मुक्ति… – डा.मधु आंधीवाल

 शुभा जैसे ही बिस्तर पर लेटी रात के 12 बजे थे । फोन की घन्टी घनघनाने लगी ।  डा. जोशी बोल रहा हूँ आप आईये अजय की तबियत अधिक खराब है उसको फिर दौरा पड़ा है।

       शुभा हास्पिटल भागी वह सोच रही थी उसकी जिन्दगी भी बचपन से ऐसे ही भाग रही है।  वह अतीत में पहुँच गयी । बहुत ही मध्यम परिवार में जन्म लिया । 4 भाई बहन छोटे थे । पिता की आय अधिक नहीं थी वह पढ़ने में होशियार थी  । सुन्दरता देने में ईश्वर ने कंजूसी नहीं की थी । अभी पढ़ाई पूरी नहीं हुई की शहर के धनाढ्य घराने से रिश्ता आगया । उसने मां से पूछा कि इतने अमीर लोग मेरे लिये क्यों रिश्ता मांग रहे हैं तब मां ने कहा कि तुम्हारी सुन्दरता पर मुग्ध हैं और शादी का निर्णय उसी तरीके से लिया जैसे बाजार से सब्जी खरीदते हैं । शगुन पूरे हो गये वह ससुराल आगयी । सब तारीफ कर रहे थे ।  रात बीतती जा रही थी पर अजय अभी तक भीतर नहीं आये वह पंलग पर बैठी इन्तजार कर रही थी ,उतनी ही देर में किवाड़ खुली और अजय लड़खड़ाते अन्दर आये ,वह कुछ समझ पाती अजय ने आते ही उसको तेजी दबोचा और उसको नोचने खसोटने लगा । वह रो रही थी अपने नसीब पर ।

      आये दिन ये तमाशा होता वह गर्भवती हो गयी । उसने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया । अब पता चला कि उसने और भी आदत अपना ली । वह दोनों बच्चों को पाल रही थी । धीरे धीरे पैसा भी खत्म होने लगा ।वह  बच्चों को लेकर अलग रहकर एक छोटे से स्कूल में पढ़ाने लगी । मां के घर अब भाभियों का अधिकार था । अजय के अधिक नशा करने का असर दिमाग पर हुआ और वह मानसिक विक्षिप्त हो गये । शुभा ने मेन्टल हास्पिटल भेज दिया । डा. के फोन पर वह अस्पताल आई देखा वह निर्जीव सा लेटा है पता लगा कि पागल पन के दौरे में वह पंलग से नीचे गिरा और उसका सिर पलंग की छड़ से टकराया ब्रेन हेमरेज होने से वह खत्म हो गया ।

  शुभा थोड़ी देर देखती रही और शान्ति से कुर्सी पर बैठ गयी । आज बरसों बाद उसे लगा कि एक यातना से मुक्ति पाली है। जिसे पाने के लिये दिन रात छटपटाती रही थी ।

स्व रचित

डा.मधु आंधीवाल  

अलीगढ़

 

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