लॉकडाउन के समय मेरी बाई माताजी का निधन हो गया ,तब हम तो नहीं जा सके। मेरी भाभी ने उन्हें सुहागन के रूप में तैयार करके विदा किया ,और सभी कार्यक्रम किए। हम लोग जब बाद में गए तब हमने देखा कि मेरे बाबूजी, जो कि वृद्ध हैं ,रात को उनका जी घबराता है ,तब मेरे भाभी ने बोला कि जीजी हम भी बाबूजी के पास ही सोते हैं। रात को कुछ भी हो जाए तो हम एकदम देख तो ले ।
सुनकर सोचने लगी कि, जहां देखो, जिसे देखो ,फेसबुक पर, पेपर में मिलने जुलने वालों में बहू बेटों की चर्चा है, कहीं कहीं ऐसा होता भी है। लेकिन मैं जब ज्यादा गहराई से सोचती हूं ,तो ऐसा लगता है कि बहु बेटे इतने भी बुरे नहीं होते जितना कि उन्हें दिखाया जाता है, और इसके लिए मुझे कुछ कारण लगते हैं।
नई नई बहू जब घर में आती है उस समय ससुराल का ,सासू का वातावरण उसके मानस पटल पर अंकित हो जाता है, और उस समय वह जो व्यवहार देखती है उसके आधार पर वह अपना मानस तैयार कर लेती है, और उसे लगता है कि यहां पर निबाह करना मुश्किल है, तो क्या करूं?
मम्मी जी को मेरे हाथ की कुछ भी चीज तो अच्छी नहीं लगती, कुछ परिवारों में ऐसा होता है की बहुओं का किया हुआ कोई भी काम सांसों को पसंद नहीं आता, चाहे खाना बनाना हो, घर की सफाई हो ,कपड़े हो ,या बहुत सारे काम ,कोई बहू अपना घर छोड़कर अस्तित्व की तलाश में ससुराल आती है,
लेकिन उसे वह कहीं नजर नहीं आता, तो उसे बुरा लगता है और उसे लगता है कि इससे तो मैं अलग भली, मेरे घर में मैं कुछ कर तो सकूंगी। क्योंकि इस घर में तो मैं कुछ करने से रही।
दूसरी बात कभी-कभी बेटे को लगता है कि मेरी पत्नी बहुत अलग है और इस घर के वातावरण में रच बस नहीं पाएगी, और इससे तो मेरे मम्मी पापा को दुख ही मिलेगा, इस से अच्छा है कि मैं अपना आशियाना अलग बना लूं ,ताकि माता-पिता भी खुश रह सके ,और हम भी खुश रह सके।
तीसरी बात मुझे लगती है आर्थिक रूप से भी कोई कोई बेटे बहू इतने संपन्न नहीं होते कि वह अपने माता पिता को सभी सुविधाएं दे सके, इसलिए वह थोड़े उदासीन हो जाते हैं।
चौथी बात बेटे बहू सोचते हैं कि अभी तो माता-पिता सक्षम है, समर्थ है, अपना जीवन चला सकते हैं, तो फिर हम हमारे हिसाब से हमारे जीवन को चला लें।
आजकल जाब भी बाहर हो गए हैं ,बच्चों के सपने अलग हैं, उनके सपनों को पंख भी चाहिए तो माता-पिता भी सोचते हैं, ठीक हैं इन्हें इनके हिसाब से इनकी जिंदगी बिताने दो ।
मुझे तो इस दृष्टिकोण में कोई बुराई नजर नहीं आती ।सभी का अपना अपना जीवन है। सभी की अपनी-अपनी सोच है, सभी के अपने अपने विचार हैं, बच्चे भले ही उदासीन हो जाएं माता पिता का स्नेह कम नहीं होता। वैसे ही अगर हमारे बचपन के संस्कार उत्तम होंगे, तो हमारे बच्चे हमारी जरूरत पर हमारे साथ अवश्य होंगे ।
किसी भी सिक्के के दो पहलू हैं। आज जो माता-पिता हैं, कल वे भी बेटे बहु थे, आज जो बेटे बहु हैं ,कल वे बी माता पिता बनेंगे। अतः यह तो एक क्रम है जो चलता ही रहता है।
अगर हम इसे समस्या मानेंगे तो भी इसका कोई हल नहीं है ।बस होना तो यही चाहिए कि हम सब एक दूसरे को, एक दूसरे की कमियों के साथ सहज, सरल रूप में स्वीकार करें। एक दूसरे से प्यार करें, चाहे दूर रहें, चाहे पास रहें अगर हम पास में भी हैं, और हमारे मतभेद ज्यादा है,
तो शांति से कोई भी नहीं रह पाएगा और अशांति की स्थिति में व्यक्ति की जो प्रगति , विकास है वह भी रुक जाएगा ,और सब छोटी छोटी बातों में लग कर ही अपने जीवन के अनमोल समय को व्यतीत कर लेंगे।
इसलिए मैं तो समझती हूं की बहू बेटे भी इसी ग्रह के प्राणी हैं, उनके भी जज्बात है, भावनाएं हैं वे माता-पिता का सम्मान करना जानते हैं, करते भी हैं, सभी के तरीके अलग-अलग हैं ।
इतनी बड़ी दुनिया में सभी को अपने अपने अस्तित्व की तलाश है ।सभी को स्पेस चाहिए इसलिए यह एक ऐसा मुद्दा है कि जिस पर जितनी बातें करो कम है, फिर भी मुझे खुशी होती है कि मेरे परिचित कम से कम 120 -125 परिवार है
और उन परिवारों में किसी भी परिवार में माता-पिता की आवमानना का कोई प्रसंग मुझे दिखाई नहीं देता ।बच्चे चाहे दूर हो या पास हो वह सदैव हमारे नजदीक है ,यह लिखकर में किसी भी माता-पिता के भावनाओं को उपेक्षित नहीं कर रही, बल्कि अपने मन की भावनाएं बता रही हूं ।क्योंकि मैं अभी एक बहू भी हूं, और मेरी भी बहू है। अतः दोनों में अपने आप को देखती हूं तो लगता है, सब अपनी अपनी जगह सही है ।
सभी की अपनी-अपनी समस्याएं हैं ,और सभी की अपनी-अपनी सोच है। अतः हमें हमारे पूर्वाग्रहों से दूर यह सोचना है कि बहु बेटे बुरे नहीं हैं, जहां कहीं भी ऐसी स्थिति होगी अपवाद स्वरूप होगी, और इसका हल भी निकालना जरूरी है।
सुधा जैन