सुबह के दस बजे चुके थे, तभी वहां नेहा कपडों का ढेर लगाकर रखती है। उसी समय संध्या भी गंदे कपड़े की गड्डी लेकर आ जाती है,अरे नेहा तूने कपडों का ढेर क्यों लगाकर रखा है? आज मुझे कपड़े मशीन में लगाने है, ये संध्या अपनी देवरानी नेहा से कहती है, तब नेहा कहती- भाभी आज तो आपको खाना बनाना है ,तो गंदे कपड़े लेकर क्यों आ गयी हो? आपको खाना बनाने में देर हो जाएगी।
तब वह कहती- दीदी हमने तीन दिन से कपड़ों की धुलाई नहीं की है, तो कपड़े ज्यादा ही हो गये हैं। एक दिन बिट्टू की पैरेंट्स मीटिंग में चली गई।और
कल मेरी तबियत ठीक नहीं थी, तो आज धुलने आई हूं। तब नेहा कहती – “भाभी आपके देवर को व्हाइट शर्ट ही पहननी है। मेरे लाइट कलर के कपड़े भी धुलने है,इसलिए अभी मैं ही मशीन लगा रही हूं, मेरे कपड़े ज्यादा गंदे नहीं है, इसलिए मुझे धुलने दो ,और आप बाद में धुल लेना। तब वो कहती ऐसे कैसे मान जाऊं तेरी बात, मुझे खाना भी बनाना है, पहले मैं धुल लूं फिर बाद में तू धुल लेना तो नेहा कहती अच्छा है…जेठानी की बात मानते रहो…और वह बड़बड़ाते हुए कहती ,साथ रहने के यही नुकसान है हमेशा जेठानी के सामने जी हजुरी करते रहो।और संध्या कपड़े धुलकर खाना बनाने लगती है।
अब जैसे तैसे खाना का काम निपटा कर कपड़े धुले हुए संध्या कपड़े की तह लगाती तो देखती मम्मी जी के कपड़े तो नेहा ने धुले ही नहीं है,तो वह आवाज लगाती है नेहा ,ओ नेहा तब नेहा हां भाभी क्यों बुला रही हो? तब वह उससे पूछती है- क्यों नेहा जब आज तेरी कपड़े धुलने की पारी थी ,तो मम्मी जी के कपड़े क्यों नहीं धुले। तब वह कहती- अरे भाभी मुझे केवल व्हाइट और लाइट कलर के ही कपड़े धुलने थे ँ। मुझे लगा आपने मम्मी के धुलने में ले लिए होंगे,इसलिए बाथरूम में नहीं देखा…
पर संध्या कहती – मैं बड़ी हूं तो क्या मैं ही सब काम की सोचूँ और तू तो छोटी बनकर बच जाए ,तब नेहा बोली भाभी मैं भी तो आपके हिस्से के काम करती हूँ। भाभी तुम धुल दो ना…
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तब वो कहती ठीक है मैं धुल दूंगी तब नेहा कहती – ठीक है भाभी धुल दो मैं भी तो कल खाना दोनों समय बनाई थी,कल मेरे हिस्से का काम भी कर देना, कल क्यों ?जब जरूरत होगी तब करुंगी, नहीं तो जानबूझकर कर काम न करो और मुझ पर भार डाल दो।
ये बात करते उसकी सास शकुन्तला जी सुन लेती है ,
तब वो चिल्ला कर बुलाती है, अरे बहूओं क्या हो गया है? तुम दोनों में क्यों बहस हो रही है?
तब वो दोनों कहती -चलो मां जी बुला रही है, तब संध्या कहती है- हां हां मैंने भी सुन लिया मुझे बताने की जरूरत नहीं।
दोनों को बुलाकर शकुन्तला जी कहती- तुम लोग रोज- रोज क्यों बहस करने लगती हो? घर के बाहर आवाज जाती होगी, तुम लोग मिलकर नहीं रह सकती!हाँ मम्मी जी देखो ना नेहा मुझे कुछ समझती ही नहीं…तो नेहा कहती मम्मी जी क्या मैं दिनभर भाभी की सुनती रहूं, तो तुम क्या चाहती हो शकुन्तला जी परेशान होकर पूछती है।फिर दोनों बोलती – हां मम्मी जी हमें बस दो कमरे दे दो।
तब वह कहती- क्या तुम लोगों ने ये घर किराए का समझ रखा है। कि मैं ये घर में दो दो कमरे तुम दोनों को अलग से दे दूं। मैं नहीं दे सकती हूँ । मैं चाहती हूं कि तुम लोग मिलकर रहो, इसके लिए मैं जरुर कुछ सोचती हूं।
और वसीयत बनवाने चली जाती है।
शाम के चार बजे नेहा कहती- भाभी आपने बरतन साफ नहीं किए मुझे शाम को खाना बनाना होगा तो खाना किसमें बताऊंगी। तब वह कहती- देख नेहा बिट्टू को स्कूल लेने जाना है ,उसकी आटो वाले सुधीर का फोन आया था कि उसकी आटो खराब हो गयी है वह लेने नहीं पहुंचेगा। ठीक है भाभी….
