हर एक घर की अपनी किस्मत होती है।
उसी के अनुसार घर वालों की किस्मत भी पलटती रहती है।
घर बेजान तो नहीं ही होते, वह भी बोलते हैं महसूस करते हैं, बस अनाड़ी इंसान समझ नहीं पाते।
उनकी ऊर्जा से ही घर महकते और चहकते हैं और उन्हीं की नकारात्मकता से ही घर बर्बाद भी होते हैं।
वास्तु को मानते तो सभी हैं पर जानते बहुत कम हैं।
वैसे भी यह वो विज्ञान है जिसके सागर की कुछ बूंदें ही अभी तक समझ में आ सकी हैं।
कभी देखा है उन मकानों को जहां खाने को बेशक कम होता है पर रौनक उस मकान की और उसमें रहने वालों की कम नहीं होती । कम में भी सब लोग एक दूसरे के साथ खुशी खुशी जीवन व्यतीत करते हैं ।कभी किसी कमी का रोना नहीं।
बस जो है उसी को मिल बांटकर खाते हैं और हर पल प्रसन्न रहते हैं। यहां तक कि उन घरों में आने वाले मेहमान भी उस अनोखी खुशी को महसूस करते हैं और आश्चर्य करते हैं कि कैसे इतने कम संसाधनों में भी ये लोग इतने खुश हैं ।
ऐसे मकानों की ईंट ईंट खुशी से झूमती है।
यहां तक कि इस घर से कोई कुछ दिनों के लिए बाहर जाता है तो घरवाले ही नहीं मकान भी उसकी प्रतीक्षा बेसब्री से करता है और लौटकर आने पर बांह फैलाकर स्वागत भी करता है।
कहीं कहीं देखा होगा जब कोई बहुत दिनों बाद लौटकर आता है तो वह मकान की दीवारों को भी ऐसे ही बाहों में भरता है जैसे घरवालों को, उससे मिलकर भी वह आंखें नम करता है। यह प्रक्रिया दोतरफा होती है भले दिखती एकतरफा है।
जब शादी होकर लड़की घर से विदा होती है तो वह न केवल माता-पिता, भाई-बहन के गले लगकर रोती है ,बल्कि दीवारों को छू छूकर उन्हें आत्मसात कर लेना चाहती है । वह जुड़ी होती है भावनात्मक रूप से इन दीवारों से और जताती भी है । वह केवल इंसानों से बिछड़ने से दुःखी नहीं होती , अपनी प्यारी दीवारों से भी उसे मोह होता है। वह जानती है कि उसकी बचपन की एक एक शरारत की साक्षी हैं यह दीवारें जिनसे अब वह सदा सर्वदा के लिए दूर हो रही है।
तभी तो लड़की की विदाई के बाद चहकता सा घर एकदम उदास हो जाता है ,उस उदासी में घर की दीवारें भी तो शामिल होती हैं । महसूस तो सब ने किया होगा यह सब ?
हालांकि अब यह सब शायद कम हो गया है।
भावनाओं की कमी है या सम- वेदना की या कि समय चक्र में सब कुछ आता जाता है?
इसके उलट कुछ मकान होते हैं जिनमें घुसते ही एक अलग ही नकारात्मक ऊर्जा का एहसास होता है। सबकुछ चकाचक दिखता भले है, पर हर्षोल्लास का नामोनिशान नहीं होता । सबकुछ होते हुए भी कुछ कमी सी लगती है ।
घर के लोग चाहकर भी एक-दूसरे का साथ नहीं दे पाते । कहीं कहीं तो एक ही घर में रहने वाले एक दूसरे के खिलाफ साजिश कर रहे होते हैं और क्या लगता है मकान इस सबसे निरपेक्ष रहते हैं??
शायद नहीं वह भी यह सब देख रहे होते हैं और उसी अनुरूप वह उनकी खुशियों को धीरे-धीरे निगल रहे होते हैं।
पर बस पता नहीं चलता या शायद समझ में ही नहीं आता कि यह सब उनकी जिंदगी में क्या चल रहा है??
मकान बोलते हैं , उनकी भाषा समझना सभी को नहीं आता।
कुछ मकान तो ऐसी किस्मत वाले होते हैं कि कोई भी लंबे समय तक उनमें ठहर ही नहीं पाता । कुछ न कुछ ऐसा होता है कि मकान साल दो साल चार साल में बिकता रहता है । यही उसकी किस्मत होती है । स्थायित्व न तो उसके जीवन में होता है और न वह उसमें रहने वालों को स्थायित्व प्रदान कर पाता है।
तो कभी कभी जब लगे कि किस्मत किसी भी कीमत पर साथ नहीं दे रही तब मकान की किस्मत पर भी विचार कर ही लेना चाहिए ।
वैसे भी मेरा तो यह मानना है कि मकान की दीवारें न केवल सब सुनती हैं बल्कि सबकुछ सहेजती भी हैं।
जिस घर में कभी किसी को भी बेबजह सताया गया हो तो वह घर आगे चलकर किसी को भी खुशियां नहीं दे पाता ।
उसकी सहज स्मृति में वह सब रह जाता है जिसका प्रभाव उसमें रहने वालों पर पड़ता है।
वो एड देखा है दीवारें बोलती हैं!!!
हां जी सच ही कहा है उन्होंने दीवारें बोलती हैं और सच बोलती हैं।
दीवारों को वही सुनाएं जो आप अपने जीवन में सच में चाहते हैं।
मधुर संगीत सा जीवन चाहते हैं तो मधुर संगीत सा जीवन जिएं।
द्वेष भाव से परे , सहयोग की भावना से परिपूर्ण,तभी तो घर की दीवारें भी वही करेंगी।
यह कपोल कल्पना भर नहीं , हकीकत है , इसे महसूस करिएगा कभी।
किसी किसी घर में खुशियों के रेले और कहीं आसपास ही मातम घनेरे।
कहीं न कहीं इंसानों की किस्मत के अलावा भी बहुत कुछ होता है।
Poonam Saraswat