के पापा को, मुझे मत सिखाओ, पूरा ध्यान मुन्ने पर था तो जाहिर है खाने का स्वाद तो होगा नहीं, यह आजकल की छुई मुई लड़कियां, जितनी सुविधाएं उतने नखरे, बच्चों को रोने नहीं देती, छुईमुई उसे भी बना देती है, यही सब बड़बड़ाती हुई हेमा जी वहां से चली गई। 

इधर दिव्या सोचने लगी, आखिर यह चाहती क्या है? काम करते हुए मुन्ने को संभालने में जो देर हो जाए तो पत्थर दिल मां, जो मुन्ने को रोने ना दो तो कहेंगी कि बच्चों को रोने ही नहीं देती 

उसके बाद, अब बात आई रात के खाना बनाने की तैयारी की तो हेमा जी ने कहा, दिव्या! रोटी और लौकी की सब्जी बना लेना, तो दिव्या ने कहा, मम्मी मुन्ना अभी-अभी सोकर उठा है, तो आप इसके पास बैठिए, मैं फटाफट बना लेती हूं 

हेमा जी:  अरे यह कितनी देर जागेगा भला? सो जाएगा तुरंत फिर से! तब चली जाना, मैं अभी अपनी फेवरेट सीरियल देख रही हूं,

मुझे तंग मत करो! फिर थोड़ी देर में दिव्या का पति अक्षय घर आ जाता है, मुन्ना अभी भी जगा ही था, अक्षय जैसे ही कमरे में आया दिव्या कहती है, आप आ गए? आप जाकर फ्रेश हो जाइए, मैं आपके लिए कॉफी बनाकर लाती हूं,

 अक्षय:  मेरे सर में काफी दर्द है, जब तक मैं फ्रेश होता हूं तुम कॉफी बनाकर ले आओ 

दिव्या:  पर जब तक आप आकर मुन्ने के पास बैठोगे नहीं, मैं कैसे जाऊंगी?

 अक्षय:  झूले पर सुला कर चली जाओ, थोड़ी देर में सो जाएगा 

दिव्या:  कब से सुलाने की ही तो कोशिश कर रही हूं इसे, पर शायद इसकी नींद पूरी हो गई है, तो सो ही नहीं रहा, झूले पर लिटाते ही रो रहा है, पर बेड पर आराम से खेल रहा है, खाना बनाना भी बाकी है अभी 

अक्षय: हद करती हो तुम भी! अभी-अभी थका हारा ऑफिस से आया हूं और आकर थोड़ा चैन की सांस भी नहीं ले सकता, मम्मी को ही थमा देती इसे, अब खाना बनाना शुरू करोगी तो खाना खाऊंगा कब? एक बच्चा नहीं संभाला जाता तुमसे, या फिर यूं कह लो इसका नाम लेकर काम चोरी करना चाहती हो? 

दिव्या: यह कैसी बातें कर रहे हैं आप? जब इसे मम्मी को संभालने को कहा था, मम्मी जी को अपनी सीरियल नहीं छोड़नी थी, सुबह से इसे रुला रुला कर घर के सारे काम करती हूं, ऊपर से रात भर भी जगती हूं, आपकी नींद में कोई खलन ना पड़े मैं इसे रोने नहीं देती, उधर मम्मी ना तो इसको संभालती है ना ही मेरी कोई मदद करती है,

मैं भी इंसान हूं, मैं भी थकती हूं, इसकी डिलीवरी के कुछ दिनों बाद में ही मैं काम पर लग गई, पूरे दिन आराम के लिए तरसती हूं, पर आप लोगों को मेरी यह हालत नहीं दिखती, दिखती है तो बस खुद की तकलीफे, एक बच्चे को जन्म देने के बाद एक औरत के सिर्फ शरीर में ही नहीं, मन में भी काफी बदलाव आते हैं, जो बस प्यार और देखभाल से ही ठीक हो सकती है,

पर यहां तो मुझे लगता है मैं इंसानों के बीच ही नहीं रहती, दिव्या यह सब कह ही रही थी, तभी पीछे से हेमा जी आकर कहती है, वाह दिव्या वाह, पूरे दिन सोने के बाद भी तुम्हारी ऐसी बातें सुनकर मैं तो हैरान हूं। पता है बेटा? यह तेरे सामने कहानी बना रही है, ना तो यह मुन्ने का ठीक तरह से ख्याल रखती है और ना ही हमारा, बस एक चीज़ का बराबर ख्याल रखती है, वह है अपनी नींद,

इसका बस चले तो जितनी देर मुन्ना सोए उतनी देर यह भी सो ले, बाकी उसे तो पता ही है मैं तो हूं ही

अक्षय:   और अभी मेरा इंतजार कर रही थी शायद, के कब मैं मुन्ने को संभालू और यह सो जाए, तभी मैं कहूं अब तक खाना क्यों नहीं बना?

अपनी सास और पति की ऐसी बातें सुनकर दिव्या तो दंग रह जाती है, पर अब उसने ठान लिया था कि इन लोगों से बहस नहीं करेगी, क्योंकि उसका कोई फायदा नहीं, जिन लोगों को उसकी परवाह नहीं, अब उनके लिए वह अपने बच्चे को नहीं रुलाएगी, अब वह उनके लिए आराम से समझौता नहीं करेगी, पत्थर दिल मां कहा था ना मुझे?

