दस रुपए में कितना सच जानना चाहते हैं साहब….?
क्या बोली बेटा….?
तू तो बहुत ज्यादा जबान चलाती है..!
बच्ची है , पर बच्ची की तरह तो बिल्कुल व्यवहार नहीं है तेरा….देख बेटा , क्या है ना…. तेरा ये स्पष्टवादिता होना कई बार तेरे लिए मुसीबत भी बन सकती है…. और कई बार बहुत सहायक भी… ध्यान रखना बेटा….! कह कर मोहन बाबू आगे दूसरी सब्जी वाले की तरफ बढ़ गए …।
दरअसल बात ऐसी थी कि शासकीय प्राथमिक शाला की परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थी…..कजरी आज बिल्कुल फुर्सत में थी… आज उसने अपने बापू शिवचरण की मदद करने की सोची… शिवचरण ठेले पर फल बेचा करते थे , थोड़ी सी जमीन थी वहां थोड़ी-मोड़ी सब्जी भी लगा लेते थे …उसे भी साथ में बेचने का काम करते थे…!
अपने बापू को सुबह चार बजे से उठकर एक-एक , छोटे-छोटे टमाटर को तोड़ते हुए देखती कजरी … इतनी मेहनत करते देख कजरी एक दिन बड़ी मासूमियत से बोली….
बापू , आज मैं भी आपके साथ सब्जी बेचने चलूं …?
अरे नहीं बिटिया , बड़ी तेज धूप रहती है …इतनी गर्मी में तू परेशान हो जाएगी..। बापू एक बार मुझे भी देखना है आप कैसे फल और सब्जी बेचते हैं …बस आज भर के लिए बापू…! बिटिया के विनती भरे आग्रह को शिवचरण ठुकरा ना सके….।
अच्छा चल…. एक बार तू भी चल कर देख ही ले ….फिर कभी नाम नहीं लेगी सब्जी बेचने जाने का….!
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इसीलिए तो मैं अपनी लाडली बिटिया को पढ़ा लिखा रहा हूं ताकि मेरी बिटिया को इस धूप में परेशान ना होना पड़े ….!
चल , आज तू टमाटर बेचना और जितने टमाटर तू बेचेगी उसके पैसे तू ही रखना और आज चिप्स , कुरकुरे खरीद लेना शिवचरण ने कजरी को सुनहरा ऑफर देना चाहा …!
पर कजरी तो अपने बापू की सहायता करने के उद्देश्य से टमाटर बेचने बाजार जाना चाहती थी…।
बस फिर क्या था …सड़क के किनारे पर फुटपाथ बने थे उपयुक्त जगह देखकर ….एक बोरा बिछाकर…कुछ टमाटर रखकर… कजरी बैठ गई टमाटर बेचने …सड़क के उस ओर शिवचरण फल का ठेला लगाता था…!
बीच-बीच में कजरी को शिवचरण देख भी लिया करता था , उसका पूरा ध्यान कजरी की ओर था…. बिटिया पहली बार टमाटर बेचने के लिए बाजार जो आई थी…!
बस इसी बीच मोहन बाबू कजरी से टमाटर के भाव पूछे….
टमाटर कैसे दिए बेटा…?
दस रुपए किलो…
टमाटर छांटते हुए मोहन बाबू ने कहा.. सारे टमाटर में तो काले काले दाग है , कुछ सड़े गले हुए भी हैं…?
हां साहब कारा (ओला ) गिर गया था उसी के निशान है …मोहन बाबू ने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा….बेटा , ये कारा (ओले) वाले अलग है और ये गले हुए अलग है …तूने तो दोनों को एक ही साथ मिला दिया है…!
लगता है ओले की आड़ में कुछ खराब हुए टमाटर भी बेचने के प्रयास में है तू…..
अच्छा रुक जा….मैं और सब्जी खरीद कर आता हूं ….फिर तुझसे टमाटर लेता हूं …कहकर मोहन बाबू आगे बढ़ गए…।
कजरी सोच रही थी मुझे बेवकूफ समझते हैं क्या साहब..?
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और सामान लेकर आता हूं , फिर टमाटर खरीदता हूं …अरे झूठ बोलने की क्या जरूरत थी …नहीं थे अच्छे मनपसंद के टमाटर ….तो नहीं लेना था आपको… झूठ बोलने की क्या जरूरत थी…?
अब लोगों को कैसे बताऊं , कैसे समझाऊं….कि जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं ना साहब ….तो हम छोटे लोगों को कितनी परेशानी उठानी पड़ती है… जब पानी की जरूरत हो तब सूखा पड़ जाता है …और जब फसल तैयार हो तो ओले गिरकर फसल नष्ट हो जाना ….इसकी भरपाई करना हम लोगों के लिए बहुत मुश्किल होता है…? हमारे घर का खप्पर टूट जाए …घर में पानी भर जाए …. वो तो फिर भी हम सह लेते हैं …..
पर सब्जियों को चोट लग जाए तो हमारे घर का तो चूल्हा जलना ही बंद हो जाता है साहब….!
अरे क्या सोचने लगी कजरी…?
शिवचरण की आवाज ने कजरी के सोच पर विराम लगाने को मजबूर कर दिया…..!
