मेघा की मम्मी रेणु जी को मेघा के साथ रहते हुए मुश्किल से एक सप्ताह ही हुए थे लेकिन उन्होंने उसकी दिखावे वाली सोच को बहुत अच्छी तरह से भाप लिया था । ऊबने तो वो दो दिन से ही लगी थीं पर जिन परिस्थितियों में वो मेघा के पास आई थीं उन्हें टोकना सही नहीं लग रहा था पर जैसे- जैसे दिन बीत रहे थे उनकी चिंता और मेघा की स्थिति दोनों ही दुःखद होती जा रही थी ।
उस दिन रेणु जी उसी शहर में अपनी चचेरी बहन अनिता के यहाँ गयी हुई थीं । इत्तेफाक से तबियत थोड़ी ढीली होने की वजह से घर जल्दी आ गईं । दरवाजे पर पहुँचकर जैसे ही सैंडिल खोला मेघा की गुस्से वाली बहुत तेज़ आवाज़ रेणु जी के कानों में गई । उनके कदम वहीं ठिठक गए और उन्होंने घण्टी न बजाकर चुपके से मेघा और उसके पति भरत की वार्तालाप ध्यान से सुनना शुरू किया । चीखते हुए मेघा भरत जी से बोल रही थी…”ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिल्कुल नर्क सी बदतर हो गयी है, मेरे जीवन के ऐशो – आराम सब छिन गए हैं ।
बच्चों को भी आधा से ज्यादा समय मुझे देना पड़ता है । कभी डांस क्लास ले जाओ, कभी ले आओ, फिर कभी ट्यूशन तो कभी स्केटिंग क्लास लेकर जाओ, अपने लिए तो मेरा कोई समय ही नहीं है, लग रहा है सिर्फ तुम्हारे लिए जी रही हूँ ।
ये सारी बातें सुनकर रेणु जी को यकीन नहीं हो रहा था । जिसकी माँ इतनी धीर- गम्भीर, व्यवहारिक है , हर रिश्तों की मदद करना चाहती है उसकी बेटी अपने बीमार पति की सेवा करने में इतना कतरा रही है, और तो और दोषारोपण भी कर रही , लांछन भी लगा रही है ।क्या बीतती होगी भरत जी पर ?
एक बार मन मे आया कि घण्टी बजा दें पर फिर लगा बड़ी मुश्किल से तो ये घिनौना सच का पर्दा फ़ास हो रहा है, तो क्यों न पूरी तरह सुन लिया जाए …।
अभी भी भरत जी चुप थे , कितने मस्त, बिंदास पहले रहा करते थे भरत जी ! पता नहीं ये किडनी की बीमारी इतने कम उम्र में कैसे हो गयी ? मेघा को पति की सेवा करना चाहिए और हिम्मत बंधाना चाहिए लेकिन ये तो बस फालतू बातें करने और लड़ने में लगी है । “रेणु जी के मन मे ये उलझन चल रही थी ।
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कितनी बनावटी हो गयी है, मेरे सामने तो दिखा रही थी जैसे पति से प्यारा इसे कोई नहीं पर सब यहाँ उल्टा है । पर बात असल मे है क्या है रेणु जी खुद से बुदबुदा रही थीं ।
“तुम्हें जहाँ घूमना है घूमो, मेरी वजह से घर मत बैठो , मैंने मना नहीं किया घूमने से, पर मुझे कोसो तो मत कम से कम । मुझे पता है तुम्हारी ज़िन्दगी में मेरी वजह से रौनक कम हो गयी है, पर तुम स्वतंत्र हो कहीं भी घूमने जा सकती हो,।
“हाँ मैं तो घूमने जाऊँगी और आओ मुझे रोक भी नहीं सकते । मरीज के साथ रहकर मेरी ज़िंदगी बिल्कुल मरीज जैसी हो गयी है । देखा है कभी पीछे वाले सक्सेना जी की पत्नी कितने शान से हर वीकेंड में कहीं न कहीं घूमने जाती है । मेरी दोस्त शिवानी को भी उसके पति हरदम कहीं न कहीं घुमाते रहते हैं । बगल वाली रुपाली मिश्रा है जो गर्मियों की छुट्टी और सर्दियों की छुट्टी यहाँ नहीं बिताती है ।
अब मेघा ने ज्यादती कर रखी थी । रेणु जी को बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उन्होंने झटके से दरवाजा धकेला तो खुल गया । मेघा को जैसे काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गयी थी । मम्मी को देखकर वो बिल्कुल अवाक रह गयी । उसने पूछा…मम्मी ! आप अचानक..? रेणु जी ने नाराजगी दिखाते हुए कहा…”हाँ बेटा ! अचानक नहीं आती तो तुम्हारा ये दोहरा रूप कैसे देख पाती । समझ लो भगवान ने आने का संकेत दिया और मैं आ गयी ।
