कठपुतली – करुणा मलिक :

अच्छा मौसी , चलती हूँ…. ख़्याल रखना अपना ।

इतना कहकर भारती गेट से बाहर निकली और सीधे घर की तरफ़ चल पड़ी । रास्ते में उसका मन बार-बार मौसी की हालत देखकर और सोचकर बेचैन हुआ जा रहा था । क्या ये वहीं मौसी हैं जिनका दबदबा केवल अपनी ससुराल और मायके में ही नहीं, पूरे मोहल्ले और रिश्तेदारी में था । आगे – पीछे हज़ारों लोग घूमते थे और आज एकदम  इतने बड़े घर में अकेली ….

भारती की माँ सबसे बड़ी और सौदामिनी मौसी नाना की सबसे छोटी लाड़ली संतान थी । दोनों बहनों के बीच चार मामा थे पर जो बात दोनों बहनों की थी वो भाइयों की बिल्कुल नहीं थी । जहाँ एक ओर  परिवार के लोग बड़ी बेटी पद्मा की अक़्लमंदी के क़ायल थे तो दूसरी ओर छोटी बेटी सोदामिनी के तुनक मिज़ाज से परेशान ।

भारती को याद है कि जब वह मम्मी के साथ ननिहाल जाती थी तो  देखकर हैरान रह जाती थी कि  दोनों मामा – मामियाँ, नाना-नानी  किस तरह मौसी के नाज नखरे उठाते थे । एक बार तो भारती ने अपने घर आकर जब मौसी की देखादेखी मनमानी शुरू कर दी तो एक दो दिन तो मम्मी और दादी ने नज़रअंदाज़ किया पर चौथे दिन ही दादी ने कड़कती आवाज़ में मम्मी से कहा था——

पद्मा , ये भारती किस तरह की बातें सीख कर आई है इसबार ननिहाल से ? हमारे घर में ऐसा हरगिज़ नहीं चलेगा ….. इसे समझाओ और आगे से इसे  मायके ले जाने की गलती मत करना । 

अपने स्वभाव के अनुरूप सौदामिनी मौसी ने अपना करियर एक वकील के रूप में शुरू किया था । कहते थे कि जब वे अदालत में अपना पक्ष रखती थी तो उनकी कड़क और दमदार आवाज़ के कारण एकदम सन्नाटा छा जाता था और लोग उनकी दलीलों को ध्यानपूर्वक सुनते थे अपनी दलीलों के सामने उन्होंने कभी किसी की नहीं चलने दी । अपने साथ पढ़ने वाले सहपाठी से उन्होंने कोर्ट मैरिज की थी ।

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ससुराल में भी बड़ी बहू के रुप में हमेशा दोनों देवरों और ननदों को अपने तरीक़े से रखा । सास- ससुर गाँव में रहते थे…. उस समय सौदामिनी मौसी और मौसाजी की सहायता के बिना उनके बच्चों की पढ़ाई- लिखाई और शादी- ब्याह के बड़े खर्चे संभव नहीं थे । इसलिए बड़ी बहू की हर बात मानना उनकी मजबूरी थी । बस मौसी ने इसी बात का फ़ायदा उठाया और अपनी तानाशाही चलाई । 

देखते ही देखते वो दिन भी आ गया जब बढ़ती उम्र के कारण मौसी- मौसा जी दोनों को ही काम से रिटायर होना पड़ा था । पर अब भी घर में उनकी तूती बोलती थी । 

अक्सर भारती मम्मी से फ़ोन पर बात करती रहती थी । पर मौसाजी की आकस्मिक मृत्यु से मौसी टूट गई थी । एक दिन मम्मी ने भारती को बताया था ——

अरे भारती , क्या बताऊँ बेटा …. तेरी मौसी को लेकर परेशान हूँ …. हिमांशु और उसकी बहू तो अलग हो गए । सौदामिनी ने ग़ुस्से में कह दिया था मानसी से कि अगर उनके रहते घर में मनमानी की तो एक पाई नहीं देंगी अपनी जायदाद से ….

हद करती हैं मौसी भी , ऐसी बातें आजकल कौन सुनता है मम्मी? वे   पढ़ी लिखी होकर कैसी बातें करती है ं ? 

