आज सुबह से ही बारिश की टिप-टिप लगी थी । सुहास को न जाने क्यों बारिश के दिन मालिनी की याद आ ही जाती थी । मालिनी , उसकी बेस्ट फ़्रेंड होने के साथ- साथ उसकी छोटी चचेरी बहन भी थी । पर तीन सालों से हालात ऐसे बन गए थे कि आज सुहास के पापा और चाचा में किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं था । सुहास को अच्छी तरह से याद है कि उस दिन भी बारिश की टिप-टिप लगी थी जब चाचा ऊपर से दौड़ते हुए नीचे आए थे और उन्होंने सुहास की माँ को पुकारते हुए कहा था—-
भाभी ….भाभी …. जयपुर से फ़ोन आया था….आपने क्या कहा उन्हें ? आपको बिल्कुल भी शर्म नहीं आई । मैंने तो कभी सुहास और मालिनी में भेदभाव नहीं किया और आपने घर की बेटी का ही रिश्ता तुड़वा दिया ? माँ ! देख लो अपनी बहू की करतूत….
दना ! देवेंद्र क्या कह रहा है ? जल्दी बता बेटा , क्या हुआ? हे मेरे रामजी … कृपा कर ।
माँ…. सुहास के पापा को आने दो , अब तो उनके सामने ही बात करूँगी । इल्जाम लगाने से पहले पूछ तो लिया होता कि मेरी उनसे क्या बातचीत हुई । अरे …. देवेंद्र कैसे भूल गया कि रिश्ता भी मैंने ही बताया था । अगर मेरे मन में कोई दुर्भाव होता तो मैं क्यों रिश्ता बताती । आजकल का तो ज़माना ही उल्टा है, भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा ।
मैं सब समझता हूँ भाभी ….. दरअसल जब सुहास की कुंडली नहीं मिली तब आपने मालिनी की बात चलाने को कहा था ।
हाँ…. तो ग़लत क्या था ? मेरी सहेली का लड़का बहुत अच्छा है… सुहास की कुंडली नहीं मिली तो मैंने सोचा कि इतना बढ़िया घर – वर हाथ से क्यों जाने दें और मैंने मालिनी के लिए तुम्हें बात चलाने को कह दिया ।
तो अब पंद्रह दिन के बाद उन्हें यह कहने की क्या ज़रूरत थी कि मालिनी का मामा ग़बन के आरोप में जेल में पड़ा सड़ रहा है । वाह भाभी! ये तो वही बात हो गई कि पुचकार कर ज़ोरदार थप्पड़ भी मार दिया । रिश्ता करवाने का ढोंग करके बात भी नहीं बढ़ने दी ।
चुप कर देवेंद्र…. मुझे पूछने दे सारी बात …. बता वंदना , कब जयपुर से फ़ोन आया था और तेरी क्या बात हुई थी ?
माँ…. कल रात को दस बजे के क़रीब मीनाक्षी का फ़ोन आया था । सुहास के पापा भी मेरे साथ ही थे और उसने कहा—-
दना , तेरी देवरानी का भाई ग़बन के मामले में जेल में बंद है क्या ? मेरी ननद मालिनी के ननिहाल के पड़ोस में ही रहती है । आज उसी का फ़ोन आया था कि कैसे परिवार में रिश्ता करने जा रही हो ? अभी कोई रस्म तो निभाई नहीं गई…. सोच लो ।
अब बताओ माँ, इसमें मेरी क्या गलती है ? झूठ बोल देती क्या …. कि वो मालिनी का मामा नहीं है ।देवेंद्र ! बात करने का तरीक़ा होता है…. ये क्या मतलब कि छोटा देखता … ना बड़ा और दनादन गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी । मैं सोच तो रही थी कि मीनाक्षी से आज दिन में बात करूँगी पर तुम्हारे तेवर देखकर, अब हरगिज़ इस पचड़े में नहीं पड़ूँगी ।
तो कहा किसने था कि हमारी बेटी के लिए रिश्ता बताओ । मेरी ही गलती थी जो तुम्हारे कहने में आ गया । बहुत नीच ख़ानदान निकला वो तो …..
यह कहकर देवेंद्र ऊपर चला गया । उसके जाते ही वंदना रोते हुए सास से बोली —-
देखा माँ! कोई बड़ी भाभी के साथ इस तरह बातचीत करता है भला ? मैंने बता दिया , अब मुझसे किसी तरह की उम्मीद मत रखना ।
करो बहू … जो तुम दोनों को करना है । वैसे भी मैं कौन हूँ ?
