नई नवेली बहू शुचिता की आज पहली रसोई थी। उसने सबके मनपसंद छोले पूरी और खीर बनाई थी। सबको उसका स्वाद बहुत पसंद आया और उसकी सास कमलेश जी अपनी बहू को शगुन पकड़ाते हुए बोली,”तुम्हारे हाथ में बहुत स्वाद है बहू, मुझे विश्वास है इस रसोई को तुम अच्छी तरह से संभाल पाओगी”।
तभी मेज़ पर बैठी शुचिता की ननद शुभ्रा बोली,”हां मां, स्वाद तो है पर तुम्हारे जैसी बात नहीं.. बस काम चलाया जा सकता है”।शुभ्रा की बात से शुचिता के चेहरे पर आई मुस्कुराहट पल भर में गायब हो गई। तभी पास बैठे ससुर विनय जी बोले,” हर इंसान के हाथ का अलग स्वाद होता है और आज बहू के खाने ने साबित कर दिया कि उसके हाथों में सच में जादू है”, कह कर उन्होंने शुचिता के सर पर हाथ फेरा और उसे शगुन का लिफाफा पकड़ा दिया।पति मनन की आंखों में भी अपने लिए प्रशंसा के भाव देखकर शुचिता का मन थोड़ा संभला और शुभ्रा के कथन से उसका ध्यान हट गया।
शुचिता और मनन दोनों घूम फिर आए और फिर से अपनी नौकरियों में जुट गए।जीवन अपनी गति से चल रहा था..घर में सभी अच्छे थे पर शुचिता ने पाया कि शुभ्रा को कोई भी बात बढ़ा चढ़ाकर करने की बहुत आदत थी लेकिन फिर भी वह उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी।पति मनन ने भी उसे यही समझाया था।
कुछ महीनों के बाद कमलेश जी को अपने मायके की रिश्तेदारी में शादी में जाना पड़ा विनय जी भी साथ थे। शुभ्रा के इम्तिहानों के दिन थे पर अब कमलेश जी को शुचिता के होते हुए उसकी कोई चिंता नहीं थी। कमलेश जी शुक्रवार को जाकर इतवार को वापस आने वाली थी।शुक्रवार को शुचिता ने छुट्टी ली थी और शनि इतवार को दफ्तर से उसे छुट्टी होती थी इसलिए कमलेश जी निश्चित थी कि उसके होते शुभ्रा की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आएगी।इतवार को जब कमलेश जी वापस आई तो शुभ्रा ने उन्हें परेशानी में बताया कि
आज सुबह से ही वह अपना ध्यान पढ़ाई में नहीं लगा पाई क्योंकि भाभी अपने मायके चली गई थी और भाई तो वैसे भी दफ्तर के काम से शहर से बाहर गया हुआ था। इतना सुनते ही कमलेश जी को बहुत गुस्सा चढ़ा और उन्होंने आते ही बहू को आड़े हाथों लिया।
शुचिता के लिए सास का यह रूप अप्रत्याशित था।वह बोली,” मम्मी जी, मैं सिर्फ दो घंटे के लिए अपने मायके इसलिए गई थी क्योंकि मेरी मां को 102 डिग्री बुखार आ गया था और पिताजी और भैया बिजनेस के सिलसिले में दूसरे शहर गए हुए थे उन्हें आने में देरी हो जाती और आज कामवाली बाई भी छुट्टी पर थी इसलिए मैं उनके पास चली गई थी।उनके लिए कुछ हल्का खाना बना आई थी और इतनी देर में मेरी मौसी जी भी आ गई थी और मैं तभी वापिस आ गई।मैं शुभ्रा को यह सब बता कर गई थी “।
बहू की बात सुन कमलेश जी का गुस्सा थोड़ा कम हुआ पर शुभ्रा की नमक मिर्च लगाकर बताई गई बातों से उनका मूड थोड़ा उखड़ा ही रहा।अगले कुछ दिनों में भी उनका मूड ऐसा ही रहा।शुचिता जानती थी कि यह सब शुभ्रा का ही किया धरा है पर वह बात को बढ़ाकर घर में कलह का वातावरण नहीं बनना चाहती थी।शुचिता हैरान थी कि 2 घंटे में ऐसा क्या हो गया कि शुभ्रा घर में अकेले पढ़ नहीं पाई कोई छोटी बच्ची थोड़ी ना थी वो।
फिर तो आए दिन ऐसा होने लगा कभी शुचिता पड़ोसन के साथ थोड़ी देर बात कर लेती तो शुभ्रा नमक मिर्च लगाकर अपनी मां को भाभी के खिलाफ भड़का देती। धीरे-धीरे सास बहू का रिश्ता खराब होने लगा।शुचिता भी अब अपने आप में रहने लगी।नहीं तो आगे वह सबसे खूब बातें किया करती।विनय जी ने भी पत्नी को समझाने की बहुत कोशिश की और शुभ्रा को डांट भी लगाई पर वह अपनी आदत से बाज़ नहीं आती थी।
2 साल बीते और फिर शुभ्रा का रिश्ता तय हो गया। शुभ्रा उसी शहर में ब्याही थी।शुचिता ने अपनी भाभी होने के सारे फ़र्ज़ निभाए और देखते देखते शुभ्रा अपने ससुराल आ गई।विदा करते वक्त कमलेश जी ने उसे अपने स्वभाव को बदलने के लिए हिदायत दी।।शुभ्रा ससुराल में आकर सबको अपना बनाने की कोशिश में रहती और मौके बेमौके पर मां की सलाह भी लेती रहती.. लेकिन उसकी दो ननदें अपनी मां को उसके खिलाफ हमेशा भड़काती रहती।
शुभ्रा चाहे जो मर्ज़ी कर ले लेकिन बेटियों के बहकावे में आकर उसकी सास हमेशा उसे जली कटी सुनाती रहती।अब शुभ्रा को अपनी भाभी का दर्द समझ आ रहा था।अब उसे लग रहा था कि जो नमक मिर्च लगाकर वह अपनी मां को बातें बताया करती थी उससे उसने भाभी का दिल कितना दुखाया था फिर भी उसकी भाभी ने उसके साथ कभी गलत व्यवहार नहीं किया और ना ही मां के साथ।अब वह बहुत पछताती थी। जानती थी जो उसने किया था उसके लिए माफी बहुत ही छोटा शब्द है.. उसने अपनी अच्छी भाभी का दिल दुखाया था जिसके दिल में सबके लिए प्यार था। इसलिए जब वह इस बार मायके गई तो उसने शुचिता से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी और कहा,” मैं जानती हूं भाभी कि मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है लेकिन मेरी नादानी समझ कर हो सके तो मुझे माफ कर देना।मेरी वजह से ही आपका और मम्मी का रिश्ता अच्छा नहीं बन पाया पर अब मैं अपनी गलती जान गई हूं” और उसने रोते-रोते अपने हाथ जोड़ दिए।
शुचिता ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और बोली,” कोई नहीं शुभ्रा, तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया है मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात है” ।भाभी के गले लगते हुए शुभ्रा जान गई थी कि जब खुद पर बीतती है तभी ज़िंदगी की हकीकत का पता चलता है।
#स्वरचित एवं मौलिक
#अप्रकाशित
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।
# मुहावरा #नमक-मिर्च लगाना