महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में निष्णात धावक अनमोल एक कदम पीछे रह गया था। मामूली सा अंतर था। लेकिन वह पाट न सका। हार से सबका मन उदास था। हार, हार होती है।
” सबकी आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया तुमने।” मित्रगण ताना दे रहे थे।
” ओफ्हो! तुम कभी कुछ नहीं कर सकते।”
पापा नाराज हो गये थे। मम्मी ने भी खूब खरी-खोटी सुनायी।
” उल्टे घड़े पर पानी है, तुम पर मेहनत करना। जीतना चाहते ही नहीं हो। ध्यान कहां था तुम्हारा?” कोच राघवेंद्र भी बरस पड़े।
अनमोल अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं रहने देता था। पर न जाने क्यों लगातार तीसरी बार नगण्य अंतर से वह पीछे रह गया था। मुरझाये मन से अपनी हार से उदास, चुपचाप बैठा था वह। माना,
अपने मम्मी पापा का लाडला था, मम्मा का तो ‘अनमोल’ हीरा था, लेकिन हारनेवाले के प्रति रूखा व्यवहार अपने आप हो ही जाता है।
परम मित्र सौमिल ने उसे ढ़ाढ़स बंधाया।
” नहीं मित्र, ऐसे हार नही माननी है।”
” अपनी जिद और लगन से सतत अभ्यास करते रहो। जब तक सफलता न मिले, चैन से मत बैठना। उठो सखा, दोगुने जोश से मंजिल पाने की कोशिश करो।”
नवल आशा ने महत्वाकांक्षा को झंझोडा।
और ज्यादा सतर्क रहेगा वह। खानपान सुधारकर अपनी उर्जा बढायेगा।
जीतना ही है उसे, हर हाल में।
“और विनर है भारत का ‘अनमोल सिन्हा'”
भारत के राष्ट्रगीत गान के साथ सुवर्ण पदक से उसे सम्मानित किया गया। ‘जयहिंद’ की गूंज से आसपास चहक उठा।
आज जीत हासिल कर माँ भारती का गौरव बढ़ाया है उसने। मम्मा की आँखें नम हुई है। पापा ने भींचकर बाहों में भर लिया है।
कोच दूर से मुस्कुरा रहे है। मित्रगण उसे घेर कर जयघोष कर रहे हैं।
भरसक कोशिश रंग लायी थी आज।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र