बस वो दिन सो आज …. ना तो वंदना ही अपनी सहेली मीनाक्षी के साथ बातचीत के लिए तैयार हुई और ना ही देवेंद्र माफ़ी माँगने के लिए । दोनों भाइयों के बीच जो प्रेम और विश्वास की डोर थी वो एक ही झटके में टूट गई । चाचा ने अपने घर की सीढ़ियाँ पिछली गली में से बना ली और आँगन के रास्ते से होकर गुजरने वाली पुरानी सीढ़ियों को तुड़वा कर दीवार खिंचवा दी । एक साल के भीतर सुहास की शादी हो गई और वह शादी के बाद ग्वालियर पहुँच गई पर मालिनी के लिए कोई रिश्ता नहीं मिला । हालाँकि वंदना की सास उसके साथ ही रहती थी पर चाचा की तरफ़ भी महीने, दो महीने में चक्कर लगा आती थी और मालिनी के विवाह को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी । अक्सर बड़े बहू – बेटे के सामने अपने मन की पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहती थी—
अरे बेटा …. देवेंद्र और उसकी बहू मूर्ख हैं । मालिनी की उम्र निकली जा रही है । वे दोनों जैसे भी हो पर बेटी तो हमारी ही है ….
माँ, आपको क्या लगता है कि हमारे बताए रिश्ते को देवेंद्र मान लेगा ? क्या बार-बार बेइज़्ज़ती करवाएँ ?
दादी की परेशानी सुहास के कानों में भी पड़ी । उसका ममेरा देवर उनके पास ही रहता था । सुहास की इच्छा हुई कि काश ! मालिनी उसकी देवरानी के रूप में यहाँ आ जाए ।
बारिश की टिप- टिप में उसने आज एक मज़बूत फ़ैसला लिया और सास के साथ अपने मन की बातें साझा कीं । सास ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ी हुई स्त्री थी । सुहास को परखकर जान चुकी थी कि वो कोई ग़लत फ़ैसला नहीं करेगी और अपनी विधवा भाभी के ऊपर उन्हें पूरा विश्वास था कि ननद के स्वीकार किए रिश्ते पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी । सब बातों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सुहास को अपने भतीजे समीर के लिए मालिनी के रिश्ते की स्वीकृति दे दी ।
अब सुहास के सामने सबसे बड़ी दिक़्क़त यह थी कि मम्मी और चाचा को कैसे मनाया जाए । उसका सिर्फ़ एक सहारा थी , उसकी दादी । फ़ोन पर दादी के साथ मिलकर सारी बात करना , योजना बनानी असंभव थी क्योंकि दादी को फ़ोन चलाना आता नहीं था वे तो नंबर मम्मी से ही मिलवाती थी । सुहास को अपनी सास और पति का पूरा सहयोग मिला और सुहास कुछ दिनों के लिए मायके आ गई ।
उसने दादी को सारी बात बताई । पोती की बात सुनकर दादी गदगद हो उठी । उन्होंने सुहास को न जाने कितने आशीर्वाद देते हुए कहा—
बेटा! बड़े पुण्य मिलेगा तुझे … बस मालिनी के हाथ पीले हो जाएँ ।
दादी, मैं पुण्य के लिए नहीं बल्कि इसलिए मालिनी की शादी समीर से करवाना चाहती हूँ क्योंकि मालिनी और समीर दोनों की जोड़ी अच्छी जमेगी । साथ ही मैं अपने परिवार को पहले की तरह खुशहाल देखना चाहती हूँ पर क्या, कैसे करना है ? ये सब आपको सोचना पड़ेगा ।
दोनों दादी- पोती सबसे अलग बैठकर बतियाती रहती थी । वंदना को कई बार तो लगता कि ये दोनों कुछ छिपा रही है पर फिर सोचती थी कि क्या छिपाएँगी । सुहास ज़रूर मालिनी के बारे में पूछती होगी …. दोनों की एक दूसरे में जान जो बसती थी ।
