“सुनो!ये रहे दो सौ रुपए !आज लौटते हुए अपनी दमा की दवाई जरूर लेते आना,रोज रात में खांसते खांसते बेहाल हो जाते हो!,मुझसे तो देखा नहीं जाता तुम्हारा हाल?शीला ने अपने पति जीवन से कहा!
तभी स्कूलके लिए बाहर निकलते हुए उनके बेटे मनु ने मुंह बनाते हुए कहा “पापा! जल्दी से ये दो सौ रुपए मुझे दे दीजिए,मेरे सब दोस्त कैंटीन में कभी पिज्जा-बर्गर चाऊमीन खाते हैं और मैं टिफिन में रोज रोज परांठे ले जाता हूं तो मेरे दोस्त मजाक उड़ाते हैं,मुझे बहुत शर्म आती है,आज मैं भी कैंटीन में बर्गर खाऊंगा!”
और जीवन ने दवाई के पैसे मनु को थमाते हुए शीला से कह दिया”कोई बात नहीं,अगली पगार मिलने पर सबसे पहले दवाई ले आऊंगा,तब तक एक टुकड़ा मुलेठी मुँह में रख लूंगा तो खांसी नहीं उठेगी!”
अगले दिन फिर मनु दूसरी फरमाइश लगा देता”मां मुझे भी राहुल जैसा पेंसिल बाक्स चाहिए कल अगर तुम नया नहीं लाई तो मै स्कूल नहीं जाऊंगा”!
वह आऐ दिन कभी रजत जैसी टी शर्ट तो कभी विकास जैसा मोबाइल लेने की जिद करता!
शीला लोगों के कपडे सिला करती थी!मनु के पिता जीवन ड्राइवर थे!दोनों का सोचना था कि हम तो पढ़लिख नहीं सके पर हर हालत में अपने इकलौते बेटे को खूब पढाऐंगे लिखाऐंगे जिससे उसे ऐसी ज़िन्दगी ना जीनी पड़े जैसी हम जी रहे हैं!
वे दोनों अपनी हैसियत से भी आगे जाकर मनु के लिऐ सारी सुख सुविधाएं जुटाने का प्रयास करते रहते!जीवन ओवरटाइम करता और शीला किसी के भी घर 50-50रूपये का भी फालतू काम करने को तैयार रहती!अपना पेट काट काट कर ,अपनी हर इच्छा को मारकर वे दोनों मनु के लिऐ पाई-पाई जोड़ते रहते!खुद भले ही फटे कपड़े और टूटे जूते पहनते पर मनु को उसकी पसंद का सामान दिलाने में कभी कमी ना रखते!
उन्होने मनु का दाखिला एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाया!
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मनु के मुँह से निकली हर फरमाइश को वे पूरी करते कि कहीं उसके दिल में कभी हीन भावना न आ जाए!
एक बार तो जीवन ने आपना खून तक बेचा जब मनु ने अपनी क्लास के साथ टूर पर जाने की जिद की और पैसे मांगे!
दिन गुजरते गए मनु का दाखिला इंजीनियरिंग में हो गया!
मनु के मन में बचपन से ही एक बात घर कर गई थी कि वह किसी तरह से बड़ा आदमी बने और खूब पैसा कमाऐ!
मां-बाप उसकी हर इच्छा पूरी कर रहे थे यह नहीं कि मनु अपने घर की स्थिति से परिचित नहीं था फिर भी वह कभी यह सोचने की जहमत नहीं उठाता था कि उसके बूढ़े मां-बाप किस मुश्किल से उसकी फरमाइशें पूरी कर रहे हैं,उसे उनके दुख-तकलीफ का दूर दूर तक कोई ऐहसास नहीं था!उसे मतलब था तो सिर्फ अपने आप से!वह हद दर्जे का स्वार्थी और खुदगर्ज इंसान था!
वह अपने किसी मित्र को कभी घर आने को नहीं कहता था कि कहीं उसकी असलियत न खुल जाए कि उसकी मां सिलाई का काम करती है या उसके पिता एक मामूली से ड्राइवर हैं!जब भी कोई घर चलने की कहता वह बहाना बनाकर टाल जाता!
पढ़ाई के दौरान मनु की दोस्ती शीना से हो गई! शीना उसके घर जाने को कहती पर वह टालता रहता!
वह शीना को कहता मेरी नौकरी लगने पर हम शादी कर लेंगे और कहीं विदेश में जाकर रहेंगे यहां क्या रखा है?एक बार यहाँ से निकलेंगे तो कभी वापस नहीं आऐंगे,चैन से ठाठ-बाट से रहेंगे!
