एक तीन साल की बच्ची के बाद दिशा दूसरी बार मां बनने वाली थी।
घर में इस खुशखबरी को सुनकर किसी को अधिक प्रसन्नता नहीं हुई क्योंकि घर में सबको जहां नयी बहू की तरफ से उम्मीद थी इस खुशखबरी कि वहीं बड़ी बहू की तरफ से मिली ये खुशखबरी भला उन्हें खुशी कैसे दे सकती थी।
दिशा और मयंक जब रेगुलर चेक-अप के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास पहुंचे तो उसने कुछ जरूरी दवाएं और
आयरन कैल्शियम की कुछ गोलियां देकर दिशा को घर भेज दिया।
एक महीने के बाद फिर से मंथली चेकअप के लिए दिशा जब अस्पताल पहुंची तो स्त्री रोग विशेषज्ञ ने उसके पेट की जांच की, और तत्काल सोनोग्राफी करवाने को कहा।
डाक्टर के इस तत्काल शब्द को सुनकर दिशा के दिल की धड़कनें बढ़ गईं।
सोनोग्राफी जांच के लिए लगी लंबी कतार में खड़ी दिशा मन हीं मन सोच रही थी कि आखिर इतनी जल्दबाजी में उसे सोनोग्राफी करवाने को क्यों कहा डाक्टर साहिबा ने…
कहीं मेरे पेट में बच्चे की जगह कोई बिमारी तो नहीं हो गया।
एक डेढ़ घंटे के बाद दिशा का नंबर आया….
सोनोग्राफी मशीन लगाने के बाद…
काफी देर तक दिशा के पेट पर मशीन रखने के बाद भी रेडियोलॉजिस्ट को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था….
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था दिशा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी….
रेडियोलॉजिस्ट ने अपनी सहयोगी से कहा कि जरा ट्विन के आप्शन को क्लीक करो तो….
पहली बार ट्विन शब्द सुनकर दिशा का दिल धक से कर उठा…
रेडियोलॉजिस्ट ने दिशा को बताया कि आप जुड़वां बच्चों की मां बनने वाली हैं…
दिशा तो जैसे इस दुनिया में हो कर भी नहीं थी…
हे भगवान ये कैसी लीला है आपकी…
ये कैसा मजाक किया आपने मेरे साथ….
जिस घर में एक बेटी को पालने और देखभाल करने में उसे इतनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उसे…
उस घर में दो बच्चे एक साथ….
कैसे संभालेगी वो…
ऊपर से पति की आमदनी इतनी कम….
दिशा सोनोग्राफी वाले कमरे से निकल कर बाहर आकर बेंच पर धप्प से बैठ गई …..
आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा…
मयंक ने झट से आकर उसे आकर थाम लिया…
दिशा उसके कंधे पर सर रख कर फूट-फूटकर रो पड़ी…
जिस खुशखबरी पर उसे खुश हो कर झूम उठना चाहिए था उसी खुशखबरी को सुनकर उसके आंसू नहीं थम रहे थे।
मयंक हैरान होकर पूछने लगा- क्या हुआ???
सोनोग्राफी में क्या निकला???
क्यों रो रही हो???
बोलो ना दिशा….
दिशा अपने आंसूओं पर काबू पाते हुए बोली – जुड़वां बच्चे…..
क्या??? मयंक का मुंह खुला का खुला रह गया….
स्वयं को संभालो दिशा हमें एक बेटी को भी संभालना है।
दिशा और मयंक घर आए…
घर में किसी ने नहीं पूछा कि सोनोग्राफी में क्या निकला???
दिशा रह रह कर बस रोए जा रही थी…
रोने का कारण केवल जुड़वां बच्चे हीं नहीं थे बल्कि घरवालों का उसके प्रति व्यवहार भी था…
जिस घर-परिवार को संभालने के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया वहीं परिवार आज उसके होने वाले बच्चों के लिए भी खुश नहीं था…
स्वार्थी संसार शायद इसी को कहते हैं….
दिशा को गर्भावस्था में हर दिन मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं….
इसे संयोग कहें या दिशा का दुर्भाग्य जो उसकी देवरानी भी उसी दौर में गर्भवती हो गई…
जो कभी-कभी उसकी मदद करती थी वो भी अब सहारा खत्म हो गया।
दिशा को डाक्टर ने बोल रखा था कि उसे प्लेसेंटा प्रिविया है ऐसे में अगर उसने बेडरेस्ट नहीं किया तो बच्चों को खतरा हो सकता है।
दिशा चाह कर भी बेडरेस्ट नहीं कर पा रही थी क्यों कि उसकी सास तो बस यहीं कहा करती कि हमने तो चार-चार बच्चे यूं हीं पैदा कर दिया आज कल की बहुओं के भी बड़े नखरे हैं।
देवरानी को जैसे हीं गर्भवती होने का पता चला वो मैके चली गई….
दिशा के पति के सिवा किसी को भी उसके दर्द का जरा भी एहसास नहीं था…
वो चाहकर भी मैके नहीं जा सकती थी क्योंकि डाक्टर ने उसे सफर करने से मना कर दिया था।
सब-कुछ ईश्वर को सौंप कर दिशा बस यहीं प्रार्थना किया करती कि दोनों बच्चे सही-सलामत इस दुनिया में आ जाएं….
गर्भावस्था के दौरान अनेकों मुश्किलें आईं मगर दिशा ने हार नहीं मानी…
उसने जान लिया था कि इस स्वार्थी संसार में कोई किसी का नहीं है अगर कुछ साथ है तो बस अपनी हिम्मत और ईश्वर का भरोसा….
छठवें महीने मे दिशा को इतनी तकलीफ बढ़ गई कि उसके बच्चेदानी का मुंह खुल गया और रक्तस्राव होने लगा…
आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया डाक्टर ने कुछ जरूरी दवाएं दी और खास हिदायत दिया कि दिशा को हर समय बेडरेस्ट करना अत्यंत हीं आवश्यक है।
इतना सबकुछ सुन कर भी उसके ससुराल वालों को उस पर जरा भी दया नहीं आई और दिशा अनवरत घर के कामकाज करती रही।
दिशा दिन-रात बस बच्चों के जन्म को लेकर चिंतित रहती…
आखिरकार बच्चों के जन्म का समय भी आ गया…
घरवालों ने अपना असली रंग तो उसी समय दिखाया और कहा दिया कि अपने मैके से किसी को बुला लो देखभाल करने के लिए….
दिशा के मैके से भाभी आई…
एक बड़े आपरेशन के बाद दिशा ने बेटा और बेटी को जन्म दिया।
दोनों बच्चे बिल्कुल स्वस्थ…
प्रसव के दौरान और बच्चों के जन्म के बाद भाभी पल-पल दिशा के साथ रही।
एक हफ्ते बाद दिशा घर आई तीन बच्चों की जिम्मेदारी कमजोर शरीर और ससुराल वालों की अनदेखी से दिशा टूट सी गई।
जिस परिवार को संभालने में उसने डाक्टर की सलाह नहीं मानी बच्चों की जिंदगी दांव पर लगा दी उनकी ये बेरुखी उसे बार-बार रूला रही थी।
भाभी पंद्रह दिनों के बाद चली गई,दिशा घरवालों के ऐसे व्यवहार से हर दिन टूट सी जाती।
इतने छोटे बच्चों को लेकर मैके भी नहीं जा सकती थी।
एक एक दिन काटना कठिन हो रहा था।
जैसे तैसे बच्चे जब दो महीने पहले के हुए तो दिशा मैके चली गई…
उस स्वार्थी संसार को छोड़कर उसे आज बड़ा हीं शुकून महसूस हो रहा था, मगर साथ-ही-साथ वो ये भी सोच रही थी कि आखिरकार लौट कर तो इसी स्वार्थी संसार में आना है।
और वहीं हुआ…
बच्चों को एक साल तक मैके में पालने के बाद दिशा को आना हीं पड़ा अपने स्वार्थी संसार में….
डोली पाठक
पटना बिहार