घुंघरू के स्वर की मधुर लहरी, खुरो के पद चाप का संगीत, खुरों से उड़ती धूल की सुगंध, कोयल की कुहू कुहू की मादक सुरीली मस्त आवाज, मानो ऐसी लग रही थी कि यही जीवन है ।
सूर्य देवता भी इस मनोरम दृश्य से मदहोश होकर ऐसे झांक रहे हैं, जैसे नई-नई दुल्हन अपने घूंघट से चेहरा निकाल कर झांक रही है ।
सुबह की सुनहरी बेला में किसान भाई अपने खेतों की ओर अपने बैलों और हलो को लिए जा रहे हैं । एक दूसरे को राम-राम, जय राम जी का संबोधन करते हुए । मंदिरों में भी पूजा अर्चना शुरू हो गई । घंटियो की आवाज़ें गूंज रही हैं । ऐसा सुहाना वातावरण है कि मानो यही स्वर्ग है । किसान भाइयों की पत्निया अपने पतियों के लिए खाना लेकर आई । रंग बिरंगी पोशाक में मानो ऐसा लगता है कि इंद्रधनुष लहरा रहा है ।
रस गांव के मुखिया जमींदार साहब राधा प्रसाद जी एक नेक और व्यावहारिक इंसान हैं । मोहिनी जी जमींदार साहब की पत्नी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला है । उनके दो बेटे हैं सुरेश बड़ा और रमेश छोटा ।
वास्तव में जमींदार साहब को तो उनके पिताजी का खिताब मिला हुआ है । असली जमींदार तो उनके पिताजी थे । अपने रोबिले रूप में रोबदार आवाज में लगभग सारे गांव वासियों को अपने रोब में रखते थे । राधा प्रसाद जी उनके इकलौते बेटे हैं । गांव की पूरी पढ़ाई करके उनको आगे पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया । 12वीं के बाद उनके आगे पढ़ने की इच्छा थी । उनको धीरे-धीरे शहर की बनावटी चमक दमक रास आने लगी । उनके साथी और दोस्तों की बातों का असर होने लगा ।
परंतु धीरे-धीरे वह स्वार्थी संसार को पहचानने लगे । अब वह लगभग 20-21 साल के हो गए तो पिताजी ने गांव में बुलाया और कहा तुम्हारी शादी हमने तय कर दी है । तब राधा प्रसाद जी ने कहा मैं आगे पढ़ना चाहता हूं । कुछ बनना चाहता हूं । तब उनके पिताजी ने कहा यहां की सारी जमीन जायदाद केवल तुम्हारी है । नौकरी की क्या जरूरत है । परंतु उनको तो बड़े शहर मुंबई के पोश शहर आकर्षित कर रहे थे ।
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परंतु पिताजी ने उनको कहा कि हमने तुम्हारी शादी तय कर दी है । अगले महीने तुम्हारी शादी है । अब इसके आगे वह कुछ बोल नहीं पाए । उनकी शादी हो गई । उनकी पत्नी शालीनता एवं व्यवहार की सुंदर संस्कारिक महिला हैं ।
मोहिनी जैसा नाम वैसी सीरत । उन्होंने अपने व्यवहार से पूरे घर को एक सूत्र में पिरो लिया । राधा प्रसाद जी भी उनके मधुर व्यवहार के चलते शहर के स्वार्थी संसार का मोह छोड़ चुके थे । कुछ समय पश्चात उनके दो पुत्र हो गए । घर में खुशियां ही खुशियां फैली रहती है । राधा प्रसाद जी के बाल सखा रामकृष्ण जी के भी एक बेटा है रामा । उनकी पत्नी ममता देवी अपने परिवार को कुशलता पूर्वक प्यार से संजो कर रखती हैं । अब तीनों बच्चो की गांव की पांचवी कक्षा तक पढ़ने के बाद शहर जाकर पढ़ाई करने की बारी आई ।
तो राधा प्रसाद जी के दोनों बेटे सुरेश और रमेश तो शहर जाकर पढ़ाई करने राजी हो गए । लेकिन रामा नहीं गया । उसको पिताजी के साथ अपने खेतों में काम करना अच्छा लगता था । जमींदार साहब के दोनों बेटे इंटरमीडिएट तक पढ़कर आगे नहीं पढ़ने का मन बना चुके थे । उनके दिलों दिमाग में भी स्वार्थी संसार का रंग चढ़ने लगा । उनके साथ पढ़ने वाली लड़की कामिनी (सुरेश की दोस्त) शादी करने को तैयार हो गई ।छोटे रमेश को भी रिया मन ही मन भा गई । जब दोनों गांव आए तो माता-पिता जी ने शादी के लिए बात की ।
तो दोनों ने अपनी अपनी पसंद बता दी । मां पिताजी की इच्छा ना होते हुए भी उनको बच्चो की बात माननी पड़ी । दोनों बच्चों की शादी हो गई । दोनों बहू वैसे तो व्यवहार कुशल हैं, परंतु शहर में रही पड़ी है । वहां के दिखावटी स्वार्थी संसार से अछूती नहीं थी दोनों बेटे बहु शहर चले गए बड़े सुरेश ने बिजनेस का कार्य शुरू कर दिया । छोटे रमेश ने सरकारी ऑफिस में नौकरी कर ली । घर से पैसे मंगाते रहते । मोहिनी जी एक बार बहुत बीमार पड़ी तो दोनों में से एक भी देखने नहीं आया ।
वह सब को छोड़कर इस दुनिया को छोड़ गई । जमींदार साहब अकेले रह गए । अपनी जीवन संध्या बिता रहे थे । जमा पूंजी भी बेटों ने मंगा कर खाली कर दी । अकेले-अकेले रहते बीमारी ने अपना डेरा लगा लिया ।
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एक दिन राम कृष्ण जी अपने खेतों में पानी दे रहे थे । तो उनको जमींदार साहब दिखे । वह उनके पास गए उनका हाल-चाल पूछा वह बहुत दुखी नजर आ रहे थे ।
बच्चे पैसों के लिए कहते और जमीन हवेली बचने के लिए कहते । उन्होंने साफ मना कर दिया ।
अपनी हवेली में उन्होंने कक्षा एक से लेकर 12 तक का स्कूल खुलवा दिया । गांव के बच्चों को और आसपास के बच्चों को पढ़ाई की अच्छी सुविधा हो गई । अपने बचपन के सखा दोस्त सब मिलकर साझं की बेला में हंसी खुशी से जीवन जी रहे है । हर होली दिवाली पूरा गांव इकट्ठा होकर खुशियां मनाते हैं । मानो ऐसा लगता है पूरा गांव एक परिवार है । कभी-कभी इच्छा होती है तो राधा प्रसाद जी के बेटे बहू भी आ जाते हैं । स्वार्थी संसार का यहां कोई बोल बाला नहीं है । पूरा गांव प्यार के साथ खुशियों के दीप उज्जवल कर जगमगा उठाता है ।
“स्वार्थी संसार”
इस माया लक्ष्मी ने अपने मोह जाल में पूरे संसार को फंसा रखा है । मां अपने बच्चों को भी छोड़कर दुनिया से चली गई व पर बच्चे नहीं आए । पैसा है तो सब रिश्तेदार अपने हैं । नहीं तो अपने भी भूल जाते हैं । औरों का तो क्या ही कहना ।
यही है स्वार्थी संसार
लेखिका
सरोजनी सक्सेना