हाँ बेटा …. समझाकर तो आई हूँ कि हर बात में टोकाटाकी ठीक नहीं होती । बच्चों को उनके हिसाब से जीवन जीने दो पर ये कहाँ सुनती है किसी की  । पता , मुझे भी कहने लगी कि दीदी , आप क्या चाहती है कि मैं बहू- बेटों के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन जाऊँ? 

रहने दो मम्मी…. आप अब मत कुछ कहना जब सुनती ही नहीं…

कैसे रहने दूँ…. छोटी बहन है एकदम बच्चे की तरह ।

भारती को समझ नहीं आता था कि मौसी उम्र के इस पड़ाव पर भी इस यथार्थ को क्यों नहीं समझ रही कि एक वक़्त के बाद बच्चों के जीवन में दख़लंदाज़ी नहीं करनी चाहिए तभी घर में इज़्ज़त बनी रहती है । चलो बेटे तो फिर भी सुन लेंगे थोड़ा बहुत पर बहू, भला क्यों समझौते करेंगी । दोनों बेटे- बहू अच्छी नौकरी कर रहे हैं । 

अभी तक़रीबन दो हफ़्ते ही बीते थे कि मम्मी ने भारती को बताया—-

मौसी ने दीपांशु और नेहा को घर से निकाल दिया ।

क्या…. घर से निकाल दिया पर क्यों ? अब इस उम्र में अकेली रहेगी ? क्या हो गया ऐसा ? 

अरे बेटा …. वो नेहा की बहन की शादी थी और उसने बहन की शादी में एक सोने का सेट , साड़ी इत्यादि दे दी बस सौदामिनी को जैसे ही पता चला , उसने तो चंडी का रुप धारण कर लिया कि उनसे बिना पूछे कुछ देने की हिम्मत कैसे की? 

दीपांशु ने कह दिया कि मम्मी इसने जो भी दिया अपनी सैलरी से दिया । आप क्यों बेकार में टेंशन लेती हो ? बस बात यहीं से बढ़ गई । दीपांशु ने बहुत समझाने की कोशिश की पर जब ये मानी ही नहीं तो उसने ग़ुस्से में आकर कह दिया कि मम्मी…. आपने दादी से पूछ- पूछकर कितने काम किए थे जो आज अपनी बहू से उम्मीद लगा रही हो ? 

ओहो…. ये सच्चाई  कहाँ  मौसी को पचने वाली थी? 

बस तेरी मौसी ने उसी समय दोनों को घर से निकल जाने का आदेश दे दिया । वे दोनों तो जैसे घर से निकलने का इंतज़ार ही कर रहे थे…. उन्होंने तो मुड़कर भी नहीं देखा । अब इतने बड़े घर में अकेली पड़ी है । 

उसके बाद भारती अपनी मम्मी से ही मौसी की कुशलता के बारे में पूछती रहती थी । तक़रीबन छह महीने बाद मम्मी ने बताया कि मौसी बाथरूम में फिसल गई और उन्हें घुटने में काफ़ी चोट लगी है । दोनों बेटों को भी बता दिया पर उन्होंने कह दिया कि मम्मी के पास तो काफ़ी पैसा- जायदाद है , ख़रीद लेंगी सेवादारों को…. बता , मैं तो अपने घर लाना चाहती थी पर तेरी भाभी ने साफ़ कह दिया कि मौसी ने अपना घर तो बिगाड़ लिया ….अब अगर यहाँ आ गई तो इस घर को तोड़ कर ही जाएँगी । 

मम्मी…. आपको  उन्हें अपने घर लाने की ज़रूरत नहीं है । नौकर तो है ही उनके पास…. जब तक उनकी चोट ठीक नहीं हो जाती , आप रह लो उनके पास ….. अगले महीने मैं भी आ रही हूँ । हिमांशु और दीपांशु से मिलकर बात करने का प्रयास करुँगी । 

मायके पहुँच कर एक दिन भारती ने दोनों मौसेरे भाइयों और भाभियों को बुलाया तथा उन्हें समझाया —-

जैसी भी हैं वे तुम्हारी माँ हैं । और तुम दोनों के होते हुए अगर उन्हें अपनी  बूढ़ी बहन या नौकरों पर आश्रित होना पड़ रहा है तो तुम्हारे लिए शर्म की बात है ।

पर दीदी…. आप ख़ुद को मानसी और नेहा की जगह रखकर सोचिए । हमारा जीना दुश्वार हो जाएगा । जैसा चल रहा है, चलने दें । मम्मी को लगता है कि वे पैसा फेंककर किसी से कुछ भी करवा सकती हैं । 

भारती ने समझाने बुझाने की बहुत कोशिश की पर उन चारों में से एक ने भी मौसी की ज़िम्मेदारी लाने की हाँ नहीं भरी । जब  घर पहुँच कर भारती ने अपनी मम्मी यह बात बताई तो वे हकदम रह गई—-

बताओ….. ऐसी भी औलाद होती है भला ….