दादी ने तो सुहास को कई बार कहा कि अपनी मम्मी को मना लें पर सुहास को डर था कि ज़रा भी भनक मिलते ही मम्मी तुरंत उसे मना करके वापस भेज देंगी क्योंकि चाचा के व्यवहार ने उन्हें अंदर से तकलीफ़ पहुँचाई थी और अब प्रश्न मान- सम्मान का बन चुका था । ख़ैर दादी ने मालिनी की मौसी का नंबर लिया । उन्हें लगा कि अगर अपनी बहन और बहनोई को कोई मना सकता है तो वह मालिनी की मौसी हैं जिनकी बात पर उन्हें भरोसा रहेगा ।
दादी- पोती मंदिर के बहाने घर से बाहर जाती थी और मालिनी की मौसी से बात करके उन्हें विश्वास में लेने का प्रयत्न करती थी । कहते हैं ना कि जहाँ चाह वहाँ राह । एक दिन मौसी ने पूरा भरोसा दिया कि अगले दो दिन में वे हाँ कहलवा कर ही फ़ोन करेंगी ।
मालिनी की मौसी के साथ देवेंद्र और उनकी पत्नी जाकर समीर को देख आए तथा हफ़्ते के भीतर ही विवाह की तारीख़ भी निश्चित हो गई । लेन- देन की कोई बात नहीं थी सिर्फ़ लड़का और उसकी माँ । देवेंद्र तो फूला नहीं समा रहा था कि पत्नी की बहन ने घर बैठे हीरे सा दामाद ढूँढ निकाला । पचास- साठ मेहमानों की उपस्थिति में विवाह संपन्न हो गया । बरातियों में सुहास की सास और पति भी आए थे । एक सुहास ही थी जो केवल पति के फ़ोन पर लाइव प्रसारण देखकर फेरे पूरे होने का इंतज़ार कर रही थी ।
इधर उसे बन- सँवरकर सुबह से बैठी देखकर वंदना कई बार कह चुकी थी—-
सुहास…. पगला गई है क्या ? तुझे बुलाने कोई नहीं आने वाला । और वो मालिनी , जिस पर तू जान छिड़कती है उसने भी एक बार फ़ोन नहीं किया तुझे …. चल कपड़े बदलकर दो घड़ी आराम कर ले फिर आज शाम को तो दामाद जी भी तुझे लेने आ रहे हैं । इस बार तो सारा वक़्त दादी के साथ ही बैठी रही तू , माँ के पास बैठने की फ़ुरसत ही नहीं मिली ।
इतने में सुहास ज़ोर से चहकी —-
वाह ! फेरे हो चुके । अब बस विदाई की तैयारी चल रही है । मम्मी, मैं चाचा की तरफ़ जा रही हूँ ।
दना कुछ पूछती , इससे पहले ही सुहास फुर्र से उड़ गई । वहाँ जाते ही चाचा से सामना हुआ पर इतने मेहमानों के बीच देवेंद्र ने कुछ नहीं पूछा । सुहास पर नज़र पड़ते ही दादी ने उसे गले लगा लिया । जिस समय फ़ैमिली फ़ोटो होने लगा तो समीर की माँ ने अपनी ननद , सुहास के पति तथा सुहास को बुलाते हुए कहा—-
ये समीर की बुआ हैं और ये इनका बेटा हितेश तथा बहू सुहास … इन्होंने ही समीर को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाया है । इनके बिना हमारा परिवार अधूरा है ।
अब चौंकने की बारी देवेंद्र और उसकी पत्नी की थी । वे दोनों मालिनी की मौसी की ओर देखने लगे पर उसने ऐसे दिखाया मानो उसे इस बारे में कुछ अता- पता नहीं था । तभी सुहास की सास ने आगे बढ़ते हुए कहा—-
समधी जी , बेटी की विदाई का मुहूर्त निकला जा रहा है ।जी हाँ…. बस गाड़ी बुलवाइए । मालिनी को गाड़ी में बैठा दिया गया था । तभी सुहास को देखकर दादी ने कहा—
तू निश्चित होकर जा । यहाँ की स्थिति कल फ़ोन पर बताऊँगी । तेरा सामान गाड़ी में रखवा दिया है । बस दो मिनिट अपने घर के दरवाज़े पर गाड़ी रुकवा लेना । मैंने तेरी माँ के पास खबर भेज दी है…. मालिनी अपने ताऊ- ताई का आशीर्वाद लेकर जाएगी ।
सुहास के चेहरे की चमक बता रही थी कि परिवार के एक होने की कल्पना मात्र से ही वह कितनी खुश थी ।
लेखिका : करुणा मलिक