रेणु जी बालकनी में धुले हुए कपड़े ही डालने जा रही थी कि मेघा पीछे से आकर बोली..”मतलब ..नहीं समझी मम्मी ! रेणु जी ने कहा.. मुझे पागल मत समझो बेटा ! काफी देर से तुम्हारी बातें सुन रही हूँ । कितनी गिर गयी हो तुम, अंदाज़ है तुम्हें ? तुम्हारे पति के शरीर पर क्या बीत रही है , समझ नहीं आ रहा तुम्हें ? सप्ताह में चार दिन भरत जी को डायलसिस के लिए जाना होता है, डॉक्टर ने गाड़ी चलाने और बाहर घूमने के लिए सख्त मना किया है लेकिन तुम # दिखावे की ज़िंदगी ही जीने में लगी हो । कद्र करो पति की, उन्हें कुछ भी हुआ न तो तुम्हें कोई नहीं पूछने वाला ।
।”मम्मी ! आपको मेरा दुःख क्यों नहीं समझ आता ? मैं घर में रहकर ऊब गई हूँ । खीझते हुए मेघा ने कहा तो रेणु जी ने पानी की घूँट भरते हुए कहा..क्या अभी भी तुम्हें सब में और खुद में अंतर नहीं समझ आ रहा बेटा ? जिनसे तुम तुलना कर रही हो सबके पति स्वस्थ हैं । समझ क्यों नहीं रही तुम ? भरत जी क्या जान बूझकर बीमार हुए हैं जो ऐसी बातें कर रही हो । उनकी ज़िंदगी अगर सही रही न तो बहुत मौज – मस्ती करोगी । ऐसी अनर्गल बातें सुनकर उन पर क्या बीतती होगी समझती हो तुम ? अभी भी समय है वक़्त की परवाह करो । ये एक बार हाथ से फिसल गया न तो दुबारा नहीं लौटेगा ।
मम्मी की ये बातें सुनकर मेघा बिल्कुल जड़ सी हो गयी । थोड़ी देर बाद मेघा की दोनों दस वर्षीय बेटियां इरा और ईशा ने आवाज़ लगाई.. “मम्मीssssss..जल्दी आओ, देखो न पापा को क्या हुआ ? भागे – भागे मेघा और रेणु जी कमरे में गईं तो देखा..”
भरत जी को चक्कर आ गया था । मेघा पूरी तरह विचलित हो रही थी , चेहरे पर परेशानी के भाव उबर रहे थे । मेघा बोलने लगी…”उठिए न भरत ! ये क्या हुआ आपको, मैं टेंशन नहीं देना चाहती थी , अब मैं कभी कुछ नहीं कहूँगी आपको । बोलते हुए मेघा अपने पति के हाथ – पावँ रगड़ने लगी । अभी भी भरत जी को होश नहीं आया था ।
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तब पड़ोसी विपिन जी को आवाज़ गयी तो उन्होंने कहा…”मेघा भाभी ! परेशान मत होइए, अपनी गाड़ी लाता हूँ ।भरत जी को विपिन जी ने ले जाकर भर्ती कराया तो आधे घण्टे बाद उन्हें होश आया । डॉक्टर को देखते ही मेघा के चेहरे पर पसीने की बूँदें और परेशानी दिखने लगी ।बड़ी हिम्मत से उसने भरत जी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया …”केराटिन बढ़ गया है और दिमागी चिंता हावी है , इन चीजों से बचाकर रखें ।
डॉक्टर मेघा को समझा कर चले तो गए लेकिन उसने हाथ जोड़कर ईश्वर से कहा…”हे प्रभु ! मुझे इस संकट से उबारिये, अब दिखावे की ज़िंदगी से बहुत दूर रहूँगी और हमेशा अपने पति का ध्यान रखूँगी ।
#दिखावे की ज़िंदगी मे बहे जा रही थी और मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था । बस मेरे पति ठीक हो जाएं मुझे कुछ नहीं चाहिए किसी को देखकर नहीं मुझे करना ।
मम्मी के गले लगकर मेघा ने कहा…सही वक्त पर आँखें खोल दी मम्मी ! एक पल के लिए तो भरत जी के बगैर मेरी ज़िंदगी सोचकर तो आंखों के आगे अंधेरा ही छा गया ।
रेणु जी ने खुद से अलग कर पीठ थपथपाते हुए कहा…कोई बात नहीं बेटा ! ,जब जागो तभी सवेरा । थोड़ी देर में एक नर्स आकर मेघा से बोली…भरत जी आपको बुला रहे हैं । मेघा तेज़ कदमों से जाकर देखी तो भरत बिस्तर पर तकिया लगाकर टेके हुए हौले से मुस्कुरा रहे थे । मेघा ने आहिस्ते से माथा चूमकर कहा…”माफ कर दीजिए जी ! मैं बिल्कुल दिखावे में पागल हुई जा रही थी और आपको बेवजह बहुत सुनाई । भरत जी ने भी मुस्कुराते हुए कहा…”मुझे स्वस्थ रखोगी इसमें मेरा तुम्हारा और हमारे बच्चे का भविष्य भी छिपा है । मेघा ने नम आँखों से अपने सामने खड़ी दोनों बेटियों के सामने हौले से मुस्कुरा दिया ।
# दिखावे की ज़िंदगी
मौलिक, स्वरचित