मम्मी… क्या सारी गलती बहू- बेटों की है ?  सारी  गलती तो सौदामिनी  मौसी ने की  है । मैं-मैं के चक्कर में बच्चों के सामने कोई आदर्श रुप ही प्रस्तुत नहीं किया । माँ- बाप , भाई- भाभी,  सास- ससुर , देवर- ननद सबको हमेशा अपने हाथ के नीचे रखा । अब बच्चों से उम्मीद करती है कि वे राम बनकर हुक्म माने …. ऐसा नहीं होता मम्मी…. आजकल के बच्चे शब्दों से नहीं, व्यवहार से सीखते हैं । सबसे बड़ी गलती नाना- नानी की है, लाड- प्यार के नाम पर उन्होंने मौसी को अच्छे- बुरे का फ़र्क़ नहीं समझाया । 

भारती ….. अब सोच बेटा , मैं अपनी बहन को अकेली नहीं छोड़ सकती …

तो अपना घर छोड़कर, उनके घर चली जाओ ।

अरे बेटा, तू तो नाराज़ हो गई, भला अपना घर छोड़कर कोई जाता है ? 

अगले दिन भारती मौसी के पास गई । आज भारती को देखकर मौसी रोने लगी—

भारती , घर काटने को दौड़ता है । अब इस घर के सन्नाटे में मुझे डर लगता है । नौकरानी भी खाना दवाई देकर अपने कमरे में चली जाती है ।

मौसी, बुरा मत मानना पर ये हालात आपके खुद के बनाए हुए हैं । आप कितनी पढ़ी – लिखी है । आपने वकील के रूप में कितना नाम कमाया पर घर अदालत नहीं होता जहाँ केवल आपको अपनी दलीलें पेश करके कोई मुक़दमा जीतना होता है । घर में हर किसी को एक दूसरे की बात सुनने , कहने और समझने की आज़ादी मिलनी चाहिए । यह बात सही है कि पैसा बुढ़ापे का बड़ा सहारा होता है पर इसे हथियार के रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

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और धीरे-धीरे भारती ने मौसी को इस बात के लिए राज़ी किया कि वे वृद्धाश्रम में जाकर रहें ताकि अपने हमउम्र लोगों के साथ मिलकर रहने से डिप्रेशन से बच सकें । 

उसके कुछ महीने बाद भारती ने हिमांशु और दीपांशु को इस बात के लिए भी राज़ी कर लिया था कि हर हफ़्ते बारी- बारी से वे दोनों अपने परिवार के साथ मौसी से मिलने जाएँगे, उनके साथ समय बिताएँगे और तीज- त्योहार पर उन्हें दो चार दिन के लिए घर लाएँगे । 

कुछ महीने बाद मम्मी ने भारती से पूछा—-

भारती, एक बात तो बता …. ये दोनों भाई, और ख़ासतौर पर मानसी तथा नेहा को तूने कैसे मनाया ? ये तो तेरी मौसी का नाम सुनते ही भूखी शेरनी हो जाती थी ।

छोड़ो ना मम्मी…. अब कम से कम सब में बातचीत तो है… नहीं तो एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए थे । 

ना बेटा …. तुझे मेरी क़सम ..

कुछ ज़्यादा नहीं…. मौसी के बहू- बेटों को मैंने केवल इतना कहा कि जिस तरह मौसी का व्यवहार देखकर तुम्हारे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ और तुमने अपनी माँ को अकेली छोड़ने में देर नहीं लगाई उसी तरह तुम अपने बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण कर रहे हो इसलिए भविष्य के लिए तैयार रहना । मनुष्य अपने कर्मों के हाथ की कठपुतली है । 

भारती…. हमेशा ख़ुश रहो बेटा ।

करुणा मलिक

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