अब वह सच में पत्थर दिल बनकर दिखाएंगी, पर पत्थर दिल मां नहीं, बहू और पत्नी, उसी रात मुन्ना रो रहा था, तो दिव्या ने उसे जोर-जोर से लोरी सुनाना शुरू कर दिया, जिससे अक्षय की नींद टूट गई, ऐसा कई बार हुआ तो अक्षय को हॉल में जाकर सोना पड़ा, इससे उसकी नींद सही से नहीं हो पाई और अगले दिन उसे सुस्ती छाई रही। फिर सुबह दिव्या ने अपने लिए दूध और ओट्स बनाया

और खाकर कमरे में चली गई। हेमा जी ने जब पूछा तो उसने कहा, मैं तो सो गई थी, अब पूरा दिन सोना ही है तो उसकी शुरुआत कर दी मैंने, आप अपना देख लो और हां इनके लिए भी नाश्ता बना देना, क्योंकि मुझसे घर और बच्चा दोनों नहीं संभाले जाते, तो सोचा बच्चे को ही अच्छे से संभाल लूं 

हेमा जी:   अच्छा अब समझ रही हूं, तुम्हें क्या लगता है? यह सब करके तुम्हारी दाल गल जाएगी? सोना है ना तुम्हे, तुम सोओ और मुन्ने को भी अकेले ही संभालो और अपना काम भी अकेले ही करो, देखना दो दिनों में हमारी ज़रूरत ना पड़े तो कहना, हमें तुम्हरी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि मेरे हाथ पैर अभी भी सलामत है

भगवान की कृपा से, पर तुम्हें हमारी ज़रूरत तो पड़ेगी ही पड़ेगी, तब आना, यह कहकर हेमा जी वहां से चली गई, इधर अक्षय रात को सो नहीं पाता, उधर हेमा जी भी घर के कामों में चिड़चिड़ी होती जा रही थी। एक दिन दिव्या मुन्ने को टीका दिलाने ले गई थी, तभी मां बेटे मिलकर आपस में बात करते हैं, जहां अक्षय कहता है, मम्मी हमने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है। पर सच बताऊं,

जो आज अगर दिव्या ऐसे कदम न उठाती, मुझे तो कभी पता ही नहीं चलता मुन्ना रात में इतनी बार जागाता है, मम्मी वह रात भर मुन्ने को ऐसे संभालती है ताकि मेरी नींद खराब ना हो और सुबह मेरे उठने से पहले ही उठकर मेरा नाश्ता भी तैयार कर देती है। 

हेमा जी:  हां मेरे भी खाने का समय उसे पता होता है और अकेले मुन्ने को संभालते हुए ही घर के सारे काम भी कर लेती है बिना किसी शिकायत के, फिर भी मैं उसके ऊपर चिल्लाते रहती हूं, पता है बेटा मैंने उससे कहा था

कि हमें तुम्हारी ज़रूरत कभी नहीं पड़ेगी, पर तुम्हें हमारी ज़रूरत ज़रूर पड़ेगी, पर एक मां होकर भी मैं यह कैसे भूल गई के मां को कोई भी हरा नहीं सकता, डिलीवरी के बाद हमें सच में उसका ध्यान रखना चाहिए था, पता है बेटा तेरी दादी ने भी तेरे वक्त मेरे साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया था, शायद उसी का बदला मैं दिव्या से लेने चली थी, एक औरत अपने पर हुए

हर अत्याचार को भूल जाती है, पर आपके जचकी के समय हुए अत्याचार वह आमरण याद रखती है, यह बात मुझसे बेहतर और कौन जान सकता है भला? पर देखना फिर भी मैंने वही किया, खैर हम दिव्या के पुराने दिन तो उसे वापस नहीं कर सकते, पर आने वाले दिनों को तो बेहतर बना सकते हैं ना? 

फिर दिव्या जब वापस आती है, हेमा जी उसके गोद से मुन्ने को लेकर कहती है, दिव्या बहुत अकेले संभाल लिया इसे, अब तुम आराम करो, हमें अपनी गलती का एहसास हो चुका है और अब तुम्हें हम कभी नहीं सताएंगे,

बच्चा अकेला तुम्हारा नहीं है जो रात को अकेले तुम ही जागोगी, इसका पापा भी जागेगा और उसकी दादी भी इसको संभालेगी, जो ना संभाल सकी तो घर के काम कर लेगी, पर इसकी मां को अकेला नहीं छोड़ेगी, माफ कर दो दिव्या हमें 

अक्षय:  हां दिव्या! मम्मी सही कह रही है, अब किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं होगी! क्योंकि हम सभी एक दूसरे का सहारा बनेंगे 

दोस्तों, हमें लगता है, बच्चा हो गया, मां घर आ गई, घाव भर गए, सब कुछ सामान्य हो गया, पर ऐसा नहीं होता, 9 महीने एक औरत का सिर्फ शारीरिक बदलाव नहीं होता, मानसिक भी होता है, एक बच्चे को जन्म देने में वह मौत से लड़कर वापस आती है, ऐसे में वह काफी कमजोर भी हो जाती है, उसकी मानसिक अवस्था भी बदल जाती है,

तो ऐसे में उसे आराम और देखभाल की सख्त ज़रूरत होती है, जो उसे आगे के दिनों के लिए मजबूत बनाएगी, जो औरत अपने पूरे जीवन काल में सबका ध्यान रखती है, क्या कुछ महीने उसका ध्यान रखना इतना कठिन है? क्या वह इसकी हकदार नहीं है? क्यों इस वक्त सभी उसके लिए पत्थर दिल बन जाते है? सोचिएगा ज़रूर 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#पत्थर दिल

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