कुछ नहीं बापू….. ये टमाटर तो नहीं बिक रहे हैं…. ओले से चोटिल टमाटर को कोई खरीदना ही नहीं चाहता… जब बाजार में दूसरे अच्छे टमाटर मिल रहे हो तो इन्हें कौन खरीदेगा… टमाटर की ओर इशारा करते हुए कजरी ने कहा…।
अरे , तू चिंता मत कर बिटिया…मैंने फल बेचे है ना…. तुझे आज कुरकुरे और चिप्स जरुर खिलाऊंगा… कहकर शिवचरण ने कजरी का माथा चूमा…।
अब कजरी कैसे समझाती अपने बापू को…..कि वो तो कुछ पैसे कमा कर आपकी मदद करना चाहती थी उसे चिप्स कुरकुरे का लालच नहीं है…।
खैर…. मन मार कर कजरी फिर टमाटर के सामने पालथी मार कर बैठ गई…. थोड़ी देर बाद एक महाशय ने आकर कहा…..शाम हो रही है ऐसे टमाटर को कौन खरीदेगा…. दस रुपए में पूरा दे दे… तेरा सारा टमाटर बिक जाएगा… मुझे भी कुछ फायदा हो जाएगा …!
ये सुनते ही कजरी गुस्से से उठी और सामने से आ रही गाय के सामने सारे टमाटरों को रख दिया और बोली….
” गाय को खिलाने से मुझे दस रुपए से ज्यादा के पुण्य मिलेंगे “…।
तभी साइकिल से मोहन बाबू मुस्कुराते हुए आए और बोले ….
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बेटा मेरा टमाटर….?
मैंने तुम्हें रखने को बोला था ना…?
वो खराब , ओले गिरे हुए टमाटर थे ना साहब…..इसीलिए मैंने गाय को खिला दिया…. मायूसी भरे स्वर में कजरी ने कहा…।
एक बात बताऊं साहब….
नन्हें नन्हें पौधों को लगाना …पानी देना….पौधों में फूल लगने से लेकर फल लगने तक उनकी देखभाल करना… छोटे-छोटे फलों को तोड़ना.. रखना ..बाजार तक लाना…. जैसी न जाने कितनी मेहनत बापू करते हैं…. फिर कोई दस रुपए किलो भी नहीं खरीदना चाहता….
” मैं तो अपने बापू के मेहनत को महसूस करना चाहती थी साहब “
कजरी की बातों में अपने पिता के लिए… प्यार , इज्जत, मदद करने की चाह….और सबसे बड़ी बात….मदद न करने का दुख… साफ झलक रहा था…. एक बेटी का पिता के प्रति प्यार स्नेह देखकर मोहन बाबू द्रवित हो गए…।
और हां आज मैंने अपने बापू को भी झूठ बोलते हुए देखा है ….आश्चर्य से शिवचरण ने कजरी की ओर प्रश्नचिन्ह नजरों से देखा और बोला…
झूठ बोलते और मुझे…?
हां बापू…. आप कभी सेव का एक टुकड़ा भी नहीं चखते…फिर भी जो सेव खरीदने आते हैं और आपसे पूछते हैं…
मीठे हैं…?
आप तुरंत जवाब देते हैं हां हां मीठे हैं…।
तभी तो मैं सोचूं… फल की पेटी खोलते हुए और ठेले में सजाते हुए आप भगवान से हाथ जोड़कर हमेशा कहते हैं …हे भगवान सेव मीठे और स्वादिष्ट निकले…।
मोहन बाबू जो कजरी की बातें ध्यान से सुन रहे थे …बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए बोले…. बेटा मैं चाहता तो उसी समय तुमसे तुम्हारे सारे टमाटर खरीद लेता….पर मैं तुम्हें संघर्ष कर पैसे कमाना देखना चाहता था …ताकि तुम समझ सको…
आसानी से कोई भी चीज नहीं मिलती… फिर पैसे …?
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पैसे तो बिल्कुल भी नहीं….
अभी तो तुम्हें बहुत लंबी जिंदगी जीनी है…. न जाने जिंदगी में कितने ऐसे संघर्षों के थपेड़ों को पार कर तुम्हें आगे बढ़ना पड़ेगा…. पर मुझे एक बात तुम्हारी अच्छी लगी…. तुमने समझौता नहीं किया….. अपने बापू के मेहनत को ..जो बच्ची महसूस करना चाहती हो…. एहसास करना चाहती हो….सच में वो बच्ची बहुत आगे जाएगी…. मन लगाकर पढ़ना…. चलो अब तुम्हारे बापू से कुछ फल खरीद कर घर चलूं…।
फल खरीद कर मोहन बाबू लौट रहे थे… उनके मस्तिष्क में कजरी की ये बातें बार-बार घूम रही थी ….मैं अपने बापू के मेहनत को महसूस करना चाहती हूं साहब…
जैसे ही मोहन बाबू सब्जी और फल लेकर घर पहुंचे…. कॉलबेल बजाई…
हाथ में मोबाइल पकड़े , नजर मोबाइल पर गड़ाए हुए जल्दी से दरवाजा खोलकर तुरंत वापस सोफे पर धम्म से बैठकर…. मोहन बाबू की बिटिया पिंकी फिर से मोबाइल में व्यस्त हो गई…।
पिंकी की उम्र भी लगभग कजरी के उम्र के बराबर ही होगी…!
खैर… शांत वातावरण में मोहन बाबू ने आज का वाक्या अपने घर में बताया… विशेष कर कजरी की ये बातें कि मैं अपने बापू के मेहनत को महसूस करना चाहती हूं….बोलते बोलते मोहन बाबू भावुक हो गए…।
(स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय : # स्वार्थी संसार
संध्या त्रिपाठी