अम्मा सुबह से चाय की राह देख रही थी उम्र तो काफी हो गई थी खुद से बना भी तो नही पाती थी,बेटा सुबह सुबह चाय दे देता था वह तो कल रात को लौट कर आया ही नही रिश्तेदार के घर से,चाय की उम्मीद लगानी भी मूर्खता हैं बहू तो देगी नही लेकिन शायद पोता ले आए कभी कभी दे तो जाता हैं खाना चाय पानी की बोतल ,कितना स्वार्थी संसार हैं आज जब यह अम्मा किसी काम की नही रही तो किसी को इसकी याद नही आती,पांच पांच बेटिया हैं साल भर उनके घर घुमती थी।
बहानो मे लडाई होती माँ को लेकर किसके घर ज्यादा ठहरेगी माँ आनंद से गदगद हो जाती बेटिया उससे कितना प्यार करती हैं बेटियों को जब जब जरुरत पड़ी वह दौड कर गई, चाहे बहू जितनी ही तकलिफ मे क्यूं न हो ,बहु का छोटे बच्चे को लेकर काम करना घर सम्भालने मे बहुत दिक्कत होती बेचारी बच्चे को पीठ पर बांधकर काम करती उधर सास नंदो के घर घुमती नाती नतनीयो को पालने पोसने मे बेटियो की मदद करती नंदे घुमने जाती वह बच्चो को घरो को संभालती।
अम्मा जब बेटे के पास आती तो हमेशा बहू के साथ झगड़ते बहू की कमिया निकालती,बहू अगर कुछ बोलती तो उसे बुरा भला कहती दो दिन रहकर फिर बेटियो के घर चली जाती।बहू ने अकेले ही दोनो बच्चो को बडा किया,बेटा हमेशा ही काम के सिलसीले मे बाहर रहा उसे अपनी अम्मा की आदत का पता था अपनी दिदियो का भी की उसकी सारी दीदी अपने स्वार्थ के लिए माँ को अपने पास बुलाती हैं,लेकिन माँ के आंखो मे बेटियो के मोह का पर्दा चढा हैं अम्मा को यह दिखाई नही दे रहा एक दिन यह पर्दा जरुरउतारेगा यह स्वार्थी संसार हैं।
अम्मा की भी अब उम्र होने लगी थी एक दिन तबियत बिगड़ गई कुछ दिन रखने के बाद जब बड़ी बेटी ने देखा माँ ने तो बिस्तर पकड़ ली तो बहनो को फोन किया सभी ने कुछ न कुछ बहाना बना दिया,भाभी को फोन नही कर पायी क्युंकि माँ अऔर भाभी के झगडो मे बहनो का भी हाथ रहता था,माँ अब उसे बोझ लगने लगी थी थक हार कर उसने अम्मा से भाई की बात करा दी”मुझे घर ले चल कितने दिन तक इस बिमारी मे बेटी के घर रहूँगी,बेटे बहू का ही फर्ज हैं बुढे माँ बाप को करना”
बेटा नि शब्द था वाह रे संसार जितने दिन अपनी चली अपनी मर्जी की करती रही मेरे बच्चे रोते बिलखते रह गए लेकिन दादी का गोद न मिला आज जैसे ही बिमार पड़ी बेटे की याद आ गई बेटे बहू का फर्ज याद आ गया उसे अच्छी तरह से पता था सभी दिदियो ने अम्मा से मुँह मोड़ लिया हैं।
बहू ने भी कहा छोडिए अब उन्होने गलती की तो क्या हम भी गलती करे आप उन्हे ले आइये मैं मन से उन्हे माफ़ नही कर पाऊंगी लेकिन वह आपकी माँ हैं हमारा उनके प्रति कुछ फर्ज हैं वह तो पुरा करना ही होगा,वह् बिमार हैं उन्हे स्वास्थ करना हमारा कर्तव्य।
बेटा गाड़ी लेकर गया अम्मा को लेकर आ गया पोता पोती बेटा अम्मा की देखभाल करते बहू चुपचाप अपना काम करती अम्मा से कुछ न बोलतीं,अम्मा को मन ही मन अफसोस होता की इन बच्चो के बचपन मे गोदी मे न खिलाया लेकिन यह बुढापे मे मुझे खिला रहे।
*****
बहू चाय लाई थी अम्मा बोल पड़ी आज सोनू नही आया,उसकी आज छुट्टी हैं देर से उठेगा बहू गंभीर रुप मे बोलते हुए कमरे से निकालने लगी तभी अम्मा बोल पड़ी बहू मुझे माफ़ कर दे मैने उस वक़्त अपने बेटियो का स्वार्थ न समझा था आज उनका स्वार्थ निकल गया तो कोइं न अब मेरी खबर लेते डरते हैं कहीं मेरी सेवा न करना पडे,मैने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया।
बहू फीकी हँसी हँसते हुए बोल पड़ी”कोई बात नही मांजी यह स्वार्थी संसार हैं,यह आज आप जो मुझसे माफी मांग रहे हैं अपने स्वार्थ के लिए ही,जो हो गया सो हो गया घाव के दाग जिन्दगी भर रह गए,आप चाय पी ले”
बहू की बातो मे गम्भीरता थी अम्मा को अतीत की बाते याद आने लगी किस तरह वह बेटियो के मोह मे बहू को दो छोटे बच्चो के साथ अकेले छोड कर चली जाती थी बेटियो के मोह मे,आज कैसे बहू के पास आ गई उसकी सेवा खाने मैं भी स्वार्थी हुँ मन ही मन खुद को कोस रही थी लेकिन अब कोई रास्ता नही ,उसने जो गलती की कोई दुसरा न करे ।
स्वरचित मौलिक
आराधना सेन
#स्वार्थी संसार