तब वह कहती- भाभी ये आपके हाथ में क्या है? वह कहती है मेरे हाथ में राशन का थैला है, मुझे राशन का सामान लेने बाजार जाना भी था ,तो लौटते हुए लेते आऊंगी।
तब नेहा कहती – भाभी आप राशन का सामान लेने जा रही हो। तो मेेरे लिए कुछ सामान ले आना।
तब वह कहती- हां हां तू मुझे लिस्ट दे दे ,मैं देख लूंगी।
एक से डेढ़ घंटे में बाजार से लौटती है, तो नेहा आराम से बैठकर मोबाइल चला रही होती तब उसे आता देख नेहा कहती – अरे भाभी आ गयी !आप मेरा सामान ले आई आप? और वह राशन का थैला देखने लगती है।
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तब वो थैला देखकर बोलती – ” ये क्या भाभी मेरे वाले बिस्कुट तो है ही नहीं…. न ही मेरा फेवरेट नमकीन लाई हो।” तब संध्या कहती -अरे नेहा जो बिस्कुट सब खाते है, वो खाओ ना और नमकीन भी घर का बना वाला रखा है, उसे खाओ, फालतू का क्यों खर्च बढ़ाना मुझे हिसाब रखना पड़ता है। तब इतना सुनकर नेहा कहती- क्या भाभी मेरे खाने पीने के सामान पर रोक टोक लगाओगी?
इससे अच्छा कि अलग रहना ही सही है कम से कम अपने मन का खाओ पीओ।
उसी समय शकुन्तला जी आ जाती है, तो नेहा कहती देखो ना मम्मी जी भाभी को मैनें बिस्कुट और नमकीन लाने कहा था और वो नहीं लाई ये कोई भी बात हुई….
तब संध्या भी कहती – मम्मी जी नेहा के लिखे बिस्कुट इतने मंहगे आ रहे थे। कि अपने यहाँ जो बिस्कुट रखे है वो एक महीने के आ जाए। जो सब खाते है वो बिस्कुट नेहा को खाने चाहिए। कि नहीं…
तो शकुन्तला जी कहती- ये सब बातें छोडो़ मुझे बैठने तो दो, फिर बैठकर वो बताती ये देखो मैनें वसीयत बनवा ली है इसमें लिखा ये घर मेरे नाम पर है, जो यहाँ रहेगा वो उसका घर होगा। जिसे अलग रहना है वो अलग रहे,, मैं कोई घर का बंटवारा नहीं करने वाली…..
मेरे पास जो रहेगा मुझे तीनों समय का नाश्ता देगा कपड़े धुलेगा और घर की बाकी जिम्मेदारी पूरी निभाएगा। दोनों को जाना है तो जाओ अलग किराए के मकान में रहो। तब नेहा कहती – मम्मी जी आप हमें दो कमरे नहीं दे सकती हो। बस दो कमरे ही तो मांग रहे हैं। हम अपना घर होते हुए क्यों किराए के मकान में रहे। तब उसकी सास कहती – मैं कोई अलग कमरा नहीं देनी वाली जिसे परेशानी हो वो घर से निकल सकता है। कम से कम रोज- रोज का झगड़ा तो नहीं होगा। तब बड़ी बहू संध्या कहती
– मम्मी जी लोग क्या कहेंगे कि दो बहूओं के होते हुए दोनों बेटे बहू किराए के मकान में रह रहे हैं। तब शकुन्तला जी कहती – ” तुम लोग इसकी चिंता मत करो ,जो लोगों को कहना होगा मैं कह दूंगी किसकी हिम्मत है ,जो कुछ बोले, रोज- रोज के झगड़े से अच्छा घर में शांति रहे। मेरे दोनों बेटे भी तुम दोनों के कारण परेशान रहते हैं। जब किराए के मकान में जाओगे तो पता चलेगा कि लाइट क्यों चालू है, गेट क्यों खुला है ,पानी क्यों बह रहा है, अकेले सारा काम करना पड़ेगा वो अलग……. “
तब नेहा और संध्या एक दूसरे को चेहरा देखते हुए नहीं मम्मी जी हम लोग यही रहेंगे। तब शकुन्तला जी कहती – अगर तुम लोग ने झगड़ा किया तो यहाँ रहने की जरूरत नहीं सोच लेना। मेरा क्या है मैं 24 घंटे वाली काम वाली रख लूंगी।
तब संध्या कहती – नहीं नहीं मम्मी हमें कहीं नहीं जाना वैसे भी मैं तो आपका काम इतने सालों से कर रही हूं।घर का काम तो जिम्मेदारी है ,ये कोई बोझ थोडे़ ही है। मैं यही रहूंगी। अगर नेहा को जाना है तो जाए।
तब नेहा भी कहती – ” मम्मी जी हमें भी नहीं जाना किराए के मकान में और मेरी वजह से भाभी को परेशानी होती थी, अब मैं भी उन्हें कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी। “
फिर संध्या कहती-जब नेहा को यहाँ रहने में कोई दिक्कत नहीं, मुझे भी कोई परेशानी नहीं, मम्मी जी….हम लोग मिल कर रहेंगे। हम लोग काम भी मिलकर कर लेंगे।
तब शकुन्तला जी कहती – इस वसीयत का क्या करु तब दोनों कहती मम्मी जी इसे फाड़कर फेंकी दो।
तब वो कहती- नहीं नहीं इसे आलमारी में रखती हूं। जब दोनों झगड़ा करोगी तो फिर काम आएगी।
फिर दोनों कहती – मम्मी जी अब ऐसा मौका ही नहीं आएगा।
फिर संध्या और नेहा दोनों मिलकर रहने लगती है।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया
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