एक दिन शीना जबरदस्ती मनु के साथ उसके घर चली गई!
शीला और जीवन का सादा सा साफ-सुथरा घर और ममता से भरा व्यवहार उसके मन को छू गया!
मनु ने होटल से खाने का आर्डर दे दिया पर शीना ने कहा आज वह मां के हाथ का बना खाना ही खाऐगी जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी क्योंकि उसकी मां को तो कभी उसके लिए टाइम ही नहीं था वह अपने क्लब किट्टी में व्यस्त रहती! उसने हमेशा नौकरों के हाथ का ही खाना खाया !अपनापन क्या होता है ,रिश्तों की अहमियत क्या है उसे पता ही नहीं!मां-बाप के प्यार के लिए वह तरसती रही!
मनु के कहने पर कि शीना का घर महल जैसा बड़ा है इस छोटे दो कमरे के मकान में वे कैसे रहेंगे तब शीना ने कहा”वह महल जैसा तो मकान है!घर तो यह है जहां प्यार है,ममता है और दुलार है!
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आज समझ में आया कि तुम किसी को अपने और अपने मां-बाप,घर के बारे में कुछ भी क्यों नहीं बताते थे!
तुम्हारा रहन-सहन और ठाठ-बाट ये सब इन दोनों की वजह से हैं !इन्हें इस बुढ़ापे में अकेला छोड़कर तुम विदेश जाने का सोच भी कैसे सकते हो!
ये बताओ तुम्हारे जाने के बाद ये कैसे रहेंगे ?तो मनु ने बेशर्मी से जवाब दिया”इनकी जरूरतें ही कितनी हैं हम थोड़ा-बहुत पैसा भेज दिया करेंगे!”
मनु का जवाब सुनकर शीना दंग रह गई उसने कहा मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी!
तुम्हारे मां बाबा के त्याग के कारण ही तुम यहां तक पहुंचे हो !हम उन्हें कैसे त्याग सकते हैं!तुम इतने खुदगर्ज कैसे हो सकते हो?पैसा ही सबकुछ नहीं होता!आज चंद पैसों के लिए तुम अपने मां-बाप को छोड़कर विदेश में बसना चाहते हो कल मुझे छोड़ दोगे?तुम्हें बड़ा घर चाहिए तो अपनी मेहनत से हम वो भी ले लेंगे फिर सब साथ रहेंगे”शीना ने प्यार से मनु को समझाया और “मां बहुत भूख लगी है , परांठों की बहुत अच्छी खूशबू आ रही है”कहकर शीना वहीं रसोई में शीला के पास आकर बैठ गई!
शीना ने मनु को कहा “ठीक है हम शादी करके बाहर चलेंगे और मां बाबा को भी साथ ले चलेंगे!मनु तड़क कर बोला “वे लोग वहाँ जाकर क्या करेंगे?हम दोनों ठाठ-बाट से रहेंगे अपनी फैमिली शुरू करेंगे!”
शीना कहाँ हार मानने वाली थी!उसने कहा जो तुम सोच रहे हो अपनी फैमली के साथ रहने की!तुम भी मां-बाबा की फैमिली हैं!क्या वे अपनी फैमली के साथ रहने के हकदार नहीं!हैं!
जरा सोचो वे इस उम्र में यहाँ अकेले कैसे रहेंगे!देख तकलीफ में किसका मुँह देखेंगे!इस स्वार्थी दुनिया में जब अपना ही खून,अपना खुद का बेटा मतलबी,स्वार्थी और खुदगर्ज निकल जाए तो गैरों से तो उम्मीद कैसी?
उन्हें अकेला छोड़कर मां-बाप-बेटे के रिश्ते को गाली मत दो!”
शीना को मनु को समझाने में देर तो लगी पर उसने धैर्य का दामन नहीं छोड़ा! धीरे धीरे उसने मनु को समझा लिया क्योंकि मनु शीला से बहुत प्यार करता था उसे किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता था!
कभी कभी पैसे की चमक दमक के आगे युवा पीढ़ी की आँखे ऐसी चौंधिया जाती हैं कि वे इतने खुदगर्ज हो जाते हैं कि जिन मां-बाप ने उनके अच्छे भविष्य के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया शिखर पर पहुंच कर उन्हीं को भूलकर उनसे दूर जाने की सोचते हैं वो भी तब जब उन्हें उनकी सबसे ज़्यादा जरूरत है!शीना की समझदारी ने मनु को खुदगर्ज होने से बचा लिया!
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक