“अरे… खाली हाथ कैसे आ रहा है..!.. राशन सब्जी कहां हैं..?”
मीरा ने राहुल को खाली हाथ आता देख कर पूछा।
“मम्मी, हेमा मिल गई थी रास्ते में, उसने कहा घर में कुछ पैसों की ज़रूरत है, मधु दीदी और जीजा जी भी
आ रहें हैं, अगर कुछ पैसों का इंतजाम हो जाए तो बड़ी मदद होगी।”
“और इतना सुनते ही तू दो हज़ार रुपए उसे दे आया..!” मीरा गुस्से से उसे देखती हुई बोली।
“मम्मी वो रोने को हो रही थी.. पड़ोसियों की मदद तो करनी चाहिए ना” राहुल भोलेपन से बोला।
“अच्छा.. आ ज़रा चल मेरे साथ, तुझे पड़ोसियों से मिलवा लाऊं, पड़ोसियों से मिलते जुलते भी रहना चाहिए
ना.. आ चल”
मीरा राहुल को लेकर हेमा के घर की ओर चल दी।
हेमा के घर के बाहर पहुंचे ही थे कि अंदर से आवाज़ें आ रहीं थीं।
“अरे जीजा जी, बिरयानी और लीजिए ना फिर उसके बाद गुलाब जामुन और रबड़ी भी है”
“आज तो शाही दावत हो गई, हेम ये इतना सारा खर्चा कैसे कर लिया तूने..?” ये शिखा थी, हेमा की बड़ी बहन।
“अरे, ये तो वो मीरा का लड़का बाज़ार में मिल गया इसे, उसी की मेहरबानी है वरना आज तो परचून वाले ने
राशन भी उधार देने को मना कर दिया था “ हेमा की मां की आवाज़ थी।
“छोड़ो मां इस बात को, खाओ और ऐश करो, पड़ोसी मेहरबान तो गधा पहलवान” हेमा की इस बात पार सभी
बेशर्मी से हंस दिए।
मीरा राहुल को लेकर उल्टे पांव घर वापिस आई।
“सुन लिया सब अपने कानों से, ये परिवार पूरे मोहल्ले में मशहूर है अपनी इन हरकतों के लिए, तू पहले भी
एक बार इस लड़की को पैसे दे आया था और तुझे तब भी समझाया था”
“ सॉरी मम्मी, आइंदा से आपकी हर बात का ध्यान रखूंगा।”
उस दिन तो बात शांत हो गई पर हफ़्ते भर बाद ही राहुल कुछ परेशान सा घर लौटा तो मीरा ने पूछा, “क्या
हुआ, इतना परेशान क्यूं लग रहा है?”
“मम्मी, आपको तो पता है कि मेरी इंग्लिश थोड़ी कमज़ोर है इसलिए विनोद ने कहा कि मेरे भाई से इंग्लिश
की ट्यूशन ले ले, नंबर बहुत अच्छे आ जायेंगें, तो मैंने अपनी पॉकेटमनी में से पांच सौ रुपए एडवांस दे दिए थे
पर उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं पढ़ाया और अब जब चार दिन बाद मेरा एग्जाम है तो कह रहें हैं कि तू एग्जाम
जैसा मर्जी दे आ, तुझे पास करवाने की ज़िम्मेदारी मेरी है बस थोड़ा पैसा और ले आ..”
“हे भगवान, ताड़ जैसा बस शरीर ही लंबा हुआ है, दिमाग़ तो अभी भी नहीं बढ़ा.. दसवीं की बोर्ड परीक्षाएं
हैं…ऐसे एग्जाम्स में कोई पास होता है क्या और ट्यूशन की बात तूने अकेले कर ली, मुझे बताना भी ज़रूरी
नहीं समझा…!”
“मम्मी, मैं अच्छे नंबर लाकर आपको सरप्राइज़ करना चाहता था” राहुल रूआंसा हो गया।
माधुरी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अपने बेटे को वो बाहरी दुनिया की चालाकियां समझाएं..! अपने पति
की असमय मृत्यु के बाद उसने राहुल को बहुत मुश्किलों से पाला था। सारा दिन फैक्ट्री में काम करती, घर पर
कपड़े सीलती तब कहीं जिंदगी का पहिया आगे खिसकता।
जैसे तैसे उसने अपनी फैक्ट्री की सहेली के बेटे की मदद से राहुल की परीक्षा की तैयारी करवाई।
दसवीं का रिजल्ट आने तक माधुरी ने ज्यादातर वक्त राहुल को अपने साथ रखने की कोशिश की।
वो उसे अपने साथ फैक्ट्री ले जाती, वहां पैकिंग के काम में उसे लगवा दिया। सौदा खरीदने अपने साथ ले जाने
लगी। उसे हर ऊंच नीच समझाने लगी। जब पैकिंग के पैसे मिले तो वो पैसे राहुल को दिए और और पूछा, “
राहुल, मेरी सहेली को इन पैसों की ज़रूरत है, कुछ दिन के लिए उधार दे दूं उसे ये पैसे..?”
“मम्मी, आंटी तो कल ही अपनी बेटी की नौकरी लगने की मिठाई बांट रहीं थीं आज उन्हें उधार चाहिए..!”
उसका जवाब सुन कर माधुरी कुछ संतुष्टि से मुस्कुरा दी।
रिजल्ट आया तो राहुल सेकंड डिवीजन में पास हो गया था।
“अब विनोद को कहती हूं कि अब से पूरे साल अपने भाई से तुझे ट्यूशन दिलवाए ताकि एग्जाम्स के वक्त
परेशानी ना हो..”माधुरी ने जानबूझ कर उससे ये बात कही।
“मम्मी, खुद तो विनोद एग्जाम में नकल करते हुए पकड़ा गया है, उसका भाई पहले अपने भाई को पढ़ा ले, मैं
कल ही उसके घर जाकर अपने पैसे वापिस ले कर आता हूं”
आज माधुरी सोच रही थी कि एकल अभिवावक की जिम्मेद्दारी तो अपनी संतान के प्रति दोगुनी हो जाती है,
उसे बहुत पहले से ही राहुल को जीवन की बारीकियों के बारे में समझाना शुरु कर देना चाहिए था पर अभी
भी देर नहीं हुई, राहुल अब चीजों को बेहतर तरीके से समझने लगा है और आगे भी हर कदम पर वो उसके साथ
रहेगी क्योंकि ज्यादा सीधे रहने पर दूसरे हमेशा फायदा उठाते हैं इस बात का अनुभव उसे पहले हो
चुका था और अब वो नहीं चाहती थी कि राहुल भी जीवन में कटु अनुभवों से गुजरे। संसार बहुत
स्वार्थी है,ये बात राहुल अभी से समझ ले तो उसके भावी जीवन के लिए उपयोगी होगा।
भगवती
#स्वार्थी संसार