आज मोहन के स्कूल में वादविवाद प्रतियोगिता आयोजित थी।सभी बच्चों को अपने अपने सपनों को बुनने और उन पर चर्चा करने के लिए मैदान उपलब्ध कराया गया था। प्रत्येक बच्चे को पांच मिनट के समय मेंअपने सपने…अपने ख्वाब में रंग भरने हैं ….अपनी कल्पना की कूची चलानी थी।
सबके बड़े बड़े ऊँचे ऊँचे ख्वाब थे। रवीश ने तो अभी से अपनी होने वाली पत्नी के लिए आसमानी रंग जुड़ा लिए थे…
“मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने…सपने सुरीले सपने”
पूरा हॉल हँसी के फव्वारों से गुलगुल हो गया था। बच्चा बेचारा झेंप कर स्टेज से नीचे उतर गया था। और भी बच्चे लाइन में लगे थे। सबके बड़े बड़े सपने थे….किसी को बहुत कामयाब डाक्टर बन कर देशसेवा करनी थी तो किसी ने सीधे प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाल रखा था।
मोहित क्रिकेट के ग्लैमर से आकृष्ट था। उसे तो सचिन तेंदुलकर ही बनना था। उसका भाई भी उसके पीछे था। उसका शाहरूख खान बन कर नाम और शोहरत हासिल करने का ख्वाब था। एक से बढ़ कर एक ख्वाब थे और सभी अभिभावक और दर्शक इस अद्भुत कार्यक्रम का आनंद ले रहे थे।
तभी नेहा मैम का ध्यान एक तरफ़ चुपचाप खड़े रजत की ओर गया। वो बड़े ध्यान से अपने साथियों के ख्वाबों को सुन भी रहा था और शायद आत्मसात भी कर रहा था। उसके निर्विकार भाव से आकर्षित होकर मैम ने उसका नाम पुकार कर स्टेज पर बुलाया और सबके सामने अपने ख्वाब को प्रस्तुत करने को कहा।
वो बहुत संकोच से ऊपर आया और चुपचाप माइक पकड़े खड़ा रह गया। नेहा मैम ने प्रोत्साहित करते हुए कहा,
“अरे रजत, तुम चुप क्यों हो? तुम्हारा अपने जीवन के लिए क्या ख्वाब है …तुमने क्या सपना पाल रखा है…आज सबके सामने शेयर करो।”
वो और भी संकुचित होकर हौले से बोला,
“मेरा ख्वाब बहुत छोटा है। मैं.बहुत ऊँचे ख्वाब नहीं देखता। मेरी और मेरे माता पिता की हैसियत ऊँचे ख्वाब देखने की आज्ञा नहीं देती।”
मैम ने आकर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा,”नहीं रजत, यहाँ तुम गलत हो। ऊँचे ख्वाब देखने का सबको समान अधिकार है। बस उनके पूरे ना होने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। तुम अपने सपने के बारे में बताओ।”
उसने फिर नि:संकोच अपना ख्वाब प्रस्तुत कर दिया।
“मैं बहुत छोटे शहर से आया हूँ।मेरा ख्वाब है….मैं अपने उस छोटे से गुमनाम शहर के लिए कुछ करना चाहता हूँ। मैं अपने शहर का नाम भारत के नक्शे पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा देखना चाहता हूँ। मैं अपने शहर और अपने देश के लिए कुछ गौरवशाली उदाहरण पेश करना चाहता हूँ। कैसे करना है…इसकी कोई भी रूपरेखा मेरे मनमस्तिष्क में अभी नहीं है।बस और बस अपने शहर…अपनी जन्मभूमि को शीर्ष पजर पहुँचते देखने का ख्वाब है।”
पूरे हॉल में घनघोर सन्नाटा छा गया। फिर एकाएक सबने उठ कर तालियाँ बजा कर उसके ख्वाब का अनुमोदन कर डाला।
नीरजा कृष्णा
पटना